वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1.किसका उपदेश ज्ञान का स्रोत है ?
(A) आप्त पुरुष
(B) आम आदमी
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) आप्त स्त्री
Ans. (A)
2. वस्तुवाद किस प्रकार के सिद्धांत से संबंधित है ?
(A) ईश्वरवाद से
(B) सत्तामीमांसा से
(C) ज्ञानमीमांसा से
(D) सौंदर्य मीमांसा से
Ans. (C)
3. निरपेक्ष प्रत्ययवाद के प्रवर्तक हैं-
(A) प्लेटो
(B) बर्कले
(C) हिमेल
(D) अरस्तू
Ans. (D)
4. समीक्षात्मक वस्तुवाद को कहते हैं-
(A) ज्ञान मीमांसीय एकवाद
(B) ज्ञान मीमांसीय द्वैतवाद
(C) तत्व मीमांसीय द्वैतवाद
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
5. निम्न में से किसने बोला ‘सभी प्रत्यय अंतर्जात है’ ?
(A) लॉक
(B) बर्कले
(C) ह्यूम
(D) देकार्त्त
Ans. (A)
6. निम्न में से किसका मानना है कि कोई प्रत्यय जन्मजात नहीं होता है ?
(A) देकार्त्त
(B) स्पीनोजा
(C) लॉक
(D) लाइबनीज
Ans. (C)
7. देकार्त ने स्वीकारा है-
(A) समान्तरवाद को
(B) पूर्वस्थापित सामंजस्यवाद को
(C) अन्तर्क्रियावाद को
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
8. प्रत्ययवाद संबंधित है-
(A) जड़ से
(B) चेतना से
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
9. बर्कले समर्थक हैं-
(A) आत्मनिष्ठ प्रत्ययवाद का
(B) वस्तुनिष्ठ प्रत्ययवाद का
(C) निरपेक्ष प्रत्ययवाद का
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
10. वस्तुवाद है-
(A) तत्त्वमीमांसीय सिद्धांत
(B) ज्ञानमीमांसीय सिद्धांत
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
11. प्रत्ययवाद की प्रथम झलक किसके दर्शन में मिलता है ?
(A) बर्कले
(B) काण्ट
(C) देकार्त
(D) ये सभी
Ans. (A)
12. वस्तुएँ ज्ञाता स्वतंत्र होती है, यह है-
(A) बुद्धिवाद
(B) प्रत्ययवाद
(C) वस्तुवाद
(D) समीक्षावाद
Ans. (C)
13. शरीर एवं मन के संबंध में सिद्धांत है-
(A) समानान्तरवाद
(B) अन्योन्य क्रियावाद
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
14. प्रत्ययवाद के अनुसार परम सत्ता है-
(A) प्रत्यय
(B) जड़
(C) तटस्थ
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
15. निम्नलिखित में किसे जनता का सिद्धांत माना जाता है ?
(A) प्रत्ययवाद
(B) वस्तुवाद
(C) प्रत्ययवाद एवं वस्तुवाद
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
16. ज्ञान का कौन सिद्धांत यह मानता है कि ‘ज्ञान से ज्ञात पदार्थों में कोई परिवर्तन नहीं होता है’ ?
(A) पत्ययवाद
(B) वस्तुवाद
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
17. पाश्चात्य दर्शन में दार्शनिक वस्तुवाद के प्रकार हैं हैं-
(A) प्रत्यय प्रतिनिधित्ववाद
(B) नवीन वस्तुवाद
(C) समीक्षात्मक वस्तुवाद
(D) उपर्युक्त सभी
Ans. (D)
18. नवीन वस्तुवाद का संबंध किन दार्शनिकों से है ?
(A) मूरे
(B) रसेल
(C) मूरे एवं रसेल
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
19. देकार्त ने शरीर एवं मन की व्याख्या करने में कौन-सा सिद्धांत अपनाया ?
(A) समानान्तरवाद
(B) अन्योन्य क्रियावाद
(C) उपर्युक्त दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
20. समीक्षात्मक वस्तुवाद के अनुसाद ज्ञान की प्रक्रिया में तीन तत्व होते हैं-मानसिक क्रिया, ज्ञान का विषय तथा यथार्थ वस्तु। ऐसा विचार किस दार्शनिक की रचनाओं में मिलता है ?
(A) मेनॉग
(B) रसेल
(C) स्ट्रॉग
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
21. ज्ञान मीमांसीय वस्तुवाद के अनुसार-
(A) ज्ञेय ज्ञाता से स्वतंत्र नहीं है
(B) ज्ञाता एवं ज्ञेय दोनों एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
22. नवीन वस्तुवाद के अनुसार-
(A) ज्ञान का विषय ज्ञाता से स्वतंत्र है
(B) ज्ञाता और ज्ञेय(ज्ञान के विषय) के बीच बाह्य संबंध है
(C) उपर्युक्त दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
23. वस्तुवाद में-
(A) वस्तुओं का अस्तित्व ज्ञाता से स्वतंत्र है
(B) वस्तुओं का अस्तित्व ज्ञाता के
(C) उपर्युक्त दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
24. प्रत्ययवाद के अनुसार-
(A) ज्ञाता स्वतंत्र है
(B) ज्ञेय स्वतंत्र है
(C) ज्ञात एवं स्वतंत्र ज्ञेय की कल्पना संभव नहीं है
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
25. किसके अनुसार यथार्थ ज्ञान को सार्वभौम एवं अनिवार्य होना चाहिए ?
(A) काण्ट
(B) ह्यूम
(C) देकार्त
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. लोकप्रिय वस्तुवाद की परिभाषा दें।
Ans. प्रिय वस्तु सभी को प्रिय लगती है। भारतीय आचार दर्शन के क्षेत्र में वे भौतिक साधन जिसके आधार पर हम जीवन यापन करते हैं। इनका असीम रूप से अर्जुन लोकप्रिय वस्तुवाद कहलाता है।
2. प्रत्ययवाद क्या है ?
Ans. वस्तुवाद के अनुसार मूलतत्त्व का स्वरूप जड़ द्रव्य है। ठीक इसके विपरीत प्रत्ययवाद मानता है कि मूलसत्ता चेतन स्वरूप है। मूलसत्ता को चेतन स्वरूप मानने के कारण आध्यात्मवाद का दृष्टिकोण अप्रकृतिवादी, प्रयोजनवादी, ईश्वरवादी, अतिइन्द्रियवादी तथा आदर्शवादी है। विश्व के प्रकट कार्यकलापों के पीछे एक गहरी आध्यात्मिक सार्थकता है जो किसी निश्चित आदर्श की ओर अग्रसर हो रही है। जो कुछ जिस रूप में वास्तविक नजर आता है वह वास्तविक नहीं है। वास्तविकता का साक्षात्कार करने के लिए केवल बुद्धि पर्याप्त नहीं। जिस प्रकार भौतिकवादियों के बीच जड़द्रव्य के स्वरूप को लेकर कोई निश्चितता नहीं है, उसी प्रकार प्रत्ययवादियों के बीच भी चेतना के स्वरूप को लेकर कोई निश्चितता नहीं है। प्रत्ययवाद चेतन प्रत्यय, आत्मा या मन को विश्व की आधारभूत सत्ता मानते हुए समस्त विश्व को अभौतिक मानता है।
3. बर्कले का आत्मनिष्ठ प्रत्ययवाद क्या है ?
Ans. बर्कले के अनुसार आत्मा और उसके प्रत्यय ही एकमात्र सत्ताएँ हैं इसलिए बर्कले के दर्शन को अध्यात्मवाद कहा जाता है; क्योंकि अध्यात्मवाद के अनुसार ही परम सत्ता है। परन्तु इस अध्यात्मवाद की जड़ Esse Est Percipi के सिद्धांत पर आधारित हैं इसलिए इसे प्रत्ययवाद (Idealism) भी कहा जाता है। प्रत्ययवाद के अनुसार परम सत्ता वह है, जिसे युक्ति संगत मानसिक विचारों की राशि कहा जा सकता है। बर्कले का कहना है कि समस्त विश्व प्रत्यय है और इस दृष्टिकोण से इसे प्रत्ययवाद कहा जा सकता है।
4. वस्तुवाद क्या है ?
अथवा, वस्तुवाद की एक परिभाषा दें।
Ans. वस्तुवाद ज्ञानशास्त्रीय है जिसकी मूल मान्यता है कि ज्ञेय ज्ञाता से स्वतंत्र होता है तथा ज्ञेय का ज्ञान होने से जग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। जो वस्तु जिस रूप में रहती है ठीक उसी रूप में उसका ज्ञान होता है। वस्तुवाद के दो रूप होते हैं- (1) लोकप्रिय वस्तुवाद और (ii) दार्शनिक वस्तुवाद। दार्शनिक वस्तुवाद के तीन रूप होते हैं- (a) प्रत्यय प्रतिनिधित्ववाद (b) नवीन वस्तुवाद और (c) समीक्षात्मक वस्तुवाद।
5. वस्तुवाद और प्रत्ययवाद में अन्तर स्पष्ट करें।
Ans. वस्तुवाद तथा प्रत्ययवाद वह ज्ञान शास्त्रीय सिद्धान्त है जो अस्तित्व ज्ञाता और ज्ञेय के आपसी संबंध की व्याख्या करता है। वस्तुवाद की मान्यता है कि ज्ञेय का अस्तित्व ज्ञाता से स्वतंत्र है, जबकि प्रत्ययवाद की मान्यता है कि ज्ञेय का अस्तित्व ज्ञाता पर निर्भर करता है। वस्तुवाद की मान्यता है कि ज्ञाता और ज्ञेय के बीच बाह्य सम्बन्ध है, जबकि प्रत्ययवाद की मान्यता है कि ज्ञाता और ज्ञेय में आन्तरिक संबंध है।
वस्तुवाद का मानना है कि ज्ञान होने पर वस्तु के स्वरूप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि प्रत्ययवाद का मानना है कि बाह्य पदार्थ प्रत्यात्मक होते हैं। ज्ञान होने पर वस्तु के नये स्वरूप का ज्ञान होता है।
वस्तुवाद के मुख्य समर्थक मूर, थेरी हॉल्ट आदि हैं। प्रत्ययवाद के मुख्य समर्थक बर्कले, हीगल तथा ग्रीन आदि हैं। साधारणतः सामान्य व्यक्तियों का विचार वस्तुवादी होता है।
6. भौतिकवाद क्या है ?
Ans. भौतिकवाद (Materialism) वह दार्शनिक सिद्धांत है, जिसके अनुसार विश्व का मूल आधार या परमतत्व (Ultimate Reality) जड़ या भौतिक तत्त्व है। अनुभव में हम चार प्रकार के गुणात्मक अंतर (Qualitative Difference) नहीं है। इस सिद्धांत के अनुसार जीव, मनस् तथा चेतना (Life, Mind and Consciousness), जो देखने में अभौतिक लगते हैं, भूत (Matter) से ही उत्पन्न या विकसित हुए हैं।
7. प्रत्ययवाद एवं भौतिकवाद में अंतर करें।
Ans. प्रत्ययवाद ज्ञान का एक सिद्धान्त है। प्रत्ययवाद के अनुसार ज्ञाता से स्वतंत्र ज्ञेय की कल्पना संभव नहीं है। यह सिद्धान्त ज्ञान को परमार्थ मानता है।
वस्तुवाद वस्तुओं का अस्तित्व ज्ञाता से स्वतंत्र मानता है। यह सिद्धान्त प्रत्ययवाद ( idealism) का विरोधी माना जाता है।
8. अन्तक्रियावाद की व्याख्या कर।
Ans. मन शरीर संबंध का विश्लेषण देकार्त, स्पिनोजा और लाइबनीज ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया है। देकार्त का विचार है अन्तर्क्रियावाद (Interactionism), स्पिनोजा का विचार समानान्तरवाद (Parallelism) और लाइबनिज का विचार पूर्वस्थापित सामंजस्यवाद (Theory of Pre-established Harthony) कहलाता है। देकार्त के अनुसार मन और शरीर एक-दूसरे से स्वतंत्र है। मन चेतन है। शरीर जड़ है। अतः दोनों का स्वरूप भिन्न है। फिर भी उनमें पारस्परिक संबंध है जिसे देकार्त ने अन्तक्रिया संबंध (relation of interaction) कहा है। जब भूख लगती है तो मन खिन्न रहता है। भोजन करने से भूख मिटती है और मन तृप्त होता है। मन में निराशा होती है, तो किसी काम को करने की इच्छा नहीं होती है। हाथ-पैर हिलाने से काम होता है। इस प्रकार विरोधी स्वभाव वाले ये दो सापेक्ष द्रव्य एक-दूसरे पर निर्भर है।
9. पूर्वस्थापित सामंजस्यवाद की व्याख्या करें।
Ans. लाइबनिज का विचार पूर्वस्थापित सामंजस्यवाद (Theory of Pre-established Harmony) कहलाता है। लाइबनिज के चिदृणु गवाक्षहीन एवं पूर्ण स्वतंत्र हैं। ये एक-दूसरे को प्रभावित नहीं कर पाते। फिर भी इनमें आन्तरिक सम्बन्ध रहता है। ये सभी अपने-अपने ढंग से विश्व को प्रतिबिम्बित करते रहते हैं। ये विश्व के विभिन्न दर्पण हैं। इनसे बने विश्व में एक अद्भुत सामंजस्य एवं व्यवस्था का दर्शन होता है। इसलिए तो लाइबनिज इस विश्व को सभी संभव संसारों में सर्वश्रेष्ठ बतलाते हैं। यदि चिदणु परस्पर स्वतंत्र है तो फिर विश्व में अद्भुत व्यवस्था एव सामंजस्य किस प्रकार संभव है। पुनः आत्मा एवं शरीर में सम्बन्ध कैसे स्थापित हो पाता है ?
लाइबनिज ने इस समस्या का समाधान ईश्वरकृत ‘पूर्व-स्थापित सामंजस्यवाद’ (Theory of Pre. established Harmony) के आधार पर करना चाहा है।
ईश्वर ही चिदणुओं के निर्माता या रचयिता हैं। उन्होंने सृष्टि के समय ही इनमें कुछ ऐसी व्यवस्था कर दी है. ये स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करते हुए भी एक-दूसरे के कार्यों में बाधा नहीं डाल सकते। इनके क्रियाकलापों में संगति बनी रहती है। यदि आत्मा में कोई परिवर्तन होता तद्नुकूल शरीर में भी वही परिवर्तन होता है। इसलिए हम कहते हैं कि आत्मा के आदेशानुकूल कार्य करता है। सभी चिदणु स्वतंत्र रूप से क्रिया करते हुए विश्व की व्यवस्था बनाये रख हैं। ईश्वर ने सृष्टि के समय ही कुछ ऐसी व्यवस्था कर दी है कि एक चिदणु दूसरे चिदणु के अनुकूल आंतरिक क्रियाशीलता में संलग्न रहता है। सभी चिदणु चेतना को पूर्ण विकसित करने में प्रयत्नशील रहते हैं।
10. समानान्तरवाद क्या है ?
Ans. पाश्चात्य विचारक स्पिनोजा ने मन- शरीर संबंध की व्याख्या के लिए सिद्धांत का प्रणयन किया है, उसे समानांतरवाद कहा जाता है। स्पिनोजा की मान्यता है कि मन और शरीर सापेक्ष द्रव्य नहीं हैं, जैसा की देकार्त्त ने स्वीकार किया है। चेतन और विस्तार क्रमशः मन और शरीर के गुण है तथा ये गुण ईश्वर में निहित रहते हैं। ये दोनों गुण ईश्वर के स्वभाव हैं। ये दोनों विरोधी स्वभाव नहीं है, बल्कि रेल की पटरियों के समान समानांतर स्वभाव है। इन दोनों की क्रियाएँ साथ-साथ होती है।
11. ‘मन शरीर समस्या’ के सम्बन्ध में आधुनिक विचार क्या है ?
Ans. मन शरीर के सम्बन्ध की विवेचना एक जटिल दार्शनिक समस्या है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार शारीरिक प्रक्रियाओं के अतिरिक्त मन की स्वतंत्र सत्ता को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इस दृष्टि से मन और शरीर के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का प्रश्न ही नहीं. उठता है। शारीरिक या मानसिक प्रक्रियाओं के तंत्र को ही ‘मन’ की संज्ञा दी जाती है। लेकिन मन को स्वतंत्र मानने को मशीन में भूत ( ghost in the machine) के बराबर काल्पनिक सिद्धान्त कहा जाता है। व्यवहारतः यन्त्र अपने-आप चलता है, न कि कोई भूत इसे चलाता है।