वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. इनमें से कौन सा पारिस्थितिक पिरामिड हमेशा सीधा होता है।
(A) मात्रा (Mass) का
(B) संख्या का
(C) ऊर्जा का
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (C)
2. इनमें से कौन सर्वाधिक ऊर्जा प्राप्त करता है
(A) शीर्ष उपभोक्ता
(B) उत्पादक
(C) सर्वहारी
(D) इनमें से कोई नही
Answer ⇒ (B)
3. वन अवस्था इनमें से किस पारिस्थितिक अवस्था का द्योतक है ।
(A) चरम अवस्था
(B) पर्वतीय अवस्था
(C) शाकीय अवस्था
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (A)
4. इकोलॉजी शब्द दिया है
(A) ओडम
(B) हैकल
(C) हॉरवे
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
5. किसी पारिस्थितिक तंत्र में जैविक अवयव है
(A) उत्पादक
(B) उपभोक्ता
(C) विघटनकर्ता
(D) उपरोक्त सभी
Answer ⇒ (D)
6. पारितंत्र शब्द दिया :
(A) खुराना
(B) एलेनबर्ग
(C) A.G. टांसले
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (C)
7. निम्नांकित में से कौन प्राकृतिक पारितंत्र का उदाहरण है ?
(A) वन
(B) नदी
(C) तालाब
(D) सभी
Answer ⇒ (D)
8. ऊर्जा का पिरामिड होता है, हमेशा :
(A) सीधा
(B) उल्टा
(C) तिरछा
(D) इनमें से सभी
Answer ⇒ (A)
9. आहार श्रृंखला में 10% ऊर्जा स्थानांतरण का नियम किसने दिया ?
(A) स्टेनले
(B) लिंडेमैन
(C) वीजमैन
(D) टेनस्ले
Answer ⇒ (B)
10. पारिस्थितिक तंत्र का संबंध किसके द्वारा दर्शाया जा सकता है ?
(A) संख्या का पिरामिड
(B) जीवभार का पिरामिडाका
(C) ऊर्जा का पिरामिड
(D) इनमें से सभी
Answer ⇒ (D)
11. आहार श्रृंखला के परस्पर समूह को क्या कहते हैं?
(A) आहार चक्र
(B) आहार जटिल
(C) आहार जाल
(D) पोषी स्तर
Answer ⇒ (C)
12. इनमें कौन सबसे ज्यादा ऊर्जा प्राप्त करता है ?
(A) उत्पादक
(B) प्राथमिक उपभोक्ता
(C) द्वितीयक उपभोक्ता
(D) अपघटनकर्ता
Answer ⇒ (A)
13.पारितंत्र शब्द का नामकरण किया :
(A) मौरगन
(B) ए. जी. टांसले
(C) लामार्क
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
11. झील में द्वितीय पोषण-स्तर होता है :
(A) पादपत्लवक
(B) प्राणित्लवक
(A) तथा (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
15. हरे पौधे उत्पादक होते हैं जो
(A) प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं।
(B) रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में बदल देते हैं।
(C) (A) तथा (B) दोनों सही हैं
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (A)
16. ऊर्जा का पिरामिड होता है :
(A) सदैव उल्टा
(B) सदैव सीधा
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
17. निम्नलिखित में किसमें सर्वाधिक जैवमात्रा होती है ?
(A) शीतोष्ण वन
(B) ट्रोपिकल वर्षा वन
(C) अल्पाइन वन
(D) टायगा
Answer ⇒ (B)
18. सहोपकारिता किसके बीच होती है ?
(A) तितली व फूल
(B) इश्चेरिचिया कोलाई व मनुष्य
(C) जूक्लोरेला व हाइड्रा
(D) हर्मिट क्रेब व समुद्री ऐनीमोन
Answer ⇒ (C)
19. अनावरोधित प्रजनन क्षमता है :
(A) जन्म दर
(B) वहन क्षमता
(C) जैव विविधिता
(D) जनन क्षमता
Answer ⇒ (C)
20. वह जो दूसरे के कारण भोजन प्राप्त करता है :
(A) परजीवी
(B) कीटाहारी
(C) परभक्षी
(D) सहजीवी
Answer ⇒ (D)
21. जैव विविधता का तप्त स्थल कौन-सा है ?
(A) अरावली
(B) पर्वी घाट
(C) पश्चिमी घाट
(D) भारतीय गंगा के मैदान
Answer ⇒ (C)
22. निम्नलिखित में से कौन-सा पारिस्थितिक पिरामिड निर्माण में भाग नहीं लेता ?
(A) शुष्क भारत
(B) व्यष्टियों की संख्या
(C) ऊर्जा प्रवाह की दर
(D) ताजा भार
Answer ⇒ (D)
23. ट्रॉपिकल वनों में कुछ जातियों की विलुप्ति का मुख्य कारण है।
(A) डिफोरेस्टैशन
(B) एफोरेस्टेशन
(C) पॉल्यूशन
(D) सोइल इरोसिन
Answer ⇒ (A)
24. शोला वन पाये जाते हैं
(A) उड़ीसा के पूर्वी तट में
(B) उत्तरी पूर्वी हिमालय में
(C) पश्चिमी घाट (केरल) में
(D) दक्षिण के पठार में
Answer ⇒ (C)
25. पारिस्थितिक तंत्र में नियंत्रण करने वाला कारक होता है
(A) मृदा नमी
(B) भोजन
(C) शिकार करना
(D) ताप
Answer ⇒ (C)
26. इनमें कौन तालाबीय पारिस्थितिकी तंत्र में एक से अधिक पोषण स्तर पर कार्य करता है ?
(A) मेंढक
(B) फाइटोपलैंक्टन
(C) मछली
(D) जूआप्लैंक्टन
Answer ⇒ (C)
27. घासस्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में ग्रासहॉपर है
(A) उत्पादक
(B) प्राथमिक उपभोक्ता
(C) द्वितीयक उपभोक्ता
(D) तृतीयक उपभोक्ता
Answer ⇒ (B)
28. पारिस्थितिक तंत्र के आहार श्रृंखला में ऊर्जा का प्रवाह होता है
(A) एकदिशीय
(B) द्विदिशीय
(C) बहुदिशीय
(D) इनमें कोई नहीं
Answer ⇒ (A)
29. सबसे बड़ा पारितंत्र है
(A) वन का पारितंत्र
(B) समुद्री पारितंत्र
(C) तालाब का पारितंत्र
(D) घास स्थल का पारितंत्र
Answer ⇒ (B)
30. अगर किसी पारिस्थितिक तंत्र से अपघटकों को नष्ट कर दिया जाए तो क्या होगा ?
(A) ऊर्जा का प्रवाह रुक जाएगा
(B) खनिजों का प्रवाह रुक जाएगा
(C) अपघटन की दर बढ़ जाएगी
(D) प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया रुक जाएगी
Answer ⇒ (B)
31. निम्नलिखित में से कौन-सा पिरामिड कभी उल्टा नहीं होता ?
(A) ऊर्जा का पिरामिड
(B) जैवभार का पिरामिड
(C) संख्या का पिरामिड
(D) शुष्क भार का पिरामिड
Answer ⇒ (A)
32. उत्तम प्रकार का पिरामिड जो सदैव सत्य होता है
(A) ऊर्जा का पिरामिड
(B) जैवभार का पिरामिड
(C) संख्या का पिरामिड
(D) दोनों (A) तथा (B)
Answer ⇒ (A)
33. अपघटक (Decomposer) होते हैं
(A) स्वपोषी
(B) स्वतः विषमपोषी
(C) आर्गेनोटॉफ्स
(D) विषमपोषी
Answer ⇒ (A)
34. निम्नलिखित में कौन वन पारिस्थितिक तंत्र का एक उत्पादक है ?
(A) वैलिसनेरिया
(B) स्पाइरोगाइरा
(C) टेक्टोना
(D) निम्फिया
Answer ⇒ (C)
35. संख्या के आधार पर एक फलवाले वृक्ष का पिरामिड कैसा होता है?
(A) सीधा
(B) तिरछा
(C) उल्टा
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (C)
36. तालाबीय पारिस्थितिक तंत्र में बड़ी मछली क्या होती है ?
(A) उत्पादक
(B) अपघटनकर्ता
(C) प्राथमिक उपभोक्ता
(D) तृतीयक उपभोक्ता
Answer ⇒ (D)
37. किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का स्रोत होता है
(A) शर्करा का किण्वन ।
(B) प्राणी एवं पौधों का जीवाणुओं द्वारा अपघटन
(C) पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण
(D) सूर्य-प्रकाश
Answer ⇒ (D)
38. वह जंतु जो अपने शरीर के एक तिहाई भार के बराबर जल की कमी सहन कर सकता है
(A) नेक्टयूरस
(B) ऊँट
(C) छिपकली
(D) काइटोन
Answer ⇒ (B)
39.मूल रोम किसमें नहीं होती ?
(A) जलोद्भिद्
(B) लवणोद्भिद
(C) स्थलोद्भिद
(D) हेलिओफाइट
Answer ⇒ (A)
40.खाद्य श्रृंखला के दौरान अधिकतम ऊर्जा संचित होती है।
(A) उत्पादक में
(B) अपघटक में
(C) शाकाहारी में
(D) माँसाहारी में
Answer ⇒ (A)
41. झील पारिस्थितिक तंत्र में, जैव भार का पिरीमिड होता है :
(A) सीधा
(B) उलटा
(C) कभी उलटा, कभी सीधा
(D) कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
42. एक पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह का सही क्रम है :
(A) उत्पादक → मांसाहारी → शाकाहारी → विघटनकारी
(B) उत्पादक → शाकाहारी → मांसाहारी → विघटनकारी
(C) शाकाहारी → मांसाहारी → उत्पादक → विघटनकारी
(D) शाकाहारी → उत्पादक → मांसाहारी → विघटनकारी
Answer ⇒ (B)
43. निम्नलिखित में से किसका निर्माण पारिस्थितिक तंत्र से होता है ?
(A) खाद्य-श्रृंखला
(B) खाद्य-जाल
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (C)
44. एक क्षेत्र विशेष में प्राथमिक उत्पादकों की संख्या अधिकतम किसमें होगी ?
(A) घास के मैदान पारिस्थितिक तंत्र में
(B) जंगल पारिस्थितिक तंत्र में
(C) जलाशय पारिस्थितिक तंत्र में
(D) मरुस्थल में
Answer ⇒ (C)
45. एक खाद्य-श्रृंखला किससे आरंभ होती है ?
(A) नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवों से
(B) प्रकाशसंश्लेषण करने वाले से
(C) श्वसन से
(D) विघटनकर्ता से
Answer ⇒ (B)
46. पारिस्थितिक तंत्र में आहार-स्तर को कहा जाता है :
(A) उत्पादक स्तर
(B) उपभोक्ता स्तर
(C) शाकाहारी स्तर
(D) पोषण स्तर
Answer ⇒ (B)
47. अगर जैवमंडल से CO2 को हटा लिया जाए तो कौन-से जीव पर सर्वप्रथम बुरा प्रभाव पड़ेगा ?
(A) प्राथमिक उत्पादक
(B) प्राथमिक उपभोक्ता
(C) द्वितीयक उपभोक्ता
(D) तृतीयक उपभोक्ता
Answer ⇒ (A)
48. एक झील-पारितंत्र होता है
(A) कृत्रिम
(B) अजीवीय
(C) प्राकृतिक
(D) जलविज्ञा
Answer ⇒ (D)
49. अवसादी चक्र के अंतर्गत किसका चक्रीकरण होता है ?
(A) लौह
(B) फॉस्फोरस
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (C)
50. दस प्रतिशत ऊर्जा-हास का नियम किसने बनाया ?
(A) लिंडेमन
(B) लिपमेन
(C) न्यूबर्ग
(D) बर्जिलियस
Answer ⇒ (A)
51. एक साधारण खाद्य-श्रृंखला का सही क्रम है :
(A) घास → बकरी → मनुष्य
(B) बकरी → घास → मनुष्य
(C) मनुष्य → बकरी → घास
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (A)
52. उर्ध्ववर्ती/शिखरांग (upright) पिरामिड वह पिरामिड है जो
(A) ऊर्जा पिरामिड जो सदैव खडी अवस्था में होते हैं
(B) ऊर्जा पिरामिड जो सदैव उलटी अवस्था में अधोवर्ती रहती है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (A)
53. एक खाद्य-श्रृंखला में निम्नलिखित में सर्वाधिक संख्या किसकी होती है ?
(A) उत्पादक
(B) प्राथमिक उपभोक्ता
(C) द्वितीयक उपभोक्ता
(D) अपघटक
Answer ⇒ (A)
54. एक झील में द्वितीय पोषण स्तर होता है :
(A) पादपप्लवक
(B) प्राणिप्लवक
(C) नितलक
(D) मछलियाँ
Answer ⇒ (B)
55. द्वितीय उत्पादक है :
(A) शाकाहारी
(B) उत्पादक
(C) माँसाहारी
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (D)
56. प्रासंगिक और विकिरण में प्रकाशसंश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण की क्या प्रतिशत होता है ?
(A) 100%
(B) 50%
(C) 1-5%
(D) 2-10%
Answer ⇒ (B)
57. पारिस्थितिक तंत्र के दो घटक होते हैं :
(A) पौधे एवं प्राणी
(B) जैविक एवं अजैविक
(C) ऑक्सीजन और कार्बन
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
58. वन पारिस्थितिक तंत्र में संख्या का पिरामिड होता है :
(A) सीधा
(B) उल्टा
(C) दोनों
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
59. अगर जैवमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को हटा दिया जाए तो कौन-से जीव पर सर्वप्रथम बुरा असर पड़ेगा ?
(A) प्राथमिक उत्पादक
(B) उत्पादक
(C) द्वितीयक उपभोक्ता
(D) तृतीय उपभोक्ता
Answer ⇒ (A)
60. ऊर्जा का पिरामिड सर्वदा होता है :
(A) उलटा
(B) सीधा
(C) उलटा तथा सीधा दोनों
(D) वन-पारितंत्र में उलटा
Answer ⇒ (B)
61. वन-पारितंत्र में शेर का पोषण स्तर है :
(A) टी3
(B) टी4
(C) टी2
(D) टी1
Answer ⇒ (B)
62. परिस्थितिक तंत्र का महत्त्व किसमें निहित है ?
(A) उर्जा के प्रवाह में
(B) पदार्थों के अनुचक्रण में
(C) उपरोक्त दोनों में
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
Answer ⇒ (C)
63. पारिस्थितिक तंत्र नहीं है एक
(A) खुला तंत्र
(B) बंद तंत्र
(C) अस्थिर तंत्र
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
64. किसी भी खाद्य-श्रृंखला में हरा-पौधा प्रथम कड़ी हैं क्योंकि :
(A) उनका वितरण विस्तृत होता है
(B) वह मृदृ में दृढ़ता से लगे होते हैं
(C) केवल इन्हीं में वातावरण की CO2 को सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में स्थिर करने की क्षमता होती है
(D) उपरोक्त सभी में
Answer ⇒ (C)
65. पारिस्थितिक तंत्र में आहार स्तर को कहा जाता है :
(A) पोषण रीति
(B) उपभोक्ता स्तर
(C) उत्पादक स्तर
(D) शाकाहारी स्तर
Answer ⇒ (B)
66. निम्नलिखित में से कौन सही आहार श्रृंखला है ?
(A) टिड्डा(R) घास(R) सर्प(R) मेढक(R)बाज
(B) घास(R) टिड्डा(R) मेढक(R) सर्प(R)बाज
(C) बाज(R) सर्प(R) टिड्डा(R) घास(R) मेढक
(D) मेढक(R) सर्प(R) बाज(R) टिड्डा(R) बाज
Answer ⇒ (B)
67. पारिस्थितिक पिरामिड होते हैं :
(A) दो प्रकार के
(B) तीन प्रकार के
(C) चार प्रकार के
(D) पाँच प्रकार के
Answer ⇒ (B)
68. ‘इकोसिस्टम’ शब्द को प्रस्तावित किया :
(A) ओडम ने
(B) टेंसले ने
(C) विटेकर ने
(D) गोली ने
Answer ⇒ (B)
69. कौन-सा पिरैमिड हमेशा ऊपर की ओर होता है, उल्टा कभी नहीं होता है ?
(A) संख्या का पिरैमिड
(B) जैवमात्रा का पिरैमिड
(C) ऊर्जा का पिरैमिड
(D) जलीय व्यवस्था का पिरैमिड
Answer ⇒ (C)
70. पानी में उगने वाला अजोला इस स्वतंत्र नाइट्रोजन फिक्सिंग साइनोबैक्टेरियम के साथ सिमबॉयटिक सम्मिलन में होता है
(A) क्लोरेला
(B) नास्टॉक
(C) ऐनाबिएना
(D) टॉलिपोथ्रीक्स
Answer ⇒ (C)
71. एक पोषण स्तर से दूसरे में ऊर्जा प्रवाहित होती है
(A) 5%
(B) 10%
(C) 15%
(D) 20%
Answer ⇒ (B)
72. पहचानिए इनमें से कौन-सा अधुरे पारितंत्र का उदाहरण है ?
(A) घास का मैदान
(B) गुफा
(C) नदी
(D) दलदली क्षेत्र
Answer ⇒ (B)
73. तालाब पारितंत्र में संख्या का पिरैमिड होता है
(A) ऊपर की ओर
(B) अनियमित
(C) उल्टा
(D) तर्कुरूप
Answer ⇒ (A)
74. घास के मैदान की संख्या का पिरैमिड होता है ।
(A) अपराइट
(B) इन्वर्टेड
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (A)
75. अपरद खाद्य शृंखला की शुरूआत होती है
(A) जीवाणु से
(B) विषाणु से
(C) शैवाल से
(D) प्रोटोजोआ से
Answer ⇒ (A)
76. जाने-माने पारितंत्र पारिस्थितिकी है
(A) पी० माहेश्वरी
(B) इ०पी० ओडम
(C) एम०एस० स्वामीनाथन
(D) बीरबल साहनी
Answer ⇒ (B)
77. सबसे अधिकतम जमीनी प्राथमिकता उत्पादकता वाला पारितंत्र होता है
(A) तालाब
(B) महासागर
(C) मरुस्थल
(D) जंगल
Answer ⇒ (D)
78. स्तरविन्यास यहाँ मिलता है ।
(A) ट्रोपिकल रेनफॉरेस्ट
(B) मरुस्थल
(C) डिसिड्युअस वन
(D) दोनों (A) और (B)
Answer ⇒ (D)
79. चरम समुदाय बनने तक एक समुदाय की प्रजाति का दूसरे से पारितंत्र कहलाता है
(A) अनुक्रमण
(B) पारितंत्र
(C) जनसंख्या
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (A)
80. वृक्षरहित जीवोम को कहते हैं
(A) टुंड्रा
(B) मरुस्थल
(C) घास का मैदान
(D) उपर्युक्त सभी
Answer ⇒ (D)
81. कुछ जन्तुओं में होने वाली शीतनिष्क्रियता होती है :
(A) लयबद्ध
(B) सामयिक
(C) कदाचित
(D) क्षणिक
Answer ⇒ (B)
82. सहभोजिता में :
(A) दोनों साथियों को लाभ होता है
(B) दोनों साथियों को हानि होती है
(C) दुर्बल को लाभ जबकि प्रबल नुकसान विहीन रहता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
83. एक सफल परजीवी वह है जो
(A) तेजी से वृद्धि करता है
(B) तेजी से प्रजनन करता है
(C) लम्बे समय तक आतिथ्य से चिपका रहता है
(D) अपने आतिथ्य से न्यूनतम माँग करता है
Answer ⇒ (D)
84. कार्बन मोनोऑक्साइड से मनुष्य की मौत हो जाती है क्योंकि यह नष्ट कर देता है
(A) हीमोग्लोबिन
(B) फाइटोक्रोम
(C) साइटोक्रोम
(D) (A) और (B) दोनों
Answer ⇒ (A)
85. किसी प्रजाति के अन्दर जीव – विविधता को कहते है
(A) प्रजाति विविधता
(B) अल्फा विविधता
(C) आनुवंशिक विविधता
(D) प्रजातिकरण
Answer ⇒ (A)
86. मांसाहारी जीव निम्नलिखित में से क्या प्रदर्शित करता है
(A) प्राथमिक उपभोक्ता
(B) द्वितीयक व तृतीयक उपभोक्ता
(C) द्वितीयक उपभोक्ता
(D) प्राथमिक उत्पादक
Answer ⇒ (B)
87. जलीय पारितंत्र में ऊर्जा का पिरामिड कैसा होता है ?
(A) हमेशा सीधा
(B) हमेशा उल्टा
(C) घंटीनुमा
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (A)
88. पारिस्थितिक तंत्र” शब्द के उपयोग का श्रेय दिया जाता है।
(A) गार्डनर
(B) ओडम को
(C) टॉनसली
(D) वार्मिंग को
Answer ⇒ (C)
89. एक पारिस्थितिक तंत्र में हरे पौधे हैं
(A) उत्पादक
(B) उपभोक्ता
(C) अपघटक
(D) इनमें कोई नहीं
Answer ⇒ (A)
90. निम्न में से कौन आहार श्रृंखला सही है ?
(A) घास, गेहूँ और आम
(B) घास, बकरी और शेर
(C) बकरी, गाय और घास
(D) घास, मछली और बकरी
Answer ⇒ (B)
91. किस पारितंत्र की सकल प्राथमिक उत्पादकता सर्वाधिक है ?
(A) घास स्थल
(B) मैंग्रोव
(C) कोरल रीफ
(D) वर्षा वन
Answer ⇒ (B)
92. वायुमंडलीय आर्द्रता को किससे मापा जाता है ?
(A) ऑक्सेनोमीटर
(B) हाइग्रोमीटर
(C) फोटोमीटर
(D) पोटोमीटर
Answer ⇒ (B)
93. सल्फर का सबसे बड़ा संग्राहक है
(A) वायुमण्डल
(B) चट्टानें
(C) महासागर
(D) झील
Answer ⇒ (B)
94. स्तरीकरण (Stratification) पाया जाता है
(A) मरुस्थल में
(B) उष्ण कटिबंधीय वन में
(C) पर्णपाती वन में
(D) टुण्ड्रा में
Answer ⇒ (B)
95. खाद्य श्रृंखला में सर्वाधिक आबादी किसकी होती है ?
(A) उत्पादक
(B) प्राथमिक उपभोक्ता
(C) द्वितीयक उपभोक्ता
(D) तृतीयक उपभोक्ता
Answer ⇒ (A)
96. उष्ण कटिबंधीय सघन वनों का कारण है
(A) कम वर्षा एवं कम तापमान
(B) अधिक वर्षा और कम तापमान
(C) कम वर्षा एवं अधिक तापमान
(D) अधिक वर्षा और अधिक तापमान
Answer ⇒ (D)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ऊर्जा के पिरैमिड की मुख्य विशेषता क्या है?
उत्तर:- पारितंत्र में ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होता है तथा ऊर्जा का पिरैमिड सदैव सीधा होता है।
प्रश्न 2. उस जीवाणु का नाम लिखिए जो दलहनी पौधों की जड़ों की ग्रन्थियों में पाया जाता है।
उत्तर:- राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरमा
प्रश्न 3. लेगहीमोग्लोबिन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:- सहजीवी जीवाणु राइजोबियम दाल वाले पौधों की जड़ों के कॉर्टेक्स में लेग-हीमोग्लोबिन वर्णक एवं नाइट्रोजनेज एन्जाइम का संश्लेषण करता है। लेग-हीमोग्लोबिन कॉर्टेक्स कोशिकाओं में अवायवीय अवस्था को बनाये रखने में सहायक होता है।
प्रश्न 4. कौन-सा शैवाल नाइट्रोजन स्थिरीकरण में भाग लेता है?
उत्तर:- नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas)
प्रश्न 5. एक पारिस्थितिक तन्त्र में एक अवसादीय चक्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताओं का वर्णन करें।
उत्तर:- एक पारिस्थितिक तन्त्र में एक अवसादीय चक्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ इस प्रकार हैं –
1.अवसादी चक्र (जैसे- सल्फर एवं फॉस्फोरस चक्र) के भण्डार धरती के पटल में स्थित होते हैं।
2. पर्यावरणीय घटक (जैसे- मिट्टी, आर्द्रता, pH, ताप आदि) वायुमण्डल में पोषकों के मुक्त होने की दर तय करते हैं।
3. एक भण्डार की क्रियाशीलता, कमी को पूरा करने के लिए होती है जोकि अन्तर्वाह एवं बहिर्वाह की दर के असंतुलन के कारण संपन्न होती है।
4. अवसादी चक्र की गति गैसीय चक्र की अपेक्षा बहुत धीमी होती है।
5. वायुमण्डल में अवसादी चक्र का निवेश कार्बन निवेश की अपेक्षा बहुत कम होता है।
6. अवसादी पोषक तत्त्वों की एक बहुत घनी मात्रा पृथ्वी के अन्दर अचलायमान स्थिति में संचित रहती है।
प्रश्न 6. एक पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन चक्रण की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताओं की रूपरेखा प्रस्तुत करें।
उत्तर :- एक पारितन्त्र में कार्बन चक्रण की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ इस प्रकार हैं –
1.जीवों के शुष्क भार का 49% भाग कार्बन से बना होता है।
2. समुद्र में 71% कार्बन विलेय के रूप में विद्यमान है। यह सागरीय कार्बन भण्डार वायुमण्डल में CO2 की मात्रा को नियमित करता है।
3. जीवाश्मी ईंधन भी कार्बन के एक भण्डार का प्रतिनिधित्व करता है।
4. कार्बन चक्र वायुमण्डल, सागर तथा जीवित एवं मृतजीवों द्वारा संपन्न होता है।
5. अनुमानतः जैव मण्डल में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष 4 x 1013 किग्रा कार्बन का स्थिरीकरण होता है।
6. एक महत्त्वपूर्ण कार्बन की मात्रा CO2 के रूप में उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं की श्वसन क्रिया के माध्यम से वायुमण्डल में वापस आती है। भूमि एवं सागरों में कचरा सामग्री एवं मृत कार्बनिक सामग्री के अपघटन की प्रक्रियाओं द्वारा भी CO2 की काफी मात्रा अपघटकों द्वारा छोड़ी जाती है।
7. यौगिकीकृत कार्बन की कुछ मात्रा अवसादों में नष्ट होती है और संचरण द्वारा निकाली जाती है।
8. लकड़ी के जलाने, जंगली आग एवं जीवाश्मी ईंधन के जलने के कारण, कार्बनिक सामग्री, ज्वालामुखीय क्रियाओं आदि अतिरिक्त स्रोतों द्वारा वायुमण्डल में CO2 को मुक्त किया जाता है।
प्रश्न 7. अपघटन की परिभाषा दीजिए तथा अपघटन की प्रक्रिया एवं उसके उत्पादों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :-
अपघटन (Decomposition) – अपघटकों (decomposers) जैसे- जीवाणु, कवक आदि द्वारा जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों जैसे-कार्बन डाइऑक्साइड, जल एवं पोषक तत्त्वों में विघटित करने की प्रक्रिया को अपघटन (decomposition) कहते हैं।
पादपों के मृत अवशेष जैसे- पत्तियाँ, छाल, फूल आदि तथा जन्तुओं के मृत अवशेष, मलमूत्र आदि को अपरद (डेट्राइटस-detritus) कहते हैं। अपघंटन की प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण चरण खण्डन, निक्षालन, अपचयन, ह्यूमस निर्माण तथा पोषक तत्त्वों का मुक्त होना है। केंचुए आदि को अपरदाहारी (detritivores) कहते हैं। ये अपरदे को छोटे-छोटे कणों में खण्डित करते हैं। इस प्रक्रिया को खण्डन (fragmentation) कहते हैं।
निक्षालन (leaching) प्रक्रिया में जल में घुलनशील अकार्बनिक पोषक मृदा में प्रवेश कर जाते हैं। शेष पदार्थ का अपचय जीवाणु तथा कवक द्वारा होता है। ह्यूमस निर्माण (humification) के फलस्वरूप गहरे भूरे-काले रंग का भुरभुरा पदार्थ ह्युमस (humus) बनता है। खनिजीकरण (mineralization) के फलस्वरूप ह्युमस (humus) से पोषक तत्त्व मुक्त हो जाते हैं। गर्म तथा आर्द्र वातावरण में अपघटन प्रक्रिया तीव्र होती है।
प्रश्न 8. पारिस्थितिकी पिरैमिड को परिभाषित कीजिए तथा जैवमात्रा या जैवभार तथा संख्या के पिरैमिडों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर :-
पारिस्थितिक पिरैमिड
पारितन्त्र में खाद्य श्रृंखला के विभिन्न पोषक स्तरों में जीवधारियों के सम्बन्धों का रेखीय चित्रण पारिस्थितिक पिरैमिड (pyramid) कहलाता है। पिरैमिड पारितन्त्र में जीव की संख्या, जीवभार तथा जैव ऊर्जा को प्रदर्शित करते हैं। इनका सर्वप्रथम प्रदर्शन एल्टन (Elton, 1927) ने किया था। इनमें सबसे नीचे का पोषी स्तर उत्पादक का होता है तथा सबसे ऊपर का पोषी स्तर सर्वोच्च उपभोक्ता का होता है।
(i) जीवभार का पिरैमिड (Pyramid of biomass) – जीव के ताजे (fresh) अथवा शुष्क (dry) भार के रूप में प्रत्येक पोषी स्तर को मापा जाता है। स्थलीय पारितन्त्र में उत्पादक का जीवभार सर्वाधिक होता है। अतः पिरैमिड सीधा रहता है। तालाबीय पारितन्त्र में उत्पादक का भार सबसे कम होता है। अतः पिरैमिड उल्टा बनता है। जीवभार को g/m2 में मापा जाता है।
(ii) संख्या का पिरैमिड (Pyramid of numbers) – इस पिरैमिड में विभिन्न पोषी स्तर के जीवों की संख्या को प्रदर्शित करते हैं। घास तथा तालाब पारितन्त्र में संख्या का पिरैमिड सीधा (upright) होता है। वृक्ष पारितन्त्र में उत्पादकों की संख्या सबसे कम (एक वृक्ष) तथा अन्तिम उपभोक्ता की संख्या सर्वाधिक होती है अतः यह पिरैमिड उल्टा होता है।
प्रश्न 9. पारिस्थितिक तन्त्र के घटकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :-स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल का वह क्षेत्र जिसमें जीवधारी रहते हैं जैवमण्डल (biosphere) कहलाता है। जैवमण्डल में पाए जाने वाले जैवीय (biotic) तथा अजैवीय (abiotic) घटकों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन पारितन्त्र (ecosystem) कहलाता है। पारितन्त्र या पारिस्थितिक तन्त्र (ecosystem) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टैन्सले (Tansley, 1935) ने किया था। यदि जीवमण्डल में जैविक, अजैविक अंश तथा भूगर्भीय, रासायनिक व भौतिक लक्षणों को शामिल करें तो यह पारिस्थितिक तन्त्र बनता है।
पारिस्थितिक तन्त्र सीमित व निश्चित भौतिक वातावरण का प्राकृतिक तन्त्र है जिसमें जीवीय (biotic) तथा अजीवीय (abiotic) अंशों की संरचना और कार्यों का पारस्परिक आर्थिक सम्बन्ध सन्तुलन में रहता है। इसमें पदार्थ तथा ऊर्जा का प्रवाह सुनियोजित मार्गों से होता है।
पारिस्थितिक तन्त्र के घटक
पारिस्थितिक तन्त्र के मुख्यतया दो घटक होते हैं- जैविक तथा अजैविक घटक।
1. जैविक घटक (Biotic components) – पारिस्थितिक तन्त्र में तीन प्रकार के जैविक घटक होते हैं- स्वपोषी (autotrophic), परपोषी (heterotrophic) तथा अपघटक (decomposers)।
(अ) स्वपोषी घटक (Autotrophic component) – हरे पादप पारितन्त्र के स्वपोषी घटक होते हैं। ये सौर ऊर्जा तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में CO2 तथा जल से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। हरे पादप उत्पादक (producer) भी कहलाते हैं। हरे पौधों में संचित खाद्य पदार्थ दूसरे जीवों का भोजन है।
(ब) परपोषी घटक (Heterotrophic components) – ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते, ये भोजन के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं। इन्हें उपभोक्ता (consumer) कहते हैं। उपभोक्ता तीन प्रकार के होते हैं –
1.प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता अथवा शाकाहारी (Herbivores) – ये उपभोक्ता अपना भोजन सीधे उत्पादकों (हरे पौधों) से प्राप्त करते हैं। इन्हें शाकाहारी कहते हैं। जैसे-गाय, बकरी, भैंस, चूहा, हिरन, खरगोश आदि।
2.द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता अथवा मांसाहारी (Carnivores) – द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता भोजन के लिए शाकाहारी जन्तुओं का भक्षण करते हैं, इन्हें मांसाहारी कहते हैं जैसे- मेढक, साँप आदि।
3.तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता – तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता से भोजन प्राप्त करते हैं जैसे- शेर, चीता, बाज आदि।
कुछ जन्तु सर्वाहारी (omnivores) होते हैं, ये पौधों अथवा जन्तुओं से भोजन प्राप्त कर सकते हैं जैसे- कुत्ता, बिल्ली, मनुष्य आदि।
(स) अपघटक (Decomposers) – ये जीव कार्बनिक पदार्थों को उनके अवयवों में तोड़ देते हैं। ये मुख्यत: उत्पादक व उपभोक्ता के मृत शरीर का अपघटन करते हैं। इन्हें मृतजीवी भी कहते हैं। सामान्यतः ये जीवाणु व कवक होते हैं। इसके फलस्वरूप प्रकृति में खनिज पदार्थों का चक्रण होता रहता है। उत्पादक, उपभोक्ता व अपघटक सभी मिलकर बायोमास (biomass) बनाते हैं।
2. अजैविक घटक (Abiotic components) – किसी भी पारितन्त्र के अजैविक घटक तीन भागों में विभाजित किए जा सकते हैं –
1.जलवायवीय घटक (Climatic components) – जल, ताप, प्रकाश आदि।
2.अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic substances) – C, O, N, CO2 आदि। ये विभिन्न चक्रों के माध्यम से जैव-जगत् में प्रवेश करते हैं।
3.कार्बनिक पदार्थ (Organic substances) – प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा आदि। ये अपघटित होकर पुनः सरल अवयवों में बदल जाते हैं।
कार्यात्मक दृष्टि से अजैविक घटक दो भागों में विभाजित किए जाते हैं –
1.पदार्थ (Materials) – मृदा, वायुमण्डल के पदार्थ जैसे- वायु, गैस, जल, CO2, O2, N2, लवण जैसे- Ca, S, P कार्बनिक अम्ल आदि।
2.ऊर्जा (Energy) – विभिन्न प्रकार की ऊर्जा जैसे- सौर ऊर्जा, तापीय ऊर्जा, गतिज ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा आदि।
प्रश्न 10. पारिस्थितिक तन्त्र कितने प्रकार के होते हैं? एक तालाब के पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न घटकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :-
पारिस्थितिक तन्त्र के प्रकार
पारिस्थितिक तन्त्र प्रमुखत : दो प्रकार के हो सकते हैं –
1.जलीय (aquatic),
2. स्थलीय (terrestrial)।
जलीय पारिस्थितिक समूह, भारतीय पर्यावरण में अलवणीय जल (fresh water), जैसे- तालाबीय पारितन्त्र (pond ecosystem) अथवा लवणीय जल (marine water); जैसे- कुछ झील, समुद्र आदि के पारितन्त्र हो सकते हैं।
तालाबीय पारितन्त्र के विभिन्न घटक
कोई जैव समुदाय तथा उसका पर्यावरण मिलकर एक जैविक इकाई (biological unit) बनाते हैं। तालाब में मिलने वाली जैव जातियाँ तथा अजैवीय वस्तुएँ परस्पर अन्तक्रियाएँ करके एक आत्मनिर्भर इकाई बनाते हैं। इसे तालाब का पारितत्र (pond ecosystem) कहते हैं। तालाब के पारितन्त्र के दो प्रमुख प्रकार के घटक इस प्रकार हैं
1. अजैवीय घटक
जल, ताप, प्रकाश, अकार्बनिक पदार्थ, खनिज लवण, विभिन्न गैसें (CO2 एवं O2), कार्बनिक अवशेष, ह्युमस आदि अजैवीय घटक हैं।
2. जैवीय घटक
इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित करते हैं –
(i) उत्पादक (Producers) – जलीय तथा उभयचारी (amphibious) हरे पौधे होते हैं. ये स्वपोषी (autotrophs) हैं। इनके जलाशय के तट से धरातल तक अनेक उदाहरण हो सकते हैं; जैसे-तट की दलदली मृदा से टाइफा (Typha), रेननकुलस (Ranunculus) आदि एवं जल में अनेक शैवाल, हाइड्रिला, वैलिसनेरिया आदि तथा पादप प्लवक (phytoplanktons) आदि। ये पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं।
(ii) उपभोक्ता (Consumers) – ये कई श्रेणियों में बँटे होते हैं; जैसे –
1. प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता – जल में पाये जाने वाले छोटे-छोटे कीट- जन्तु प्लवक (zooplanktons), कोपीपोड (copepods), कीटों के लार्वी, कुछ ऐनीलिड्स (annelids) तथा मॉलस्क्स (molluscs) आदि। ये शाकाहारी (herbivores) हैं। और शैवालों, पत्तियों इत्यादि को भोजन के रूप में लेते हैं।
2. द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता – ये प्रमुखतः शिकारी कीट छोटी मछलियाँ आदि होती हैं, जो शाकाहारी उपभोक्ताओं का शिकार करते हैं; जैसे- मूंग (beetles) आदि। मेढ़क (frogs) भी प्रायः इसी श्रेणी के जन्तु होते हैं।
3. तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता – विभिन्न प्रकार की मांसाहारी मछलियाँ (carnivorous fish) जो सभी श्रेणी के अन्य उपभोक्ताओं को अपना भोजन बनाती हैं। यहाँ उच्चतम उपभोक्ता (top consumers) ये ही हैं।
(iii) अपघटक (Decomposers) – मृत जीवों पर आश्रित रहने वाले जीव अर्थात् मृतोपजीवी जैसे- जीवाणु, कवक आदि। ये जीव तालाब में मृत जीवों का अपघटन कर उनके अवयवों को पर्यावरण में मुक्त करते हैं ताकि उत्पादक अर्थात् हरे पौधे इनको उपभोग कर सकें। इस प्रकार हरे पौधे जिन पदार्थों का उपयोग करके भोजन बनाते हैं अन्त में ये पदार्थ चक्रीकरण द्वारा विभिन्न जीवों से होते हुए अन्त में वापस जलीय भूमि में आ जाते हैं।
पारिस्थितिक तन्त्र का सन्तुलन
पारिस्थितिक तन्त्र का सन्तुलन उसमें उपस्थित खाद्य जाल (food web) की जटिलता और विशालता पर निर्भर करता है। खाद्य जाल जितना जटिल होता है उतना ही पारितन्त्र अधिक स्थायी होता है। जटिल खाद्य जाल में किसी भी उपभोक्ता के लिए अधिक प्रकार के जीव (खाद्य ऊर्जा) उपभोग के लिए उपलब्ध होंगे। अत: एक जीव के किसी कारण से कम हो जाने या नष्ट हो जाने से भी खाद्य जाल की स्थिरता पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि उस स्थान की पूर्ति उसी स्तर का कोई दूसरा जीव कर देगा अर्थात् अधिक संख्या में वैकल्पिक पथ होने पर पारिस्थितिक तन्त्र अधिक स्थिर तथा सन्तुलित रहता है।
असन्तुलन की दशा किसी भी पोषण स्तर (trophic level) में विनष्टीकरण की क्रिया से होती है। यह असन्तुलन चाहे तो उस स्तर के जीवों की स्वयं कमी के कारण, कम वैकल्पिक पथ होने पर अथवा प्रदूषण (pollution) के कारण हो सकता है। तालाबीय पारितन्त्र में जल प्रदूषण अनेक प्रकार के कीटनाशक, अपतृणनाशक आदि के कारण हो सकता है अथवा औद्योगिक संस्थानों से निकले अनावश्यक पदार्थों से भी हो सकता है, इनमें तापीय प्रदूषण भी सम्मिलित है। इनसे जलीय जीव-जन्तु मरने लगते हैं। सबसे अधिक प्रभाव छोटे जीवों पर होता है इससे प्रारम्भिक पोषक स्तरों के नष्ट होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
प्रश्न 11. तालाब में होने वाले अनुक्रमण का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
उत्तर :-
अनुक्रम या अनुक्रमण
जिस प्रकार किसी पारितन्त्र के घटकों (components) में जैवीय घटेकों (biotic components) का अत्यधिक महत्त्व है, उसी प्रकार किसी पारितन्त्र के निर्माण के समय उसके जैव समुदायों में पादप समुदाय का विशेष महत्त्व है। पादप समुदाय की उत्पत्ति तथा उसका परिवर्द्धन ही अन्य जैव समुदायों की दिशा भी निर्धारित करता है।
किसी स्थान को यदि वनस्पति विहीन कर दिया जाए तथा उसे मानव व मानव द्वारा पाले जाने वाले पशुओं की क्रियाओं से भी विलग कर दिया जाए तो धीरे-धीरे लेकिन एक निश्चित क्रम में उस स्थान पर वनस्पति उगनी प्रारम्भ होगी। कालान्तर में, एक स्थिति ऐसी आएगी जब वहाँ पर अपेक्षाकृत अधिक स्थायी समुदाय (stable community) निर्मित हो जाएगा।
इस प्रकार किसी नग्न स्थान पर शनैः-शनैः पादप समुदाय के जमाव को पादप अनुक्रम या अनुक्रमण (plant succession) कहते हैं। अनुक्रमण की विचारधारा को सर्वप्रथम वार्मिंग (Warming 1899) ने प्रस्तुत किया तथा क्लीमेण्ट्स (Clements, 1907 – 1916) ने इसे पोषित किया। क्लीमेण्ट्स ने इसे प्राकृतिक प्रक्रम कहा जिसमें पादप समुदायों के विभिन्न समूहों द्वारा क्रमिक रूप से एक ही क्षेत्र का उपनिवेशन (colonization) सम्मिलित है।
सामान्यतः समुदाय स्थायी इकाई नहीं है, बल्कि यह एक गतिक (dynamic) इकाई है जिसमें सन्तुलन के कारण आत्मनिर्भरता बनी रहती है। पर्यावरण में परिवर्तन होने से समुदाय की पादप जातियों में भी परिवर्तन आते हैं। परिवर्तन के प्रमुख कारणों में जलवायवीय, भू-आकृतिक अथवा जैविक परिवर्तन हो सकते हैं। जैव समुदाय की विभिन्न जातियों की क्रिया-प्रतिक्रियाएँ इन जैविक परिवर्तनों का आधार होती हैं। कालान्तर में उपर्युक्त प्रकार के परिवर्तनों के कारण समुदाय की संरचना में शनैः-शनैः परिवर्तन होते जाते हैं। इस प्रकार प्रमुख जातियाँ अन्य जातियों द्वारा प्रतिस्थापित होती जाती हैं। प्रतिस्थापन की ये प्रक्रियाएँ तब तक होती रहती हैं जब तक कि समुदाय की जातियों तथा पर्यावरण में परस्पर अपेक्षाकृत अधिक स्थायी सन्तुलन स्थापित नहीं हो जाता। इस प्रकार की समय के साथ समुदाय में परिवर्तन की प्रक्रिया को पारिस्थितिक अनुक्रमण (ecological succession) कहा गया है। ओडम ने इस प्रक्रिया को पारितन्त्र का परिवर्द्धन माना है।
स्पष्ट है, अनुक्रमण या परिवर्द्धन एक निर्धारित दिशा में बढ़ने वाली व्यवस्थित प्रक्रिया है। जिसमें समयान्तर के बाद जाति संरचना में परिवर्तन होता जाता है। इस प्रकार के परिवर्तन में ऊसर क्षेत्र (barren area) में, प्रारम्भिक रूप में, स्थापित समुदाय पुरोगामी समुदाय (pioneer community) तथा अन्तिम समुदाय को चरम समुदाय (climax community) कहा जाता है। अनुक्रम की इस प्रक्रिया के मध्य में चूंकि क्रमकी समुदायों (seral communities) का प्रतिस्थापन होता है अतः सम्पूर्ण प्रक्रिया या अनुक्रम क्रमक (sere) कहलाता है।
इस परिवर्तन का मूल कारण समुदाय के सदस्यों द्वारा पर्यावरण में परिवर्तन उत्पन्न करना है। इससे यह भी स्पष्ट है कि अनुक्रमण समुदाय द्वारा ही नियन्त्रित होता है और भौतिक वातावरण इसमें परिवर्तन की दर, इसके प्रतिरूप तथा परिवर्द्धन की सीमा को निर्धारित करता है। उपर्युक्त के परिणाम में समुदाय एक स्थायी पारितन्त्र (ecosystem) बन जाता है।
अनुक्रम निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं –
1.प्राथमिक अनुक्रम (Primary Succession) – यह अनुक्रम उन नग्न स्थानों पर आरम्भ होता है जहाँ पर पहले किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं पाई जाती है।
2. द्वितीयक अनुक्रम (Secondary Succession) – यह अनुक्रम उन स्थानों पर पाया जाता है। जहाँ पर पहले पूर्ण विकसित वनस्पति थी किन्तु बाद में किसी कारण से वह नष्ट हो गई।
अनुक्रमण की प्रक्रिया
क्लीमेण्ट्स ने सन् 1916 में अनुक्रमण की निम्नलिखित अवस्थाओं का उल्लेख किया-
1.न्यूडेशन
2.आक्रमण
3.स्पर्धा
4.प्रतिक्रिया
5.चरम अवस्था।
जलक्रमक : खाली तालाब की अनुक्रम
जलक्रमक की विभिन्न अवस्थाओं को समझने के लिए कोई झील या सरोवर एक आदर्श स्थान हो सकता है जहाँ जल मध्य में तो गहरा होता है तथा किनारों की ओर क्रमशः छिछला (कम गहरा) होता चला जाता है। ऐसी परिस्थिति में जिन विभिन्न अवस्थाओं से चरम पादप समुदाय का विकास होता है, वे इस प्रकार हैं –
1. प्लवक अवस्था (Plankton Stage) – जल की गहराई में पुरोगामी के रूप में पादप प्लवक (phytoplankton) तथा जन्तु प्लवक (zooplanktons) उत्पन्न होते हैं। ये मुख्यत: एककोशिकीय अथवा निवही (colonial) और समूह में रहने वाले हरे शैवाल, जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्म जीव हैं जो जल की ऊपरी सतह पर तैरते रहते हैं। जल की गहराई में पादप जीवन
अनुपस्थित होता है।
2. निमग्न अवस्था (Submerged Stage) – 10 फीट या इससे कम गहरे पानी वाले झील क्षेत्र में पूर्णत: निमग्न पौधे तथा मुक्त प्लावी पौधे पाये जाते हैं। इनकी जड़े प्रायः नीचे कीचड़ में जमी रहती हैं। उदाहरण के लिए- मिरियोफिलम (Myriophyllum), इलोडीया (Elodea), पोटेमोजेटॉन (Potamogeton), हाइड्रिला (Hydrilla), वैलिसनेरिया (Vallisneria), यूट्रीक्युलरिया (Utricularia) आदि। इन पौधों के साथ शैवाल गुच्छ चिपके रहते हैं। किनारों से अपरदित मिट्टी के कण, जो गॅदले पानी में तैरते रहते हैं, इन पौधों द्वारा रोक लिये जाते हैं। इन पौधों की मृत्यु पर इनके अवशेष ह्युमस में परिवर्तित होकर तल में बैठ जाते हैं। इस प्रकार झीलों के तल में लगातार मिट्टी, कीचड़ ह्यूमस के जमा होते रहने से प्रतिवर्ष झील उत्तरोत्तर कम गहरी होती चली जाती है। गहराई कम होने के कारण अब यह स्थान निमग्न पादपों के लिए कम अनुकूल तथा नये पादपों के लिए अधिक अनुकूल हो जाता है।
3. जड़ित प्लावी अवस्था (Rooted Floating Stage) – उपर्युक्त वर्णित अनेक कारणों से जल कम गहरा हो जाता है तथा 5 से 10 फीट गहरे पानी में प्लावी जातियाँ उगने लगती हैं। इन पौधों की जड़े तल में जमी रहती हैं परन्तु स्तम्भ अथवा पर्णवृन्त लगभग पानी के ऊपर पहुँच जाते हैं। तथा इनकी पत्तियाँ जल सतह पर तैरती रहती हैं। इनमें निम्फिया (Nymphaea), नीलम्बियम (Nelumbium), रैननकुलस (Ranunculus sp.), मोनोकोरिया (Monochoria), एपोनोजीटॉन (Aponogeton), ट्रापा (Trupa) प्रमुख हैं। इनके साथ ही कुछ मुक्त प्लावी जातियाँ; जैसे- लेम्ना (Lemng), वॉल्फिया (Wolfia), एजोली (Azolla), पिस्टिया (Pistiq), सालविनिया (Salvinia) इत्यादि निमग्न जातियों तक प्रकाश को नहीं पहुँचने देतीं जिसके फलस्वरूप निमग्न जातियाँ समाप्त हो जाती हैं। अपघटित कार्बनिक पदार्थ इत्यादि जमा होने से जल की गहराई कम होती जाती है। धीरे-धीरे प्लावी अवस्था भी समाप्त हो जाती है।
4. नइ अनूप अवस्था (Reed Swamp Stage) – जब जल की गहराई 2 से 3 फुट रह जाती है। तो नड़ अनूप या नरकुल अनूप जैसे पादप उगने लगते हैं। यहाँ पर टाइफा (Typha), सेजिटेरिया (Sagittaria), सिरपस (Scirpus), फ़ैगमाइट्स (Phragmites), रैननकुलस (Ranunculus) जैसे पादपों के साथ ही अत्यन्त कम जल में रूमेक्स (Rumex), एक्लिप्टा (Eclipta), इत्यादि पादप उगने लगते हैं। ये पौधे तल में जड़ों द्वारा जमे रहते हैं। इनके कुछ भाग पानी में डूबे रहते हैं। यहाँ पर दलदल बनने लगता है तथा धीरे-धीरे मिट्टी के जमाव के कारण यह स्थान कच्छ (marshy) भूमि में परिवर्तित होने लगती है।
5. कच्छ शादुल अवस्था (Marsh Meadow Stage) – मिट्टी के जमाव के कारण यह क्षेत्र कच्छ भूमि (जहाँ केवल कुछ इंच पानी ही हो) में परिवर्तित हो चुका होता है। इस भूमि पर पॉलीगोनम (Polygonum), पोदीना कुल के पौधे, ऊँची घास की जातियाँ- साइप्रस (Cyperus), जंकस (Juncus), कैरेक्स (Carex), इलीयोकैरिस (Eleocharis) आदि आकर जमने लगती हैं। यह एक शाद्वल (meadow) बन जाता है। ये पौधे भूमि जल का अत्यधिक अवशोषण करते हैं और इसे वाष्पोत्सर्जन द्वारा उड़ा देते हैं। इनके मृत अवशेषों के संचयन से, जल वाहित मृदा तथा वातोढ़ मृदा को रोककर भूमि का निर्माण करते हैं। ऐसी भूमि जलीय पौधों के पनपने के लिए अनुकूल नहीं होती; अतः अब यहाँ पर क्षुप तथा वृक्षों के पनपने की परिस्थिति बनने लगती है।
6. काष्ठीय वनस्पति अवस्था (Woodland Stage) – आर्द्र जलवायु में इस अनुक्रमण का अगला चरण क्षुपों; जैसे- सैलिक्स (Salix), कॉर्नस (Cormus) आदि तथा वृक्षों; जैसे- एल्मस (Almus), पॉपुलस (Populus) आदि की जातियों का पनपेना है। इस अवस्था में ऐसे पौधे पुरोगामी होते हैं जो अपनी जड़ों के आस-पास आंशिक जलाक्रान्त परिस्थितियों को सहन कर सकें। ये काष्ठीय पौधे आवास को अपने पूर्ववर्ती पौधों के समान ही छाया डालकर तथा तीव्र वाष्पोत्सर्जन द्वारा प्रभावित करते हैं। ये काष्ठीय पादप वातोढ़ मिट्टी को रोककर तथा पादप अवशेषों के संचयन द्वारा मिट्टी को शुष्क बनाते हैं।
7. चरम वन (Climax Forest) – जैसे- जैसे ह्यूमस का संचयन होता है जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्म जीव भूमि में बढ़ने लगते हैं और भूमि अधिक उर्वर होती चली जाती है। इस भूमि पर नये समोभिद वृक्ष प्रकट होने लगते हैं। ये वृक्ष भूमि को अपनी तरह से प्रभावित करते हैं। इनकी छाया (tree canopy) के नीचे वायु आई रहती है और इनकी छाया के नीचे छायासह (shade tolerant) क्षुप व शाक पनपने लगते हैं।
इस प्रकार एक क्षेत्र, जो जलमग्न था, अन्त में वन में परिवर्तित हो जाता है। यहाँ पर यह याद रखना आवश्यक है कि चरम समुदाय की प्रकृति वहाँ उपस्थित जलवायु पर निर्भर करती है; जैसे- शीतोष्ण (temperate) जलवायु में मिश्रित वन बनते हैं जिसमें एल्मस (Almus), एसर (Acer), क्वेरकस (Quercus) की जातियाँ होती हैं। उष्ण कटिबन्धीय या उपउष्ण कटिबन्धीय (subtropical) जलवायु में वर्षा की कमी या अधिकता के अनुसार वनों का विकास होता है; जैसे–कम वर्षा में पर्णपाती वन या मानसूनी वन, अधिक वर्षा में उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन आदि। वन समुदाय का विकास तभी होगा जब जलवायु आर्द्र होगी। शुष्क जलवायु में चरम समुदाय (climax community) घास स्थल (grass land) अथवा कोई अन्य शुष्कस्थली समुदाय हो सकता है।
प्रश्न 12. नाइट्रीकरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर :-
नाइट्रोजन तथा वायुमण्डल में इसका भौतिक चक्र
वायुमण्डल की गैसों में सबसे अधिक, लगभग 78 प्रतिशत मुक्त नाइट्रोजन होती है, किन्तु कुछ जीवाणु तथा नीली-हरी शैवालों को छोड़कर अन्य जीव इसका सीधे उपयोग करने में अक्षम हैं। इस मुक्त नाइट्रोजन का केवल कुछ प्रतिशत भौतिक व प्राकृतिक कारणों से ऑक्सीजन के साथ संयोग करके ऑक्साइड्स (NO2, NO आदि) बना लेता है। इस क्रिया में तड़ित क्रिया सम्मिलित है। ये ऑक्साइड्स वर्षा के जल के साथ भूमि पर गिरकर खनिजों के साथ क्रिया करते हैं और उनके नाइट्रेट्स आदि बना लेते हैं।
N2 + O2 → 2NO (nitric oxide)
2NO + O2 → 2NO2 (nitrogen peroxide)
2NO2 + H20 → HNO2 + HNO3 (nitrous acid + nitric acid)
यह क्रिया बहुत ही कम मात्रा में नाइट्रोजन को स्थिर कर पाती है।
नाइट्रोजन चक्र में हरे पौधों का महत्त्व
हरे पौधे भूमि से जड़ों द्वारा नाइट्रेट्स (nitrates =NO–3) आदि खनिज लवणों को लेकर कार्बोहाइड्रेट के साथ मिलाते हैं तथा अपनी कोशिकाओं में प्रोटीन जैसे पदार्थों का निर्माण करते हैं। जन्तु किसी-न-किसी रूप में इसी प्रोटीन को भोजन के रूप में पौधों से प्राप्त करते हैं। जन्तुओं का जीवद्रव्य इन प्रोटीन्स को अमीनो अम्लों के रूप में ग्रहण कर, जन्तु प्रोटीन्स के रूप में आत्मसात कर लेता है। जन्तुओं के शरीर में अधिक मात्रा में बने अमीनो अम्लों को वे अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल आदि के रूप में बदलकर, उत्सर्जी पदार्थों के रूप में शरीर से बाहर निकाल देते हैं। पौधों तथा जन्तुओं के मृत होने पर भी ये नाइट्रोजन गुक्त यौगिक भूमि में आ जाते हैं।
सूक्ष्म जीवों का नाइट्रोजन स्थिरीकरण में महत्त्व
जीवाणुओं का नाइट्रोजन चक्र में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण योगदान है। मिट्टी में स्वतन्त्र रूप से रहने वाले कुछ जीवाणु वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन स्थिर करके यौगिकों में बदल देते हैं: जैसे- एजोटोबैक्टर (Azotobacter), क्लॉस्ट्रीडियम (Clostridium) आदि। इसके अतिरिक्त लेग्यूमिनोसी (दलहनी) कुल के पौधों की जड़ों पर छोटी-छोटी गुलिकाओं में रहने वाले जीवाणु राइजोबियम लेग्यूमिनोसैरम (Rhizobium leguminosdrum) वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदल देते हैं। जीवाणुओं द्वारा छोड़े गये नाइट्रोजन के ऐसे घुलनशील यौगिक पौधों द्वारा ग्रहण किये जाते हैं।
नील- हरित शैवाल जैसे नोस्टॉक, ऐनाबीना, रिबुलेरिया, ग्लीयोट्राइकिया, ऑलोसिरा आदि भी वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं।
अमोनीकरण एवं नाइट्रीकरण (Ammonification and Nitrification) – कुछ जीवाणु नाइट्रोजनी कार्बनिक पदार्थों को तोड़कर उपस्थित नाइट्रोजन को अमोनिया में बदल देते हैं। ऐसे जीवाणु अपघटक कहलाते हैं। अमोनिया जैसे पदार्थ हानिकारक हैं। कुछ जीवाणु, जैसे-नाइट्रोसोमोनासे (Nitrosomonas) अमोनिया को नाइट्राइट में और नाइट्रोबैक्टर (Nitrobacter) नाइट्राइट को नाइट्रेट में बदल देते हैं। इन जीवाणुओं को नाइट्रीकारक जीवाणु (nitrifying bacteria) कहते हैं।
वायुमण्डल में नाइट्रोजन का कुछ अंश तड़ित विद्युत द्वारा ऑक्साइड्स में बदल जाता है जो बाद में जल के साथ मिलकर नाइट्रस व नाइट्रिक अम्ल (nitrous and nitric acid) बना लेता है। ये अम्ल भूमि में खनिजों के साथ मिलकर नाइट्रेट बनाते हैं, जिन्हें पौधे अवशोषित करते हैं।
विनाइट्रीकरण (Denitrification) – कुछ अन्य प्रकार के जीवाणु मिट्टी में मिलने वाले नाइट्रेट्स (nitrates) को तोड़कर नाइट्रोजन को वायु में मुक्त कर देते हैं। ऐसे जीवाणु विनाइट्रीकारी जीवाणु (denitrifying bacteria) कहलाते हैं तथा ये प्राय: अनॉक्सी अवस्थाओं में पाये जाते हैं; जैसे- थायोबैसिलस (Thiobacillus) व माइक्रोकॉकस (Micrococcus) की जातियाँ।
नाइट्रोजन का यह चक्र पर्यावरण में निरन्तर चलता रहता है और मृदा की उर्वरा शक्ति क्षीण नहीं होने पाती है।
नाइट्रोजन चक्र का महत्त्व
पृथ्वी पर प्रोटीन के बिना जीवों का अस्तित्व नहीं समझा जा सकता। ये जीवद्रव्य के अभिन्न अंग हैं। पौधे जड़ों से नाइट्रेट्स जैसे खनिज लवण अवशोषित कर अपनी कोशिकाओं में प्रोटीन का निर्माण करते हैं। जीव-जन्तु पौधों को खाते हैं। इस प्रकार जीवन को बनाये रखने तथा जीवद्रव्य की वृद्धि करने के लिए नाइट्रोजन चक्र का होना नितान्त आवश्यक है।
नाइट्रोजन चक्र के अन्य प्रमुख महत्त्व इस प्रकार हैं –
1.नाइट्रोजन चक्र से ही वायु में नाइट्रोजन का सन्तुलन बना रहता है, जो ऑक्सीजन की सक्रियता को कम करने के लिए आवश्यक है।
2. पौधों की वृद्धि तथा प्रकृति में भोजन प्राप्त कराने के लिए नाइट्रोजन चक्र अत्यन्त आवश्यक चक्र है।
3. जीव-जन्तुओं की उचित वृद्धि खाद्य पदार्थों के बिना असम्भव है, जो नाइट्रोजन चक्र से आवश्यकतानुसार सम्भव है।
4. वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन का उपयोग करके, नाइट्रोजन के अनेक यौगिक विभिन्न उपयोगों के लिए प्राप्त किये जाते हैं।
5. विभिन्न अपद्रव्यों का अपघटन होता रहता है।
अत: नाइट्रोजन चक्र प्रकृति का अत्यन्त आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण चक्र है।