वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. नामवर सिंह की कौन-सी रचना है ?
(A) अर्धनारीश्वर
(B) ओ सदानीरा
(C) प्रगीत और समाज
(D) तिरिछ
Answer ⇒ (C)
2. नामवर सिंह के गुरु कौन थे ?
(A) रामचन्द्र शुक्ल
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(C) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
3. नामवर सिंह ने बी०ए० तथा एम०ए० की शिक्षा कहा से प्राप्त की ?
(A) जे०एन०यू०
(B) डी० यू०
(C) बी०एच०यू०
(D) इनमें से कहीं नहीं
Answer ⇒ (C)
4. प्रगीत कैसा काव्य है?
(A) गीत काव्य
(B) आत्मपरक काव्य
(C) प्रबन्ध काव्य
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (C)
5. ‘दुनिया को हाथ की तरह गर्म और सुन्दर होना चाहिए।’ यह किस कवि की कविता का अंश है ?
(A) केदारनाथ सिंह
(B) जयशंकर प्रसाद
(C) सुभद्रा कुमारी चौहान
(D) शमशेर बहादुर सिंह
Answer ⇒ (A)
6. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के काव्य सिद्धान्त का आदर्श कौन-सा काव्य है ?
(A) गीति काव्य
(B) मुक्तक काव्य
(C) प्रबंध काव्य
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (C)
7. ‘सहर्ष स्वीकारा हे’ कविता के रचयिता कौन हैं ?
(A) नागार्जुन
(B) मुक्ति बोध
(C) केदारनाथ सिंह
(D) त्रिलोचन
Answer ⇒ (B)
8. सच्चे अर्थों में प्रगीतात्मकूता का आधार क्या है ?
(A) समाज से अलग व्यक्ति
(B) समाज के साथ व्यक्ति
(C) समाज के विरूद्ध व्यक्ति
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (C)
9. ‘पर किसने यह, सातो सागर के पार एकाकीपन से ही मानो-हार’ यह किस कवि के कविता का अंश है ?
(A) शमशेर बहादुर सिंह
(B) मुक्तिबोध
(C) नागार्जुन
(D) त्रिलोचन
Answer ⇒ (A)
10. नागार्जुन के काव्य संसार के प्रगीत नायक का व्यक्तित्व किस प्रकार का है ?
(A) गम्भीर
(B) मनमौजी
(C) निष्कवय फक्कड़
(D) कपटी
Answer ⇒ (C)
11. नामवर सिंह को ‘कविता के नए प्रतिमान’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार कब मिला ?
(A) 1970 ई० में
(B) 1971 ई० में
(C) 1972 ई० में
(D) 1973 ई० में
Answer ⇒ (B)
12. ‘तन गई रीढ़’ किसकी कविता है ?
(A) मुक्तिबोध
(B) त्रिलोचन
(C) नागार्जुन
(D) निराला
Answer ⇒ (C)
13. नामवर सिंह 1970 में किस विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए?
(A) बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
(B) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
(C) दिल्ली विश्वविद्यालय
(D) जोधपुर विश्वविद्यालय
Answer ⇒ (D)
14. ‘दूसरी परम्परा की खोज’ किसकी रचना है ?
(A) दिनकर जी
(B) नामवर सिंह
(C) उदय प्रकाश
(D) बालकृष्ण भट्ट
Answer ⇒ (B)
15. निम्नलिखित में कौन ‘प्रलय की छाया के कवि है ?
(A) निराला
(B) पंत
(C) जयशंकर प्रसाद
(D) रामकुमार वर्मा
Answer ⇒ (C)
16. ‘तुलसीदास’ के रचयिता कौन हैं ?
(A) तुलसीदास
(B) मैथिलीशरण गुप्त
(C) सुमित्रानंदन पंत
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
Answer ⇒ (D)
17. ‘कविता के लिए प्रतिमान’ के लेखक है –
(A) लक्ष्मीकांत वर्मा
(B) सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
(C) शिवदान सिंह चौहान
(D) नामवर सिंह
Answer ⇒ (D)
18. ‘बाज की दाढ़ में आदमी का खून लग चुका है।’ यह किस कविता की पंक्ति है ?
(A) हिमालय
(B) गरम हथेली
(C) आह! तुम्हारा सौंदर्य
(D) ‘तय तो यही था’
Answer ⇒ (D)
19. तुम लोगों से दूर हूँ” किसको कविता है ?
(A) मुक्तिबोध
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(C) पंत
(D) अज्ञेय
Answer ⇒ (A)
20. नामवर सिंह का जन्म कब हुआ था ?
(A) 28 जुलाई 1927 को
(B) 20 जून 1925 को
(C) 27 मई 1926 को
(D) 22 मई 1925 को
Answer ⇒ (A)
21. कौन-सी पुस्तक नामवर सिंह की है ?
(A) पीली छतरीवाली लड़की
(B) ‘पृथ्वीराज रासो की भाषा’
(C) अंतराल
(D) न आनेवाला कल
Answer ⇒ (B)
22. कौन-सी पुस्तक नामवर सिंह की नहीं है ?
(A) बकलम खुद
(B) इतिहास और आलोचना
(C) तिरिछ
(D) दूसरी परंपरा की खोज
Answer ⇒ (C)
23. ‘राम की शक्तिपूजा’ किसकी कविता है ?
(A) पंत
(B) दिनकर
(C) महादेवी वर्मा
(D) निराला
Answer ⇒ (D)
24. ‘प्रगीत’ और समाज के लेखक है ?
(A) बालकृष्ण भट्ट
(B) जयप्रकाश नारायण
(C) नामवर सिंह
(D) उदय प्रकाश
Answer ⇒ (C)
25. नामवर सिंह द्वारा लिखित ‘प्रगीत’ और समाज क्या है ?
(A) आलोचना
(B) निबंध
(C) एकांकी
(D) आत्मकथा
Answer ⇒ (B)
26. नामवर सिंह को किस कृति पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ ?
(A) ‘कविता के नए प्रतिमान’ पर
(B) ‘कहानी:नई कहानी’ पर
(C) ‘पृथ्वीराजरासो की भाषा’ पर
(D) इतिहास और आलोचना’ पर
Answer ⇒ (A)
27. नामवर सिंह प्रधान संपादक थे –
(A) ‘हंस’ के
(B) ‘सरस्वती’ के
(C) ‘वागर्थ’ के
(D) ‘आलोचना (त्रैमासिक)’ के
Answer ⇒ (D)
28. ‘कामायनी’ के कवि है –
(A) पंत
(B) प्रसाद
(C) महादेवी वर्मा
(D) निराला
Answer ⇒ (D)
29. ‘लिरिक’ का पर्याय है –
(A) प्रगीत
(B) कथा
(C) जीवनी
(D) कल्पना
Answer ⇒ (A)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के काव्य-आदर्श क्या थे ? पाठ के आधार , स्पष्ट करें।
उत्तर ⇒आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के काव्य आदर्श प्रबंधकाव्य थे क्योंकि प्रबन्धकाव्य में मानव जीवन का एक पर्ण दृश्य होता है। प्रबन्धकाव्य जीवन के सम्पूर्ण पक्ष को प्रकाशित करता है। आचार्य शुक्ल को यह इसलिए परिसीमित लगा क्योंकि वह गीतिकाव्य है। आधनिक का से उन्हें शिकायत भी थी, इसका कारण था-“कला कला” की पुकार, जिसके फलस्वरूप यूरोप में प्रगीत-मुक्तकों (लिरिक्स) का ही चलन अधिक देखकर यह कहा जाने लगा कि अब यहाँ भी उसी का जमाना आ गया है। इस तर्क के पक्ष में यह कहा जाने लगा कि अब ऐसी लंबी कविताएँ पढ़ने की किसी को फुरसत कहाँ है जिनमें कुछ इतिवृत्त भी मिला रहता हो। ऐसी धारणा बन गई कि अब तो विशुद्ध काव्य की सामग्री जुटाकर सामने रख देनी चाहिए जो छोटे-छोटे प्रगीत मुक्तकों में ही संभव है। इस प्रकार काव्य में जीवन को अनेक परिस्थितियों की ओर ले जाने वाले प्रसंगों या आख्यानों की उद्भावना बन्द सी हो गई। यही कारण था कि ज्यों ही प्रसाद की “कामायनी”, “शेरसिंह का शस्त्र समर्पण”, “पंसोला की प्रतिध्वनि”, “प्रलय की छाया” तथा निराला की “राम की शक्तिपूजा” तथा “तुलसीदास’ जैसे आख्यानक काव्य सामने आए तो आचार्य शुक्ल ने संतोष व्यक्त किया।
2. प्रगीत को आप किस रूप में परिभाषित करेंगे ? इसके बारे में क्या धारणा प्रचलित रही है ?
उत्तर ⇒अपनी वैयक्तिकता और आत्मपरकता के कारण “लिरिक” अथवा “प्रगीत” काव्य की कोटि में आती है। प्रगीतधर्मी कविताएँ न तो सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त समझी जाती है, न उनसे इसकी अपेक्षा की जाती है। आधुनिक हिन्दी कविता में गीति और मुक्तक के मिश्रण से नूतन भाव भूमि पर जो गीत लिखे जाते हैं उन्हें ही ‘प्रगीत’ की संज्ञा दी जाती है। सामान्य समझ के अनुसार प्रगीतधर्मी कविताएँ नितांत वैयक्तिक और आत्मपरक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति मात्र है, यह सामान्य धारणा है। इसके विपरीत अब कुछ लोगों द्वास यह भी कहा जाने लगा है कि अब ऐसी लम्बी कविताएँ जिसमें कुछ इतिवृत्त भी मिला रहता है, इन्हें पढ़ने तथा सुनने की किसी की फुरसत कहाँ है अर्थात् नहीं है।
3. वस्तुपरक नाट्यधर्मी कविताओं से क्या तात्पर्य है ? आत्मपरक प्रगीत और नाट्यधर्मी कविताओं की यथार्थ-व्यंजना में क्या अंतर है ?
उत्तर ⇒वस्तुपरक नाट्यधर्मी कविताएँ प्राय: लम्बी होती हैं, उनमें जीवन की किसी समस्या अथवा घटना का विस्तृत चित्रण रहता है। यह वस्तुनिष्ठ होती है, समाज निरपेक्ष होती है। आत्मपरक प्रगीत व्यक्तिनिष्ट होते हैं। मुक्तिबोध के अधिकांश प्रगीत लम्बे तथा आत्मनिष्ठ होते हैं।
मुक्तिबोध का समूचा काव्य मूलतः आत्मपरक है। रचना विन्यास से कहीं वह पूर्णतः नाट्यधर्मी है, कहीं नाटकीय एकालाप हैं, कहीं नाटकीय प्रगीत है और कहीं शुद्ध प्रगीत। इस प्रकार नाट्यधर्मी एवं आत्मपरक प्रगीत पूर्णरूपेण भिन्न हैं।
4. हिन्दी कविता के इतिहास में प्रगीतों का क्या स्थान है ? सोदाहरण स्पष्ट करें।
उत्तर ⇒हिन्दी कविता का इतिहास मुख्यतः प्रगीत मक्तकों का है। इतना ही नहीं बल्कि गीतों ने ही जनमानस को बदलने में क्रान्तिकारी भूमिका अदा की है। “रामचरितमानस” की महिमा एक निर्विवाद सत्य है, इस सत्य से किसी को इन्कार नहीं, लेकिन ‘विनय-पत्रिका’ के पद एक व्यक्ति का अरण्यरोदन मात्र नहीं है। मानस के मर्मी भी यह मानते हैं कि तुलसी के विनय के पदों में पूरे युग की वेदना व्यक्त हुई है और उनकी चरम वैयक्तिकता ही परम सामाजिकता है। तुलसी के अलावा कबीर, सूर, मीरा, नानक, रैदास आदि अधिकांश संतों ने प्रायः दोहे और गेय पद ही लिखे हैं। यदि विद्यापति को हिन्दी का पहला कवि माना जाय तो हिन्दी कविता का उदय ही गीत से हुआ जिसका विकास आगे चलकर संतों और भक्तों की वाणी में हुआ। गीतों के साथ हिन्दी कविता का उदय कोई सामान्य घटना नहीं, बल्कि एक नई प्रगीतात्मकता (लिरिसिज्म) के विस्फोट का ऐतिहासिक क्षण है जिसके धमाके से मध्ययुगीन भारतीय समाज की रूढ़ि-जर्जर दीवारें हिल उठीं, साथ ही जिसकी माधुरी सामान्य जन के लिए संजीवनी सिद्ध हुई। कहने की आवश्यकता नहीं कि लोकभाषा की परिष्कृत प्रतीकात्मकता का उन्मेष भारतीय साहित्य की अभूतपूर्व घटना है, जिसकी अभिव्यक्ति हिन्दी के साथ ही भारत की सभी आधुनिक भाषाओं में लगभग साथ-साथ हुई।
5. आधुनिक प्रगीत काव्य किन अर्थों में भक्तिकाव्य से भिन्न एवं गुप्तजी आदि के प्रबन्ध काव्य से विशिष्ट हैं ?
उत्तर ⇒आधुनिक प्रगीत काल का उन्मेष बीसवीं सदी में रोमान्टिक उत्थान के साथ हुआ तथा इसका सम्बन्ध भारत के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष से है। इसके भक्तिकाव्य से भिन्न इस रोमान्टिक प्रगीतात्मकता के मूल में एक नया व्यक्तिववाद है जहाँ समाज के बहिष्कार के द्वारा ही व्यक्ति अपनी सामाजिकता प्रमाणित करता है। इन रोमान्टिक प्रगीतों में भक्तिकाव्य जैसी तन्मयता नहीं होती किन्तु आत्मीयता और एन्द्रियता उससे कहीं अधिक है। इस दौरान सीधे-सीधे राष्ट्रीयता संबंधी विचारों तथा भावों को काव्यरूप देने वाले मैथिलीशरण गुप्त जैसे राष्ट्रकवि हुए और आधकाशतः उन्होंने प्रबन्धात्मक काव्य ही लिखे जिन्हें उस समय ज्यादा सामाजिक माना गया। रोमांटिक प्रगीत उस युग की चेतना को कहीं अधिक गहराई से वाणी दे रहे थे और उनकी ‘असामाजिकता’ में ही सच्ची सामाजिकता है। इस प्रकार आधुनिक प्रगीतकाव्य भक्तिकाव्य से भिन्न हैं तथा गुप्तजी आदि के प्रबंधकाव्य से विशिष्ट हैं।