सामाजिक असमानता एवं बहिष्करण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

[ 1 ] आदिम समाज में जादू के कौन से प्रकार को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है ?

(A) काला जादू
(B) अनुकरणात्मक जादू
(C) सफेद जादू
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ (C)

 [ 2 ] निम्न में से कौन एक अनुसूचित जाति नहीं है ?

(A) मुसहर
(B) दुसाध
(C) रजक
(D) धनुक

Answer ⇒ (D)

 [ 3 ] युवा संगठन किस समाज में पाया जाता है ?

(A) ग्रामीण समाज
(B) नगरीय समाज
(C) आदिम समाज
(D) औद्योगिक समाज

Answer ⇒ (C)

 [ 4 ] ‘बिटलाहा’ परम्परा किस समाज में पायी जाती है ?

(A) आदिम समाज
(B) मुस्लिम समाज
(C) सिख समाज
(D) नगरीय समाज

Answer ⇒ (A)

 [ 5 ] किस वर्ष घरेलू हिंसा कानून पास हुआ ?

(A) 2005
(B) 2007
(C) 1998
(D) 2009

Answer ⇒ (A)

 [ 6 ] निम्न में से किनके प्रयास से सती प्रथा उन्मूलन संभव हुआ ?

(A) राम मोहन राय
(B) रमा बाई
(C) विनोबा भावे
(D) राम मनोहर लोहिया

Answer ⇒ (A)

 [ 7 ] 1856 में निम्न में से किनके प्रयास से विधवा विवाह कानून पारित हुआ ?

(A) राम मोहन राय
(B) रमा बाई
(C) ज्योतिबा फूले
(D) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर

Answer ⇒ (A)

 [ 8 ] संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय महिला दशक कब मनाया गया ?

(A) 1975-85
(B) 1980-90
(C) 1985-95
(D) 1990-2000

Answer ⇒ (A)

 [ 9 ] प्रधानमंत्री रोजगार योजना किस क्षेत्र के युवकों को रोजगार प्रदान करता है ?

(A) ग्रामीण क्षेत्र
(B) ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्र
(C) नगरीय क्षेत्र
(D) आदिवासी क्षेत्र

Answer : –  B

 [ 10 ] जातीय पूर्वाग्रह का क्या अर्थ है ?

(A) जाति वर्गीकरण
(B) किसी जाति में प्रवेश पाने के लिए किया गया प्रयास
(C) जाति संघर्ष
(D) किसी जाति से संबंधित अवैज्ञानिक एवं गलत अवधारणा

Answer ⇒ (D)

 [ 11 ] अनुसूचित जनजाति के कल्याण हेतु कौन सा स्वैच्छिक अभिकरण सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ढंग से कार्यरत है ?

(A) समाज कल्याण मंत्रालय
(B) भारतीय आदिम जाति सेवासंघ
(C) जनजातीय सलाहकार परिषद
(D) जनजातीय शोध संस्थाएँ

Answer ⇒ (B)

 [ 12 ] भारत में जनसंख्या की दृष्टि से कौन-सा अल्पसंख्यक समूह सबसे छोटा है ?

(A) ईसाई
(B) सिख
(C) जैन
(D) बौद्ध

Answer ⇒ (C)

 [ 13 ] मुस्लिम समाज में व्यापक पैमाने पर सुधार आंदोलन कार्य किसने किया ?

(A) मौलाना अबुल कलाम आजाद
(B) डॉ० जाकिर हुसैन
(C) सैयद अहमद खाँ
(D) ए० पी० जी० अब्दुल कलाम

Answer ⇒ (C)

 [ 14 ] पूर्वाग्रह की सीख सर्वप्रथम व्यक्ति को कहाँ से होती है ?

(A) परिवार
(B) जाति
(C) समुदाय
(D) बाजार

Answer ⇒ (A)

 [ 15 ] पूर्वाग्रह लोगों के किस स्तर को प्रभावित करता है ?

(A) मानसिक
(B) सामाजिक
(C) व्यवहारिक
(D) राजनीतिक

Answer ⇒ (C)

 [ 16 ] निम्नलिखित में कौन-सी समस्या भारतीय नारियों की नहीं है ?

(A) लिंग समानता
(B) अशिक्षा
(C) कुपोषण
(D) अज्ञानता एवं अंधविश्वास

Answer ⇒ (A)

 [ 17 ] जनजातियों पर अत्याचारों को रोकने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा अत्याचार निरोधक अधिनियम कब लागू किया गया ?

(A) 1988 में
(B) 1989 में
(C) 1990 में
(D) 1991 में

Answer ⇒ (B)

 [ 18 ] अस्पृश्यता का संबंध किससे है ?

(A) वर्ग व्यवस्था
(B) संपदा
(C) जाति प्रथा
(D) दास प्रथा

Answer ⇒ (C)

 [ 19 ] भारत में अल्पसंख्यकों के अंतर्गत कौन नहीं आते हैं ?

(A) धार्मिक अल्पसंख्यक
(B) भाषाई अल्पसंख्यक
(C) जनजातीय अल्पसंख्यक
(D) जातीय अल्पसंख्यक

Answer ⇒ (D)

 [ 20 ] वर्तमान भारत में जनजातियों की सर्वप्रमख समस्या है –

(A) निर्धनता
(B) बाल मजदूरी
(C) आवास
(D) पर-संस्कृति ग्रहण

Answer ⇒ (D)

 [ 21 ] भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों की अधिकृत अनुसूची कब घोषित की गई ?

(A) सन् 1955
(B) सन् 1950
(C) सन् 1935
(D) सन् 1952

Answer ⇒ (C)

 [ 22 ] अस्पृश्यता के मुख्य कौन-कौन से आयाम होते हैं ?

(A) बहिष्कार
(B) अधीनता
(C) शोषण
(D) उपर्युक्त सभी

Answer ⇒ (C)

 [ 23 ] सरकारी स्कूलों में दलितों को दाखिल कराने के लिए अधिनियम कब बनाया गया ?

(A) 1847
(B) 1849
(C) 1850
(D) 1852

Answer ⇒ (B)

 [ 24 ] ‘स्त्री-पुरुष तुलना’ नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं ?

(A) चाँद बीबी
(B) ताराबाई शिंडे
(C) जानकी बाई
(D) इन्दिरा गाँधी

Answer ⇒ (B)

 [ 25 ] किन्होंने सीमांत व्यक्ति की अवधारणा दी –

(A) जॉनसन
(B) मर्टन
(C) पार्सन्स
(D) मार्क्स

Answer ⇒ (B)

 [ 26 ] ‘मंडल आयोग’ संबंधित था –

(A) अनुसूचित जनजातियों से
(B) अल्पसंख्यकों से
(C) अन्य पिछड़े वर्गों से
(D) अनुसूचित जातियों से

Answer ⇒ (C)

 [ 27 ] निम्न में से भारत के किस राज्य में ईसाइयों की संख्या सर्वाधिक है ?

(A) बिहार
(B) मध्य प्रदेश
(C) तमिलनाडु
(D) केरल

Answer ⇒ (D)

 [ 28 ] कृषक समाजों एवं जनजातीय समाजों की सामाजिक संरचनाओं की तुलना प्रायः निम्न में से किस आधार पर की गई है ?

(A) जनसंख्या आकार
(B) भौगोलिक पृथक्करण
(C) स्तरीकरण
(D) नातेदारी व्यवस्था

Answer ⇒ (B)

 [ 29 ] स्तरीकरण में निम्नलिखित में से कौन-सीअवधारणा निहित है ?

(A) प्राथमिक समूह
(B) संदर्भ समूह
(C) अंत समूह
(D) लघु समूह

Answer ⇒ (B)

 [ 30 ] 2001 की जनगणना रिपोर्ट में विकलांगता के कितने प्रकार बताये गये हैं ?

(A) दो प्रकार
(B) तीन प्रकार
(C) चार प्रकार
(D) पाँच प्रकार

Answer : –  B

 [ 31 ] भारत में अन्य पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय उच्चतम न्यायालय ने कब किया ?

(A) 1987 में
(B) 1992 में
(C) 1976 में
(D) 1979 में

Answer ⇒ (B)

 [ 32 ] सन् 2001 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जातियों की संख्या बिहार की जनसंख्या का कितना प्रतिशत है ?

(A) 20 प्रतिशत
(B) 15 प्रतिशत
(C) 15 ]74 प्रतिशत
(D) 8 ]5 प्रतिशत

Answer ⇒ (C)

 [ 33 ] भारत में अनुसूचित जातियों के आरक्षण का प्रावधान संविधान की किस धारा के अंतर्गत है ?

(A) 330
(B) 301
(C) 379
(D) 335

Answer ⇒ (D)

 [ 34 ] निम्नांकित में से संविधान के कौन से अनुच्छेद अनुसूचित जातियों के कल्याण और विकास से संबंधित है ?

(A) 330
(B) 335
(C) 15
(D) 17

Answer ⇒ (C)

 [ 35 ] मंडल आयोग ने अन्य पिछड़े वर्गों के चयन के लिए किन आधारों को स्वीकार किया ?

(A) सामाजिक
(B) आर्थिक
(C) राजनैतिक
(D) शैक्षणिक

Answer ⇒ (A)

 [ 36 ] अनुसूचित जातियों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के द्वारा होने वाली नियुक्तियों में दिए जाने वाले आरक्षण का प्रतिशत है ?

(A) 15 प्रतिशत
(B) 17 प्रतिशत
(C) 18 प्रतिशत
(D) 20 प्रतिशत

Answer ⇒ (A)

 [ 37 ] भारत में मंडल आयोग की नियुक्ति की गई –

(A) सन् 1967 में
(B) सन् 1970 में
(C) सन् 1978 में
(D) सन् 1979 में

Answer ⇒ (D)

 [ 38 ] भारत में अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने का निर्णय उच्चतम न्यायालय ने कब किया ?

(A) सन् 1990 में
(B) सन् 1992 में
(C) सन् 1993 में
(D) सन् 1994 में

Answer ⇒ (B)

 [ 39 ] निम्नलिखित में से किस लेखक ने सामाजिक विषमताओं का विस्तार से अध्ययन किया है ?

(A) जे० एच० हट्टन
(B) ए० आर० देसाई
(C) एस० सी० दूबे
(D) आन्द्रे बिताई

Answer ⇒ (D)

 [ 40 ] जब लैंगिक विषमता को सामाजिक तथा धार्मिक नियमों की स्वीकृति प्राप्त होती है, तब उसे कहा जाता है—

(A) सामाजिक विषमता
(B) सांस्कृतिक विषमता
(C) धार्मिक विषमता
(D) संस्थागत विशेषता

Answer ⇒ (D)

 [ 41 ] भारत सरकार ने सर्वप्रथम अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना किस वर्ष में की ?

(A) सन् 1978
(B) सन् 1980
(C) सन् 1985
(D) सन् 1988

Answer ⇒ (A)

 [ 42 ] भारतीय संविधान के किन अनुच्छेदों में अल्पसंख्यकों को अपने धर्म के अनुसार व्यवहार करने तथा सभी नियुक्तियों में समान अवसर पाने का अधिकार है ?

(A) अनुच्छेद 13
(B) अनुच्छेद 16
(C) अनुच्छेद 25
(D) अनुच्छेद 29

Answer ⇒ (A)

 [ 43 ] भारत में विकलांगों में सबसे अधिक संख्या किस श्रेणी की है ?

(A) दृष्टिहीन लोगों की
(B) बधिर लोगों की
(C) मूक लोगों की
(D) मन्द-बुद्धि लोगों की

Answer ⇒ (A)

 [ 44 ] भारत में विकलांग लोगों के लिए “कृत्रिम  अंग निर्माण निगम” किस नगर में स्थित है ?

(A) दिल्ली
(B) मुम्बई
(C) कानपुर
(D) राजस्थान

Answer ⇒ (C)

 [ 45 ] भारत में विकलांग व्यक्ति अधिनियम कब पारित किया गया ?

(A) 1952
(B) 1953
(C) 1954
(D) 1955

Answer ⇒ (D)

 [ 46 ] भारत में निम्नलिखित में किसे अल्पसंख्यक माना जाता है ?

(A) मुस्लिम
(B) सिक्ख
(C) ईसाई
(D) सभी तीन

Answer ⇒ (D)

 [ 47 ] स्त्रियों के निम्न स्थिति का सर्वप्रथम कारण चुनें!

(A) अशिक्षा
(B) हिन्दू धर्म
(C) संयुक्त परिवार
(D) जाति व्यवस्था

Answer ⇒ (A)

 [ 48 ] भारत के निम्न में से किस राज्य में हिन्दू लोग अल्पसंख्यक समुदाय हैं ?

(A) केरल
(B) जम्मू एवं कश्मीर
(C) पंजाब
(D) हरियाणा

Answer ⇒ (B)

 [ 49 ] निम्नलिखित में से कौन एक सामाजिक समस्या है ?

(A) प्रेम-विवाह
(B) नगरीकरण
(C) भिक्षावृत्ति
(D) आधुनिकीकरण

Answer ⇒ (C)

 [ 50 ] किस वर्ष महिला समृद्धि योजना को प्रारंभ किया गया ?

(A) 1991
(B) 1993
(C) 1990
(D) 2000

Answer ⇒ (D)

 [ 51 ] भारत में निम्नांकित अल्पसंख्यक समूहों में से जनसंख्या के आधार पर सबसे बड़ा कौन है ?

(A) ईसाई
(B) सिक्ख
(C) बौद्ध
(D) जैन

Answer ⇒ (B)

 [ 52 ] संयुक्त राष्ट्र ने किस वर्ष को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष’ के रूप में घोषित किया ?

(A) 2001
(B) 1975
(C) 1985
(D) 1980

Answer ⇒ (C)

 [ 53 ] किसने सीमांत मानव की अवधारणा दी है ?

(A) मार्क्स
(B) पार्सन्स
(C) रॉबर्ट ई० पार्क
(D) जॉनसन

Answer ⇒ (C)

 [ 54 ] वर्ग व्यवस्था की विशेषताएँ हैं –

(A) वंश पर आधारित
(B) प्रतियोगिता
(C) खुलापन
(D) निर्धारित पेशा

Answer ⇒ (C)

 [ 55 ] महात्मा गाँधी ने सर्वप्रथम अछूत जातियों को किस शब्द द्वारा संबोधित करना आरंभ किया ?

(A) हरिजन
(B) दलित
(C) अस्पृश्य
(D) अनुसूचित जाति

Answer ⇒ (A)

 [ 56 ] भारत सरकार द्वारा पिछड़े वर्गों के लिए दिए जाने वाले आरक्षण का प्रतिशत कितना है ?

(A) 27 प्रतिशत
(B) 26 प्रतिशत
(C) 28 प्रतिशत
(D) 29 प्रतिशत

Answer ⇒ (A)

 [ 57 ] निम्नलिखित में से सीमांतीकरण को किस तरह की प्रक्रिया कहा जायेगा ?

(A) सकारात्मक प्रक्रिया
(B) नकारात्मक प्रक्रिया
(C) सांस्कृतिक प्रक्रिया
(D) आर्थिक प्रक्रिया

Answer ⇒ (B)

 [ 58 ] सीमांत व्यक्ति की अवधारणा किसने प्रस्तुत की है ?

(A) रॉबर्ट ई० पार्क
(B) रॉबर्ट मर्टन
(C) मजूमदार
(D) मार्क्स

Answer ⇒ (A)

 [ 59 ] सीमांतीकरण की प्रक्रिया किस दशा के निकट है ?

(A) संस्कृतिकरण की दशा
(B) सांस्कृतिक परिवर्तन की दशा
(C) संक्रमण की दशा
(D) विकास की दशा

Answer ⇒ (C)

 [ 60 ] निम्नलिखित में से कौन-सी एक दशा जनजातीय समुदाय के सीमांतीकरण का कारण नहीं है ?

(A) शिक्षा में वृद्धि
(B) धर्म परिवर्तन
(C) मूल भाषा का परित्याग
(D) नए सामाजिक मूल्य

Answer ⇒ (A)

 [ 61 ] जब लैंगिक विषमता का सामाजिक तथा धार्मिक नियमों की स्वीकृति प्राप्त होती है, तब इसे कहा जाता ह—

(A) सामाजिक विषमता
(B) सांस्कृतिक विषमता
(C) संस्थागत विषमता
(D) धार्मिक विषमता

Answer ⇒ (C)

 [ 62 ] निम्नलिखित में से किस एक लेखक ने सामाजिक विषमताओं का विस्तार से उपचयन किया है ?

(A) आंद्रे विताई
(B) जे० एच० हट्टन
(C) एस० सी० दूबे
(D) ए० आर० देसाई

Answer ⇒ (A)

 [ 63 ] अनुसूचित जातियों को आरक्षण दिया जाता है, उनकी –

(A) गरीबी के संदर्भ में
(B) आर्थिक आवश्यकताओं के संदर्भ में
(C) संख्या के संदर्भ में
(D) निम्न अनुष्ठानिक स्थिति के संदर्भ में

Answer ⇒ (A)

 [ 64 ] भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों को अपनी संस्कृति और भाषा बनाये रखने के लिए संरक्षण प्रदान किया गया है ?

(A) धारा 16
(B) धारा 29
(C) धारा 42
(D) धारा 46

Answer ⇒ (B)

 [ 65 ] निम्नलिखित में से किसको किसी एक जाति को अनुसूचित जाति घोषित करने का अधिकार है ?

(A) भारत के राष्ट्रपति
(B) राज्य का राज्यपाल
(C) अनुसूचित जाति आयुक्त
(D) केंद्रीय मंत्रिमंडल

Answer ⇒ (A)

 [ 66 ] मंडल आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?

(A) बिंदेश्वरी प्र० मंडल
(B) धनिक लाल मंडल
(C) मंगनीलाल मंडल
(D) चन्देश्वरी लाल मंडल

Answer ⇒ (A)

 [ 67 ] ‘सबला’ स्कीम केंद्रित है

(A) असहाय महिलाएँ
(B) किशोरियाँ
(C) मातृत्व लाभ
(D) इनमें से सभी

Answer ⇒ (D)

 [ 68 ] किसने लैंगिक असमानता के सात प्रकारका उल्लेख किया है ?

(A) पाणिकर
(B) मजूमदार
(C) दुबे
(D) अमर्त्य सेन

Answer ⇒ (D)

 [ 69 ] लैंगिक विषमता का संबंध है—

(A) सामाजिक मूल्यों से
(B) आर्थिकी से
(C) राजनैतिक मूल्यों से
(D) उपरोक्त सभी

Answer ⇒ (A)

 [ 70 ] निम्नलिखित में से कौन मुस्लिम समुदाय की समस्या है ?

(A) असुरक्षा की भावना
(B) शैक्षणिक पिछड़ापन
(C) साम्प्रदायिक तनाव
(D) उपरोक्त सभी

Answer ⇒ (D)

 [ 71 ] किस कमीशन में पिछड़े वर्ग को मध्यम स्तर की जातियाँ के रूप में स्पष्ट किया गया था ?

(A) मण्डल कमीशन
(B) कोठारी कमीशन
(C) सरकारीया कमीशन
(D) साइमन कमीशन

Answer ⇒ (A)

 [ 72 ] जननी सुरक्षा योजना निम्न में से किससे संबंधित है ?

(A) बच्चों के जन्म से
(B) घरेलू हिंसा से
(C) लिंग विभेद से
(D) रोजगार से

Answer ⇒ (A)

 [ 73 ] समाजशास्त्रियों के अनुसार लैंगिक विषमता का सम्बन्ध किससे है ?

(A) राजनीतिक मूल्यों से
(B) सामाजिक मूल्यों से
(C) आर्थिकी
(D) जनसंख्या

Answer ⇒ (B)

 [ 74 ] भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के निर्धारण का आधार क्या है ?

(A) राष्ट्रीयता
(B) धर्म

(C) प्रजाति
(D) भाषा

Answer ⇒ (B)

 [ 75 ] निम्न में से कौन जाति व्यवस्था का दोष है ?

(A) अस्पृश्यता की समस्या
(B) जातिगत संघर्ष
(C) सामाजिक शोषण
(D) उपर्युक्त सभी

Answer ⇒ (D)

 [ 76 ] राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष कौन हैं ?

(A) पी०एल० पुनिया
(B) बूटा सिंह
(C) राम शंकर कोठारिया
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ (A)

 [ 77 ] ‘मुख्यमंत्री स्वयं सहायता भत्ता योजना’ की शुरुआत बिहार में किस वर्ष की गई ?

(A) 2017
(B) 2018
(C) 2019
(D) 2016

Answer ⇒ (D)

लघु उत्तरीय प्रश्न

1.दबाव समूह से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ दबाव समूह शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1928 में पीटर ओडीगार्ड ने अपनी पुस्तक ‘दबाव की राजनीति’ में किया था। 20वीं शताब्दी के पाँचवें दशक के पश्चात् दबाव समूह, दबाव की राजनीति तथा हित समूह जैसे शब्दों का निरंतर प्रयोग होता रहा है। दबाव समूह एक औपचारिक संरचना है जो अनेक समूहों से निरंतर सम्पर्क बनाये रखता है। इसके कई लक्षण राजनीतिक दलों से मिलते हैं, लेकिन यह प्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक प्रक्रियाओं, चुनाव आदि में भाग नहीं लेता, बल्कि परोक्ष रूप से सत्ता को प्रभावित करने का प्रयास करता है।

2. भारत में नगरीकरण की प्रमुख प्रवृत्ति की चर्चा करें। अथवा, नगरीकरण से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ नगरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत ग्रामीण लोग शहर की ओर प्रवास करते हैं और नगरों के प्रभाव में उनके ग्रामीण जीवन के तौर-तरीकों में परिवर्तन आता है।

भारत में नगरीकरण की प्रवृत्तियाँ –

1.नगरीकरण एक दोहरी प्रक्रिया है। एक ओर यह प्रक्रिया ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे एवं बड़े नगरों में विस्तार होने की दशा को स्पष्ट करती है तो दूसरी ओर इसका संबंध नगरीय जीवन शैली की दशा से है।

2. इस प्रक्रिया के अंतर्गत कृषि एवं ग्रामीण उद्योग धंधों की जगह नगरीय व्यवसायों का महत्त्व बढ़ने लगा है।

3. नगरीकरण के अंतर्गत व्यक्तियों एवं समूहों के बीच व्यक्तिगत स्वार्थों पर आधारित सम्बन्धों में वृद्धि होने लगती है।

3. जातिवाद सामाजिक एकता में बाधक है। कैसे ? 

अथवा, जातिवाद प्रजातंत्र के विकास में बाधक है। कैसे ?

Ans ⇒ प्रजातंत्र एक ऐसी प्रणाली है जिसमें संवैधानिक रूप से सभी व्यक्तियों को सभी व्यक्तियों को समान अधिकार देकर उन्हें अपने व्यक्तित्व का विकास करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं। इसमें व्यक्ति की जाति, धर्म, आर्थिक स्थिति तथा परिवार को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है, बल्कि राज्य की दृष्टि में सभी का महत्त्व समान है।
दूसरी ओर जातिवाद एक जाति के व्यक्तियों की वह भावना है जो देश या समाज के हितों का ध्यान न रखते हुए व्यक्ति को केवल अपनी ही जाति के उत्थान, जातीय एकता और जाति की सामाजिक स्थिति को सदढ करने के लिए प्रेरित करती है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जातिवाद तथा प्रजातंत्र मौलिक रूप से एक-दूसरे की विरोधी व्यवस्थाएँ है जिसके फलस्वरूप हमारी प्रजातांत्रिक प्रणाली के सामने एक गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। साथ ही जातिवाद सामाजिक एकता में भी बाधक बन गया है।

4. मध्यमवर्ग किसे कहते हैं ?

Ans ⇒ भारतीय समाज की सामाजिक और आर्थिक संरचना में मध्यमवर्ग की भूमिका हमेशा बहुत महत्त्वपूर्ण रही है। इस वर्ग के अंतर्गत उन व्यापारियों, बुद्धिजीवियों, शिक्षकों, वेतनभोगी कर्मचारियों, सामान्य अधिकारियों, मामूली व्यावसायिक समूहों, मध्यमस्तर वाले किसानों आदि को शामिल किया जाता है, जो अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समुचित आय प्राप्त कर लेते हैं। आय के अनुसार अपनी आवश्यकताओं को बढ़ाना या कम करना इस वर्ग की विशेषता है। अपने सीमित साधनों के बाद भी यह वर्ग सामाजिक रूप से सबसे अधिक जागरुक रहता है। इसी के द्वारा सामाजिक, नैतिक तथा राष्ट्रीय मूल्यों का संरक्षण होता है। भारत में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी इसी वर्ग की भूमिका सबसे अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुई। परंपरागत रूप से इस वर्ग के व्यवहार अपने सांस्कृतिक नियमों से प्रभावित होते हैं।

5. दलित आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ दलित आन्दोलन का संबंध अनुसूचित जातियों से है जिसका नेतृत्व ज्योतिबा फूले, तुकाराम, बाबा साहब अम्बेडकर और ई. वी. रामास्वामी पेरियर जैसे नेताओं ने किया। भक्ति आंदोलन ने अस्पृश्यता उन्मूलन में विशेष भूमिका निभाई। दयानन्द सरस्वती ने हिन्दू समाज को लोकतांत्रिक आधार प्रदान किया। स्वामी विवेकानन्द ने करुणा तथा भाईचारे का पैगाम दिया तथा दालता में आत्मविश्वास और आत्म सम्मान की भावना जगायी। महाराष्ट्र में ज्योतिबा फूले ने सत्य शोधक समाज की स्थापना की। हिन्दू समाज की दमनकारी नीतियों एवं ताकतों के खिलाफ संघर्ष किया।
बी० आर० अंबेडकर ने दलित आन्दोलन को अपने विचारों द्वारा आगे बढ़ाया। अम्बेडकर भारतीय संविधान के निर्माता भी थे। अतः दलितों के अधिकार एवं संरक्षण से संबंधित मुद्दों को संवैधानिक प्रावधानों के तहत संस्थागत रूप दिया। महाराष्ट्र में दलितों द्वारा दलित पैंथर आंदोलन की शुरुआत हुई जिससे बौद्धिक जगत में एक नयी चेतना विकसित हुई।

6. सामाजिक स्तरीकरण की संक्षिप्त चर्चा करें।

Ans ⇒ सामाजिक स्तरीकरण का आशय उस तंत्र से है जिसके द्वारा समाज लोगों को एक पदानुक्रम में वर्गीकृत करता है। थियोडोरसन और थियोडोरसन ने इस समाज में सामाजिक स्तरीकरण के पदानुक्रमित व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया है। इस अर्थ में स्तरीकरण का आशय विशेष रूप से समाज को विभिन्न स्तरों में विभाजित करने की प्रक्रिया से है। वर्गीकरण अधिकार, प्रतिष्ठा, प्रभाव तथा सत्ता के आधार पर होता है। सामाजिक स्तरीकरण में सामाजिक असमानता निहित रहती है जो या तो व्यक्तियों द्वारा निष्पादित कार्यों के कारण या कुछ विशिष्ट . व्यक्तियों या समूहों या दोनों के द्वारा संसाधनों पर नियंत्रण करने से उत्पन्न होती है।

7. युवा गृह से आप क्या समझते हैं ?

अथवा, धुमकुरिया क्या है ?

Ans ⇒ जनजातीय समाजों में युवाओं के संगठन को युवा गृह कहा जाता है। उराँव जनजाति इसे धुमकुरिया कहती है। यह गाँव के बीच में या गाँव से बाहर एक बड़े कमरे में रहता है। एक आयु सीमा से कम या ज्यादा होने पर स्वतः युवागृह की सदस्यता समाप्त हो जाती है। युवा गृह में रात में लड़के-लड़कियाँ आपस में नाच-गाकर जनजातीय संस्कृति, कला और यौन शिक्षा प्राप्त करते हैं। यह समाजीकरण का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र होता है।

8. समुदाय को परिभाषित करें।

Ans ⇒ व्यक्तियों के ऐसे बड़े समूह को समुदाय कहा जाता है जो एक निश्चित भू-भाग में सामान्य जीवन व्यतीत करता है तथा जिसके सदस्य उसी भू-भाग के अन्तर्गत अपने जीवन की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। इसी बात को स्पष्ट करते हुए मैकाइवर तथा पेज ने कहा है कि “समुदाय सामान्य जीवन का एक क्षेत्र है।” बस्ती, गाँव, नगर या जनजाति इसके उदाहरण हैं।

9. कृषक समाज किसे कहते हैं ?

Ans ⇒ कृषक समाज का तात्पर्य ऐसे समाज में है जो भूमि से जुड़ा होता है, जिसका मुख्य कार्य कृषि कार्य करना है तथा जिसकी एक परम्परागत संस्कृति होती है। इसकी आर्थिक स्थिति संतोषप्रद नहीं होती है। अर्थव्यवस्था में कृषक समाज का योगदान सबसे अधिक होता है। है, क्योंकि यही समाज खाद्यान्न की आवश्यकता को पूरा करता है।

10. भूमि सुधार से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ गाँवों की सामाजिक-आर्थिक संरचना का मुख्य आधार भूमि है। भूमि सुधार का अभिप्राय कृषि भूमि की ऐसी व्यवस्था करना है जिससे छोटे और भूमिहीन किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके। इसका मुख्य उद्देश्य समानता और सामाजिक न्याय के आधार पर कषि व्यवस्था का पनर्गठन करना है।

11. अनेकता में एकता से आप क्या समझते हैं ? अथवा, भारतीय समाज में मौजूद अनेकता में एकता के तत्त्वों को स्पष्ट करें।

Ans ⇒ भारतीय समाज का निर्माण अनेक नस्लों, धर्मों, सांस्कृतियों एवं विचारों के लोगों से मिलकर हुआ है।
संविधान के अनुसार सभी धर्मों का स्वागत है तथा अपने धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करने की स्वतंत्रता है। सभी को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त है। सभी के वयस्क मताधिकार का अधिकार है। विचारों की अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता एवं प्रतिष्ठा की रक्षा का अधिकार और भाईचारे की भावना के विकास पर जोर दिया गया है। विभिन्न अवसरों पर हिन्दू तथा मुस्लिम आदि एक-दूसरे का सहयोग करते हैं और इस प्रकार भारतीय समाज में अनेकता में एकता के कारण स्थायित्व एवं निरंतरता पायी है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक अनेक धर्म, विश्वास संस्कृति, भाषा, वेशभूषा, प्रजाति आदि के होते हुए भी हम सब भारतीय होने का गर्व करते हैं। यही है अनेकता में एकता।

12. पश्चिमीकरण से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ प्रसिद्ध समाजशास्त्री श्रीनिवास के अनुसार, “इस शब्द में डेढ़ सौ वर्षों से अधिक के अंग्रेजी शासन के फलस्वरूप भारतीय समाज और संस्कृति में आये परिवर्तन तथा विभिन्न स्तरों पर प्रौद्योगिकी, संस्थाओं, विचारधारा तथा मूल्यों में आए परिवर्तन सम्मिलित हैं।”

13. सीमान्तीकरण का क्या अर्थ है ?

Ans ⇒ सीमान्तीकरण परिवर्तन की एक विशेष प्रक्रिया है। यह एक नकारात्मक प्रक्रिया है जिसके द्वारा विभिन्न आधारों पर कोई विशेष समूह या समुदाय सम्पूर्ण समाज से अलग-थलग होने लगता है। उदाहरणार्थ, अमेरिका तथा अफ्रीका में एक लम्बी अवधि तक रंगभेद के आधार पर इस तरह के भ्रामक प्रचार किये गये कि गोरे लोगों द्वारा काले लोगों को राष्ट्र की मूलधारा से अलग-थलग करके उन्हें सभी अधिकारों से वंचित कर दिया गया। इसी तरह, भारतीय समाज में निम्न जातियों के प्रति व्यवहार के ऐसे नियम बनाए गये जिसके कारण उन्हें लम्बी अवधि तक सीमान्तीकरण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा।

14. एकाकी परिवार क्या है ? . अथवा, एकाकी परिवार से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ वह परिवार जिसमें पति-पत्नी और उसके अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं उसे एकाकी परिवार कहा जाता है। चूंकि एकाकी परिवार के सदस्यों की संख्या कम होती है इस कारण एकाकी परिवार का आकार छोटा होता है। भारत में एकाकी परिवार का प्रचलन पहले नहीं था। परंतु औद्योगीकरण और नगरीकरण के कारण भारत में संयुक्त परिवार का विघटन हो रहा है और एकाकी परिवारों का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। अब तो लोग एकाकी परिवार को ही पसंद करने लगे हैं। परिणामस्वरूप इसकी लोकप्रियता बढ़ी है।

15. जनांकिकी की परिभाषा दें।

Ans ⇒ सर्वप्रथम जनांकिकी शब्द का प्रयोग सन् 1885 में गुईलार्ड ने किया था। जनांकिकी अंग्रेजी शब्द डेमोग्राफी का हिन्दी रूपांतरण है। डेमोग्राफी दो यूनानी शब्दों ‘डेमोस’ तथा ‘ग्राफीन’ से मिलकर बना है। पहले शब्द का अर्थ जनसंख्या है तथा दूसरे का अर्थ विवरण देने वाला विज्ञान है। इस प्रकार शाब्दिक रूप से जनांकिकी वह विज्ञान है जो एक विवरण के रूप में जनसंख्या संबंधी विशेषताओं को स्पष्ट करता है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रकाशित जनसंख्यात्मक शब्दकोश के अनुसार, ‘जनांकिकी मानव जनसंख्या का वैज्ञानिक अध्ययन है जिसमें मुख्य रूप से जनसंख्या के आकार, उसकी संरचना और विकास का विश्लेषण किया जाता है।

16. सामाजिक आंदोलन का क्या अर्थ है ?

Ans ⇒ 20वीं शताब्दी के मध्य में सामाजिक आंदोलन की चर्चा अधिक होने लगी। सामाजिक आंदोलन को एक ऐसे प्रयत्न के रूप में देखा जाता है जिसके द्वारा एक विशेष समूह अथवा समदाय अपनी सामाजिक संस्थाओं तथा सामाजिक संरचना में वांछित परिवर्तन ला सके। वास्तव में, सामाजिक आंदोलन का उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन लाना ही नहीं, बल्कि कभी-कभी परिवर्तन को रोकना भी होता है।

17. सामाजिक आंदोलन की विशेषताओं का उल्लेख करें।

Ans ⇒  सामाजिक आंदोलन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

1.सामाजिक आंदोलन एक सामूहिक प्रयास होता है।
2. इसका संचालन संगठित जन-समूह करता है।
3. इसका एक निश्चित उद्देश्य या लक्ष्य होता है।
4. यह एक विशेष विचारधारा पर आधारित होता है।
5. इसका आधार किसी क्षेत्र, समुदाय अथवा बड़े समूह में एक विशेष समस्या का उत्पन्न होना है।
6. सामाजिक आंदोलन में नेतृत्व एक प्रमुख तत्व है।
7. इसका लक्ष्य परिवर्तन लाना होता है।
8. इसकी प्रकृति व्यवस्था विरोधी होती है।

18. भारतीय समाज में प्रान्तीयता की समस्या की चर्चा करें।

अथवा, प्रान्तीयता से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ प्रान्तीयता का तात्पर्य एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र के निवासियों की उस संकीर्ण मनोवृत्ति से है जिसके अंतर्गत वे एक क्षेत्र विशेष को केवल अपना और अपने लिए ही मानकर अपने स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अलगाववाद को प्रोत्साहन देते हैं। आज प्रांतीयता हमारी एक मुख्य समस्या है जिसने बंगाल बंगालियों के लिए मद्रास मद्रासियों के लिए या गढ़वाल गढ़वालियों के लिए का नारा दिया और राष्ट्रीयता के विकास में बाधा उत्पन्न की।

19. भारतीय समाज में धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता की चर्चा करें।

Ans ⇒ धर्मनिरपेक्षता का अभिप्राय है-सभी धर्मों के प्रति श्रद्धा रखना और राज्य का अपना कोई धर्म न होना। भारतीय समाज के निर्माण में उन सभी व्यक्तियों का योगदान है जो हिन्दू, मुसलमान, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी धर्म को मानने वाले हैं। भारत विभिन्न धर्मों का समन्वय स्थल है। अतः भारत के लिए धर्मनिरपेक्षता जरूरी है। धर्मनिरपेक्षता के कारण ही यहाँ विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों का समावेश होने के बाद भी सभी धर्म और सम्प्रदाय एक-दूसरे के पूरक हैं।

20. पितृसत्तात्मक परिवार क्या है ?

Ans ⇒ पितृसत्तात्मक परिवार वे होते हैं जिनमें बच्चों को उनके पिता के नाम से जाना जाता है। पिता के वंश परम्परा को अधिक महत्त्व दिया जाता है। वंश परम्परा पिता के नाम से चलता है। विवाह के बाद बेटे की पत्नी अपने सास-ससुर और पति के साथ रहती है, जबकि बेटियाँ शादी के बाद अपने पति के यहाँ चली जाती हैं। ऐसे परिवारों में स्त्रियों की तुलना में पुरुषों के अधिकार अधिक होते हैं। जीविका उपार्जन भी मुख्य रूप से पुरुष सदस्यों द्वारा ही किया जाता है।

21. मातृसत्ता का अर्थ स्पष्ट करें। .

अथवा, मातृसत्तात्मक परिवार का अभिप्राय क्या है ?

Ans ⇒ परिवार की सत्ता जब माता या समाज के रीति-रिवाजों के अनुसार परिवार की किसी महिला के हाथ में होती है तो उसे मातृ सत्ता कहा जाता है। वंश की परम्परा भी माता के नाम पर चलती है। विवाह के बाद पुरुष या तो अपनी पत्नी के घर आकर रहता है अथवा अपनी बहन के साथ रहकर उसके परिवार की देखभाल करता है। सम्पत्ति का उत्तराधिकार भी माता से पत्री को प्राप्त होता है।

22. भारत में स्त्री-पुरुष अनुपात की व्याख्या करें।

Ans ⇒ एक निश्चित अवधि में किसी विशेष क्षेत्र में प्रति एक हजार पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या स्त्री-पुरुष अनुपात कहलाता है। भारत में 2001 की जनगणना के अनुसार प्रति एक हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या 933 थी। जनसंख्या के समग्र लिंग अनुपात में सुधार होकर यह 2011 में 940 हुआ है। यह 1971 की जनगणना के बाद दर्ज उच्चतम लिंग अनुपात है। लिंग अनुपात में 29 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में वृद्धि हुई है।

23. सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिक कारक की भूमिका क्या है ?

Ans ⇒ आदिम काल, प्राचीन काल और आधुनिक काल के बीच जो फर्क है उसका आधार प्रौद्योगिकी है। मानव समाज ने परिवर्तन की एक लम्बी दूरी तय की है, जिसका मुख्य कारण यह है कि मानव समाज प्रकतिप्रदत्त पर्यावरण से मानव निर्मित पर्यावरण की आर बढ़ा है। पूँजीवाद के विकास में नि:संदेह इस प्रौद्योगिकी की भूमिका अहम रही है।
यातायात एवं जनसंचार के माध्यमों में हुए क्रांतिकारी परिवर्तन ने भी हमारे भौतिक पर्यावरण में काफी बदलाव लाया है। इसका मुख्य श्रेय समाज में निरंतर प्रौद्योगिकी परिवर्तन को है। इससे समय एवं दूरी पर मानव ने अपना नियंत्रण बना लिया है। फलत: भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के बीच आदान-प्रदान की प्रक्रिया बढ़ी है।
प्रौद्योगिकी विकास ने समाज में औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया को बढ़ाया है। उत्पादन के साधनों में निरंतर विस्तार हो रहा है। इससे एक नयी सामाजिक संरचना एवं व्यवस्था का निर्माण हो रहा है। हमारे जीवन के मूल्यों, आदर्शों एवं व्यवहार के प्रतिमानों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए है। आज संयुक्त परिवार की जगह मूल या दाम्पत्य परिवार का निरंतर विस्तार हो रहा है। विद्युत ऊर्जा के विकास से कृषि के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी परिवर्तन संभव हुआ है। अकाल एवं महामारियों की समाप्ति से मृत्युदर में बहुत कमी आयी है।
सामाजिक गतिशीलता में भी प्रौद्योगिकी विकास ने मुख्य भूमिका निभाई है। आज पूरा विश्व एक गाँव जैसा मालूम पड़ता है। विशिष्टीकरण तथा श्रम विभाजन ने पारस्परिक निर्भरता एवं व्यक्तिवाद को बढ़ावा दिया है। इससे आज लोगों के बीच द्वितीयक सम्बन्धों का विस्तार देखने को मिलता है।

24. नियोजित परिवर्तन के महत्त्व का वर्णन करें।

Ans ⇒ नियोजित परिवर्तन के उद्देश्य आर्थिक तथा सामाजिक दोनों है तथा ये दोनों अन्तःसंबंधित हैं। कार्ल मेनहाइम ने लिखा है कि “हमारा कार्य नियोजित परिवर्तन के द्वारा एक विशेष प्रकार की समाज व्यवस्था को निर्मित करना है तथा इस लक्ष्य की प्राप्ति उसी समय संभव है जब समाज में व्याप्त लोगों की कमियों को दूर किया जाय।” इसके लिए मानवीय लक्ष्यों की पुनः व्याख्या, मानवीय क्षमताओं का रूपान्तरण तथा नैतिक संहिताओं का पुनर्निर्माण आवश्यक है।

स्पेन्सर ने कहा है कि नियोजित परिवर्तन का मूल उद्देश्य पुनर्निर्माण के कार्यक्रम को जारी रखना है तथा इस कार्यक्रम के निम्नलिखित लक्ष्य हैं –
1. समाज के सभी व्यक्तियों को आजीविका कमाने तथा आत्मविश्वास के समान अवसर प्रदान करना है।
2. अविकसित क्षेत्रों के विकास का प्रयत्न करना, उन क्षेत्रों के व्यक्तियों के लिए शिक्षा, चिकित्सा, आवास तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था करना एवं आर्थिक असमानता को दूर करना।
3. समाज के पिछड़े वर्गों तथा शारीरिक और मानसिक दृष्टि से कमजोर लोगों के उत्थान हेतु कार्यक्रम बनाकर उन्हें क्रियान्वित करना।
4. समाज से अज्ञानता, अशिक्षा, अभाव, बेकारी तथा बीमारी को दूर करना।
5. समाज के सभी लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था करना।

25. महिला सशक्तिकरण पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

Ans ⇒ महिला सशक्तिकरण का अभिप्राय समाज में महिलाओं की स्थिति को मजबूत बनाने से है। स्वयं सेवी महिला संगठनों ने 1990 के दशक में महिलाओं के मुद्दे को लेकर देश के विभिन्न भागों में अनेक सम्मेलन आयोजित किए। इस सम्मेलन में लैंगिक भेदभाव तथा महिलाओं की घटती जनसंख्या पर विचार-विमर्श हुआ। इसी दशक में वेश्यावृत्ति से संबंधित मामलों को राष्ट्रव्यापी बहस का विषय बनाया गया। पटना की अदिति संस्था तथा अंकुर संस्था ने 1995 में महिला बचाओ अभियान चलाया। राष्ट्रीय स्तर पर कई महिला संगठन की भूमिका रही है-(क) अखिल भारतीय महिला परिषद् (ख) .अखिल भारतीय हिन्दू महिला परिषद् (ग) भारतीय महिला संघ। इसके अलावे पंचायत राज अधिनियम में संशोधन कर 1993 में सभी पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की व्यवस्था की गई है। बिहार सरकार ने तो 50% आरक्षण की व्यवस्था कर दी है। बिहार सरकार ने महिलाओं को अधिकार सम्पन्न बनाने की दिशा में अग्रणी भूमिका अदा की है।

26. हरित क्रांति के मानव समाज पर प्रभावों का उल्लेख करें।

Ans ⇒  स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत खाद्यान्न की भयंकर समस्या से जूझ रहा था। फोर्ड फाउण्डेशन की सलाह पर 1960 के दशक के अंतिम दिनों में पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश के कुछ भाग, तमिलनाडु के कुछ जिले, महाराष्ट्र तथा आन्ध्रप्रदेश के कुछ जिलों में हरित क्रांति लागू की गयी इसके अंतर्गत कृषि के उन्नत तकनीकों और उन्नत खाद बीज के प्रयोग द्वारा अधिक-से-अधिक अन्न उपजाने पर जोर दिया गया। फलस्वरूप देश में एक तो अनाज की समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया और दूसरी तरफ इसने समाज में मध्यम जाति से नव कृषक धनाढ्य वर्ग को पैदा किया जिससे सामाजिक स्तरीकरण भी प्रभावित हुआ। इसने अमीरों की अमीरी को बढ़ावा दिया तो दूसरी ओर गरीबों की गरीबी मिटाने में भी बहुत हद तक सहायक हुआ।

27. मीडिया सामाजिक परिवर्तन कैसे लाता है ?

Ans ⇒  मीडिया के अंतर्गत हम जनसंचार के उन समस्त तरीकों को शामिल करते हैं जिसके द्वारा कोई भी सरकार या सामाज अपनी बात या योजना जनसमूह तक फैलाती है जैसे-रेडियो, टी० वी० समाचार-पत्र, पत्र-पत्रिकाएँ आदि। आधुनिक समाज में मीडिया सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम है क्योंकि यह विश्व भर की सूचनाएँ लोगों तक पहुँचाकर न केवल उन्हें जागरूक व चेतनशील बनाती हैं बल्कि उन्हें अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का भी बोध कराती है। मीडिया भ्रष्टाचार घोटाले आदि का पर्दाफाश करती है तो दूसरी तरफ सामाजिक बुराइयों को मिटाने में भी कारगर भूमिका अदा करती है।

28. राष्ट्रवाद की अवधारणा को स्पष्ट करें।

Ans ⇒ राष्ट्रवाद का अर्थ होता है राष्ट्र के लोगों में राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र सम्मान एवं राष्ट्रीयता की भावना को जगाना। दरअसल एक राष्ट्र में विभिन्न जाति। धर्म, सम्प्रदाय के लोग होते हैं, इन विभिन्न जनजातीय समूहों के बीच एक भावनात्मक सूत्र को लाना ताकि वे उसमें बँधकर एक राष्ट्र के हो जाएँ और क्षेत्रीय-प्रांतीय उद्देश्यों के ऊपर राष्ट्रीय उद्देश्यों और हितों को महत्व दें। साफ शब्दों में कहें तो राष्ट्रवाद का अर्थ है एक डण्डा एक झंडे के नीचे आना और राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत होना।

29. मंदी किसे कहते हैं ?

Ans ⇒ जब बाजार में समान कम हो और खरीदने वाले ज्यादा तो महंगाई की स्थिति बनती है। ठीक उसके विपरीत बाजार में सामग्री ज्यादा और खरीदार कम हो तो मंदी की स्थिति होता है। अभी पूरी दुनियाँ उसी दौर से गुजर रहा है। माँग नहीं होने के कारण कारखाने बंद होने लगते हैं और छंटनी के कारण लोग बेकार होने लगते हैं अर्थात् महंगाई के ठीक विपरीत स्थिति मंदी होती है।

30. संविधान से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ संविधान एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की कार्य प्रणाली और अधिकारों को स्पष्ट किया गया है ताकि वे अपने अधिकारों का दुरूपयोग न कर सकें। संविधान के द्वारा ही नागरिकों के मौलिक अधिकारों तथा राज्य की नीतियों का निर्धारण होता है। भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के द्वारा धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक समानता और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. पाश्चात्यीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।

Ans ⇒ समाजशास्त्री डॉ. श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया है। पश्चिमीकरण के संदर्भ में उनका विचार है कि “पश्चिमीकरण शब्द अंग्रेजों के शासनकाल के 150 वर्षों से अधिक के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में होने वाले परिवर्तनों को व्यक्त करता है और इस शब्द में प्रौद्योगिक संस्थाओं, विचारधारा, मूल्यों आदि के विभिन्न स्तरों में घटित होने वाले परिवर्तनों का समावेश रहता है।”
पश्चिमीकरण का तात्पर्य देश में उस भौतिक सामाजिक जीवन का विकास होता है जिसके अंकुर पश्चिमी धरती पर प्रकट हुए और जो पश्चिमी व यूरोपीय व्यक्तियों के विस्तार के साथ-साथ विश्व के विभिन्न कोनों में अविराम गति से बढ़ता है। पश्चिमीकरण को आधुनिकीकरण भी कह सकते हैं लेकिन अनेक समानताएँ होते हुए पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण दो अलग-अलग प्रक्रियाएँ हैं। पश्चिमीकरण के लिए पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से संपर्क होना आवश्यक है। पश्चिमीकरण एक तटस्थ प्रक्रिया है। इसमें किसी संस्कृति के अच्छे या बुरे होने का आभास नहीं होता। भारत में पश्चिमीकरण के फलस्वरूप जाति प्रथा में पाये जाने वाले ऊँच-नीच के भेद समाप्त हो रहे हैं। नगरीकरण ने जाति प्रथा पर सीधा प्रहार किया है। यातायात के साधनों के विकसित होने से, अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से सभी जातियों का रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज आदि एक जैसे हो गये हैं। महिलाओं पर पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति का व्यापक प्रभाव पड़ा है। विवाह की संस्था में अब लचीलापन देखने को मिलता है। विवाह पद्धति में परिवर्तन आ रहे हैं। बाल विवाह का बहिष्कार बढ़ रहा है। अन्तर्जातीय विवाह नगरों में बढ़ रहे हैं। संयुक्त परिवार प्रथा का पतन भी देखने को मिल रहा है। रीति-रिवाज और खान-पान भी पश्चिमीकरण से प्रभावित हुआ है।

2. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।

Ans ⇒ समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई निम्न हिन्दू जाति या कोई जनजाति अथवा अन्य समूह किसी उच्च और प्रायः द्विज जाति की दिशा में अपने रीति-रिवाज, कर्मकांड, विचारधारा और जीवन पद्धति को बदलता है।”
संस्कृतिकरण में नए विचारों और मूल्यों को ग्रहण किया जाता है। निम्न जातियाँ अपनी स्थिति को ऊपर उठाने के लिए ब्राह्मणों के तौर-तरीकों को अपनाती हैं और अपवित्र समझे जाने वाले मांस-मदिरा के सेवन को त्याग देती हैं। इन कार्यों से ये भिन्न जातियाँ स्थानीय अनुक्रम में ऊँचे स्थान की अधिकारी हो गई हैं। इस प्रकार संस्कृतिकरण नये और उत्तम विचार, आदर्श मूल्य, आदत तथा कर्मकांडों को अपनी जीवन स्थिति को ऊँचा और परिमार्जित बनाने की क्रिया है।
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में स्थिति में परिवर्तन होता है। इसमें संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता। जाति व्यवस्था अपने आप नहीं बदलती। संस्कतिकरण की प्रक्रिया जातियों में ही नहीं बल्कि जनजातियों और अन्य समहों में भी पाई जाती है। भारतीय ग्रामीण समुदायों में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया प्रभु-जाति की भूमिका का कार्य करती हैं। यदि किसी क्षेत्र में ब्राह्मण प्रभु-जाति है तो वह ब्राह्मणवादी विशेषताओं को फैला देगा। जब निचली जातियाँ ऊँची जातियों के विशिष्ट चरित्र को अपनाने लगती हैं तो उनका कड़ा विरोध होता है। कभी-कभी ग्रामों में इसके लिए झगड़े भी हो जाते हैं। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया बहुत पहले से चली आ रही है। इसके लिए ब्राह्मणों का वैधीकरण आवश्यक है। ..

3. धर्मनिरपेक्षीकरण से क्या अभिप्राय है ?

Ans ⇒ आज व्यक्तिगत व्यवहार और कार्यों में तार्किकता का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। जब धर्म का स्थान विज्ञान ले लेता है तो व्यक्ति के सोचने का ढंग बदल जाता है। धर्मनिरपेक्षीकरण से अभिप्राय उस सामाजिक प्रवृत्ति से है जिसके अंतर्गत धार्मिक प्रधानता और परंपरागत व्यवहारों में तार्किकता और व्यावहारिकता लाने का प्रयास किया जाता है।
धर्मनिरपेक्षीकरण से धार्मिक कट्टरपन व संकीर्णता दूर होती है और दूसरे धर्म के प्रति सहनशीलता और उदारता की भावना पनपने लगती है। धार्मिक व्यवहारों और क्रियाओं को पारलौकिक या आध्यात्मिक उद्देश्यों से नहीं अपितु सामाजिक उद्देश्यों व व्यावहारिक लाभ के लिए किया जाता है।
स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष में कई ऐसी ताकतों को बल मिला जिन्होंने धर्मनिरपेक्षीकरण को आगे बढ़ाया। महात्मा गाँधी द्वारा प्रारंभ किए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन ने जनशक्ति को संगठित किया। हिन्दू समाज में प्रचलित अस्पृश्यता जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जनता को प्रेरित करने से धर्म-निरपेक्षीकरण को बल मिला। धर्म-निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में पवित्रता और अपवित्रता की धारणा को काफी कमजोर किया है। नगरों में जाति और धर्म के प्रभाव की तुलना में पेशे व्यवसाय का अधिक प्रभाव रहता है। धर्म-निरपेक्षीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण जाति और धर्म के रूढ़िवादी तत्व धीरे-धीरे अपनी प्रतिष्ठा खो रहे हैं।

4. धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं ? इसके बाधक करकों की चर्चा करें।

Ans ⇒ धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि भारतीय राज्य सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखेगा और धार्मिक मामलों में राज्य कोई विभेद नहीं करेगा। स्पष्टतः धार्मिक मामलों में राज्य द्वारा अहस्तक्षेप एवं अविभेद ही धर्मनिपेक्षता का मूल मंत्र है। दूसरे शब्दों में हम इसे सर्वधर्म सम्भाव भी कह सकते हैं। भारत में धर्मनिरपेक्षता न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत है बल्कि वर्तमान में यह हमारा संवैधानिक दायित्व भी है।
यद्यपि भारतीय संविधान में भारत को एक धर्मनिरपेक्ष और अब पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया है पर हकीकत यह है कि समय-समय पर साम्प्रदायकि तनाव दंगे होते रहे हैं जो हमारे धर्मनिपेक्ष मस्तिष्क पर कलंक का टीका है। सच देखा जाय तो साम्प्रदायिकता हमारी राष्ट्रीय पहचान का अपमान है। स्वतंत्र भारत में हिन्दू-सिख, मुस्लिम-सिख और हिन्दू-इसाई – संबंधों में कटुता देखी जा सकती है। निसंदेह यह कटुता हमारी धर्मनिपेक्षता के मार्ग में बाधक है। बाधक के कारण और कई हैं जैसे-साक्षरता का निम्न स्तर, पड़ोसी राष्ट्र से तनावपूर्ण संबंध, अतीत की कड़वी यादें, राजनेताओं की चालबाजीओं एवं निहीत स्वार्थ, प्रेस की नकारात्मक भूमिका इत्यादि।

5. सामाजिक आंदोलन क्या है ? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।

Ans ⇒ सामाजिक आंदोलन सामाजिक परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण कारक है। ऐन्थनी गिडेन्स ने इसे परिभाषित करते हुए कहा है, “सामाजिक आंदोलन को एक ऐसे सामूहिक प्रयास के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसका लक्ष्य सामान्य हित को बढ़ाना होता है। सामान्य हित को प्राप्त करने के लिए किया गया सामूहिक प्रयास कभी-कभी मान्य या स्थापित संस्थाओं के दायरे से बाहर भी होता है।”

सामाजिक आंदोलन को निम्नलिखित चार प्रकारों में बाँटा जाता है

1.रूपान्तकारी आंदोलन –ऐसे भी सामाजिक आंदोलन होते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य बुनियादी सामाजिक परिवर्तन होता है। अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लोग कभी-कभी हिंसा-नीति भी अपनाते हैं, जैसे-नक्सली आन्दोलन।

2. सुधारात्मक आंदोलन –जब समाज में कुछ दुर्गुण या बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं तो उसे दूर करने के लिए सामाजिक आंदोलन चलाना पड़ता है, ताकि मूल व्यवस्था को जीवंत एवं उपयोगी बनाए रखा जाय। भारत में सूफी आंदोलन, ब्रह्म समाज आंदोलन तथा आर्य समाज आंदोलन इसी प्रकार के आंदोलन हैं।

3. मुक्ति आंदोलन –समाज में कभी-कभी ऐसी बुराइयाँ फैल जाती हैं जो परे समाज के लिए खतरा बन जाती है। वैसी स्थिति में कुछ ऐसे आंदोलन चलाये जाते हैं जिससे समाज को ठीक से बनाये रखने में मदद मिलती है। आधुनिक भारत में अंबेडकर का अछूतोद्धार का कार्य एक मुक्ति आंदोलन है।

4. वैकल्पिक आंदोलन –वह आंदोलन, जिसके अंतर्गत व्यक्ति के जीवन में आंशिक परिवर्तन की कोशिश की जाती है, वैकल्पिक आंदोलन कहलाता है। इस आंदोलन का दायरा अपेक्षाकृत छोटा होता है।

6. भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकार का वर्णन करें।

Ans ⇒ भारत के संविधान में देश के सभी नागरिक को छ: बुनियादी अधिकार दिए गए हैं जिन्हें मौलिक अधिकार कहते हैं। वे निम्नलिखित हैं –
(i) समानता का अधिकार – इसके अंतर्गत संविधान के द्वारा लोगों में धर्म, वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।
(ii) स्वतंत्रता का अधिकार – इसके अंतर्गत अनेक ऐसे अधिकारों का उल्लेख है जिनकी सहायता से लोग एक स्वतंत्र जीवन बिता सकें।
(iii) शोषण से रक्षा का अधिकार – इसके अंतर्गत नागरिक को बेगार, बाल-श्रम तथा अन्य प्रकार के शोषण से रक्षा करने का प्रावधान है।
(iv) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – प्रत्येक व्यक्ति बिना दबाव के किसी भी धर्म का अनुसरण कर सकता है।
(v) संस्कृति और शिक्षा का अधिकार – इसके अंतर्गत प्रत्येक वर्ग को नागरिक अपनी संस्कृति, भाषा और लिपि की रक्षा कर सकता है।
(vi) संवैधानिक उपचार का अधिकार – इसके अंतर्गत नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय की शरण ले सकता है।

7. दबाव समूह तथा राजनीतिक दल में अंतर स्पष्ट करें।

Ans ⇒ दबाव समूह तथा राजनीतिक दल में निम्नलिखित अंतर है-

S.N दबाव समूह राजनीतिक दल
1.  यह एक गैर-राजनीतिक संगठन है। इसकी कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं होती है। इसका राजनीतिक कार्यक्रम होता है तथा इसकी राजनीतिक विचारधारा होती है।
2.  यह एक छोटा संगठन है। यह व्यापक तथा विस्तृत संगठन है।
3.  इसे जनता के एक विशेष वर्ग का समर्थन प्राप्त होता है। इसका उद्देश्य देश के सभी मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करना होता है।
4.  इसका उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना नहीं होता, बल्कि अपने हितों की रक्षा करना होता है। इसका उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना होता है।
5.  यह चुनाव में भाग नहीं लेता है। यह चुनाव में भाग लेता है।
6.  यह विधान मंडल के बाहर काम करता है  यह विधान मंडल के अंदर और बाहर दोनों ही जगह कार्य करता है।
7.  एक ही समय में कोई व्यक्ति एक से अधिक दबाव समूहों का सदस्य हो सकता है। एक व्यक्ति एक समय में केवल एक ही राजनीतिक दल का सदस्य हो सकता है।
8.  यह औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार का हो सकता है।  यह औपचारिक होता है।

 8. पंचायतों की असफलता के कारणों का वर्णन करें।

अथवा, पंचायती राज के दोषों की विवेचना करें।

Ans ⇒ निम्नलिखित दोषों के कारण पंचायती राज को आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली –

1.दलबन्दी –पंचायती राज के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक दलबन्दी की है। पंचायत के चुनाव राजनीतिक दलों से प्रभावित होने के कारण शक्तिशाली गुट पंचायतों पर अधिकार कर लेते हैं।

2. अशिक्षा –अशिक्षा के कारणं पंचायत के निर्वाचित अधिकारी और सदस्य पंचायतों की कार्य पद्धति को समचित रूप से नहीं समझ पाते हैं।

3. जातिवाद –पंचायतों के चुनाव जाति के आधार पर होता है। इसलिए लोग अपनी जाति को ही अधिक लाभ देते हैं।

4. उचित नेतृत्व का अभाव –पेशेवर नेताओं के कारण ग्राम की वास्तविक समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

5. कार्यों की अधिकता –पंचायतों को बहुत अधिक कार्य सौंप दिये गये हैं, जिन्हें सफलतापूर्वक पूरा करना अत्यधिक कठिन है। फलतः पंचायत के अधिकारी व्यावहारिक कार्यों में अधिक रुचि न लेकर कागजी खानापूर्ति में ही अपना समय नष्ट कर देते हैं।

6. निम्न आर्थिक स्थिति –पंचायतों की आय बहुत कम है। पंचायतों को सरकारी अनुदान अवश्य मिलते हैं। लेकिन इन अनुदानों से अक्सर पंचायत के कर्मचारियों का वेतन भी नहीं पूरा हो पाता है।

9. पंचायती राज व्यवस्था सामाजिक बदलाव लाने में कहाँ तक सहायक रही है ?

Ans ⇒ पंचायती राज व्यवस्था बलवंत राय मेहता कमिटी (1957) की अनुशंसा के आधार पर 2 अक्टूबर, 1959 को सर्वप्रथम राजस्थान के नागौर जिला में लागू किया गया। पंचायती राज व्यवस्था के पीछे दो मूलभूत दर्शन थे-एक सत्ता का विकेन्द्रीकरण तथा दूसरा जन सहभागिता। इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू की गई जिसमें ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, प्रखण्ड स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद के गठन की बात की गई। पंचायती राज व्यवस्था का मूलभूत उद्देश्य प्रजातंत्र को जमीनी स्तर तक लाना रहा है ताकि ग्राम सभा से लोक सभा तक सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो और सत्ता सही मायने में आम जनता के हाथों में सौंपी जाय।
दुर्भाग्यवश कई राज्यों में पंचायतों के समय पर चुनाव ही नहीं हुए और इसकी हालत अत्यन्त दयनीय हो गई। फलस्वरूप संविधान के 73वें संशोधन द्वारा परिवर्तन लाकर पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया और इसके अधिकार को बिल्कुल सुस्पष्ट कर दिया गया। पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत ग्राम पंचायत को 29 तरह के कार्य सौंपे गये हैं।
1993 के बाद पंचायती राज व्यवस्था ने सामाजिक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। बिहार भारत का पहला राज्य बना, जिसने पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया। बिहार सहित आज अनेक राज्यों में हमें इस तरह का आरक्षण देखने को मिलता है जो नि:संदेह महिला सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है। पंचायती राज व्यवस्था ने लोगों में न केवल राजनीतिक चेतना एवं जागरूकता लाया है बल्कि यह आर्थिक
एवं सामाजिक जागरूकता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। दलित एवं कमजोर वर्गों की आवाज आज मुखर हो रही है जो इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।

10. ग्रामीणों की आवाज को सामने लाने में 73वाँ संविधान संशोधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। चर्चा कीजिए।

Ans ⇒ पहली बार सन् 1992 में 73वीं संविधान संशोधन के रूप में मौलिक व प्रारंभिक स्तर पर लोकतंत्र और विकेंद्रीकृत शासन का परिचय प्राप्त होता है। इस अधिनियम ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक प्रस्थिति प्रदान की। अब यह अनिवार्य हो गया है कि स्थानीय स्वशासन के सदस्य गाँवों तथा नगरों में प्रत्येक पाँच साल में चुने जाएँ। इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि स्थानीय संसाधनों पर अब चुने हुए निकायों का नियंत्रण होता है।

1.1992 में 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था को लागू किया गया। इसके अंतर्गत ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, खंड या ब्लॉक स्तर पर खंड समिति तथा जिलास्तर पर जिला परिषद् के गठन का प्रावधान किया गया।

2. संविधान के 73वें संशोधन ने बीस लाख से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक राज्य में त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली लागू की।
3. यह अनिवार्य हो गया कि प्रत्येक पाँच वर्ष में इसके सदस्यों का चुनाव होगा।
4. इसने अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए निश्चित आरक्षित सीटें तथा महिलाओं के लिए 33% आरक्षित सीटें उपलब्ध कराईं।
5. इसने पूरे जिले के विकास प्रारूप को निर्मित करने के लिए जिला योजना समिति गठित की।

73वें और 74वें संविधान संशोधन ने ग्रामीण व नगरीय दोनों ही क्षेत्रों के स्थायी निकायों के सभी चयनित पदों में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण प्रदान किया। इनमें से 17% सीटें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। यह संशोधन इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके अंतर्गत प्रथम बार निर्वाचित निकायों में महिलाओं को शामिल किया जिससे उन्हें निर्णय लेने की शक्ति प्राप्त हुई। स्थानीय निकायों, ग्राम पंचायतों, नगर निगमों. जिला परिषदों आदि में एक तिहाई पदों पर महिलाओं का आरक्षण है। 73वें संशोधन के तंरत . बाद 1993-94 के चुनाव में 8,00,000 महिलाएँ एक साथ राजनीतिक प्रक्रियाओं से जुड़ीं। वास्तव में महिलाओं को मताधिकार देने वाला एक बड़ा निर्णय था। स्थानीय स्वशासन के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली की प्रावधान करने वाला संवैधानिक संशोधन पूरे देश में 1992-93 से लागू है।

11. भारत में प्राचीन पंचायत व्यवस्था का महत्व स्पष्ट कीजिए।

Ans ⇒ भारत में पंचायत का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। पंचायत शब्द का प्रयोग कुछ व्यक्तियों की एक सभा के लिए होता है जो गाँव के सामहिक मामलों पर फैसले । लोग पंच में इतना अधिक विश्वास करते थे कि उन्हें पंच-परमेश्वर कहा जाता थ। यह कहा जाता है कि ईश्वर उन पाँच व्यक्तियों के माध्यम से बोलता है। यह सामान्यतः स्वशासी संस्था है। भारत में पंचायत का विकास अपने लंबे इतिहास के दौरान काफी उतार-चढ़ावों से भरा रहा है। यह सामान्यतः स्वशासी संस्था है। महात्मा गाँधी के राजनीतिक जीवन में प्रवेश करने पर पंचायत के आदर्श पुनः जीवित हो उठे। गाँधी जी ने ग्राम पंचायत और स्वशासन पर बहुत । जोर दिया। पंचायत की अवधारणा भारत के स्वाधीनता आंदोलन में महत्वपूर्ण मुद्दा बनी रही।
स्वतंत्रता के पश्चात् संविधान के चालीसवें अनुच्छेद में राज्य के नीति निदेशक तत्व के रूप में इसे सम्मिलित किया गया। चालीसवें अनुच्छेद के अनुसार, “राज्य ग्राम पंचायतों के गठन के लिए कदम उठायेगा और उन्हें ऐसी शक्ति और अधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्थानीय स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाएगी।”
पंचायती राज व्यवस्था के महत्व को सभी राज्यों द्वारा स्वीकार किया गया। सामूहिक विकास योजना में ग्रामीण विकास की लगभग सभी गतिविधियों को सम्मिलित किया गया। विकास योजनाओं में लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के सिद्धांत पर आधारित कई संस्थाओं का निर्माण किया गया।

12. ग्राम सभा किसे कहते हैं ? ग्राम सभा के मख्य कार्य क्या हैं ?

Ans ⇒  ग्राम सभा पंचायती राज व्यवस्था की सबसे निचले स्तर की आधारभूत संस्था है। पंचायत क्षेत्र में रहने वाले सभी वयस्कों को मिलाकर ग्राम सभा बनती है। इसमें ग्राम पंचायत क्षेत्र में आने वाले गाँव की मतदाता सूची में पंजीकृत सभी लोग शामिल होते हैं। ग्राम सभा को पंचायती राज की आत्मा कहा गया है। चूंकि ग्राम पंचायत के सभी पंजीकृत मतदाता ग्राम सभा में शामिल होते हैं। यह ग्राम पंचायत की सामान्य सभा की तरह कार्य करती है।

ग्राम सभा के कार्य –

1.ग्राम सभा पंचायती राज व्यवस्था की सबसे निचले स्तर की आधारभूत संस्था है। भारतीय लोकतंत्र में यही एक संस्था है जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों की प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित करती है।

2. पंचायत क्षेत्र में रहने वाले सभी वयस्कों को मिलाकर ग्राम सभा का गठन होता है। यह वार्षिक लेखा और लेखा परीक्षा प्रतिवेदन तथा प्रशासनिक रिपोर्ट को अनुमोदित करती है।

3. ग्राम सभा नये विकासात्मक कार्यों को मंजूरी देती है।
4. ग्राम सभा की वर्ष में दो बैठकें होती हैं।

13. संविधान के 73वें संशोधन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?

Ans ⇒  पंचायतों से संबंधित 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992 संसद में दिसंबर 1992 में पारित हुआ और 20 अप्रैल, 1993 को इसे भारत के राष्ट्रपति की सहमति मिली। यह उस वर्ष 24 अप्रैल से प्रभावी हो गया। यह संशोधन जनता को शक्ति संपन्न करने पर आधारित है और पंचायतों को संवैधानिक गारंटी प्रदान करता है। इस अधिनियम के प्रमुख पक्ष निम्नलिखित हैं –

1.यह पंचायतों को स्वशासी संस्थाओं के रूप में स्वीकार करता है।
2. यह पंचायत को आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजना बनाने हेतु शक्ति और उत्तरदायित्व प्रदान करता है।
3. यह 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले सभी राज्यों के मध्य और जिला स्तर पर समान त्रिस्तरीय शक्ति संपन्न पंचायतों की स्थापना के लिए प्रबंध करता है।
4. यह पंचायतों के संगठन, अधिकार और कार्यों, वित्तीय व्यवस्था तथा चुनावों एवं समाज के कमजोर वर्गों के लिए पंचायत के विभिन्न स्तरों पर स्थानों के आरक्षण के लिए दिशा-निर्देश देता है।
संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम को मूलभूत लोकतंत्र की दिशा में क्रांतिकारी कदम कहा गया है। इससे स्वशासन में लोगों की भागीदारी के लिए संवैधानिक गारंटी प्रदान की गई है। सभी राज्यों में संशोधन के प्रावधानों के अनुकूल निश्चित विधान पारित किए गए हैं। इस प्रकार पंचायती राज व्यवस्था के इतिहास में पहली बार पंचायतों के उच्च स्तर में समानता आ गई है।

14. भूमि सुधार से आप क्या समझते हैं ? भूमि सुधार कार्यक्रमों पर प्रकाश डालें।

अथवा, भारत में भूमि सुधार के लिए उठाये गये कदमों की चर्चा करें।

अथवा, भारत में भूमि सुधार पर निबंध लिखें।

Ans ⇒ भूमि सुधार का तात्पर्य कृषि भूमि की एक ऐसी व्यवस्था करना है, जिससे छोटे और भूमिहीन किसानों की आर्थिक दशा में सुधार हो सके। भूमि का न्यायपूर्ण वितरण और कृषि भूमि से संबंधित व्यावहारिक नीतियाँ भूमि सुधार के सबसे सरल अर्थ को स्पष्ट करती हैं। भूमि सुधार का अर्थ उन सभी प्रयत्नों से है जिनके द्वारा पूरे कृषि संगठन में सुधार किया जा सके। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भूमि सुधार के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है कि भूमि सुधार एक ऐसा कार्यक्रम है जो कृषि संरचना के दोषों से पैदा होने वाले आर्थिक और सामाजिक विकास की बाधाओं को दूर करने के लिए बनाया जाता है। यह व्यापक अर्थ में भूमि सुधार की प्रकृति को स्पष्ट करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि किसी देश में कृषि व्यवस्था की पूरी संरचना को विकास की ओर ले जाने के लिए जो दशाएँ जरूरी होती है, वे सभी भूमि सुधार के अंतर्गत आती हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में भूमि सुधार के लिए निम्नलिखित कदम उठाये गये –

1.जमींदारी प्रथा का उन्मूलन –सन् 1951 में कानून बनाकर जमींदारी प्रथा का उन्मूलन कर दिया गया।

2. काश्तकारी सधार –इसके द्वारा बटाईदार या किराये पर खेती करने वाले किसानों से लिये जाने वाले किराए या लगान का नियमन किया गया।

3. जोतों की चकबंदी –इस व्यवस्था के द्वारा छोटे-छोटे खेतों को बड़े खेतों में तबदिल किया गया और सरकार के तरफ से उचित सिंचाई की व्यवस्था कराई गयी।

4. जोतों की अधिकतम सीमा का निर्धारण –सन् 1956 से केन्द्र सरकार के निर्देश पर राज्य सरकारों द्वारा कृषि भूमि की अधिकतम सीमा निर्धारित करने के लिए कानून बनाए गए। यह प्रावधान किया गया कि जिस व्यक्ति या परिवार के पास जोत की निर्धारित सीमा से अधिक भूमि है उसे सरकार द्वारा अपने अधिकार में ले लिया जायेगा और उसे भूमिहीन किसानों में बाँटी जायेगी।

5. भूमि के रिकार्ड की व्यवस्था –वर्तमान में भूमि से संबंधित दस्तावेजों की जानकारी कम्प्यूटर द्वारा तैयार की जा रही है ताकि भूमि से संबंधित विभिन्न समस्याओं का समाधान किया जा सके।

15. भारतीय समाज में भूमि सुधार कार्यक्रमों के प्रभावों की चर्चा करें।

Ans ⇒ स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् कृषि पर आधारित हमारे अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए भूमि-सुधार कार्यक्रम चलाया गया, आजादी से पहले भारतीय समाज में भूमि सम्बन्ध अत्यन्त त्रुटिपूर्ण था, खेत जोतने वाला किसान तथा सरकारी शासन तंत्र के बीच एक बिचौली वर्ग हुआ करता था जिन्हें जमींदार कहा जाता था, उनका एक मात्र उद्देश्य खेत जोतने वाला किसानों को भरपूर शोषण करना, कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था को स्व-निर्भर बनाने एवं किसानों को सामाजिक तथा आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए भूमि सुधार कार्यक्रम चलाये गए, इसके अतिरिक्त भूमि सुधार कार्यक्रम के दो और उद्देश्य थे- भूमि की हद्बन्दी तथा छोटे आकार के जमीनों का चकबन्दी। भारत में पिछले 50 वर्षों में कुछ निश्चित प्रान्तों जैसे-पश्चिम बंगाल एवं केरल आदि को छोड़कर शायद ही अन्य प्रान्तों में भूमि सुधार कार्यक्रम को वांछित सफलता मिली है।

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