वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1.भर्तृहरि नें प्रसिद्ध पुस्तक लिखा है-
(A) स्फोटवाद
(B) वाक्य पदीयम
(C) शब्दबोध
(D) इनमें कोई नहीं
Ans. (B)
2. ‘तत्त्व चिन्तामणि’ पुस्तक के लेखक कौन हैं ?
(A) उदयन
(B) गंगेश
(C) गौतम
(D) प्रशस्तपाद
Ans. (B)
3. शिक्षा दर्शन एक शाखा है-
(A) मनोविज्ञान की
(B) अर्थशास्त्र की
(C) तर्कशास्त्र की
(D) इनमें कोई नहीं
Ans. (D)
4. निम्नलिखित में से कौन भारतीय दार्शनिक नहीं है ?
(A) कपिल
(B) गौतम
(C) देकार्त्त
(D) कणाद
Ans. (C)
5. भारतीय दर्शन में बंधन की अवधारणा का क्या अर्थ है ?
(A) आत्मा का शरीर से बंधे रहना
(B) शरीर का जगत से बंधे रहना
(C) जीवात्मा का परमात्मा से बंधे रहना
(D) सगुण ईश्वर का निर्गुण ईश्वर से बंधे रहना
Ans. (A)
6. भारतीय दर्शन को निराशावादी क्यों कहा गया है ?
(A) आत्मा को शाश्वत मानने के कारण
(B) जगत् को दुःखपूर्ण मानने के कारण
(C) मुक्ति की अवधारणा के कारण
(D) कर्म सिद्धांत के कारण
Ans. (B)
7. भारतीय दर्शन की कौन-सी अवधारणा मनुष्य के सांसारिक जीवन के क्रमिक विकास का उद्देश्य निर्धारित करता है ?
(A) द्रव्य की अवधारणा
(B) पुरुषार्थ की अवधारणा
(C) ईश्वर की अवधारणा
(D) इनमें से कोई भी नहीं
Ans. (B)
8. दर्शनशास्त्र में ज्ञान को किस अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है ?
(A) विस्तृत अर्थ में
(B) संकुचित अर्थ में
(C) दोनों अर्थों में
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
9. भारतीय दर्शन में आत्म-ज्ञान का संबंध है :
(A) पुनर्जन्म से
(B) बंधन से
(C) धन संग्रह से
(D) अविद्या के निराकरण से
Ans. (D)
10. भारतीय दर्शन अपनी किस विशेषता के कारण पाश्चात्य दर्शन से भिन्नता स्थापित करता है ?
(A) केवल ज्ञान के आधार पर
(B) केवल ईश्वर विचार के आधार पर
(C) केवल जगत विचार के आधार पर
(D) दृष्टि युक्त ज्ञान के आधार पर
Ans. (D)
11. आस्तिक दर्शन निम्नलिखित में से किसे चेतना के अधिष्ठान के रूप में स्वीकार करता है ?
(A) आत्मा
(B) जगत्
(C) शरीर
(D) प्रकृति
Ans. (A)
12. भारतीय-दर्शन के अनुसार जीवन का कौन-सा प्रयोजन या उद्देश्य भौतिक है ?
(A) काम
(B) अर्थ
(C) धर्म
(D) A और B दोनों
Ans. (D)
13. प्रकृति के किस गुण के कारण वस्तुएँ ऊर्ध्वगमन करती है ?
(A) सत्वगुण
(B) रजोगुण
(C) तमोगुण
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
14. प्रकृति का कौन-सा गुण जड़ता और निष्क्रियता का कारण है ?
(A) सत्वगुण
(B) रजोगुण
(C) तपोगुण
(D) इनमें से सभी
Ans. (C)
15. भारतीय दर्शन में वैध ज्ञान प्राप्त करने के साधन को क्या कहते हैं ?
(A) प्रमाण
(B) प्रमा
(C) प्रमेय
(D) प्रमाता
Ans. (A)
16. भारतीय दर्शन का प्राण या आत्मा किसे माना जा सकता है ?
(A) स्वस्थ शरीर को
(B) स्वस्थ मन को
(C) शुद्ध आत्मा को
(D) शुद्ध अध्यात्म को
Ans. (C)
17. भारतीय दर्शन को अवतार की अवधारणा के द्वारा समृद्ध किस
ग्रंथ ने किया है ?
(A) ब्रह्म सूत्र
(B) भगवद् गीता
(C) न्याय सूत्र
(D) शंकर भाष्य
Ans. (B)
18. भारतीय दर्शन के किस सम्प्रदाय में पदार्थ और द्रव्य की विस्तृत विवेचना मिलती है ?
(A) योग दर्शन
(B) वैशेषिक दर्शन
(C) अद्वैत वेदांत
(D) मीमांसा दर्शन
Ans. (B)
19. निम्नलिखित में से कौन पुरुषार्थ के अंतर्गत आता है ?
(A) धर्म
(B) मोक्ष
(C) A और B दोनों
(D) प्रेम
Ans. (C)
20. सत्व गुण का सत्व गुण में ही रूपांतरित होना क्या है ?
(A) विरूप परिवर्तन
(B) स्वरूप परिवर्तन
(C) विवर्त परिवर्तन
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
21. निम्नलिखित में से कौन ज्ञान का अवरोध करता है ?
(A) सत्व
(B) रजस
(C) तमस्
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
22. अनुमान प्रमाण का जड़ क्या होता है ?
(A) उपमान
(B) प्रत्यक्ष
(C) शब्द
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
23. निम्न में कौन नास्तिक दर्शन है ?
(A) बौद्ध दर्शन
(B) जैन दर्शन
(C) चार्वाक दर्शन
(D) उपरोक्त सभी
Ans. (D)
24. आश्रम कितने सोपान की होती है ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
Ans. (D)
25. निम्नलिखित में से कौन भारतीय दार्शनिक नहीं है ?
(A) अरस्तु
(B) कपिल
(C) पतंजलि
(D) जैमिनि
Ans. (A)
26. भारतीय दर्शन के अंतर्गत निम्नलिखित में से कौन दर्शन आते हैं
(A) अद्वैतवाद
(B) द्वैतवाद
(C) विशिष्टाद्वैतवाद
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
27. नैतिक नियम के अनुकूल रहने वाले कर्मों को क्या कहेंगे ?
(A) उचित
(B) अनुचित
(C) उचित एवं अनुचित
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
28. दो वस्तुओं के बीच का विशेष और अनिवार्य संबंध क्या कहलाता है ?
(A) अभाव
(B) सन्निकर्ष
(C) व्याप्ति
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
29. प्रमाता किसे कहते हैं ?
(A) ज्ञान के साधन को
(B) ज्ञान की वस्तु को
(C) ज्ञान प्राप्त करने वाले को
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
30. पुरुषार्थ के अंतर्गत निम्नलिखित में से कौन आता है ?
(A) सत्
(B) शुभ
(C) उचित
(D) उपभोग
Ans. (D)
31. प्रकृति का गुण तमस का काल रंग किस बात का सूचक माना जाता है ?
(A) जड़ता या भारीपन का
(B) सक्रियता का
(C) परमानंद का
(D) इनमें से सभी
Ans. (A)
32. दर्शनशास्त्र की विषयवस्तु का स्वरूप कैसा है ?
(A) व्यापक
(B) संकीर्ण
(C) आंशिक
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
33. फिलॉसॉफी का अर्थ है-
(A) नियमों का आविष्कार
(B) ज्ञान के प्रति प्रेम
(C) अमरत्व की आकांक्षा
(D) प्रत्यय की खोज
Ans. (B)
34. दर्शन का अर्थ है-
(A) प्रत्यय की खोज
(B) ज्ञान के प्रति प्रेम
(C) अमरत्व की आकांक्षा
(D) नियमों का आविष्कार
Ans. (A)
35. चार्वाक, बौद्ध एवं जैन निम्न में से किस दार्शनिक सम्प्रदाय में आते हैं?
(A) आस्तिक
(B) नास्तिक
(C) आस्तिक एवं नास्तिक
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
36. भारतीय दर्शन की मूल दृष्टि है-
(A) विश्लेषणात्मक
(B) बौद्धिक
(C) आध्यात्मिक
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
37. भारतीय दर्शन है-
(A) व्यावहारिक
(B) अव्यावहारिक
(C) परिकल्पनात्मक
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
38. पुरुषार्थ है-
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
39. ऋत संबंधित है-
(A) नैतिक नियम से
(B) धार्मिक नियम से
(C) भौतिक नियम से
(D) इनमें से सभी
Ans. (A)
40. ‘दर्शन’ की उत्पत्ति किस धातु से हुई है ?
(A) कृ धातु से
(B) दृश् धातु से
(C) लृ धातु से
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
41. भारत के दार्शनिक सम्प्रदायों को बाँटा गया है-
(A) आस्तिक
(B) नास्तिक
(C) आस्तिक एवं नास्तिक
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
42. आस्तिक दर्शनों की संख्या है-
(A) आठ
(B) छह
(C) तीन
(D) पाँच
Ans. (B)
43. निम्न में से कौन पुरुषार्थ नहीं है-
(A) ईश्वर
(B) आत्मा
(C) अर्थ
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
44. निम्न में कौन पुरुषार्थ नहीं है ?
(A) अर्थ
(B) धर्म
(C) ईश्वर
(D) काम
Ans. (C)
45. निम्न में कौन नास्तिक दर्शन है ?
(A) न्याय दर्शन
(B) संख्या दर्शन
(C) योग दर्शन
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (D)
46. आस्तिक और नास्तिक दर्शन का भेद भारतीय सम्प्रदाय में किस आधार पर किया गया है ?
(A) ईश्वर में विश्वास
(B) वेद में विश्वास
(C) आत्मा में विश्वास
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
47. चार्वाक दर्शन है-
(A) भौतिकवादी
(B) आध्यात्मवादी
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
48. आध्यात्मिक अनुभूति किस दर्शनशास्त्र में बौद्धिक ज्ञान से उच्च माना गया है ?
(A) भारतीय दर्शनशास्त्र
(B) पाश्चात्य दर्शनशास्त्र
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
49. मोक्ष के दो प्रकार हैं-
(A) भाव एवं द्रव्य
(B) द्रव्य एवं निर्जरा
(C) भाव एवं जीव
(D) जीव एवं अजीव
Ans. (D)
50. निम्नलिखित में कौन-सा दर्शन बौद्धिक है ?
(A) भारतीय दर्शन
(B) पश्चिमी दर्शन
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
51. ‘कर्म’ शब्द की उत्पत्ति हुई है-
(A) ‘लृ’ धातु से
(B) ‘कर्म’ धातु से
(C) ‘कृ’ धातु से
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
52. ‘धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष’ किसके प्रकार हैं ?
(A) कर्म
(B) पुरुषार्थ
(C) आश्रम
(D) वर्ण
Ans. (B)
53. निम्नलिखित में किसने आत्मा और शरीर को एक-दूसरे का पर्याय माना है ?
(A) चार्वाक
(B) शंकर
(C) बुद्ध
(D) जैन
Ans. (A)
54. भारतीय दर्शन का सामान्य लक्षण है-
(A) अविद्या
(B) मोक्ष (मुक्ति)
(C) पुनर्जन्म
(D) इनमें से सभी
Ans. (B)
55. चार्वाक को छोड़कर भारत के सभी दार्शनिक किसको बंधन का
मूल कारण मानते हैं ?
(A) ज्ञान को
(B) अज्ञान को
(C) ज्ञान एवं अज्ञान को
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
56. निम्न में से कौन आस्तिक दर्शन है ?
(A) बौद्ध दर्शन
(B) जैन दर्शन
(C) न्याय दर्शन
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
57. भारतीय दर्शन में अनुभूतियाँ कितने प्रकार की मानी गयी हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
Ans. (B)
58. निम्नलिखित में कौन कर्म के एक प्रकार हैं ?
(A) संचित कर्म
(B) प्रारब्ध कर्म
(C) संचीयमान कर्म
(D) ये सभी
Ans. (D)
59. सुख और दु:ख क्रमश: शुभ और अशुभ कमों के अनिवार्य फल माने जाते हैं यह किस सिद्धांत से जुड़ा हुआ है ?
(A) कर्म सिद्धांत
(B) योग सिद्धांत
(C) पुरुषार्थ सिद्धांत
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
60. भारतीय दर्शन की उत्पत्ति हुई—
(A) निराशावादी दृष्टिकोण से
(B) आध्यात्मिक असंतोष से
(C) पलायनवादी प्रवृति से
(D) भौतिक सुख प्राप्ति की कामना से
Ans. (B)
61. बौद्ध-दर्शन में ‘मोक्ष’ को ‘निर्वाण’ कहा गया है। इससे व्यक्ति के-
(A) समस्त दुःखों का अंत हो जाता है
(B) पुनर्जनम की श्रृंखला समाप्त हो जाती है
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
62. भारतीय दर्शन में यथार्थ ज्ञान को कहा जाता है-
(A) प्रमा
(B) अप्रमा
(C) संभाव्य
(D) अध्याय
Ans. (A)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. भारतीय दर्शन की परिभाषा दीजिए।
Ans. भारत में फिलॉसफी को ‘दर्शन’ कहा जाता है। दर्शन शब्द दृश धातु से बना है जिसका अर्थ है – जिसके द्वारा देखा जाए। भारत में दर्शन उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का साक्षात्कार हो सके। इसलिए इसे तत्व दर्शन कहा जाता है। यहाँ दर्शन की परिभाषा यह कहकर दिया गया है – “हमारी सभी प्रकार की अनुभूतियों का युक्तिसंगत व्याख्या कर वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त करना दर्शन का उद्देश्य हैं।
पाश्चात्य में दर्शन को फिलॉसफ़ी कहा जाता है। फिलॉसफी का अर्थ ‘विद्यानुराग’ होता है। फिलॉस प्रेम, सौफिया अनुराग । बेबर ने फिलॉसफी की परिभाषा देते हुए कहा है कि दर्शन वह निष्पक्ष बौद्धिक प्रयत्न है, जो विश्व को उसकी सम्पूर्णता में समझने का प्रयास करती है।
2. भारतीय दर्शन में ‘दर्शन’ शब्द का क्या महत्व है ?
Ans. दर्शन शब्द का शाब्दिक अर्थ देखना अथवा सामान्य देखना मात्र नहीं है। अतः पाणिनि ने वाल्वर्थ में प्रेक्षण शब्द प्रयुक्त किया है। आँखों से देखना दर्शन नहीं है वरन् प्रकृष्ट है ईक्षण जिसमें अन्तश्चक्षुओं द्वारा देखना या मनन करके किसी निष्कर्ष पर पहुँचना दर्शन शब्द कहलाता है। प्रकार के प्रकृष्ट ईखण के साधन तथा फल दोनों दर्शन में निहित हैं। दर्शन के साध .न तथा फल दोनों दर्शन में निहित हैं। दर्शन के साधन तथा फल दोनों को दर्शन शब्द से अभिहित किया जाता है।
3. दर्शन के स्वरूप की व्याख्या करें।
Ans. भारत में फिलॉसफी को ‘दर्शन’ कहा जाता हैं। ‘दर्शन’ शब्द दृश धातु से बना है जिसका अर्थ है – ‘ जिसके द्वारा देखा जाए।’ भारत में दर्शन उस विद्या को कहा जाता है। जिसके द्वारा तत्त्व का साक्षात्कार हो सके। इसलिए इसे तत्त्व दर्शन कहा जाता है। यहाँ दर्शन की परिभाषा यह कह कर दिया गया है कि “हमारी सभी प्रकार की अनुभूतियों का युक्तिसंगत व्याख्या कर वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त करना दर्शन का उद्देश्य है । “
पाश्चात्य में दर्शन को फिलॉसफी कहा जाता है। फिलॉसफी का अर्थ ‘विद्यानुराग’ होता है। फिलॉस प्रेम, सौफिया अनुराग । वेबर ने फिलॉसफी की परिभाषा देते हुए कहा है कि, “दर्शन वह निष्पक्ष बौद्धिक प्रयत्न है, जो विश्व को उसकी सम्पूर्णता में समझने का प्रयास करता है । “
4. भारतीय दर्शन में आस्तिक एवं नास्तिक के विभाजन का आधार क्या है ?
अथवा, आस्तिक और नास्तिक में भेद करें।
अथवा, आस्तिक और नास्तिक का अर्थ निर्धारित करें।
Ans. भारतीय दार्शनिक सम्प्रदाय को दो वर्गों में रखा गया है आस्तिक और नास्तिक । वर्ग विभाजन की तीन आधार है- वेद, ईश्वर और पुनर्जन्म, भारतीय विचारधारा में आस्तिक उसे कहते हैं जो वेद की प्रमाणिकता में विश्वास रखता है, और नास्तिक उसे कहते हैं जो वेद को प्रमाणिकता में विश्वास नहीं रखता है। इस दृष्टिकोण से भारतीय दर्शन में छः दर्शनों को आस्तिक कहा जाता है- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त । ये सभी दर्शन वेद पर आधारित हैं। नास्तिक दर्शन के अन्तर्गत की चार्वाक, जैन और बौद्ध को रखा जाता है, क्योंकि तीनों वेद को नहीं मानते हैं तथा वेद की निन्दा करते हैं। आस्तिक और नास्तिक का दूसरा आधार ‘ईश्वर’ है जो ईश्वर में विश्वास करते हैं उसे आस्तिक और जो ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं उसे नास्तिक कहते हैं।
5. क्या भारतीय दर्शन निराशावादी है ?
Ans. भारतीय दर्शन में दो प्रकार की विचारधारा सामने आती है एक आशावाद और दूसरा निराशावाद । निराशावाद मन की वह प्रवृत्ति है जो जीवन के बुरे पहलू पर ही प्रकाश डालती है। इसके अनुसार जीवन दुःखमरा है। इसमें सुख या आनन्द के लिए कोई स्थान नहीं है। इसके अनुसार जीवन दुःखमय असहय एवं अवांछनीय है। ठीक इसके विपरीत आशावाद मन की वह प्रवृत्ति है जो जीवन के सुखमय एवं शुभ की प्राप्ति में सहायक है। यह सत्य है कि भारतीय दर्शन का आरंभ निराशावाद से होता है, अन्त नहीं। इसका अन्त आशा में होता है। भारतीय दर्शन को निराशावादी तब कहा जाता, जब प्रारंभ से अन्त तक दुःख की बात करते। प्रायः दार्शनिकों ने दुःख की अवस्था की चर्चा के बाद उससे छुटकारा के लिए मार्ग बतलाकर आशावादी दर्शन को स्थापित किया है। इसलिए भारतीय दर्शन को निराशावादी कहना भ्रांतिमूलक है।
6. नैराश्यवाद क्या है ? व्याख्या करें।
Ans. कतिपय विचारकों ने भारतीय दर्शन को निराशावादी दर्शन कहकर आलोचना का विषय बनाया है। लॉर्ड रोनाल्डशॉ का विचार है कि “निराशावाद समस्त भारतीय भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में व्याप्त है।” चेले ने अपनी पुस्तक ‘एडमिनिस्ट्रेटिव प्राब्लम्स’ में लिखा है। कि “भारतीय दर्शन आलस्य और शाश्वत विश्राम की कामना से उत्पन्न हुआ है।”
निराशा का अभिप्राय निराशा से अभिप्राय सांसारिक जीवन को दुःखमय समझना है। निराशा मन की एक प्रवृत्ति है जो जीवन को दुःखमय समझती है। भारतीय दर्शन को इस अर्थ में निराशावादी कहा जा सकता है कि उसकी उत्पत्ति भौतिक संसार की वर्तमान परिस्थितियों के प्रति असंतोष के कारण हुई है, भारतीय दर्शनों ने संसार को दुःखमय कहकर मनुष्य के जीवन को दुःख से परिपूर्ण प्रतिपादित किया है। संसार दुःखमय है। भारतीय दार्शनिक संसार की इस दुःखमय अवस्था का विश्लेषण करता है न केवल अपने जीवन के दुःखमय होने से ही वरन् कहीं-कहीं साक्षात् आशा को भी धिक्कारा गया है। निराशावाद की प्रशंसा की गयी है। एक स्थान पर कहा गया है कि.
तेनपधीतं श्रुतं तै सर्वत्रमनुष्ठिन् ।
ये नाशय पृष्ठतः कृत्वा नैराश्यमबलम्बित्तम ।।
अर्थात् पढ़ना, लिखना तथा अनुष्ठान उसी का सफल है जो आशाओं से पिंड छुड़ाकर निराशा का सहारा पकड़ता है।
आशा की आशीविषी भी कहा है। डॉ. राधाकृष्णन ने कहा है कि “यदि निराशावाद से तात्पर्य जो कुछ है और जिसकी सत्ता हमारे सामने है उसके प्रति असंतोष से है तो भले ही इसे केवल इन अर्थों में निराशावादी कहा जाये। इन अर्थों में तो सम्पूर्ण दर्शनशास्त्र निराशावादी कहला सकता है।”
7. भारतीय दर्शन एवं पश्चिमी दर्शन में मुख्य अंतर क्या हैं ?
Ans. प्राय: दर्शन एवं फिलॉसफी को एक ही अर्थ में लिया जाता है, लेकिन इन दोनों शब्दों का प्रयोग दो भिन्न अर्थ में किया गया है। भारत में ‘दर्शन’ शब्द दृश धातु से बना है, जिसका अर्थ है, ‘जिसके द्वारा देखा जाए’। यहाँ ‘दर्शन’ का अर्थ वह विद्या है जिसके द्वारा सत्य का साक्षात्कार किया जा सके। इसलिए इसे तत्त्व दर्शन कहा जाता है। भारतीय दृष्टिकोण से दर्शन की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि “हमारी सभी प्रकार की अनुभूतियों का युक्ति संगत व्याख्या कर वास्तविकता का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना दर्शन का उद्देश्य है।”
पाश्चात्य में दर्शन को ‘फिलॉसफी’ कहा जाता है। ‘फिलॉसफी’ शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है ज्ञान प्रेम या विद्यानुराग। वेबर ने फिलॉसफी की परिभाषा देते हुए कहा है कि “दर्शन वह निष्पक्ष बौद्धिक प्रयत्न है, जो विश्व को उसकी सम्पूर्णता में समझने का प्रयास करता है। “
8. भारतीय दर्शन सम्प्रदायों के नाम लिखें।
अथवा, भारतीय दर्शन के कितने सम्प्रदाय स्वीकृत हैं ?
Ans. भारतीय दर्शन को मूलतः दो सम्प्रदायों में विभाजित किया गया है-आस्तिक (Orthodox) 1 और नास्तिक (Heterodox)। आस्तिक दर्शन का अर्थ ईश्वरवादी दर्शन नहीं है। मीमांसा, वेदान्त, सांख्य, योग, न्याय तथा वैशेषिक आस्तिक दर्शन की कोटि में आते हैं। इन दर्शनों में सभी ईश्वर को नहीं मानते हैं। उन्हें आस्तिक इसलिए कहा जाता है कि ये सभी वेद को मानते हैं। नास्तिक दर्शन की कोटि में चार्वाक, जैन और बौद्ध को रखा गया है। इनके नास्तिक कहलाने का मूल कारण यह है कि ये वेद की निन्दा करते हैं, जैसा कि कहा भी गया है-नास्तिको वेद निन्दकः । अर्थात् भारतीय विचारधारा में आस्तिक उसे कहा जाता है जो वेद की प्रमाणिकता में विश्वास करता है और नास्तिक उसे कहा जाता है जो वेद में विश्वास नहीं करता है।
9. What do you know about the orthodox school of Indian philosophy ? ( भारतीय दर्शन के आस्तिक सम्प्रदाय के बारे में आप क्या जानते हैं ? )
अथवा, भारतीय दर्शन में आस्तिक सम्प्रदाय किसे कहते हैं ?
Ans. भारत के दार्शनिक सम्प्रदायों को दो भागों में बाँटा गया है। वे हैं-आस्तिक एवं नास्तिक ।
व्यावहारिक जीवन में आस्तिक का अर्थ है-ईश्वरवादी तथा नास्तिक का अर्थ है – अनीश्वरवादी । ईश्वरवादी का मतलब ईश्वर में आस्था रखनेवालों से है। लेकिन दार्शनिक विचारधारा में आस्तिक शब्द का प्रयोग इस अर्थ में नहीं हुआ है। भारतीय विचारधारा में आस्तिक उसे कहा जाता है, जो वेद की प्रामाणिकता में विश्वास करता हो। इस प्रकार, आस्तिक का अर्थ है वे का अनुयायी । इस प्रकार, भारतीय दर्शन में छः दर्शनों को आस्तिक माना जाता है। वे हैं- न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त । ये सभी दर्शन किसी-न-किसी रूप में वेद पर आधारित है।
10. आस्तिक दर्शन के नाम उनके प्रवर्तक के साथ लिखें।
Ans. आस्तिक दर्शन (Theist Schools of Philosophy) – इस वर्ग में प्रमुख रूप से छः दार्शनिक विचारधाराएँ हैं। उन्हें ‘षड्दर्शन’ भी कहा जाता है। ये दर्शन मीमांसा, सांख्य, वेदान्त, योग, न्याय और वैशेषिक हैं। न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त के संस्थापक क्रमशः गौतम, कणाद, कपील, पतंजलि, जैमिनी और बादरायण हैं। मीमांसा ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता परंतु इसे आस्तिक वर्ग में इसलिए रखा गया है क्योंकि यह वेदों का प्रमाण स्वीकार करते हैं।
आस्तिक वर्ग में दो प्रकार के दार्शनिक सम्प्रदाय सम्मिलित हैं-
1.वैदिक ग्रंथों पर आधारित (Based on Vedic Scriptures )
2. स्वतंत्र आधार वाले (With Independent Basi
11. What do you know about the heterodox school ? ( नास्तिक सम्प्रदाय के बारे में आप क्या जानते हैं ? )
Ans. व्यावहारिक जीवन में नास्तिक उसे कहा जाता है जो ईश्वर का निषेध करता है। भारतीय दार्शनिक विचारधारा में नास्तिक शब्द का प्रयोग इस अर्थ में नहीं हुआ है। यहाँ नास्तिक उसे कहा जाता है जो वेद को प्रमाण नहीं मानता है नास्तिक दर्शन के अन्दर चर्वाक, जैन और बौद्ध को रखा जाता है। इस प्रकार नास्तिक दर्शन की संख्या तीन है।
12. भारतीय दर्शन में वेद की प्रामाणिकता का क्या महत्व है ?
Ans. भारतीय दर्शन में आने वाले दार्शनिक सम्प्रदाय प्रत्यक्ष रूप से वैदिक ग्रन्थों पर आधारित हैं। इसमें मीमांसा तथा वेदान्त को गिना जा सकता है। वेद में दो विचारधाराएँ थीं- एक सम्बन्ध कर्म से था तथा दूसरी का सम्बन्ध ज्ञान से था ।
इस तरह से वैदिक ग्रन्थों के भी दो पक्ष हैं, कर्मकाण्ड तथा ज्ञानकाण्ड । कर्मकाण्ड पर मीमांसा ने बल दिया तथा ज्ञान काण्ड पर वेदान्त ने
13. ऋत की व्याख्या करें।
अथवा, ऋत से आप क्या समझते हैं ?
Ans. वैदिक संस्कृति के नैतिक कर्तव्य की धारणा को ऋत कहा जाता है। ऋत की संख्या तीन हैं- देव ऋत से मुक्ति शास्त्र के अनुसार यज्ञ करने से दैव ऋत से मुक्ति मिलती है। ब्रह्मचर्य का पालन, विद्या अध्ययन एवं ऋषि की सेवा करने से ऋषि ऋत से मुक्ति मिलती है और पुत्र. की प्राप्ति से पितृ ऋत से मुक्ति मिलती है। शास्त्रार्थ पुरुषार्थ प्राप्ति हेतु इन तीनों प्रकार का ऋत से मुक्ति अनिवार्य है।
14. भारतीय चिंतन में ऋण का नैतिक उद्देश्य क्या है ?
Ans. भारतीय चिंतन में ऋण का अर्थ है कर्तव्य या दायित्व, जो हमें निभाने या चुकाने होते हैं। वैदिक और उपनिषद विश्व दृष्टिकोण के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति जीवन में कुछ कर्तव्यों और दायित्व से बंधा होता है। मनुष्य को कुछ ऋणों का भुगतान करने के लिए कहा जाता है या मनुष्य को देवताओं, पुरुषों और जानवरों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कहा जाता है। हमारी वैदिक परंपराओं के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को अपने भोजन को उसके देवताओं, पिताओं, अन्य पुरुषों और जानवरों को देने की आवश्यकता नहीं है। यह मुख्य रूप से लोगों के नीच दान और निःस्वार्थता के पुण्य को बढ़ाने और दुनिया के भीतर सद्भाव का अभ्यास करने लिए किया जाता है।
15. भारतीय दर्शन में पुरुषार्थ का क्या अर्थ है ?
अथवा, पुरुषार्थ क्या है ?
Ans. ‘पुरुषार्थ’ शब्द दो शब्दों ‘पुरुष’ तथा ‘अर्थ’ के संयोग से बना है।
-पुरुष विवेकशील प्राणी का सूचक है तथा अर्थ लक्ष्य का अर्थात् पुरुष के लक्ष्य को ही पुरुषार्थ कहते हैं। पुरुषार्थ की परिभाषा में कहा गया है कि, “A Purasharth is an end which is consciously sought to be accomplished either for this own sake or for the sake of utiliting it as a means to the accomplishment of further end.”
मनुष्य का सर्वांगीण विकास पुरुषार्थ के माध्यम से ही होता है। भारतीय विचार के अनुसार पुरुषार्थ का निर्धारण दो दृष्टिकोण से हुआ है। व्यावहारिक तथा पारलौकिक । व्यावहारिक दृष्टिकोण से काम तथा अर्थ सर्वोत्कृष्ट पुरुषार्थ है, लेकिन पारलैकिक दृष्टि से धर्म तथा मोक्षं परम पुरुषार्थ है। इस प्रकार, काम, अर्थ, धर्म तथा मोक्ष मनुष्य के चार पुरुषार्थ हैं, जिसे हिन्दू नीतिशास्त्र में चतु:वर्ग भी कहा गया है।
16. भारतीय दर्शन में पुरुषार्थ कितने हैं ?
Ans. दो शब्दों ‘पुरुष’ तथा ‘अर्थ’ के संयोग से पुरुषार्थ शब्द बना है । प्राणी का सूचक है तथा अर्थ लक्ष्य का अर्थात् पुरुष के लक्ष्य को ही पुरुषार्थ कहते हैं। मनुष्य पुरुष विवेकशील के चार पुरुषार्थ काम, अर्थ, धर्म तथा मोक्ष हैं, जिसे हिन्दू नीतिशास्त्र में चतु:वर्ग भी कहा गया है।
17. धर्म का अर्थ क्या है ?
Ans. साधारणतः धर्म का अर्थ पुण्य होता है। परंतु जैन दर्शन में धर्म का प्रयोग विशेष अर्थ में किया गया है। जैनों के अनुसार गति के लिए जिस सहायक वस्तु की आवश्यकता होती है उसे धर्म कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप मछली जल में तैरती है। मछली का तैरना जल के कारण ही संभव होता है। यदि जल नहीं रहे तब मछली के तैरने का प्रश्न उठता ही नहीं है। उपयुक्त उदाहरण में जल धर्म है, क्योंकि वह मछली की गति में सहायक है।
18. पुरुषार्थ के रूप में धर्म की व्याख्या करें।
Ans. धर्म शब्द का प्रयोग भी भिन्न-भिन्न अर्थों में किया जाता है। सामान्यतः धर्म से हमारा तात्पर्य यह होता है जिसे हम धारण कर सकें। जीवन में सामाजिक व्यवस्था कायम रखने के लिए यह अनिवार्य माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति जीवन स्तर पर कुछ-न-कुछ क्रियाओं का सम्पादन करें। इसी उद्देश्य से वर्णाश्रम धर्म की चर्चा भी की गयी है। भारतीय जीवन व्यवस्था में चार वर्ण माने गये हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र । प्रत्येक वर्ण के लिए कुछ सामान्य धर्म माने गये हैं। किन्तु कुछ ऐसे धर्म भी हैं जिनका पालन किया जाना किसी वर्ग (वर्ण) विशेष के सदस्यों के लिए भी वांछनीय माना जाता है। इसी प्रकार आश्रम की संख्या चार है। यहाँ आदर्श जीवन 100 वर्षों का माना जाता है और इसे चार आश्रम में बाँटा गया है। इन्हें हम क्रमशः ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास के नाम से पुकारते हैं।
19. अर्थ पुरुषार्थ की व्याख्या करें।
Ans. “जिन साधनों से मानव जीवन के सभी प्रयोजनों की सिद्धि होती है, उन्हें ही अर्थ कहते हैं।” मानव जीवन की तीनों आवश्यकताएँ सभी प्रयोजन के अंतर्गत आती है। ये सभी प्रयोजन या चल सम्पत्ति (रुपये-पैसे) या अचल सम्पत्ति (जमीन-जायदाद) द्वारा सिद्ध होते हैं। इसलिए अर्थ का तात्पर्य धन है (चल या अचल)। धन के बिना मनुष्य का जीवन सुरक्षित व संरक्षित नहीं रह पाता। इसलिए चाणक्य ने कहा है कि ” अर्थार्थ प्रवर्तते लोकः ” अर्थात् अर्थ के लिए ही यह संसार है। जिसके पास धन है, उसी के सब मित्र हैं।
भारतीय दर्शन के अंतर्गत पुरुषार्थ के रूप में अर्थ के महत्त्व को बताया गया है। अर्थोपार्जन के साथ-साथ व्यय का भी तरीका बताया गया है जिससे मनुष्य अपने अर्थ का दुरुपयोग न करके सदुपयोग करें।
20. पुरुषार्थ के रूप में मोक्ष की व्याख्या करें।
Ans. पुरुषार्थ के रूप में मोक्ष-परम पुरुषार्थ है चारों में तीन साधन मात्र है तथा मोक्ष साध्य है। मोक्ष को भारतीय दर्शन में परम लक्ष्य माना गया है। जन्म मरण के चक्र में मुक्ति का नाम मोक्ष है। इसकी प्राप्ति विवेक ज्ञान में माप है। इस प्रकार भारतीय दर्शन में पुरुषार्थ को स्वीकार किया गया है।
21. मोक्ष कितने प्रकार के होते हैं
Ans. भारतीय नैतिक दर्शन में मोक्ष की प्राप्ति की व्यावहारिक स्तर पर भी सम्भव माना गया है। अगर हम कुछ निश्चित मार्ग को अपनायें तो हम मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। वैसे मोक्ष की प्राप्ति के लिए भिन्न-भिन्न मार्गों की चर्चा की गयी है, किन्तु हम सुविधा के दृष्टिकोण से इन्हें तीन मार्गों के रूप में उल्लेख कर सकते हैं-
1.ज्ञान मार्ग जिसके अनुसार ज्ञान के आधार पर मोक्ष संभव माना जाता है।
2. कर्म मार्ग जिसके अनुसार निष्काम कर्मों के सम्पादन करने से हम मोक्ष की प्ति कर सकते हैं।
3. भक्ति मार्ग – जिसमें यह माना जाता है कि निष्कपट भक्ति या ईश्वर के ऊपर पूर्ण आस्था रखकर उनके ऊपर सभी चीजों को छोड़कर हम मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।
22. भारतीय दर्शन में ‘कर्म सिद्धांत’ के अर्थ को स्पष्ट करें।
अथवा, कर्म की व्याख्या करें।
अथवा, कर्म क्या है ?
Ans. कर्म सिद्धान्त’ में विश्वास भारतीय दर्शन की एक मुख्य विशेषता है। चार्वाक को छोड़कर भारत के सभी दर्शन चाहे वे वेद विरोधी हो या. वेद के अनुकूल, कर्म के नियम को स्वीकारते हैं। अतः कर्म सिद्धान्त को छः आस्तिक दर्शन एवं दो नास्तिक दर्शन भी स्वीकार करते हैं। कर्म सिद्धान्त (Law of Karma ) का अर्थ है कि जैसा हम बोते हैं वैसा ही हम काटते हैं। कहने का अभिप्राय शुभ कर्मों का फल शुभ तथा अशुभ कर्मों का फल अशुभ होता है। किए हुए कम का फलन नष्ट नहीं होता है तथा बिना किये हुए कर्मों के फल भी प्राप्त नहीं होते है। हमें सदा कर्मों के फल प्राप्त होते रहते हैं। वस्तुतः सुख और दुःख क्रमशः शुभ एवं अशुभ कर्मों के अनिवार्य फल माने गए हैं। अतः कर्म सिद्धान्त ‘कारण नियम’ है जो नैतिकता के क्षेत्र में काम करता है। दार्शनिकों के अनुसार हमारा वर्तमान जीवन अतीत जीवन के कर्मों का फल है। इस तरह कर्म-सिद्धान्त में अतीत, वर्तमान और भविष्य जीवनों को कारण कार्य की कड़ी में बाँधा गया है।
23. भारतीय दर्शन के ‘कर्म सिद्धान्त’ की मौलिक विशेषता क्या है ?
Ans. भारतीय दर्शन के ‘कर्म सिद्धान्त’ की मौलिक विशेषता निम्नलिखित हैं-
1.कर्म सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे फल भी वैसा ही मिलता है। 2. कर्म सिद्धान्त संकल्प स्वातंत्र्य और दायित्व का पोषक है।
2. कर्म तीन हैं- प्रारब्ध, क्रियमाण व संचित ।
3. गीता के अनुसार कर्म तीन हैं-कर्म, विकर्म और अकर्म कर्म भी दो हैं- सकाम व निष्काम कर्म ।
4. कर्म सिद्धान्त के अनुसार यदि मनुष्य कर्म नहीं करेगा तो वह निर्जीव हो जायेगा । जन्म से लेकर मृत्यु उपरान्त तक वह किसी न किसी रूप में कर्म करता है। इसलिए कहा भी गया है कि ‘कर्म ही जीवन’ है।