वस्तुनिष्ठ प्रश्न
[ 1 ] भारतीय समाज की सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध किसने प्रयत्न किया ?
(A) ज्योतिबा फूले
(B) स्वामी दयानन्द
(C) स्वामी रामानन्द
(D) रामकृष्ण मालवीय
Answer ⇒ (A)
[ 2 ] सामाजिक अध्ययन में प्रयोग होता है ?
(A) प्रश्नावली
(B) साक्षात्कार
(C) अनुसूची
(D) तीनों का
Answer ⇒ (D)
[ 3 ] निम्नलिखित में से कौन सूचनाओं का प्राथमिक स्त्रोत है ?
(A) अवलोकन
(B) व्यक्तिगत पत्र
(C) डायरियाँ
(D) इसमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (A)
[ 4 ] प्रश्नावली द्वारा केवल उन्हीं व्यक्तियों से सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं जो –
(A) नगर में रहते हो
(B) उच्च आय वर्ग के हो
(C) शिक्षित हो
(D) विषय के प्रति जागरुक हो
Answer ⇒ (C)
[ 5 ] निम्नलिखित में से कौन एक परियोजना कार्य का उद्देश्य नहीं है ?
(A) किसी समस्या के कारणों को जानना
(B) किसी समस्या का उन्मूलन करना
(C) समस्या के बारे में सूचनाएँ एकत्र करना
(D) एक विशेष समस्या के परिणामों को ज्ञात करना
Answer ⇒ (B)
[ 6 ] निम्नलिखित में से कौन परियोजना कार्य का एक चरण है ?
(A) अध्ययन विषय का चुनाव
(B) अध्ययन प्रविधियों का निर्धारण
(C) तथ्यों का संलयन
(D) उपरोक्त सभी
Answer ⇒ (D)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1.सामाजिक संसाधन क्या होते हैं ? इनके रूपों का उल्लेख कीजिए।
Ans ⇒ प्रत्येक समाज में कुछ लोगों के पास धन, सम्पदा, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शक्ति जैसे मूल्यवान संसाधन होते हैं जिन्हें सामाजिक संसाधन कहा जाता है। यह सामाजिक संसाधन पूँजी के तीन रूपों में विभाजित किए जा सकते हैं –
(i) भौतिक सम्पत्ति एवं आय के रूप में आर्थिक पूँजी,
(ii) प्रतिष्ठा और शैक्षणिक योग्यताओं के रूप में सांस्कृतिक पूँजी,
(iii) सामाजिक संगतियों और संपर्कों के जाल के रूप में सामाजिक पूँजी।
2. सामाजिक विषमता को परिभाषित कीजिए व सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ समझाइए।
Ans ⇒ सामाजिक विषमता- सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति ही साधारणतया सामाजिक विषमता कहलाती है। इन सामाजिक संसाधनों में धन, सम्पदा, शिक्षा, शक्ति एवं रोजगार इत्यादि शामिल होते हैं।
सामाजिक स्तरीकरण – एक समाज में रह रहे लोगों का वर्गीकरण करके उन्हें एक अधिक्रमित संरचना में बाँटना सामाजिक स्तरीकरण कहलाता है। यह अधिक्रम लोगों की पहचान, अनुभव, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति से संबंध तथा साथ ही संसाधनों एवं अवसरों तक उनकी पहुँच को साकार देता है।
3. ‘सामाजिक स्तरीकरण पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है।’ इस तर्क को स्पष्ट कीजिए।
Ans ⇒ स्तरीकरण परिवार और सामाजिक संसाधनों से घनिष्ठता से जुड़ा है। अर्थात् सामाजिक संसाधनों का पीढ़ी-दर-पीढ़ी कोई-न-कोई उत्तराधिकार बनता रहता है। प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति या प्रदत्त अर्थात् वे पहचान जो जन्म से ही निर्धारित होती है, अपने परिवार से ही प्राप्त होती है। जन्म ही व्यावसायिक अवसरों को निर्धारित करते हैं, जैसे-दलितों में सफाई, चमड़े का कार्य, मजदूर इत्यादि का कार्य। अतः यह तर्क उचित है कि स्तरीकरण पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है। अर्थात् हमारी पहचान, व्यवसाय, गुण इत्यादि हमारी ही अगली पीढ़ी को अपनाने पड़ते हैं।
4. पूर्वाग्रह को परिभाषित कीजिए।
Ans ⇒ पूर्वाग्रह शब्द का उचित अर्थ है-‘पूर्वनिर्णय’ अर्थात् पहले ही निर्णय लेना। एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे समूहों के सदस्यों के बारे में पूर्वनिर्णय लेना या व्यवहार इत्यादि पूर्वाग्रह कहलाता है। इसमें किसी व्यक्ति या समूह को जाने या पहचाने बिना ही नकारात्मक सोच या व्यवहार बना लिया जाता है। यह मनोवृत्ति और विचारों को दर्शाता है।
5. रुढिबद्ध धारणाओं से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ रुढिबद्ध धारणाएँ लोगों के एक समूह का निश्चित और अपरिवर्तनीय स्वरूप रुढिबद्ध धारणाएँ ज्यादातर नृजातीय और प्रजातीय समूहों और महिलाओं के संबंध में प्रयोग की जाती है। रुढिबद्ध धारणा पूरे समूह को एक समान रूप से स्थापित कर देती है। इस रुढिबद्ध धारणा के अंतर्गत व्यक्तिगत समयानुसार या परिस्थिति अनुरूप भिन्नता को भी नकार दिया जाता है।
6. भेदभाव शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
Ans ⇒ भेदभाव एक समूह या व्यक्ति के प्रति किया गया व्यवहार कहलाता है। यह व्यवहार सकारात्मक व नकारात्मक दोनों प्रकार के हो सकते हैं। भेदभाव के तहत एक समूह को उन सुविधाओं, नौकरियों से वंचित किया जा सकता है जो दूसरे समुदाय या जाति के लोगों के लिए खुले होते हैं। उदाहरण के लिए किसी क्षेत्र में एक समूह के व्यक्ति को नौकरी देना व दूसरे समूह के व्यक्ति को मना कर देना।
7. सामाजिक बहिष्कार क्या है ?
Ans ⇒ वे तौर-तरीके जिनके जरिए किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलने-मिलने से रोका जाता है। इन तरीकों के कारण किसी समूह को अन्य समूह से पृथक् या अलग रखा जाता है। यह किसी व्यक्ति या समूह को उन अवसरों या सुविधाओं से वंचित करते हैं जो अधिकांश जनसंख्या के लिए खुले होते हैं या अधिकांश जनसंख्या को प्राप्त होते हैं। सामाजिक बहिष्कार लोगों की इच्छाओं के विरुद्ध होता है।
8. आज जाति व्यवस्था में कौन-कौन से परिवर्तन हुए हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
Ans ⇒ आधुनिक काल के साथ-साथ जाति व्यवस्था में काफी परिवर्तन हुए हैं जो इस प्रकार हैं
(i) जाति तथा व्यवसाय के बीच की कड़ी काफी कमजोर हुई है। इसके सम्बन्ध व्यवसाय से अधिक मजबूत नहीं हैं।
(ii) जाति तथा आर्थिक स्थिति के सह-संबंध काफी कमजोर हुए हैं अर्थात् आज गरीब व अमीर लोग हर जाति में पाए जाते हैं।
(iii) पहले की अपेक्षा अब जाति में व्यवसाय परिवर्तन आसान हो गया है, अर्थात् अब एक जाति के व्यक्ति दूसरे व्यवसाय को भी अपना सकते हैं।
9. जनजाति को परिभाषित कीजिए।
Ans ⇒ एक सामाजिक समूह जिसमें कई परिवार, कुल (वंशज) शामिल हो और नातेदारी, सजातीयता, सामान्य इतिहास अथवा प्रादेशिक-राजनीतिक संगठन के साझे संबंधों पर आधारित हो। जाति परस्पर अलग-अलग जातियों की अधिक्रमिक व्यवस्था है, जबकि जनजाति एक समावेशात्मक समूह होती है। .
10. दलित वर्गों के साथ क्या-क्या शोषण या अपमानजनक व्यवहार किए जाते हैं ?
Ans ⇒ (i) उन्हें पेयजल के स्रोतों से जल नहीं लेने दिया जाता है व न ही पीने दिया जाता है। उनके कुएँ, नल इत्यादि अलग बने होते हैं।
(ii) उन्हें धार्मिक उत्सवों, पूजा-आराधना, सामाजिक समारोहों में भाग नहीं लेने दिया जाता।
(iii) उनसे किसी विवाह शादी में नगाड़े बजवाना, धार्मिक उत्सवों में छोटे काम इत्यादि करवाए जाते हैं।
(iv) इसके अतिरिक्त उन्हें बड़े व्यक्तियों के सामने पगड़ी उतारकर, पहने हुए जूतों को हाथ में पकड़कर, सिर झुकाकर खड़े रहने व साफ कपड़े न पहन के जाना, इत्यादि कार्यों को करने के लिए जबरदस्ती की जाती है।
11. सामुदायिक पहचान क्यों आवश्यक हैं ? दो कारण बताइए।
Ans ⇒सामुदायिक पहचान अनेक कारण से आवश्यक हैं –
(i) ये सामुदायिक पहचानें ऐसे चिह्न होते हैं जिनके द्वारा किसी व्यक्ति को समाज में जाना जाता है।
(ii) व्यक्ति इन समुदायों से संबंधित होकर अत्यंत सुरक्षित एवं संतुष्ट महसूस करता है।
12. एकीकरण नीतियों का उद्देश्य बताइए।
Ans ⇒ एकीकरण नीतियाँ इस बात पर बल देती हैं कि सार्वजनिक संस्कृति को सामान्य राष्ट्रीय स्वरूप तक सीमित रखा जाए और गैर-राष्ट्रीय संस्कृतियों को निजी क्षेत्रों के लिए छोड़ दिया जाए। ये नीतियाँ शैली की दृष्टि से तो अलग होती है, परन्तु इनका उद्देश्य भिन्न नहीं होता। .
13. मुखिया पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
Ans ⇒ ग्राम पंचायत का प्रधान मुखिया होता है। इसका चुनाव ग्राम पंचायत के मतदाताओं द्वारा किया जाता है। इसका कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। यह ग्राम पंचायत की बैठक बुलाता है। ग्राम पंचायत की बैठक की अध्यक्षता मुखिया करता है। यदि किसी बैठक में मुखिया उपस्थित नहीं रहता है तो बैठक की अध्यक्षता उपमुखिया करता है। मुखिया के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव चुनाव के दो वर्ष बाद लाया जा सकता है। अविश्वास प्रस्ताव के लिए बुलायी गई बैठक में यदि ग्राम पंचायत के कुल सदस्यों में से दो-तिहाई सदस्य प्रस्ताव के पक्ष में हो तो मुखिया को अपना पद छोड़ना पड़ता है। इसके अलावा यदि वह लगातार सरकारी निर्देशों का उल्लंघन करता है तो भी उसे पद से हटाया जा सकता है।
14. सीमान्त मानव से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ रॉबर्ट ई. पार्क ने सर्वप्रथम ‘सीमान्त मानव’ की अवधारणा प्रस्तुत की। इन्होंने सीमान्त मानव की परिभाषा इन शब्दों में दी है, “जो व्यक्ति दुविधा में उलझे होने के कारण अपने बारे में स्वयं कोई निर्णय लेने में असमर्थ होता है उसे हम सीमान्त मानव कहते हैं।” सीमान्तीकरण की प्रक्रिया का संबंध सीमान्त मानव की अवधारणा से है। ऐसा व्यक्ति संक्रमण की दशा में होता है। वह बाहरी समूहों के मूल्यों और व्यवहार के तरीकों से जुड़ने की कोशिश करता है, परंतु अपने समूह के मूल्यों से भी पूरी तरह अलग नहीं हो पाता है।
15. हित समूह और दबाव समूह में अंतर स्पष्ट करें।
Ans ⇒ हित समूह और दबाव समूह में निम्नलिखित अंतर है-
S.N | हित समूह | दबाव समूह |
1. | इसका राजनीति से संबंध नहीं होता है। | इसका राजनीति से प्रत्यक्ष संबंध होता है। |
2. | यह अपने हितों की रक्षा के लिए शासन प्रक्रिया को प्रभावित करने का लक्ष्य नहीं रखता है। | यह राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहता है। |
3. | यह अपने हितों की रक्षा के लिए प्रेरक साधनों का प्रयोग करता है। | यह दबाव की तकनीकों का सहारा लेता है। |
16. विश्व व्यापार संगठन क्या है ?
Ans ⇒ विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1995 में हुई। यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने इसे स्थापित किया। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं सेवाओं का नियमन विभिन्न कानूनों एवं नीतियों द्वारा करता है।
17. छुआछूत पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा, अस्पृश्यता से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ छुआछूत या अस्पृश्यता जाति व्यवस्था का सबसे गंभीर सामाजिक परिणाम है। इसके कारण भारत को सम्पूर्ण विश्व के सामने कलंकित होना पड़ा है। विश्व के किसी भी समाज में इतनी अमानवीय और असमानकारी प्रथा का कभी विकास नहीं हुआ है। ऊँच जातियों द्वारा अछूत जातियों के प्रति अपनाये गये छुआछूत की भावना या भेदपूर्ण व्यवहार को अस्पृश्यता कहा जाता है। इसके कारण अछूतों को मंदिरों तथा मठों में प्रवेश का अधिकार नहीं था। वे सार्वजनिक कुआँ से पानी नहीं लेते थे। उनके स्पर्श से ऊँची जाति के लोग अपवित्र हो जाते थे। वेद पढ़ने और सुनने का अधिकार उन्हें नहीं था।
18. नगरीकरण को परिभाषित करें।
Ans ⇒ नगरीकरण एक गतिशील सामाजिक प्रक्रिया है जो ग्रामीण एवं नगरीय दोनों प्रकार के जीवन में परिलक्षित होते हैं। इस प्रक्रिया में नगरीयता का विकास होता है। नगरीकरण उस प्रक्रिया की ओर संकेत करता है जिसके माध्यम से नगरों का निर्माण होता है।ई० ई० बर्गल के शब्दों में, “ग्रामीण क्षेत्रों का नगरीय क्षेत्रों में बदलने की प्रक्रिया को हम नगरीकरण कहेंगे।”
19. साम्प्रदायिकता क्या है ?
Ans ⇒ साम्प्रदायिकता को एक विचारधारा माना जा सकता है जो कि यह बताती है कि समाज धार्मिक समुदायों में बँटा हुआ है, जिनके स्वार्थ एक-दूसरे से भिन्न हैं और कभी-कभी उनमें पारस्परिक विरोध भी होता है। यह विरोध झूठे आरोप लगाने से लेकर जान से मार देने तक का वीभत्स रूप धारण कर लेता है।
20. राष्ट्रवाद क्या है ?
Ans ⇒ राष्ट्रवाद एक राष्ट्रीय एवं मानवीय मुद्दा है, जिसके लिए स्वस्थ विचार, सहयोग, सौहार्द एवं सह-अस्तित्व की परम आवश्यकता है। भारत जैसे बहुजातीय, बहुधर्मी, बहुभाषीय एवं बहुसंस्कृति वाले देश में यह विशेष महत्वपूर्ण है। 1962 में राष्ट्रीयता सम्मेलन के प्रतिवेदन में लिखा गया, “एक प्रजातंत्र में केवल प्रजाओं के होने से ही काम नहीं चलता, समाज के सदस्यों को नागरिक बनना होगा और नागरिक केवल तभी संभव है जबकि प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव करे कि उसकी राष्ट्र से सम्पूर्ण एकात्मकता है जिसका कि वह एक अंग है।”
21. जातिविहीन राजनीति क्या है ?
Ans ⇒ जातिवाद को दूर करने में जातिविहीन राजनीति की आवश्यकता है। यद्यपि आज प्रत्येक राजनीतिक दल जातिविहीन समाज की वकालत करता है, परन्तु वास्तविकता यही है कि वे जातिवाद आधार पर ही राजनीति करते हैं। इस संदर्भ में अजातिगत दृष्टि की जरूरत है और जरूरत है अजातिगत व्यवहार के द्वारा जातिवाद को दूर करने की। अतः वर्तमान में जातिविहीन होकर सोचें और अजातिगत रूप से अपने कर्त्तव्य को निश्चित करें। .
22. नागा आंदोलन क्या है ?
Ans ⇒ नागा आंदोलन पृथकतावादी आंदोलन का रूप है। यह आंदोलन स्वतंत्र भारत के पूर्व से ही चल रहा है। इसका मूल उद्देश्य भारत से अलग एक नागालैंड राज्य की माँग करता रहा है। अनेक नागा संगठनों ने व्यवस्था एवं कानून का विरोध करना शुरू किया। विभिन्न हिंसक घटनाएँ हुईं। इसके परिणामस्वरूप 1961 में भारतीय गणराज्य में नागालैण्ड को एक राज्य के रूप में मान्यता प्रदान की गई। इसके बावजूद अन्य मांगों के संदर्भ में आज भी नागा आंदोलन क्रियाशील है।
23. टोटम क्या है ?
Ans ⇒ जातियों में गोत्रों के नाम किसी ऋषि या काल्पनिक महापुरुष के नाम पर है जैसे वशिष्ठ भारद्वाज, कश्यप आदि। इसके विपरीत जनजाति में गोत्र टोटमों के आधार पर होते हैं जैसे कि मैसूर की कीमती जनजाति में आँवला, नींबू, कद्दू, चना, ईख, उरद, केला, अनार, .. गेहूँ, दाल, खजूर, गूलर, ईख, सरसों, चन्दन, कपूर, आदि गोत्र है।
24. दलित क्या है ?
Ans ⇒ दलित सामाजिक असमानता का वह रूप है जिसके आधार पर मनुष्य, मनुष्य के समीप आने, देखने और स्पर्श से अपवित्र हो जाते हैं। इन्हें सवर्ण जातियों से पृथक रहने की । व्यवस्था की गई तथा अनेक प्रकार की निर्योग्यताएँ निर्धारित की गईं।
डी० एन० मजूमदार ने लिखा है, “अस्पृश्य जातियाँ वे हैं जो अनेक सामाजिक और राजनीतिक निर्योग्यताओं की शिकार हैं, इनमें से अनेक निर्योग्यताएँ उच्च जातियों द्वारा परंपरागत तौर पर निर्धारित और सामाजिक तौर पर लागू की गई हैं।”
25. संचार क्या है ? .
Ans ⇒संचार सामाजिक परिवर्तन की एक ऐसी संगठित साधनों की प्रक्रिया है, जिसके द्वारा सूचनाओं, विचारों एवं क्रियाकलापों आदि को समुदाय के एक बड़े हिस्से तक पहुँचाना है। इसके तीन मुख्य रूप हैं –
(a) मुद्रित संचार – समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ आदि,
(b) विद्युत संचार – टेलीफोन, कम्प्यूटर एवं इन्टरनेट आदि और
(c) दृश्य-श्रव्य संचार – रेडियो एवं टेलीविजन आदि।
26. शिक्षा के प्रति समर्पण क्या है ?
Ans ⇒ शिक्षा मानव की एक बड़ी कृति है। इसने एक ओर मानव को सामाजिक प्राणी बनाया, तो दूसरी ओर नित नए-नए खोजों के माध्यम से समाज, राष्ट्र एवं विश्व को गति प्रदान की। इसलिए एक नागरिक के रूप में शिक्षा के प्रति समर्पण अनिवार्य है। हम न केवल स्वयं शिक्षित हों, बल्कि अपने आस-पास के लोगों में शिक्षा का माहौल दें। शिक्षा व्यक्ति एवं समाज से तीन रूपों में संबंधित है-(i) यह व्यक्ति में नैतिक गुणों का विकास करता है, (ii) यह व्यक्ति में समाज के प्रति योगदान को निर्धारित करता है, (iii) इसका संबंध आर्थिक विकास से है। वर्तमान शिक्षा को अधिकाधिक व्यवसायोन्मुख बनाया जा रहा है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. भारतीय समाज पर औद्योगीकरण के प्रभाव की विवेचना करें।
Ans ⇒ भारतीय समाज पर औद्योगीकरण के निम्नलिखित प्रभाव पड़े –
1.संयुक्त परिवार का विघटन हुआ और उसके जगह एकाकी परिवार का प्रचलन शुरू हुआ।
2. जाति व्यवस्था से सम्बन्धित संस्करण और नियमों में शिथिलता आयी।
3. कानूनों पर आधारित सामाजिक नियंत्रण की व्यवस्था विकसित की गई।
4. व्यक्तियों के सामाजिक मनोवृत्तियों में परिवर्तन हुआ।
5. अनेक नयी समस्याएँ उत्पन्न हुई, जिनमें मुख्य हैं-औद्योगिक केन्द्रों में मलिन बस्तियों में वृद्धि, प्रदूषण में वृद्धि होने से स्वास्थ्य की समस्या, अपराधों में वृद्धि, मानसिक तनाव बढ़ने से मनोविकार सम्बन्धी बीमारियों में वृद्धि, परिवहन के साधनों के विस्तार से दुर्घटनाओं से होने वाली मृत्यु दर में वृद्धि आदि।
2. परिवार की विशेषताओं की चर्चा करें।
Ans ⇒ परिवार की निम्नलिखित विशेषताएँ है –
1. परिवार एक सार्वभौमिक संस्था है। यह सभी समाजों तथा विकास के सभी स्तरों, में पाया जाता है।
2. भावनात्मक आधार पर परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं।
3. परिवार का प्रभाव रचनात्मक होता है।
4. सदस्यों की संख्या कम होने के कारण परिवार का आकार सीमित होता है।
5. यह सामाजिक क्रियाकलापों का केन्द्र-बिन्दु होता है। इसलिए सामाजिक संरचना में परिवार की केन्द्रीय स्थिति होती है।
6. असीमित उत्तरदायित्व परिवार के सदस्यों के बीच पाया जाता है। वे एक-दसरा लिए हमेशा श्रम करते रहते हैं तथा अपने हित का त्याग करते हैं।
7. यह सामाजिक नियंत्रण का महत्वपूर्ण साधन है। इस कारण परिवार व्यक्ति और समाज दोनों दृष्टिकोण से लाभकारी संगठन होता है।
8. परिवार स्थायी तथा अस्थायी प्रकृति का होता है। संस्था की दृष्टि से यह स्थायी होता है और समिति के रूप में अस्थायी होता है।
3. सामाजिक परिवर्तन में वैश्वीकरण की भूमिका को उजागर करें।
Ans ⇒ सामाजिक परिवर्तन में वैश्वीकरण की भूमिका को निम्नांकित रूप में समझा जा सकता है-
1.आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन –वैश्वीकरण खुली बाजार व्यवस्था को विकसित किया है। इससे एक ओर उद्योग-धन्धों का विकास हुआ है और दूसरी ओर उपभोक्ताओं को अच्छी वस्तुएँ कम कीमत पर मिलना संभव हुआ।
2. सामाजिक न्याय –वैश्वीकरण के प्रभाव में आर्थिक विकास संभव हुआ। आर्थिक विकास के साथ सामाजिक न्याय भी अपने-आप बढ़ने लगता है। दबे-कुचलों एवं महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने में योगदान दिया है।
3. सांस्कृतिक परिवर्तन –वैश्वीकरण के चलते एक सार्वभौमिक संस्कृति का विकास हुआ है। जब विभिन्न संस्कृतियों वाले देशों के लोग एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तो एक ‘साझा संस्कृति’ का विकास होता है। आज के वैश्वीकरण के युग में संस्कृति का मिलन हुआ है।
4. जीवन-शैली में परिवर्तन –व्यापार एवं बाजार ने 1990 के बाद हमारे जीवन-शैली को तीव्र गति से बदल दिया है। उपभोग के प्रतिमान में उलटफेर किया है। वर्तमान समाज उपभोक्ता समाज का रूप लेता जा रहा है। खान-पान, रहन-सहन, पहनावा-ओढ़ावा एवं अभिवादन के ढंग आदि में सजातीयता आ गई है। चाय, कॉफी, अंडे, मांस एवं हाय-हेलो आदि जीवन के मूल्य बन गए हैं।
5. मूल्यों में परिवर्तन –वैश्वीकरण का आधार उदारीकरण एवं आधुनिकता है। इसमें बाजार की शक्तियों द्वारा उपभोक्तावाद, बाजारवाद एवं व्यक्तिवाद जैसे मूल्यों को एक जीवन-दर्शन के रूप में प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है। यह व्यक्ति की संबेदनशीलता एवं विवेकशीलता को कुंद करता है।
6. समस्याएँ –वैश्वीकरण ने परिवर्तन के रूप में कुछ समस्याओं को भी विकसित किया है। पिछड़े हुए राष्ट्र आज भी अपनी आंतरिक समस्याओं जैसे—गरीबी, बेरोजगारी, शोषण एवं प्रष्टाचार आदि से ग्रसित है। वैश्वीकरण से होने वाले आर्थिक विकास का लाभ सभी देशों को समान रूप से नहीं मिल पाता। इसके फलस्वरूप आर्थिक असमानताएँ बढ़ी हैं।
4. ग्रामीण समदाय की प्रमुख समस्याएँ क्या हैं ?
Ans ⇒ ग्रामीण समुदाय ग्रामीण पर्यावरण में स्थित व्यक्तियों का कोई भी छोटा अथवा बडा समह है जो प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति पर निर्भर होता है, प्रकृति की सहायता से आजाविका उपार्जित करता है, प्राथमिक संबंधों को अपने लिए आवश्यक मानता है एवं साधारणतया एक दृढ़ सामुदायिकता की भावना के द्वारा बँधा रहता है। ग्रामीण समुदाय के संबंध में अनेक विद्वानों ने अपने विचार दिये हैं, जो निम्नलिखित हैं –
मेरिल और एलरिज के अनुसार, “ग्रामीण समुदाय के अन्तर्गत संस्थाओं एवं ऐसे व्यक्तियों का समावेश होता है जो एक छोटे से केन्द्र के चारों ओर संगठित होते हैं तथा सामान्य और प्राथमिक हितों द्वारा आपस में बँधे रहते हैं।”
सिम्स के अनुसार, “जिन वृहत् क्षेत्रों में एक समूह के लगभग सभी महत्वपूर्ण हितों की संतुष्टि हो जाती है, उनको ग्रामीण समदाय मान लेने के लिए समाजशास्त्रियों की प्रतिबद्धता बढ़ती जा रही है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि ग्रामीण समुदाय परिवेश की दृष्टि से प्रकृति के अधिक निकट होता है। इनमें बनावटीपन कम होता है। आर्थिक दृष्टि से प्रमुख रूप से कृषि पर तथा साधारण उद्योग पर निर्भर करते हैं।
ग्रामीण समुदाय की प्रमुख समस्याएँ –
1.शिक्षा संबंधी समस्या –भारत में अशिक्षितों की संख्या अधिक है किन्तु गाँव में इसका प्रतिशत बहुत अधिक है। आज भी गाँव अशिक्षित एवं निरक्षर लोगों की तादात में कमी नहीं है। इस दिशा में सुधार के लिए सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों के द्वारा प्रयास जारी है।
2. बेरोजगारी की समस्या –भारतीय कृषि वर्षा पर निर्भर करती है। जब वर्षा नहीं होती है तो गाँव के लोगों को कृषि से संबंधित काम नहीं मिल पाता है और बाद में उसके सामने भूखमरी एवं बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो जाता है।
3. सड़क और बिजली की समस्या –आज भी बहुत सारे गाँव वैसे हैं जहाँ पर न तो सडक की कोई व्यवस्था है. और न ही बिजली की व्यवस्था; जिसके कारण लोगों की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है।
4. नई सामाजिक समस्याएँ –वर्तमान समय में गाँवों में एक तरफ स्थिति में सुधार हुई है तो दूसरी ओर पारस्परिक संघर्ष गुटबन्दी, दलबन्दी तथा जातीय तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई।
5. अनेकता में एकता से आप क्या समझते हैं ? भारतीय समाज के संदर्भ में इसकी विवेचना करें।
Ans ⇒ राष्ट्रीय एकता – राष्ट्र के सब घटकों में विभिन्न विचारों और भिन्न अवस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। अर्थात् देश में भिन्नताएँ हों, फिर भी सभी नागरिक राष्ट्र-प्रेम से ओत-प्रोत हों। देश के नागरिक पहले ‘भारतीय’ हों, फिर हिंदू या मुसलमान। राष्ट्रीय एकता का भाव देश रूपी भवन में सीमेंट का काम करता है।
भारत में विभिन्नता – भारत अनेकताओं का देश है। यहाँ अनेक धर्मों, जातियों, वर्गों, संप्रदायों और भाषाओं के लोग निवास करते हैं। यहाँ के लोगों का रहन-सहन, खान-पान पहनावा भी भिन्न है। भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ भी कम नहीं हैं।
अनेकता में एकता- भारत में विभिन्नता होते हुए भी एकता या अविरोध विद्यमान है। यहाँ सभी जातियाँ घुल-मिलकर रहती रही हैं। यहाँ प्रायः लोग एक-दूसरे के धर्म का आदर करते हैं। आदर न भी करें तो दूसरे के प्रति सहनशील हैं।
6. हिन्दू धर्म के स्वरूपों का वर्णन करें। अथवा, धर्म के प्रकारों का वर्णन करें।
Ans ⇒ हिन्दू धर्म के प्रमुख स्वरूप निम्नलिखित हैं –
1.सामान्य धर्म –सामान्य धर्म के अन्तर्गत वे नैतिक नियम आते हैं जिसके अनुसार आच करना, प्रत्येक व्यक्ति का परम दायित्व है। मानव में सद्गुणों का विकास और श्रेष्ठता जागत करना इसका उद्देश्य है। इसे मानव धर्म भी कहा जाता है।
2.आपद्धर्म –चह परिस्थिति विशेष से सम्बन्धित अस्थायी धर्म है। जब व्यक्ति के कर्ता की दृष्टि से दो धर्मों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो जाए तो अत्यधिक महत्वपूर्ण धर्म का दायित्व के निर्वाह के लिए दूसरे धर्म के नियमों को कुछ समय के लिए छोड़ देना आपद्धर्म है।
7. बेरोजगारी के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
Ans ⇒ बेरोजगारी के निम्नलिखित प्रकार है –
(i) खुली बेरोजगारी – जब व्यक्ति कार्य करने के योग्य होना है और कार्य करना चाहता है लेकिन उसे कार्य नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति को खुली बेरोजगारी कहा जाता है।
(ii) संरचनात्मक बेरोजगारी – औद्योगिक क्षेत्र संरचनात्मक परिवर्तनों के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहते हैं।
(iii) मौसमी बेरोजगारी – मौसम में परिवर्तन के द्वारा उत्पन्न बेरोजगारी को मौसमी बेरोजगारी कहा जाता है। ऐसी बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पायी जाती है। फसलों के बोने और काटने के समय मजदूरों को काम मिलता है। शेष दिन वे बेकार रहते हैं।
(iv) शिक्षित बेरोजगारी बढ़े – लिखे लोगों को जब काम नहीं मिलता है तो इसे शिक्षित बेरोजगारी कहा जाता है।
(v) छिपी हुई बेरोजगारी – भारतीय अर्थव्यवस्था में छिपी हुई बेरोजगारी अधिक मात्रा में पायी जाती है। कृषि क्षेत्र में इस प्रकार की बेरोजगारी पायी जाती है। इस प्रकार की बेरोजगारी के अन्तर्गत श्रमिक काम में लगे होते हैं। परन्तु उनकी सीमान्त उत्पादकता नगण्य या शून्य होती है।
(vi) घर्षणात्मक बेरोजगारी – बाजार की दशाओं में परिवर्तन होने से उत्पन्न बेरोजगारी को घर्षणात्मक बेरोजगारी कहते हैं।।
(vii) चक्रीय बेरोजगारी – चक्रीय बेरोजगारी व्यापार चक्र के कारण उत्पन्न होता है। मंदी के दिनों में माँग घट जाने से जो बेरोजगारी फैलती है उसे चक्रीय बेरोजगारी कहते हैं।
8. हिन्दू विवाह के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
Ans ⇒ हिन्दू विवाह आठ प्रकार के होते हैं –
1.ब्रह्म विवाह –इस विवाह के अन्तर्गत कन्या का पिता अपनी कन्या के लिए सामर्थ्य एवं सुयोग्य वर को विवाह के लिए आमंत्रित करता है और उसे अपनी पुत्री का कन्यादान करता है।
2.दैव विवाह – कन्या का पिता अपनी सुपुत्री का यज्ञ कराने वाले पुरोहित के साथ विवाह करता है तो ऐसे विवाह को दैव विवाह कहा जाता है।
3.आर्ष विवाह –विवाह के इच्छुक ऋषि अपनी पसंद की कन्या के पिता को गाय और बैल का एक जोड़ा भेंट करता है। भेंट स्वीकार करने के बाद कन्या का पिता अपनी कन्या का विवाह उस ऋषि से कर देता है। इस विवाह को आर्ष विवाह कहा जाता है।
4.प्राजापत्य विवाह – 4प्राजापत्य विवाह वह विवाह है जिसमें कन्या का पिता वर और वधू को आजीवनः धर्म का आचरण करने का आशीर्वाद देकर वर को अपनी कन्या का दान कर देता है।
5. आसुर विवाह –कन्या के माता-पिता को कन्या मूल्य देकर जब कन्या से विवाह किया जाता है तो उसे आसुर विवाह कहा जाता है।
6. गान्धर्व विवाह –चर और कन्या के पारस्परिक प्रेम के फलस्वरूप होने वाले विवाह को गान्धर्व विवाह कहा जाता है।
7. राक्षस विवाह –कन्या से जबरदस्ती विवाह कर लेना राक्षस विवाह कहलाता है।
8. पैशाच विवाह –धोखे या जबरदस्ती से शीलहरण के बाद उस लड़की से विवाह करना पैशाच विवाह कहलाता है। यह सबसे निम्न कोटि का विवाह है।
9. धर्मनिरपेक्षता का अर्थ एवं विशेषताओं का वर्णन करें।
Ans ⇒ धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य सभी धर्मों के प्रति समानता की भावना से है। इसका अर्थ यह है कि राज्य के द्वारा किसी विशेष धर्म को संरक्षण नहीं दिया जाता है। देश के सभी नागरिक अपनी इच्छा से किसी भी धर्म को मानने और उसके विश्वासों के अनुसार व्यवहार करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। डॉ. आर० एन० सक्सेना के अनुसार, “धर्मनिरपेक्षता वह नीति है जो धार्मिक सहिष्णुता, समानता और भाईचारे पर आधारित होती है। यह सभी नागरिकों को उनकी जाति, धर्म, लिंग और विश्वासों पर विचार किये बिना सभी को अपने धर्म के अनुसार आचरण करने की स्वतंत्रता देती है।
धर्मनिरपेक्षता की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
(i) सभी धर्मों के बीच समानता पायी जाती है।
(ii) किसी धर्म के साथ पक्षपात नहीं किया जाता है।
(iii) किसी धर्म को राज्य द्वारा राजकीय धर्म नहीं घोषित किया जाता है।
(iv) अपने धर्म को मानने और उसके प्रचार-प्रसार की स्वतंत्रता होती है।
10. सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर एक निबन्ध लिखें।
Ans ⇒ भ्रष्टाचार लाभ के लिए कानून तथा समाज के विरोध में किए जाने वाला कार्य . . है। भ्रष्टाचारी व्यक्ति सहयोग, सेवा, कर्तव्य और नियम कानून के प्रति निष्ठा की भावना को तिलांजलि देकर केवल अपने हित की पूर्ति में लगा रहता है। भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं होती है। उच्च स्तरीय अधिकारी, विधायक, सांसद, मंत्रीगण आदि का सक्रिय सहयोग अपराधियों, व्यापारियों, उद्योगपतियों, तस्करों, ठेकेदारों आदि के साथ होता है जो उन्हें धन देते हैं अथवा चुनाव के समय अपने काले करनामों को निडरता से करते हैं।
सरकारी अधिकारी प्रत्येक स्तर पर घस लेते हैं. उपहार ग्रहण करते हैं तथा अन्य प्रकार से अपराधा से सेवाएँ प्राप्त करते हैं। इस प्रकार एक तो वे अपराधियों को अपराध करने के लिए प्रात्साहित करते हैं और दसरी ओर अपराधी को अपराध करते देखकर भी उन्हें नहीं पकडते हैं या पकड़ने के बाद घूस लेकर छोड़ देते हैं। पेशेवर चोर सरकारी अधिकारी को घूस देकर अपना काम करता रहता है। ठेकेदार घूस देकर अनुकुल ठेका प्राप्त कर लेता है, अपने गलत बिल सरकारी क्लकों एवं अफसरों को कमीशन देकर आसानी से पास करवा लेता है। इन्हीं सरकारी अधिकारियों को खुश रखकर अनेक अनैतिक व्यापार, जुए के अड्डे, गैर-कानूनी शराब का व्यापार, तस्करी, वेश्यालय आदि चलाए जाते हैं। ट्रैफिक नियम का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति पुलिस के हाथ में पचास-सौ रुपए रख कर अपने को कानूनी पंजों से छुड़ा लेता है। शव परीक्षा की रिपोर्ट में वास्तविकता को छिपाकर अपराधी को निरपराध सिद्ध करने में डॉक्टर मदद करते हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि लोक जीवन में भ्रष्टाचार हर क्षेत्र में पाया जाता है।
11. सामाजिक परिवर्तन में पश्चिमीकरण की भूमिका का वर्णन करें।
Ans ⇒ जब किसी समाज में व्यवहार करने के तरीके, विश्वास, विचार, उत्पादन के तरीके और सामाजिक मूल्य पश्चिमी देशों की संस्कृति के अनुसार बदलने लगते हैं तब इस दशा को हम पश्चिमीकरण कहते हैं। इसमें मुख्य रूप से तीन तरह के परिवर्तनों का समावेश है (क) व्यवहार सम्बन्धी परिवर्तन, जैसे-खान-पान, वेशभूषा, शिष्टाचार के तरीकों तथा व्यवहार , के ढंगों में परिवर्तन, (ख) ज्ञान सम्बन्धी परिवर्तन, जैसे-विज्ञान, प्रौद्योगिकी और साहित्य में परिवर्तन तथा (ग) सामाजिक मूल्यों और विचारों में परिवर्तन, जैसे-मानवीय अधिकारों, सामाजिक समानता तथा सभी धर्मों के प्रति आदर का भाव विकसित होना। इतना ही नहीं पश्चिमीकरण के कारण विवाह संस्था में भी परिवर्तन हुआ तथा स्त्रियों की दशा में सुधार हुआ, जिससे उनमें नई चेतना पैदा हुई। इसने भारत में परम्परागत सांस्कृतिक ढाँचे को बदलकर एक नयी सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था को स्थापित करने में योगदान किया है।
12. नातेदारी के महत्व की विवेचना करें।
Ans ⇒ नातेदारी वह व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत केवल रक्त सम्बन्धी ही नहीं आते हैं बल्कि वे सभी सम्बन्धी इस व्यवस्था में शामिल है, जिन्हें समाज मान्यता प्रदान करता है। नातेदारी व्यवस्था के सामाजिक महत्व की चर्चा निम्नवत् की जा सकती है
(i) यह विवाह तथा परिवार के रूप को व्यवस्थित बनाता है।
(ii) वंशावली का निर्धारण नातेदारी द्वारा ही होता है।
(iii) इसके द्वारा ही यह निश्चित किया जाता है कि एक व्यक्ति की सम्पत्ति और पद का हस्तांतरण किन लोगों में होगा और कौन-कौन उसके दावेदार होंगे।
(iv) यह व्यक्ति को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है।
(v) इसके द्वारा सामाजिक दायित्वों का निर्वाह किया जाता है।
(vi) व्यक्ति नातेदारों के बीच अपने को पाकर असीम आनन्द, संतोष और प्रसन्नता का अनुभव करता है।
(vii) मानवशास्त्रियों ने नातेदारी के विभिन्न पक्षों का अध्ययन कर मानवशास्त्रीय ज्ञान को समृद्ध किया है।
13. जनजातीय समाज में जीवन साथी प्राप्त करने के विभिन्न तरीकों का वर्णन करें।
Ans ⇒ भारतीय जनजातीय समाज में जीवन साथी प्राप्त करने के आठ तरीके प्रचलित हैं, जो निम्नलिखित हैं –
1.परिवीक्षा विवाह –इस प्रकार के विवाह में विवाह से पूर्व लड़का-लड़की को कुछ दिनों तक साथ रहने का अवसर दिया जाता है। यदि इस परिवीक्षा काल में दोनों एक-दूसरे के साथ रहना पसंद करने लगते हैं तो उनका विवाह कर दिया जाता है, अन्यथा वे अलग हो जाते हैं और क्षतिपूर्ति के रूप में युवक कन्या के परिवार को कुछ धन देता है। मणिपुर की कूकी जनजाति में इस प्रकार का विवाह पाया जाता है।
2. हरण विवाह –कन्या का अपहरण करके जब उससे विवाह किया जाता है तो उसे हरण विवाह कहा जाता है।
3. परीक्षा विवाह –इस प्रकार के विवाह में पुरुष के साहस और वीरता की परीक्षा ली जाती है। अगर वह साहसी निकलना है तो उससे कन्या का विवाह करा दिया जाता है। भील जनजाति में इस प्रकार के विवाह का प्रचलन है।
4. क्रय विवाह – इस प्रकार के विवाह में वधू प्राप्त करने के लिए वधू के माता-पिता या उसके अभिभावक को वधू मूल्य देना पड़ता है। बिना वधू मूल्य चुकाए वधू प्राप्त नहीं किया जा सकता।
5. सेवा विवाह –इस प्रथा के अनुसार वर अपने होने वाले ससुर के घर विवाह के पहले एक निश्चित समय तक एक नौकर की तरह सेवा करता है और उसके बदले में उसकी पुत्री से विवाह कहता है। गोंड, बैगा आदि जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है।
6. विनिमय विवाह –इस विवाह के अन्तर्गत दो परिवारों के बीच उनके पुत्र और पुत्री के बीच विनिमय होता है। फलस्वरूप दोनों परिवारों को कन्या मूल्य नहीं चुकाना पड़ता। मुरिया गोंड, बैगा, कोया तथा उराली जनजातियों में यह लोकप्रिय है।
7. सहमति या सहपलायन विवाह –जब एक युवक और ए क युवती परस्पर प्रेम करते हैं और विवाह करना चाहते हैं, परन्तु उनके माता-पिता इसके लिए सहमत नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में युवक और युवती आपसी सहमति से पलायन कर जाते हैं और विवाह कर लेते हैं तो उसे सहमति विवाह कहा जाता है। कुछ समय बाद वे लौटते हैं तो उन्हें पति-पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है।
8. हठ विवाह –लड़की जिस लड़के से विवाह करना चाहती है उसके घर में जबरदस्ती जाकर रहने लगती है। ऐसी स्थिति में लड़की को कई तरह दु:ख उठाने पड़ते हैं। जैसे-उसे अपमानित किया जाना, खाना नहीं देना, गाली देना आदि। इसके बाद भी वह उस घर में रहती है तो उससे लड़के का विवाह कर दिया जाता है। इस प्रकार का विवाह बिरहोर, उराँव और मुण्डा जनजाति में पाया जाता है।