वस्तुनिष्ठ प्रश्न
[ 1 ] भारत के किस राज्य में एड्स के पहले रोगी की सूचना मिली ?
(A) बिहार
(B) तमिलनाडु
(C) केरल
(D) हरियाणा
Answer ⇒ (B)
[ 2 ]सर्वप्रथम किस वर्ष भ्रष्टाचार निरोधक कानून पास हुआ था ?
(A) 1947
(B) 1948
(C) 1955
(D) 1960
Answer ⇒ (A)
[ 3 ] फेरा कानून संबंधित है—
(A) काला धन
(B) बालश्रम
(C) मद्यपान
(D) वेश्यावृत्ति
Answer ⇒ (A)
[ 4 ] भारत में निम्न में से कौन कारक राष्ट्रीय एकता में बाधक है ?
(A) जातियता
(B) क्षेत्रवाद
(C) धर्मान्धता
(D) उपर्युक्त सभी
Answer ⇒ (D)
[ 5 ] बिहार में बेरोजगारी भत्ता के रूप में बेरोजगारों को कितने राशि दी जाती है ?
(A) एक हजार
(B) पाँच हजार
(C) तीन हजार
(D) चार हजार
Answer ⇒ (A)
[ 6 ] भारत के लिए खतरनाक है
(A) सांप्रदायिकता
(B) क्षेत्रीयता
(C) जातीयता
(D) सभी
Answer ⇒ (D)
[ 7 ] बिहार में जातीय तनाव का कारण है ]
(A) जमीन
(B) फैशन
(C) शिक्षा
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (D)
[ 8 ] निम्नलिखित में से कौन-सी एक दशा क्षेत्रवाद का कारण है ?
(A) नेताओं द्वारा भ्रामक प्रचार
(B) भाषाओं की भिन्नता
(C) राजनीतिक अस्थिरता
(D) क्षेत्रीय पृथक्करण
Answer ⇒ (A)
[ 9 ]निम्नलिखित में से कौन राष्ट्रीय एकीकरण में बाधक है ?
(A) साम्प्रदायिकता
(B) धर्मनिरपेक्षता
(C) संस्कृतिकरण
(D) शिक्षा
Answer ⇒ (A)
[ 10 ]प्रजातंत्र की विशेषता है
(A) कानून की दृष्टि में समानता
(B) सार्वभौमिक मताधिकार
(C) प्रेस की स्वतंत्रता
(D) इसमें से सभी
Answer ⇒ (D)
[ 11 ] भारत की सांस्कृतिक विरासत निम्नलिखित में से किस दिशा से संबंधित रही है ?
(A) वैदिक कालीन चिंतन
(B) राष्ट्रवाद
(C) समन्वित संस्कृति
(D) भौतिक संस्कृति
Answer ⇒ (C)
[ 12 ] स्वतंत्र व्यापार की नीति किस दशा से संबंधित है ?
(A) उदारीकरण
(B) बहुराष्ट्रवाद
(C) पश्चिमीकरण
(D) विवेकीकरण
Answer ⇒ (A)
[ 13 ] भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के द्वारा जाति के आधार पर सभी तरह के भेदभावों को समाप्त कर दिया गया है ?
(A) अनुच्छेद 15
(B) अनुच्छेद 16
(C) अनुच्छेद 18
(D) अनुच्छेद 25
Answer ⇒ (A)
[ 14 ] भारत में भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किस वर्ष किया गया ?
(A) सन् 1965
(B) सन् 1960
(C) सन् 1958
(D) सन् 1955
Answer ⇒ (D)
[ 15 ] निम्नलिखित में से कौन-सा एक तत्त्व राज्य के निर्माण का आवश्यक तत्त्व नहीं है ?
(A) ग्रामीण जनसंख्या
(B) निश्चित भू-भाग
(C) सरकार
(D) प्रभुसत्ता
Answer ⇒ (A)
[ 16 ] साम्प्रदायिकता मानव के लिए खतरा है
(A) सहमत
(B) असहमत
(C) विवादास्पद
(D) इनमें से कोई नही
Answer ⇒ (A)
[ 17 ] क्षेत्रवाद किस रूप में देशभक्ति का एक विघटित स्वरूप है ?
(A) स्थानीय
(B) विदेशी
(C) सराहनीय
(D) सहयोगी
Answer ⇒ (A)
[ 18 ] क्षेत्रवाद किस प्रकार का व्यवहार है ?
(A) सामाजिक
(B) सीखा हुआ
(C) नैतिक
(D) अराजक
Answer ⇒ (B)
[ 19 ] क्षेत्रवाद के प्रभाव में वृद्धि किस विरासत में भिन्नता से अधिक होती है ?
(A) नैतिक
(B) राजनीतिक
(C) सांस्कृतिक
(D) शैक्षणिक
Answer ⇒ (C)
[ 20 ] निम्नलिखित में किसने राज्य और सरकार के बीच विभाजन किया ?
(A) मूरे
(B) मार्क्स
(C) लेनिन
(D) लॉक
Answer ⇒ (D)
[ 21 ] सूचना का अधिकार अधिनियम कब से लागू हुआ ?
(A) 15 जून, 2005 ई० से
(B) 15 जून, 2006 ई० से
(C) 15 अक्टूबर, 2005 ई० से
(D) 15 अक्टूबर, 2006 ई० से
Answer ⇒ (D)
[ 22 ] ‘द मिथ ऑफ द वेलफेयर स्टेट’ नामक पुस्तक के लेखक हैं
(A) एच० डी० लास्की
(B) कार्ल मार्क्स
(C) ए० आर० देसाई
(D) डी० पी० मुखर्जी
Answer ⇒ (A)
[ 23 ] पितृसत्ता में परंपरा और व्यवहार के नियमों द्वारा
(A) स्त्रियों की शक्ति अधिक होती है
(B) पुरुषों की शक्ति अधिक होती है
(C) स्त्री और पुरुष की शक्ति समान होती
(D) इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
[ 24 ] किसने कहा है ? “पितृसत्ता पुरुषों की सत्ता का संस्थाकरण है।
(A) जी० लर्नर
(B) वेस्टर मार्क
(C) पणिकर
(D) लुण्डबर्ग
Answer ⇒ (A)
[ 25 ] राज्य के निर्माण में इनमें से कौन सा सर्वप्रथम तत्व है ?
(A) जनसंख्या
(B) निश्चित भू-भाग
(C) सरकार
(D) उपर्युक्त सभी
Answer ⇒ (D)
[ 26 ] निम्न में से कौन जातिवाद के निवारण का उपाय है ?
(A) जातीय संगठनों पर प्रतिबंध
(B) अंतर्जातीय विवाह
(C) सामाजिक शिक्षा
(D) उपर्युक्त सभी
Answer ⇒ (D)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. पितृसत्ता का क्या अर्थ है ?
Ans ⇒ पितृसत्ता उस सत्ता को कहा जाता है जिसमें पिता की प्रधानता होती है। इसमें स्त्रियों की तुलना में पुरुषों की शक्ति और सत्ता को अधिक महत्व दिया जाता है। विवाह और परिवार से सम्बन्धित नियम पुरुषों के पक्ष में होते हैं। वंश की परम्परा पिता के नाम पर चलती है। विवाह के बाद लड़की अपने पति के घर जाकर रहती है। उसका उपनाम पति के उपनाम के अनूसार बदल जाता है। सम्पत्ति का हस्तांतरण भी पिता से पुत्र को होता है।
2. क्षेत्रवाद का क्या अर्थ है ?
Ans ⇒ क्षेत्रवाद का अभिप्राय एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की उस भावना से है जिसके अन्तर्गत वे अपनी एक विशेष भाषा, सामान्य संस्कृति, इतिहांस और व्यवहार प्रतिमानों के आधार पर उस क्षेत्र से विशेष अपनत्व महसूस करते हैं तथा क्षेत्रीय आधार पर स्वयं को एक समूह के रूप में देखते हैं। क्षेत्रवाद में इस भावना का समावेश होता है कि एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र की संस्कृति, भाषा, प्रथाएँ, परम्पराएँ, जातीय विशेषताएँ तथा उपलब्धियाँ ही सर्वश्रेष्ठ हैं। अतः एक क्षेत्र विशेष के प्रति वहाँ के निवासियों की अंधभक्ति तथा पक्षपातपूर्ण मनोवृत्ति ही क्षेत्रवाद है।
3. ग्रामीण और नगरीय समुदाय में पाँच अन्तरों की विवेचना करें।
Ans ⇒ ग्रामीण और नगरीय समुदाय के बीच पाये जाने वाले पाँच अन्तर इस प्रकार है –
1.आबादी कम होने के कारण ग्रामीण समुदाय का आकार छोटा होता है, जबकि नगरीय समुदाय का आकार अधिक आबादी के कारण बड़ा होता है।
2. ग्रामीण समुदाय का वातावरण प्राकृतिक होता है, पर नगरीय समुदाय का वातावरण मानव निर्मित होता है।
3. ग्रामीण समुदाय की आबादी में समानता पायी जाती है लेकिन नगरीय समुदाय की आबादी में विभिन्नता पायी जाती है।
4. ग्रामीण समुदाय में जाति के आधार स्तरीकरण पाया जाता है, जबकि नगरीय समुदाय में वर्ग के आधार पर स्तरीकरण पाया जाता है।
5. ग्रामीण समुदाय में कम गतिशीलता पायी जाती है, जबकि नगरीय समुदाय में अधिक गतिशीलता पायी जाती है।
4. अति पिछड़ा पर नोट लिखें।
Ans ⇒ आर्थिक सामाजिक दृष्टि से पहले जाति को अगड़े-पिछड़ों में बाँटा गया। लेकिन पिछड़ी जातियाँ में भी बहुत विभेद पाया गया तो कुर्मी एवं यादव जैसी जातियाँ भी अन्य पिछड़ों के पंजी में रखा गया और पिछड़ों में भी जो ज्यादा पिछड़े हैं उन्हें अति पिछड़ा कहा गया जैसे-कहार, कानू, तेली आदि। ये हरिजनों से तो आगे हैं, लेकिन अन्य-पिछड़ों से काफी पीछे। इसलिए बिहार सरकार ने पंचायतों में उनके लिए विशेष आरक्षण दिया है।
5. सामाजिक जनांकिकी से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ सामाजिक जनांकिकी एक बहु आयामी अवधारणा है जो वैज्ञानिक दृष्टि से जनांकिकी संरचना, जनांकिकीय प्रक्रियाएँ तथा इसके सामाजिक पक्षों का अध्ययन है। यह इस बात का अध्ययन करती है कि जनसंख्या संबंधी विशेषताएँ किस तरह सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करती हैं तथा उससे प्रभावित होती हैं।
6. भारत में उपनिवेशवाद की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।
Ans ⇒ (क) उपनिवेशवाद वह दशा है जिसमें एक शक्तिशाली साम्राज्यवादी देश अपने से निर्बल देश पर अधिकार करके वहाँ अपनी शासन और कानून व्यवस्था स्थापित कर लेता है।
(ख) उपनिवेशवाद एक दीर्घकालीन शोषण की नीति पर आधारित दशा है जिसमें मानव के अधिकारों का हनन किया जाता है। इसमें समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के आदर्श को गहरा आघात लगता है।
7. ग्रामीण समुदाय की अवधारणा को स्पष्ट करें।
Ans ⇒ ग्रामीण’ शब्द का सम्बन्ध किसी विशेष स्थान अथवा आवासीय क्षेत्र से नहीं होता बल्कि यह सामुदायिक जीवन के एक विशेष स्वरूप को स्पष्ट करता है जबकि समुदाय सामान्य जीवन का वह क्षेत्र है जिसे सामाजिक सम्बद्धता की मात्रा के द्वारा पहचाना जाता है। एक निश्चित भू-भाग में रहने वाले व्यक्तियों में यदि सामाजिक और सांस्कृतिक समरूपता के साथ प्राकृतिक जीवन की प्रधानता हो तो उसे ग्रामीण समुदाय कहा जाएगा।
8. जाति व्यवस्था के दो प्रमुख प्रकार्यों का वर्णन करें।
Ans ⇒ (क) जाति व्यवस्था जाति पंचायत के दण्ड का भय दिखाकर प्रथागत कानून को अधिक प्रभावी बनाता है। समाजीकरण के द्वारा एक व्यक्ति अपनी जाति की सांस्कृतिक मूल्यों को सीखता है तथा उसे अपनाता है।
(ख) जाति व्यवस्था व्यक्ति की व्यवसाय सम्बन्धी अनिश्चितता को दूर करता है। इस व्यवस्था में प्रत्येक जाति अपने परम्परागत व्यवसाय को अपनाता है जिससे देश का आर्थिक विकास होता है।
9. धर्म निरपेक्षीकरण से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ धर्मनिरपेक्षीकरण परिवर्तन की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा परम्परागत धार्मिक विश्वासों और व्यवहारों की जगह आधुनिक ज्ञान को अधिक महत्त्व दिया जाने लगता है। इस प्रक्रिया में धार्मिक संरचना और विश्वास, पवित्रता और अपवित्रता सम्बन्धी विचार आदि को अलौकिक संदर्भ में स्पष्ट न करके तार्किक दृष्टिकोण से स्पष्ट करता है।
10. सामाजिक अपवर्जन या बहिष्कार क्या है ?
Ans ⇒ सामाजिक बहिष्कार वह तौर-तरीके हैं जिनके माध्यम से किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलने-मिलने से रोका जाता है व पृथक रखा जाता है। यह उन सभी कारकों पर ध्यान दिलाता है जो व्यक्ति या समूह का उन अवसरों से वंचित रखते हैं जो अधि कांश जनसंख्या के लिए खुले होते हैं। भरपूर तथा क्रियाशील जीवन जीने के लिए, व्यक्ति को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं (जैसे, रोटी, कपड़ा तथा मकान) के अतिरिक्त अन्य आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं (जैसे, शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात के साधन, बीमा, सामाजिक सुरक्षा, बैंक तथा यहाँ तक कि पुलिस एवं न्यायपालिका) की भी आवश्यकता होती है। सामाजिक भेदभाव आकस्मिक या अनायास रूप से नहीं बल्कि व्यवस्थित तरीके से होता है। यह समाज की संरचनात्मक विशेषताओं का ही परिणाम है। यहाँ इस बात प ध्यान देना आवश्यक है कि सामाजिक बहिष्कार अनैच्छिक होता है, अर्थात् बहिष्कार बहिष्कृत लोगों की इच्छाओं के विरुद्ध कार्यान्वित होता है। उदाहरण के लिए, शहरों और कस्बों में हम हजारों बेघर गरीब लोगों की तरह धनी व्यक्तियों को कभी भी फुटपाथ या पुलों के नीचे सोते हुए नहीं देखते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि धनी व्यक्ति फुटपाथ या पार्कों का प्रयोग करने से ‘बहिष्कृत’ हैं। यदि वे चाहें तो निश्चित रूप से इनका प्रयोग कर सकते हैं, परंतु वे ऐसा करना नहीं चाहते। सामाजिक भेदभाव को कभी-कभी इस गलत तर्क से न्यायसंगत ठहराया जाता है कि बहिष्कृत समूह स्वयं ही सम्मिलित होने का इच्छुक नहीं है। इस प्रकार का तर्क इच्छित या चहेती चीजों के संदर्भ में सरासर गलत है। (यह उस स्थिति से बिल्कुल अलग है जहाँ अमीर लोग स्वेच्छा से फूटपाथ पर नहीं सोते या बोझा ढोने का काम नहीं करते)।
11. अनुसूचित जातियों से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जाति के लोगों की जनसंख्या भारत की जनसंख्या का 16.6 प्रतिशत है। जाति व्यवस्था हमारे समाज की एक पुरानी प्रथा है। जाति व्यवस्था में जिस वर्ग को शूद्र की संज्ञा दी गई थी उन्हें अछूत कहा गया। जाति स्तर पर धार्मिक अशुद्धता के आधार पर अनुसूचित जातियों को सबसे नीचे के स्तर पर रखा गया है।
अनुसूचित जाति एक राजनीतिक न्यायिक शब्द है, जिसका प्रथम उपयोग साइमन कमीशन ने 1935 में किया। स्वाधीन भारत में इस शब्द को संविधान में प्रयोग किया गया ताकि क्षतिपूर्ति विभेद की नीति के अंतर्गत अनुसूचित जातियों के लिए विशेष सुविधाओं का प्रावधान किया जा सके। गाँधीजी ने इस वर्ग को हरिजन या ईश्वर की संतान कहा है। कुछ लोगों ने इस वर्ग को दलित नाम दिया है। इस शब्द का अर्थ है ‘टुकड़ों में टूटा हुआ।’ ज्योतिबा फुले, डॉ. अम्बेडकर और दलित पैंथर्स आन्दोलन ने सत्तर के दशक में इस शब्द को प्रचलित किया।
12. संविधान में अल्पसंख्यकों को क्या सुविधाएँ प्रदान की गई हैं ?
Ans ⇒ संविधान में अल्पसंख्यकों को अनेक सुविधाएँ प्रदान की गई हैं –
(i) संविधान के अनुच्छेद 29(1) में राज्यों को निर्देश दिया जाता है कि जो अपनी संस्कृति का संरक्षण करना चाहते हैं उन पर बहुसंख्यक लोगों की संस्कृति नहीं थोपी जा सकती।
(ii) संविधान के अनुच्छेद 350 (ए) में राज्यों को निर्देश दिया गया है कि भाषायी अल्पसंख्यकों के बच्चों को प्राथमिक शिक्षाओं के लिए उनकी मातृभाषा में निर्देश दिए जाने की व्यवस्था करें।
(iii) अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति कर उनकी शिकायतों की जाँच की जाए। शिक्षा संस्थाओं में धर्म, प्रजाति, जाति या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव न किया जाए।
(vi) अनुच्छेद 300(1) के अनुसार अल्पसंख्यक अपने शिक्षण संस्थान चला सकते हैं। राज्य के शिक्षण संस्थानों को सहायता देने के मामले में अल्पसंख्यक संस्थानों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। शिक्षा का माध्यम अपनी इच्छा से रखा जा सकता है।
13. वर्तमान भारत में महिलाओं की स्थिति की व्याख्या कीजिए।
Ans ⇒ भारत में यद्यपि शिक्षा का प्रचार-प्रसार तेजी से हो रहा है। उन्हें संविधान में समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। सरकारी नौकरियों में वे उच्च पदों पर आसीन हैं परन्तु स्त्रियों को अभी भी अनेक सुविधाओं व अधिकारों से वंचित रखा गया है। स्त्रियों के कार्यक्षेत्र व पुरुषों के कार्यक्षेत्र में पारंपरिक विभेद अपनाया गया है।
स्वतंत्रता के पश्चात् महिलाओं की स्थिति में अंतर तो आया है, लेकिन इसका लाभ शिक्षित नगरीय और उच्च आय समूह वाली महिलाओं ने उठाया है। औसत भारतीय महिलाओं का जीवन प्रायः भेदभाव के विरुद्ध लंबे संघर्ष की कहानी है। गरीब भारतीय महिलाएँ बच्चों के पालन-पोषण में ही अपनी आयु गुजार देती हैं।
स्त्री-पुरुष असमानता के मुख्य कारण निम्न हैं –
1.वैवाहिक और पारिवारिक व्यवहार।
2. स्त्रियों की गतिशीलता व स्वतंत्रता में सांस्कृतिक पारंपरिक अवरोध।
3. पुरुषों और स्त्रियों की आर्थिक भूमिका में अंतर।
भारत में पुरुषों की संख्या स्त्रियों से अधिक है। 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में प्रति हजार पुरुषों के पीछे 933 स्त्रियाँ थीं। यह प्रतिकूल लिंग अनुपात निम्न कारणों से है –
(i) पुत्र को समाज में वरीयता देना
(ii) पुत्रियों के प्रति भेदभाव
(iii) स्त्री-भ्रूण हत्या
(iv) स्त्री- शिशु हत्या
(v) स्त्री-शिक्षा का अनुपात कम होना
(vi) गृह कार्य में उन्हें कोई उपाय प्राप्त न होना।
14. सांप्रदायिकता किस प्रकार राष्ट्र की एकता में बाधक है ?
Ans ⇒ सांप्रदायिकता एक ऐसी विचारधारा है जिसमें एक संप्रदाय के लोग दूसरों की अपेक्षा अपने को श्रेष्ठ मानते हैं और अपने धर्म का सहारा लेकर अन्य धर्मों के मानने वाले लोगों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। सांप्रदायिकता घृणा और हिंसा को जन्म देती है। जब लोग धर्म की मूलभूत भावनाओं को छोड़कर धर्म के बाहरी स्वरूप और अंधविश्वास को असली धर्म समझने की भूल करते हैं। यह प्रवृत्ति एक सोची-समझी शरारत होती है जो राजनीतिक सत्ता को हथियाने और आर्थिक सुविधा को पाने की अनाधिकार चेष्टा सदृश है। भोले-भाले लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काकर सांप्रदायिक मतभेद पैदा करने का प्रयत्न करते हैं। इस देश का भारत और पाकिस्तान के रूप में बँटवारा धार्मिक-सांप्रदायिक आधार पर ही किया गया था। देश के बँटवारे के बाद भी सांप्रदायिकता की समस्या सिर उठाती रही है।
15. भारत में जाति की भूमिका की विवेचना करें।
Ans ⇒ भारत में जातिवाद के भयानक रूप ने व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाले है जो निम्न प्रकार हैं –
1.भारतीय समाज जातिवाद पर आधारित हो गया है। सभी प्रकार के निर्णय लेते समय जातिवाद का ध्यान रखना अनिवार्य होता जा रहा है जिससे समाज में व्यवस्था बनाने वाले अच्छे व कुशल व्यक्ति कम होते जा रहे हैं तथा नीति-निर्माण में भी बाधा आती है।
2. भारतीय समाज संकुचित बन गया है। इसमें शुद्ध जातिगत स्वार्थों को सामाजिक स्वार्थों की अपेक्षा वरीयता दी जा रही है।
3. जातिवाद के कारण आज देश में सर्वत्र हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है। कहीं शिया-सुन्नी, तो कहीं अकाली और निरंकारी संघर्षरत हैं कहीं जाट व अनुसूचित जातियों में तो कहीं ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण में संघर्ष होता है। कश्मीरी पंडितों को अपने घर छोड़कर दूसरे राज्यों जैसे दिल्ली में शरणार्थी बनकर रहना पड़ता है।
4. जातिवाद पर आधारित समाज में जातीय हितों का टकराव होने लगा है, जिसके कारण सारे समीकरण जातियों के आधार पर बनने लगे हैं। प्रत्येक जाति दूसरे जाति के लोगों को संदेह की दृष्टि से देखती है। इससे जातीय वैमनस्य बढ़ रहा है और पारंपरिक सद्भाव कम हो रहा है।
16. क्षेत्रवाद और पृथकतावाद में अंतर स्पष्ट कीजिए।
Ans ⇒ क्षेत्रवाद और पृथकतावाद में निम्नलिखित अन्तर है –
क्षेत्रवाद का अर्थ है किसी निश्चित क्षेत्र में रहने वाले लोग जो अपने विशिष्ट भाषा, रीति-रिवाज, धर्म आदि के कारण स्वयं को देश के अन्य लोगों से भिन्न समझते हों तथा अपने क्षेत्र के विकास की कामना तथा प्रयत्न करना। भारत में अधिकतर क्षेत्र भाषा के आधार पर ही बने हुए हैं। भाषा के आधार पर ही अनेक राज्य बनाए गए हैं। जैसे पंजाब और हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात। इसी प्रकार नदी जल के बँटवारे के बारे में या भारत सरकार द्वारा लगाए जाने वाले किसी बड़े योजना कार्य को अपने क्षेत्र में लगवाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष हो जाता है परन्तु क्षेत्रवाद राष्ट्र की मुख्य धारा से अलग नहीं होना चाहता।
पृथकतावाद राष्ट्रीय एकता और अखंडता, स्वतंत्रता तथा संप्रभुता के लिए चुनौती होता है। वह राष्ट्र की मुख्यधारा से बिल्कुल अलग होकर अपने लिए एक स्वतंत्र सार्वभौम राज्य की माँग करता है।
17. भारत के उदारीकरण के मुख्य उद्देश्य क्या है ?
Ans ⇒भारत में सन 1980 के दशक के आरम्भ से ही महसूस करने लगा कि सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश उद्योग धीरे-धीरे बीमार होते जा रहे हैं। उनमें आशा की अनुरूप उत्पादन नहीं हुआ और न ही उत्पादन की लागत में कमी की जा सकी। धीरे-धीरे ऐसे उद्योगों का घाटा बढ़ने लगा, जिससे सरकार का वित्तीय बोझ बढ़ने लगा। सरकार मिश्रित अर्थव्यवस्था को बनाये रखने के लिए विदेशी ऋण के बोझ से दबने लगी। मिश्रित अर्थव्यवस्था को बनाये रखने के लिए विदेशी वस्तुओं के आयात पर रोक लगाना आवश्यक था। इसके फलस्वरूप विभिन्न वस्तुओं के आयात पर भारी शुल्क लगने लगा। प्रतिस्पर्धा नहीं होने के कारण भारत में बनने वाली वस्तुओं की गुणवत्ता में कोई सुधार न हो सका। इन सभी दशाओं के फलस्वरूप सरकार ने अर्थव्यवस्था को उदार बनाने के लिए संरचना आरम्भ किया। सरकार ने सोचा कि भारतीय बाजारों में विदेशी वस्तुओं को लाने से ही यहाँ की अर्थव्यवस्था में सुधार लाया जा सकता है। जिससे देश के उद्योगों का आधुनिकीकरण हो सकेगा तथा उत्पादकों को नयी औद्योगिक को उपयोग में लाने की प्रेरणा मिलेगी। उदारीकरण को देश में दो चरणों में लागू किया गया। पहला चरण सन् 1981 से आरम्भ हुआ जबकि दूसरा चरण सन् 2001 से शुरू हुआ।
18. कृषक आन्दोलन का अर्थ व लक्षण क्या है ?
Ans ⇒भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषक वर्ग की अनेक समस्याएँ रही है, जिसके समाधान के लिए अनेक आन्दोलन हुए जिसका सामाजिक आन्दोलनों में प्रमुख स्थान है। कृषक मानव समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते रहे हैं, लेकिन क्या यही एक ऐसा वर्ग है जो समाज में सबसे अधिक शोषित पीड़ित और तिरस्कृत है। कृषक आन्दोलन के सम्बन्ध में प्रो. राजेन्द्र सिंह का विचार है कि “हिंसा या हिंसा का भय दिखाकर अन्यथा कृषि मजदूर कार्यों से निरपेक्ष भाव दिखाकर जब खेतिहर मजदूर भू-स्वामियों या सम्बन्धित सरकार को झुकाने का प्रयास करता है तो इससे सम्बन्धित आन्दोलन को कृषक आन्दोलन कहा जाता है।”
इस प्रकार कृषक आन्दोलन मूल रूप से खेतिहर मजदूरों या किसानों से सम्बन्धित वे आन्दोलन है जो उनके शोषण, पतन एवं आर्थिक गुलामी के खिलाफ उत्पन्न होते हैं। किसानों और उनसे सम्बन्धित अन्य समूह भी इसमें सहभागी हो सकते हैं। कई बार कृषि से सम्बन्धित व्यवसासियों, भू-स्वामियों तथा बिचौलियों ने भी अपने लाभ के लिए कृषक आन्दोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई है।
19. श्रमिक आन्दोलन से क्या आशय है ? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।
Ans ⇒ श्रमिक आन्दोलन का अर्थ मजदूरी के लिए आजीविका प्राप्त करने वाले लोगों को उन सभी प्रकार की क्रियाओं से है जिससे वे तात्कालिक रूप से या दूर भविष्य में अपनी स्थितियों में सुधार कर सके। यह एक या अनेक प्रकार का संगठन है जो सामान्य स्थिति और पारस्परिक सहायता पर आधारित है। इस प्रकार यह आन्दोलन एक जटिल और बहुकोणिय आन्दोलन है। श्रमिक आन्दोलन का स्र्वव्यापी एक स्वाभाविक स्वरूप श्रम संघवाद है। इसका एक संगठन, व्यूह रचना, दर्शन और लक्ष्य होता है। श्रमिक आन्दोलन के संबंध में डेल योडार (Dale Yoder) ने लिखा है कि, “श्रमिक आन्दोलन शब्द सामान्यतः श्रमिकों के विभिन्न पका के समस्त दीर्घकालीन संगठनों के रूप में प्रयुक्त किया जाता है जो औद्योगिक या अर्द्ध औद्योगिक अर्थव्यवस्था में विद्यमान रहते हैं।” .
श्रमिक आन्दोलन की विशेषताएँ-श्रमिक आन्दोलन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
(i) श्रमिक आन्दोलन राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिकों के जीवन स्तर को उन्नति करने का प्रयास है। पूँजीपतियों द्वारा किये जा रहे शोषण से मुक्ति और जीवन स्तर को उच्च बनाने का प्रयास श्रमिक आन्दोलन की विशेषता है।
(ii) श्रमिक आन्दोलन, श्रमिकों के हितों के संरक्षण के लिए होता है।
(iii) श्रमिक आन्दोलन एक सार्वभौमिक आन्दोलन है।
(iv) श्रमिक आन्दोलन मुख्यतः औद्योगीकरण की प्रक्रिया का परिणाम है।
(v) श्रमिकों का अपने हितों के लिए सतत रूप से संगठित होकर प्रयास करना है।
(vi) श्रमिक आन्दोलन का विभिन्न राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न प्रकृति का होता है।
(vii) श्रमिक आन्दोलन श्रमिकों को अपना जीवन स्तर उन्नत करने के लिए स्वयं जागरूक बनाता है।
20. महिला आन्दोलन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
Ans ⇒ भारतीय समाज में महिलाओं की निम्न स्थिति एवं शोषण से मुक्ति के लिए किए गए आन्दोलन की सामान्यतः निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
(i) भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति विभिन्न कालों में हमेशा बदलती रही है वैदिक और उत्तरवैदिक काल के बाद से ही महिलाओं की स्थिति में गिरावट आना प्रारम्भ हुई और परिवार व समाज में महिलाओं सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति तत्काल धार्मिक मान्यताओं एवं सामाजिक मूल्यों के द्वारा पूर्व निर्धारित की जाने लगी। स्त्री आजीवन पुरुष के अधीन कर दी गई। इस तरह परम्परागत रूप में महिलाओं की भूमिका परिवार की चाहरदीवारी के अन्तर्गत ही सीमित कर दी गई। पर्दा, बाल-विवाह, विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध, दहेज, तलाक पर प्रतिबंध आदि के माध्यम से भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति धीरे-धीरे अत्यन्त दयनीय होती चली गई।
(ii) भारतीय समाज में 19वीं शताब्दी सुधार आंदोलन के लिए जानी जाती है। ब्रिटिश शासन के कारण 19वीं सदी में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के साथ ही साथ पाश्चात्य शिक्षा और मूल्य के प्रसार के कारण भारतीय समाज में भी कुछ सुधारात्मक प्रयास किये गये। इस सधार कार्यों में भारतीय सामाजिक करीतियों के उन्मलन के साथ ही साथ महिलाओं के उत्थान के लिए भी प्रयास किये गये जिनके फलस्वरूप भारतीय समाज में सती प्रथा और बाल विवाह पर प्रतिबंध के साथ ही साथ विधवा पुनर्विवाह प्रारम्भ हुआ।
(iii) 20वीं शताब्दी में राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी ने पहली बार महिलाओं को . सम्मिलित करके उन्हें राजनीतिक रूप से सशक्त किया।
(iv) भारतीय महिला आन्दोलन की विशेषता यह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महिलाओं की सक्रियता का बढ़ाना है। स्वतंत्रता के बाद महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और वैद्यानिक स्थिति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के कारण समाज में इनकी एक अलग पहचान निर्मित होने लगी।
(v) भारतीय महिला आन्दोलन की प्रमुख विशेषता इसका प्रारम्भिक चरण में होना है। आज भी भारतीय समाज में महिलाओं को पूर्णतः नैतिक समर्थन नहीं मिल पाया है। नैतिक समर्थन के अभाव के कारण ही भारतीय महिला आन्दोलन केवल स्त्री-पुरुष समानता तक ही सीमित है तथा इसमें पुरुष प्रधान समाज में महिला मुक्ति की बात का अभी भी अभाव है।
21. ताना भगत आन्दोलन का उल्लेख करें।
Ans ⇒ जनजातियों द्वारा अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं, धार्मिक विश्वासों और सामाजिक जीवन को रचनात्मक दिशा देने के लिए, जो आन्दोलन किये गये उसमें ताना भगत आन्दोलन सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस आन्दोलन का आरम्भ ‘जात्रा’ नामक व्यक्ति द्वारा सन् 1913 में किया गया। उन्होंने विभिन्न समुदायों में सामाजिक-आर्थिक शोषण को रोकने के लिए आत्मशक्ति पैदा करने पर बल दिया। यह आत्मशक्ति समाज में फैली हुई बुराईयों को दूर करके ही पैदा की जा सकती है। इसके लिए उराँव में फैले जादू-टोने, अन्धविश्वासों, माँसाहार, शराब का सेवन और अनेक देवी-देवताओं के प्रचलन को बन्द करना आवश्यक है। अपने सुधारवादी कार्यों के कारण जात्रा को ताना भगत के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा। ताना भगत ने एक आन्दोलन के रूप में माँस और मदिरा के सेवन को बन्द करने, एक ईश्वर में विश्वास करने, शरीर और मन को स्वच्छ रखने तथा जादू और टोने से सम्बन्धित अन्धविश्वासों को छोड़ने का व्यापक प्रचार किया।
22. गोंडवाना आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
Ans ⇒ गोंड जनजाति जनसंख्या के दृष्टिकोण से भारत की सबसे बड़ी जनजाति है। साधारणतया गोंड अपनी प्रकृति से बहुत शान्तिपूर्ण और सरल होते हैं। इनके द्वारा पहला आन्दोलन सन् 1940 में आरंभ हुआ जिसे ‘गोंडवाना आन्दोलन’ के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन के एक नेता क. भीम ने अपने क्षेत्र के वनों के संरक्षण के लिए गोंडों को संगठित किया। जंगल में खेती करने की छूट, जंगलों में अधिकारियों के हस्तक्षेप पर पाबन्दी तथा जंगल के चारागाहों में पशुओं को निःशुल्क चारा खाने की माँग थी। इसका उद्देश्य किसी न किसी रूप में गोंड राज्य की स्थापना करना भी था।
23. कैसे चिपको आंदोलन पर्यावरणीय आंदोलन है ?
Ans ⇒ चिपको आन्दोलन का सम्बन्ध वन संरक्षण से सम्बन्धित है। इसका प्रथम आन्दोलन राजस्थान के खेजरली गाँवों से आरम्भ हुआ जब जोधपुर के महाराजा अभय सिंह ने पेड़ काटने का प्रयास किया। इस आन्दोलन का द्वितीय जन्म स्थल चमोली जंगलों से अच्छादित क्षेत्र है। जहाँ भोटिया जनजाति और बहुत से ग्रामीणों का जीवन इन्हीं जंगलों पर आश्रित है। वह जंगल से पेड़ काटती भी है तो वहाँ नया पौधा लगाने का कार्य भी करते हैं। इस क्षेत्र में चंड़ी प्रसाद के नेतृत्व में जंगल बचाओं की आवाज बुलन्द हुई। इन्होंने पर्यावरण आन्दोलन के अन्तर्गत वन अधिकारियों और मजदूरों से लड़ाई झगड़ा करने की अपेक्षा यह तय किया कि पेड़ को काटने से बचाने के लिए पेड़ से चिपक जाया जाए, जिससे अधिकारी पेड़ काट नहीं पाये। इस प्रकार चिपको आन्दोलन पर्यावरणीय आन्दोलन से सम्बन्धित है।
24. भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को संक्षेप में समझाइए।
Ans ⇒ भारतीय समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास का मत है कि भारत में आधुनिकता की उपस्थिति ब्रिटिश काल से समझी जा सकती है। अंग्रेज इस देश में एक व्यापारी की तरह आए लेकिन जब उन्होंने यहाँ राज सत्ता पर अधिकार कर लिया तो प्रभावी प्रशासन चलाने के लिए उन्होंने आधुनिकता को जन्म दिया। मुद्रण के लिए वे प्रिंटिंग प्रेस लाये, रेलगाड़ियाँ, संचार साधन और आधुनिक शिक्षा प्रणाली का विकास किया। आधुनिकता में तीव्रता लाने में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम भी महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। लोगों में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न हुई। स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व की भावना ने लोगों में एकता और राष्ट्रीयता को जन्म दिया। अस्पृश्यता के विरुद्ध आवाज उठाई गई। उपनिवेशवादी ताकतों ने नगरीकरण और प्रौद्योगिकी को जन्म दिया।
25. संस्कृतिकरण से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ संस्कृतिकरण एक प्रक्रिया है जिसमें एक निम्न हिन्दू जाति का कोई आदिवासी या अन्य समूह अपनी परंपरा, रीति-रिवाज, सिद्धांत और जीवन शैली को एक उच्च और द्विज जाति के नियमों में परिवर्तित कर देता है। इससे जाति अनुक्रम के अंदर बदलाव आता है परंतु जाति व्यवस्था अपने आप में नहीं बदलती।
26. नगरीकरण एवं नगरीयता में अंतर स्पष्ट करें।
Ans ⇒ नगरीकरण (Urbanisation) – नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें लोग.गाँवों में रहने के बजाए कस्बों और शहरों में रहना शुरू कर देते हैं। वे ऐसे तरीकों का प्रयोग करते हैं कि कृषि आधारित निवास क्षेत्र गैर-कृषि शहरी निवास क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है। शहरी केन्द्रों का विकास बढ़ी हुई औद्योगिक और व्यावसायिक गतिविधियों का परिणाम है। कस्बों और नगरों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रहा है और ये गैर-कृषि परिवारों की संख्या में वृद्धि के कारण हैं।
नगरीयता (Urbanism)-लुई वर्थ के अनुसार नगरीय, परिवेश एक विशिष्ट प्रकार के सामाजिक जीवन का निर्माण करता है जिसे नगरीयता कहते हैं। नगरों में सामाजिक जीवन अधिक औपचारिक और अवैयक्तिक होता है और आपसी संबंध जटिल श्रम-विभाजन पर आधारित होते हैं और इनकी अनुबंधात्मक होती है।
27. भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति क्यों बढ़ रही है ?
Ans ⇒ भारत में नगरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे नगरों की ओर प्रवसन की भूमिका महत्वपूर्ण है। बडी संख्या में लोग गाँव को छोडकर सिर्फ बड़े नगरों में ही नहीं छोटे और मध्यम नगरों में आ रहे हैं। यह प्रवसन उत्पादन व नौकरी से संबंधित है। अकुशल मजदूरों में मौसमी प्रवसन की प्रवृत्ति भी आम हो गई है। मजदूर मौसमी प्रवसन करते हैं और बाद में अपनी पसंद के क्षेत्रों में स्थायी रूप से बस जाते हैं।
28. पश्चिमीकरण ने भारत में राजनीतिक विचारों को किस प्रकार प्रभावित किया?
अथवा, भारत में पश्चिमीकरण के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
Ans ⇒ राष्ट्रीयता (Nationalism) तथा लोकतंत्र (Democracy) इन दो विचारों का उदय पश्चिम में हुआ और शीघ्र ही इन विचारों ने सारे संसार को प्रभावित किया। भारत में ये विचार पश्चिमीकरण के माध्यम से आये। राष्ट्रीयता की भावना का उदय उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ। परंपरागत भारतीय समाज में फैली हुई कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयास तेज हुए। 1828 ई० में बंगाल में राजा राममोहन राय द्वारा ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना की गई। 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने ‘आर्य समाज’ की स्थापना की।
भारत में सुधारवादी आंदोलनों का उद्देश्य, भारतीय समाज में फैली हुई कुरीतियों; जैसे-जाति प्रथा, सती प्रथा, महिलाओं की निम्न स्थिति, कन्या हत्या, अशिक्षा, बाल विवाह, दहेज प्रथा आदि को दूर करना था। यूरोप के इतिहास और अंग्रेजी साहित्य के अध्ययन ने शिक्षित व्यक्तियों में भारतीयता, राष्ट्रीयता और राजनैतिक चेतना उत्पन्न की। धीरे-धीरे स्वतंत्रता की माँग जोर पकड़ने लगी। भारत में राष्ट्रीयता, लोकतंत्रीय राज व्यवस्था और धर्म निरपेक्षता के आदर्श भारत में ऐतिहासिक संदर्भ में आये और इनसे सांस्कृतिक चेतना और आधुनिकता की भावना का उदय हुआ।
29. धर्मनिरपेक्षीकरण से क्या अभिप्राय है ? इसने भारतीय समाज को किस प्रकार प्रभावित किया ?
अथवा, धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
Ans ⇒ धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularisation) – यह सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक मामलों में धर्म का प्रभाव कम होता चला जाता है और उसका स्थान व्यावहारिक दृष्टि ले लेती है। जब धर्म निरपेक्षीकरण का विकास होता है तो प्राकृतिक और सामाजिक जीवन को समझने के लिए धर्म के स्थान पर विज्ञान का प्रयोग होने लगता है।
धर्मनिरपेक्षीकरण की भावना का विकास भारत के पश्चिमी संस्कृति के संपर्क में आने से विकसित हुई। यातायात और संचार के साधनों के विकास से इसमें तीव्रता आई। औद्योगीकरण ‘और नगरीकरण ने इसे गतिशील बनाया। जैसे-जैसे औद्योगीकरण की गति तीव्र हुई, ग्रामीण क्षेत्रों के लोग निकलकर नगरों की ओर आये। शिक्षा के प्रसार-प्रचार ने धर्म निरपेक्षीकरण की भावना को आगे बढ़ाया।
धर्मनिपेक्षीकरण ने भारतीयों को बहुत अधिक प्रभावित किया है। धर्म निरपेक्षीकरण नगरीय तथा शिक्षित समूहों में अधिक क्रियाशील है। भारत में सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से होने वाले परिवर्तनों से धर्म निरपेक्षीकरण अधिक तीव्र हुआ है। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन आदि ने जनशक्ति को संगठित किया और उसमें व्याप्त छुआछूत की भावना को कम करने का कार्य किया।
30. मानवतावाद की अवधारणा से क्या अभिप्राय है ?
Ans ⇒ पश्चिमीकरण के द्वारा जो नये विचार और सिद्धांत सामने आये उनमें सबसे महत्वपूर्ण : विचार था मानवतावाद। यह सभी मनुष्यों के कल्याण के साथ संबंधित था। इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, आयु तथा लिंग का क्यों न हो। स्वतंत्रता, समानता और धर्म निरपेक्षता की अवधारणाएँ मानवतावाद की मूल अवधारणा में सम्मिलित है।
वास्तव में पश्चिमीकरण में मानवतावाद निहित हैं जिसने उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में भारत में एक नई चेतना को जन्म दिया और कई सुधारों को संभव बनाया। भारत में उस समय फैली हुई सती प्रथा, कन्या-शिशु हत्या तथा दास प्रथा पर रोक लगाने के लिए आवाज उठाई गई। राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, दयानंद सरस्वती आदि समाज सुधारकों ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की। राजा राममोहन राय के प्रयासों से सती प्रथा का अंत करने के लिए कानून बनाए गये।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1.भारत में हरित क्रांति के सामाजिक-आर्थिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
Ans ⇒ हरित क्रांति शब्द सन् 1968 में होने वाले उस आश्चर्यजनक परिवर्तन के लिए प्रयोग में लाया जाता है जो भारत के खाद्यान्न के उत्पादन में हुआ था तथा अब भी जारी है। हरित क्रांति से अभिप्राय है-कृषि उत्पादन में काफी अधिक वृद्धि होना और दीर्घकाल में कृषि उत्पादन के ऊँचे स्तर को स्थिर रखना। भारतीय अर्थव्यवस्था पर हरित क्रांति ने कई प्रकार से प्रभाव डाले हैं।
हरित क्रांति के प्रभाव :
1.उत्पादन में वृद्धि –हरित क्रांति के फलस्वरूप 1967-68 और उसके बाद के वर्षों में कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई है।
2. किसानों की समृद्धि –हरित क्रांति के फलस्वरूप किसानों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ। उनका जीवन स्तर भी ऊँचा हो गया है। कृषि का व्यवसाय एक लाभकारी व्यवसाय माना जाने लगा है।
3. खाद्यान्न के आयात में कमी –हरित क्रांति के फलस्वरूप खाद्यान्न के आयात में कमी आई। भारत अनाज का एक निर्यातक देश बन गया।
4. उद्योगों का विकास –हरित क्रांति के कारण उद्योगों का भी विकास हुआ। कृषि यंत्र व उपकरण बनाने, रासायनिक उर्वरकों के उत्पादन और उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई।
5. आर्थिक विकास –कृषि विकास से सरकार की आय में वृद्धि हुई। इससे देश में आर्थिक स्थिरता और आत्मनिर्भरता के उद्देश्य को पूरा करने में सफलता मिली।
हरित क्रांति के सामाजिक प्रभाव – हरित क्रांति का प्रभाव सभी राज्यों में एक समान नहीं पड़ा। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और तमिलनाडु पर इसका अधिक प्रभाव पड़ा। इन राज्यों में कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई परंतु अन्य राज्यों में जहाँ सिंचाई व्यवस्था की कमी थी उसका हरित क्रांति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
धनी किसानों को लाभ – हरित क्रांति का लाभ केवल धनी किसानों को पहुँचा। बड़े किसान जिनके पास अधिक भूमि तथा धन था वे ही इसका लाभ उठा सके। हरित क्रांति का लाभ उन किसानों को पहुँचा जिनके पास 10 से 15 हेक्टेयर तक भूमि है। छोटे किसान हरित क्रांति को लाने वाले तत्वों जैसे उन्नत बीज, रासायनिक खाद, ट्यूबवैल, ट्रैक्टर आदि का खर्च नहीं उठा सकते थे। हरित क्रांति से धनी किसान समृद्ध हो गए।
हरित क्रांति के फलस्वरूप गाँवों में असमानता बढ़ गई। धनी किसान और अधिक ध नी हो गए जबकि निर्धन किसानों की आर्थिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। गाँवों में सामाजिक, आर्थिक तनाव बढ़ गया।
2. उदारीकरण की प्रक्रिया को समझाइये। इसके परिणामों का उल्लेख कीजिए। अथवा, भारत में उदारीकरण के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
Ans ⇒ उदारीकरण भूमंडलीकरण का आर्थिक तत्व है। यह एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत एक अत्यंत नियंत्रित अर्थव्यवस्था खुली दिखने वाली व्यवस्था के रूप में परिवर्तित हो जाती है। नियंत्रण और संचालन को कम करके आंतरिक अर्थव्यवस्था को उदार बनाया जाता है। राज्य का महत्व घटाकर निजी उद्यमियों और कंपनियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया जाता है। सार्वजनिक इकाइयों को समाप्त करके व्यवसाय व उद्योग का निजीकरण होता है। उदारीकरण का विचार इस सोच पर निर्भर है कि यदि राज्य का हस्तक्षेप कम हो तो अर्थव्यवस्था एवं समाज बेहतर होगा। इसे ‘कम राज्य-अच्छा राज्य’ जैसे नारों से लोकप्रिय बनाया गया है।
भूमंडलीकरण की प्रक्रिया विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ जोड़ रही है। इस प्रक्रिया को उदारीकरण और निजीकरण के द्वारा आसान बनाया जा रहा है। विभिन्न देशों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं पर कम-से-कम सरकारी नियंत्रण रखकर उसे उदार बनाना होगा। उदारीकरण की नीति अर्थव्यवस्था की कार्य कुशलता पर जोर डालती है।
भारत में सन् 1991 में नई आर्थिक नीति की घोषणा की गई। नियंत्रित अर्थव्यवस्था के स्थान पर अधिकांश उद्यम निजी क्षेत्रों को सौंपे जा रहे हैं। भारत में उदारीकरण की प्रक्रिया तेज की गई। नीतिगत सुधारों में अर्थव्यवस्था को उदार बना दिया। 1991-1994 की अवधि में व्यापार और उद्योग से नियंत्रण और संचालन को विघटित करने पर ध्यान दिया गया। कर व सीमाशुल्क को घटाया गया है। घरेलू व विदेशी दोनों विदेशों के लिए उपयुक्त वातावरण
का निर्माण किया गया है।
सुधार के दूसरे चरण में उदारीकरण व निजीकरण की प्रक्रिया और भी तेज हुई। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है और सार्वजनिक क्षेत्र के आकार को छोटा किया जा रहा है।
भारत एक बड़ा बाजार है और इसमें सभी प्रकार के अवरोधों को समाप्त किया जा रहा है। अब बाजार विदेशी समान के लिए खुला हुआ है। सार्वजनिक क्षेत्र में उद्यमों में न केवल विनिवेश प्रारंभ हो गया है बल्कि कई निगमों को निजी क्षेत्र को बेच दिया गया है। भारत में उदारीकरण के दस वर्षों में विकास दर संतोषजनक रही है। मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर दिया गया है। अब उद्योगों को सुरक्षा प्राप्त नहीं है। सूचना तकनीक के क्षेत्र में भारत आगे बढ़ा है। आने वाले वर्षों में सूचना तकनीक से संबंधित सेवाओं से अर्थव्यवस्था को और बढ़ावा मिल सकता है।
उदारीकरण की नीति अपनाई जा रही है, परंतु समस्याएँ बढ़ी हैं। भारत के 26 प्रतिशत लोग आज भी गरीबी रेखा के नीचे हैं। रोजगार की स्थिति गंभीर बनी हुई है। नौकरियाँ घट रही हैं। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना द्वारा लाखों लोग अलग हटा दिए गए हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था पर्याप्त रोजगार देने की स्थिति में नहीं है। पूर्ण रोजगार, संपूर्ण साक्षरता, प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सभी नागरिकों के जीवन स्तर की गुणवत्ता में सुधार जैसे चुनौती भरे कार्यों को पूरा करना बाकी है।
3. उदारीकरण की आर्थिक नीति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
Ans ⇒ उदारीकरण की आर्थिक नीति (Economic Policy of Liberalization)-भूमंडलीकरण में सामाजिक और आर्थिक संबंधों का विश्वभर में विस्तार सम्मिलित है। यह विस्तार कुछ आर्थिक नीतियों द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है। मुख्यालय इस प्रक्रिया को भारत में उदारीकरण कहा जाता है। ‘उदारीकरण’ शब्द से आशय ऐसे अनेक नीतिगत निर्णयों से है जो भारत राज्य द्वा 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व-बाजार के लिए खोल देने के उद्देश्य से लिए गए ये। इसके साथ ही, अर्थव्यवस्था पर अधिक नियंत्रण रखने के लिए सरकार द्वारा इससे पूर्व अपनाई जा रही नीति पर विराम लग गया। सरकार ने स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् अनेक ऐसे कानून बनाए थे जिनसे यह सुनिश्चित किया गया था कि भारतीय बाजार और भारतीय स्वदेशी व्यवसाय व्यापक विश्व की प्रतियोगिता से सुरक्षित रहें। इस नीति के पीछे यह अवधारणा थी कि उपनिवेशवाद से मुक्त हुआ देश स्वतंत्र बाजार की स्थिति में नुकसान में ही रहेगा। सरकार का यह भी विश्वास था कि अकेला बाजार ही संपूर्ण जन-कल्याण विशेष रूप से सुविधा-वंचित वर्गों के कल्याण का ध्यान, नहीं कर सकेगा। यह अनुभव किया गया कि जनसाधारण के कल्याण के लिए सरकार को भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का अर्थ था भारतीय व्यापार को नियमित करने वाले नियमों और वित्तीय नियमों को समाप्त कर देना। इन उपायों को ‘आर्थिक सुधार’ भी कहा जाता है। ये सुधार क्या हैं ? जुलाई 1991 से, भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपने सभी प्रमुख क्षेत्रों (कृषि, ‘उद्योग, व्यापार, विदेशी निवेश और प्रौद्योगिकी, सार्वजनिक क्षेत्र, वित्तीय संस्थाएँ आदि) में सुधारों की एक लंबी शृंखला देखी है। इसके पीछे मूल अवधारणा यह थी कि भूमंडलीकरण बाजार में पूर्व से ही अधिक समावेश करना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।
उदारीकरण की प्रक्रिया के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आई. एम. एफ.) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से ऋण लेना भी आवश्यक हो गया। ये ऋण कुछ निश्चित शर्तों पर दिए जाते हैं। सरकार को कुछ विशेष प्रकार के आर्थिक उपाय करने के लिए वचनबद्ध होना पड़ता है; और इन आर्थिक उपायों के अंतर्गत संरचनात्मक समायोजन की नीति अपनानी होती है। इन समायोजनों का अर्थ सामान्यतः सामाजिक क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा में राज्य के व्यय में कटौती है। अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू. टी. ओ०) के संदर्भ में भी. यह बात कही जा सकती है।
4. भूमंडलीकरण से क्या अभिप्राय है ? भूमंडलीकरण की क्षमता का उल्लेख कीजिए। अथवा, एक भूमंडलीकरण अर्थव्यवस्था के विशिष्ट लक्षण क्या हैं ?
Ans ⇒ भूमंडलीकरण शब्द का प्रयोग आर्थिक अर्थ में किया जाता है। इस दृष्टि से भूमंडलीकरण बाजार की स्थिति में विश्व की अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण की प्रक्रिया है। मुक्त बाजार में व्यापार और पूँजी का मुक्त प्रवाह है तथा लोगों का राष्ट्रीय सीमाओं के पार जाना शामिल है।
भूमंडलीकरण की पहचान नई विश्व व्यापार व्यवस्था तथा व्यावसायिक बाजारों के खुलने से है। विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी ने भूमंडलीकरण के प्रसार में काफी सहायता की है। इस प्रक्रिया को सूचना के तत्काल प्रसार के लिए विकसित तकनीक ने सरल बना दिया है।
1970 तक भूमंडलीकरण के विचार में रुकावटें आईं। भूमंडलीकरण की प्रवृत्ति को पिछले दस वर्षों में नया प्रोत्साहन मिला है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है। 1998 में इन कंपनियों की बिक्री विश्व व्यापार की एक-तिहाई थी। ये नियम पूरे संसार को एक बाजार समझते हैं। विदेशी व्यापार की मात्रा को बढाने के उद्देश्य से कर एवं सीमा शुल्क को घटाने तथा अन्य बाधाओं को दूर करने के परिणामस्वरूप देश की सीमाओं से बाहर व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। यातायात और संचार पर होने वाले खर्च अपेक्षाकृत कम हो गए हैं। भूमंडलीकरण ने बहु-राष्ट्रीय निगमों के लिए नए रास्ते खोल दिए हैं।
भूमंडलीकरण की क्षमता अथवा लक्षण – भूमंडलीकरण की प्रक्रिया बाजार के मुख्य सिद्धांत पर आधारित है। ऐसा माना जाता है कि यह मुक्त बाजारीकरण प्रतियोगिता करता है
और कार्यदक्षता को बढ़ाता है जिसका नियंत्रित बाजारों में अभाव होता है। बढ़ी हुई कार्यदक्षता सामानों तथा सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार लाती है। यह पिछड़ी अर्थव्यवस्थाओं के विकास में सहायक है। भूमंडलीकरण की स्थिति में आंतरिक अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश प्रचुर मात्रा में होती है, जो इसे मजबूत और तेज बनाता है। ये निवेश उन देशों को सहायता पहुँचाते हैं जो आंतरिक संसाधनों की कमी का सामना कर रहे हैं। इस प्रकार विदेशी पूँजी तथा वस्तुओं के अनियंत्रित प्रवाह की मुक्त द्वार नीति अपनाई जाती है जिससे अपेक्षा की जाती है कि यह तीसरी दुनिया की मंद अर्थव्यवस्था को तेज गति प्रदान करेगी।
अधिकतर विकासशील देशों में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या है अतः भूमंडलीय को इस समस्या के समाधान का उपाय माना जा रहा है। भूमंडलीकरण रोजगार के अवसरों में वृद्धि की गारंटी देता है तथा अधिक रोजगार और आर्थिक विकास के द्वारा जीवन की गुणवत्ता में सुधार लायेगा। अर्थव्यवस्था के एकीकरण से जो आर्थिक विकास होगा, वह स्वयं ही सामाजिक न्याय के सवाल को सुलझा देगा। ऐसा कहा जाता है कि अर्थव्यवस्था का उदारीकरण वंचित समूहों के लिए एक नई आशा की किरण लेकर आएगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भूमंडलीकरण व्यावसायिक सहयोग और भाईचारे में वृद्धि करेगा। वह राष्ट्रों के बीच आदान-प्रदान तथा स्थापना के माध्यम से विश्व शांति और मैत्री का युग लायेगा।
5. भूमंडलीकरण के परिणाम बताइये।
अथवा, संस्कृति पर भूमंडलीकरण का प्रभाव बताइए।
Ans ⇒ संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के अनुसार भूमंडलीकरण का युग संसार के लाखों लोगों के लिए निर्धनता दूर करने में सहायता करेगा।
विकासशील देशों में अभी तक जो अनुभव किया गया है वह इस तथ्य की पुष्टि नहीं । करता। यह उन देशों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है जो अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं हैं। व्यापार में वृद्धि, नई प्रौद्योगिकी, विदेशी निवेश और इंटरनेट के विस्तार ने विश्व में आर्थिक विकास की गति को बढ़ाया है परंतु विभिन्न देशों को आर्थिक विकास का लाभ समान रूप से नहीं मिला है क्योंकि बाजार व्यवस्था मनाफे की खोज में लगी रहती है। मुक्त प्रतियोगिता बाजार कार्यकुशलता की गारंटी तो दे सकता है परंतु अनिवार्य रूप में समानता को सुनिश्चित नहीं कर सकता। यह संसार के विकासशील देशों में असमानता में वृद्धि कर रहा है। एशिया और अफ्रीका के देशों में फैलते बाजार के विकास के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या का पलायन हो रहा है। धन की प्रवृत्ति बढ़ रही है। नगरीय जीवन की मूल्यहीनता में वृद्धि हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं ने विश्व पूँजीवाद की विचारधारा को प्रबल बनाया है। ये संगठन विश्व बाजार के लिए राजनीतिक और कानूनी स्थितियों का निर्माण करते हैं। इन स्थितियों
के निर्माण के लिए कई कदम उठाए गए हैं। ये कदम हैं –
1. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं सेवाओं की बाधाओं का निराकरण।
2. पूँजी का स्थानान्तरण।
3. संपत्ति के अधिकारों की विश्व के पैमाने पर सुरक्षा।
4. राज्य की कंपनियों का निजीकरण।
5. व्यावसायिक कार्यों का अनियमन।
6. कल्याण सेवाओं को क्रमशः समाप्त करना।
इन सभी कदमों ने जनता को आवश्यक सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने की राष्ट्रों की क्षमता को घटा दिया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक द्वारा विकासशील देशों को अपने खर्च घटाने के लिए विवश किया जा रहा है। इससे जनसंख्या के वंचित समूहों के लिए उपलब्ध शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण को घटा दिया है। इन सुविधाओं को केवल सुविधा प्राप्त व्यक्तियों तक सीमित रखा गया है।
आज विकासशील देशों के लिए लाभ और अवसरों की अपेक्षा खतरे अधिक हैं। रोजगार पर इसका सबसे अधिक असर पड़ा है। एशिया के देशों में 1997-98 के मंदी के दौर में बेरोजगारी दुगनी हो गई। अधिकांश देशों में श्रमिकों की सौदेबाजी की क्षमता कम हो गई है। वास्तविक मजदूरी में कमी आई है। प्रायः सभी देशों में गरीबी बढ़ रही है। विकास का लाभ समान रूप से नहीं मिल रहा है। निर्धन और अधिक निर्धन होते जा रहे हैं। भूमंडलीकरण आर्थिक संबंधों को जटिल बनाता है। आर्थिक सत्ता बहुराष्ट्रीय निगमों के हाथ में केन्द्रित करता है। भूमंडलीकरण सामान्य नागरिकों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों को सीमित करता है। यह सामाजिक नीति पर प्रभाव डालता है और राज्य की भूमिका को कम करता है। विकासशील देशों की जनता कृषि सेवाओं और पेटेंट अधिकारों जैसे सवालों पर चल रहे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों से चिंतित है क्योंकि इनसे विकासशील देशों को न्याय नहीं मिलेगा।
6. भूमंडलीकरण ने संचार व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित किया है ?
Ans ⇒ विश्व में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र और दूरसंचार के आधारभूत ढाँचे में हुई महत्वपूर्ण उन्नति के परिणामस्वरूप भूमंडलीय संचार व्यवस्था में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। अब कछ घरों और बहत-से कार्यालयों में बाहरी दुनिया के साथ संबंध बनाए रखने के अनेक साधन उपलब्ध हैं; जैसे-टेलीफोन (लैंडलाइन और मोबाईल दोनों किस्मों के), फैक्स मशीनें, डिजिटल और केवल टेलीविजन, इलेक्ट्रॉनिक मेल और इंटरनेट आदि।
आप में से कुछ को ऐसी बहुत-सी जगहों के बारे में पता होगा और कुछ को नहीं भी होगा। हमारे देश में इसे अक्सर ‘डिजिटल विभाजन’ का सूचक माना गया है। इस डिजिटल विभाजन के बाद भी प्रौद्योगिकी के ये विविध रूप समय और दूरी को तो संकुचित या कम करते ही हैं। इस ग्रह पर दो सुदूर विपरीत दिशाओं-बंगलूरु और न्यूयार्क में-बैठे दो व्यक्ति न केवल बातचीत कर सकते हैं, बल्कि दस्तावेज़ और चित्र आदि भी एक-दूसरे को उपग्रह प्रौद्योगिकी की सहायता से भेज सकते हैं।
मोबाइल टेलीफोन में भी अत्यधिक वृद्धि हुई है और अधिकांश नगर में रहने वाले मध्यवर्गीय युवाओं के लिए सेलफोन उनके अस्तित्व की हिस्सा बन गए हैं। इस प्रकार सेलफोनों के इस्तेमाल में भारी वृद्धि हुई है और उनके प्रयोग के तरीकों में भी काफी बदलाव दिखाई देता है।
7. वैश्वीकरण क्या है ? इसके सामाजिक प्रभावों की चर्चा करें। अशवा. भमण्डलीकरण से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रभावों का वर्णन करें।
Ans ⇒ वैश्वीकरण का तात्पर्य विश्व की अर्थव्यवस्था में एकीकरण की प्रक्रिया से है। इसका अर्थ है जब विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक प्रतिबन्ध कम या समाप्त होने लगते हैं तथा सभी देश एक-दूसरे की प्रौद्योगिकी और अनुभवों का लाभ उठाकर अपना आर्थिक विकास करने लगते हैं तब इस दशा को वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण कहा जाता है।
वैश्वीकरण के जो अच्छे परिणाम सामने आये हैं, वे निम्नलिखित हैं –
1. यह प्रक्रिया देश के प्राकृतिक साधनों का सही उपयोग करने और कम कीमत पर उपभोक्ताओं को अच्छी वस्तुएँ उपलब्ध कराने में सहायक सिद्ध हुई है।
2. विकासशील और पिछड़े देशों में दूसरे देशों के लोग पूँजी का निवेश करने लगते हैं। अतः ऐसे देशों में भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता बढ़ने लगती है।
3. वैश्वीकरण के कारण रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। आज बड़ी संख्या में लोग दूसरे देशों में जाकर रोजगार के अवसर प्राप्त कर लेते हैं।
4. विकसित देशों ने खेती के ऐसे तरीके और उपकरण विकसित किये हैं जिनके द्वारा कम भूमि पर अधिक उत्पादन किया जा सकता है। ऐसे ज्ञानों का लाभ वैश्वीकरण के कारण अविकसित देशों को भी मिलने लगा है। फलतः कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है।
5. वैश्वीकरण के फलस्वरूप जब वस्तुओं की गुणवत्ता बढ़ती है तो जीवन स्तर में सुधार होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के स्तर में भी सुधार होता है।
6. यह महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरुक बनाने में भी योगदान किया है।
7. विभिन्न देशों के बीच आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने में भी इसकी मुख्य भूमिका है।
8. महिला आंदोलन पर एक समाजशास्त्रीय निबंध लिखें।
Ans ⇒ भारतीय समाज में 19वीं शताब्दी के आरम्भ से ही महिलाओं की निम्न स्थिति के प्रति चिंता प्रारम्भ हो गयी थी। सर्वप्रथम सन् 1828 में राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना कर सती प्रथा के विरोध में आंदोलन किया। फलतः सन् 1829 में सती प्रथा के विरोध में कानून पारित हुआ। ब्रह्म समाज ने बाल विवाह के विरुद्ध और महिला शिक्षा के प्रसार के लिए भी आंदोलन किया। राजाराम मोहन राय द्वारा शुरू किये गये महिला सुधार के कार्यों को ईश्वरचन्द विद्यासागर ने आगे बढ़ाया। इन्होंने विधवा समस्या को उठाते हुए विधवा पुनर्विवाह के लिए प्रयास किया और स्त्री शिक्षा के लिए भी विशेष प्रयास किया।
इसके बाद आर्य समाज की स्थापना कर दयानन्द सरस्वती ने भारतीय समाज की कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन किया। इन्होंने स्त्रियों की उन्नति के लिए एक बौद्धिक चेतना उत्पन्न की, जिसके फलस्वरूप स्त्रियाँ निर्भयतापूर्वक अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने में सक्षम हुई।। इन्होंने वैदिक काल के समान एक समतावादी सामाजिक संरचना स्थापित करने का काम करने । के साथ ही स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में भी व्यापक प्रयास किया। स्वामी विवेकानन्द ने भी स्त्रियों की समानता और समाज में उन्हें सम्मानजनक स्थान दिलाने की वकालत की।
स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हुए महर्षि कार्वे ने महिला विश्वविद्यालय की स्थापना । करके समाज में स्त्री शिक्षा के प्रति जागरूकता पैदा करने में विशेष योगदान दिया।
इस प्रकार भारत में महिला आन्दोलन का सम्बन्ध पुनर्जागरण से उत्पन्न होने वाली-उस चेतना से है जिसने महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार करने की प्रेरणा दी। लेकिन आज भी भारतीय समाज में महिला आन्दोलन अत्यन्त अविकसित अवस्था में है। समय विशेष पर किसी समस्या को लेकर महिलाओं के जागरुक संगठनों के द्वारा कुछ प्रदर्शन करने या ज्ञापन सौंपने जैसे कार्य अवश्य हुए हैं। पर कोई ऐसा महिला संगठन या महिला आंदोलन नहीं हुआ, जिसे महिला सामाजिक आंदोलन का नाम दिया जाय।
9. युवा गृह पर एक निबंध लिखें। अथवा, घुमकरिया से क्या समझते है ?
Ans ⇒ घुमकरिया – जनजातीय समाजों में युवाओं के संगठन को युवागृह कहा जाता है। अभी संगठन को ओराँव जनजाति में घुमकरिया कहा जाता है। यह जनजातीय सामाजिक संगठन का प्रमुख अंग होता है जहाँ गाँव के युवा अपने घर से बाहर गाँव के बीच में या किनारे बने एक बड़े कमरा में रहते हैं। एक- आयु सीमा से कम या ज्यादा होने पर स्वतः उनकी समस्या समाप्त हो जाती है। रात में लड़के-लकड़ियाँ आपस में नाच-गाकर जनजातीय संस्कृति,कला और यौन शिक्षा प्राप्त करते हैं। यह समाजीकरण का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र होता है। उसका विकास शायद जनजातियों युवाओं की अपने माता-पिता के नीति जीवन से ज्ञात हो । कि जनजातियों के पास बड़े घर नहीं बल्कि छोटे आवास होते हैं, उसे अलग करने के लिए बना होगा। कुछ लोगों का विचार है कि इसका निर्माण गाँव की सुरक्षा के लिए भी बना होगा, क्योंकि पहले दूसरे दुश्मन जातियों से गाँव पर हमेशा खतरा बना रहता था और आक्रमण की स्थिति में गाँव के सभी युवा एक जगह किसी भी स्थिति का सामना करने में सक्षम रहते होंगे। लेकिन अब आधुनिकता के प्रमुख में ये संगठन विलुप्त हो रहे हैं।
10. उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं ? उपनिवेशवाद की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
Ans ⇒ वह दशा जिसमें एक शक्तिशाली देश अपने से निर्बल देश पर अधिकार करके वहाँ अपना शासन और कानून व्यवस्था स्थापित कर लेता है तो उसे उपनिवेशवाद कहा जाता है। इसका संबंध साम्राज्यवादी व्यवस्था से रहा है। इंगलैंड, फ्रांस आदि यूरोपीय देश उपनिवेशवाद के पोषक रहे हैं।
उपनिवेशवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1.उपनिवेशवाद में एक साम्राज्यवादी देश अपने से दुर्बल देश पर अधिकार करके वहाँ अपना शासन और कानून व्यवस्था स्थापित कर लेता है।
2. एक देश जब किसी विदेशी ताकत के अधीन हो जाता है तो उसके मूल निवासियों को अपने देश के शासन तंत्र में हिस्सा लेने का कोई अधिकार नहीं रहता है।
3. उपनिवेशवाद शक्तिशाली राष्ट्रों की विस्तारवादी प्रकृति को स्पष्ट करता है।
4. उपनिवेशवाद एक दीर्घकालीन शोषण की नीति पर आधारित दशा है। इसका उद्देश्य । उस देश के संसाधनों का उपयोग इस तरह करना होता है जिससे साम्राज्यवादी देश आर्थिक रूप से शक्तिशाली बन सके।
5. औपनिवेशिक शासन में लोगों पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अपनी संस्कृति, सामाजिक मूल्यों और आर्थिक क्रियाओं में परिवर्तन लाने के लिए इस तरह दबाव डाला जाता है, जिससे वे स्वयं भी अपने आपको साम्राज्यवादी शक्ति के अधीन समझने लगे।
6. विदेशी सरकार द्वारा कूटनीति की सहायता से ऐसी व्यवस्था लागू की जाती है जिससे उस देश के मूल निवासी अपना सामाजिक-आर्थिक विकास करने के योग्य बन सके।
7. उपनिवेशवाद का एक पहलू रंगभेद के आधार पर कानूनों और न्याय व्यवस्था को लागू करना होता है।
8. विश्व में सबसे अधिक उपनिवेश के देश बने जो एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों से संबंधित थे।
11. भारतीय समाज पर जनाधिक्य के कुप्रभावों का वर्णन करें।
Ans ⇒ भारतीय समाज पर जनाधिक्य के निम्नलिखित कुप्रभाव पड़े हैं –
1.आर्थिक विकास अवरुद्ध होना –यों तो मानव संसाधन विकास का महत्त्वपूर्ण स्रोत है, परन्तु जनाधिक्य विकास के मार्ग को अवरुद्ध करता है। इसके कारण अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक भार पड़ता है जिससे आर्थिक विकास को धक्का लगता है।
2. खाद्य समस्या का संकट –जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण देश में खाद्य समस्या का संकट बना रहता है। अतिरिक्त जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध कराना सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती है।
3. मूल्य वृद्धि –जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण बाजार में अतिरिक्त माँग होती है। इसके कारण कीमत में वृद्धि होती है और सामान्य लोगों का जीवन स्तर गिरता है।
4. गरीबी –अर्थव्यवस्था में जनसंख्या में वृद्धि के कारण गरीबी बढ़ती है। उपभोग पर उत्पादन का अधिकांश हिस्सा खर्च हो जाता है। ऐसी अर्थव्यवस्था में पूँजी निर्माण की दर धीमी होती है।
5. बेरोजगारी –भारत में जनसंख्या में वृद्धि के कारण प्रति वर्ष श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हुई, परन्तु रोजगार सृजन दर में वृद्धि नहीं हुई। फलतः देश में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है।
6. पर्यावरण संकट –पर्यावरण पर जनाधिक्य का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। जनाधिक्य के कारण वनों की कटाई, प्रदूषण आदि में वृद्धि हुई जिसका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड गैस की मात्रा लगातार बढ़ रही है जो अत्यधिक ताप के लिए उत्तरदायी है।
12. भारतीय समाज में मौजूद अनेकता में एकता के तत्वों को स्पष्ट करें।
Ans ⇒ भारतीय समाज का निर्माण अनेक नस्लों, धर्मों, सांस्कृतियों एवं विचारों के लोगों से मिलकर हुआ है।
संविधान के अनुसार सभी धर्मों का स्वागत है तथा अपने धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करने की स्वतंत्रता है। सभी को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त है। सभी के वयस्क मताधिकार का अधिकार है। विचारों की अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता एवं प्रतिष्ठा की रक्षा का अधिकार और भाईचारे की भावना के विकास पर जोर दिया गया है। विभिन्न अवसरों पर हिन्दू तथा मुस्लिम आदि एक-दूसरे का सहयोग करते हैं और इस प्रकार भारतीय समाज में अनेकता में एकता के कारण स्थायित्व एवं निरतरता पायी है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक अनेक धर्म, विश्वास संस्कृति, भाषा, वेशभूषा, प्रजाति आदि के होते हुए भी हम सब भारतीय होने का गर्व करते हैं। यही है अनेकता में एकता।
13. भारत में औपनिवेशिक शासन के कारणों की विवेचना करें।
Ans ⇒ एक लम्बी अवधि तक भारत इंगलैंड का उपनिवेश रहा। यहाँ औपनिवेशिक शासन अनेक कारणों का परिणाम था। इसका सबसे मुख्य कारण राजनीतिक अस्थिरता था।
दूसरा कारण यह था कि जागीरदारों तथा राजाओं के अधिकारियों ने आम जनता का शोषण करना आरम्भ कर दिया था।
तीसरा कारण आवागमन तथा संचार की सुविधाओं का अभाव था। यहाँ के निवासी अपने ही क्षेत्र से बँधे रहे। उन्हें दूसरे क्षेत्र में घटने वाली घटनाओं का पता नहीं चल पाता था।
चौथा कारण अलग-अलग क्षेत्रों की सांस्कृतिक भिन्नता थी। इसके कारण विभिन्न क्षेत्रों के बीच संतुलन और सामंजस्य नहीं हो सका।
पाँचवाँ कारण यह था कि यहाँ की आबादी अनेक जातियों तथा सम्प्रदायों में विभाजित थी। इनके बीच सामाजिक दूरी पायी जाती थी।
छठा कारण शिक्षा का अभाव था। इस वजह से सामाजिक कुरीतियाँ चरम सीमा पर पहुँच गयी थी। देश में कोई ऐसी सत्ता नहीं थी जो लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने और उनमें सामाजिक चेतना पैदा करने का काम कर पाती।
भारत में लम्बी अवधि तक औपनिवेशिक शासन के लिए यही कारण उत्तरदायी है।
14. जातिवाद क्या है ? इसे प्रोत्साहन देने वाले चार कारणों की चर्चा करें।
Ans ⇒ जातिवाद हिन्दू जाति व्यवस्था का एक दूषित रूप है। यह एक उग्र भावना है जो एक जाति के सदस्यों को बिना किसी कारण के अपनी जाति के लोगों का पक्ष लेने के लिए प्रेरित करती है। निम्नलिखित कारण जातिवाद को प्रोत्साहन देने के लिए उत्तरदायी हैं –
अन्तर्विवाह का प्रचलन जातिवाद के विकास का सबसे बड़ा कारण है। अन्तर्विवाह के नियम के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ही जाति या उपजाति में विवाह करना पड़ता है। फलतः जाति आत्मकेन्द्रित समूह के रूप में बदल गयी और वह प्रत्येक दशा में अपनी जाति के सदस्यों का पक्ष लेने लगी।
दूसरा कारण जातीय संगठन है। यह संगठन जातिगत पक्ष न लेने वाले व्यक्तियों की निन्दा और बहिष्कार करते हैं तथा अपनी जाति की सर्वाधिक सेवाएँ प्रदान करने वाले को सम्मानित करते हैं। जातीय संगठन की यह कार्य प्रणाली प्रत्यक्ष रूप से जातिवाद को प्रोत्साहित करती है।
तीसरा कारण जाति समूहों का असमान विकास है। आजादी मिलने के बाद कुछ जातियों को शिक्षा, नौकरियों और व्यवसाय के अधिक अवसर मिले, जबकि कुछ जातियाँ इससे वंचित रहीं। इससे विभिन्न जातियों के बीच कटुता बढ़ी तथा जातिवाद के आधार पर सभी जातियाँ संगठित होकर अधिक अधिकारों की माँग करने लगी।
चौथा कारण जजमानी प्रथा का विघटन है। इस प्रथा के अन्तर्गत गाँव या समुदाय में रहने वाली जातियाँ एक-दूसरे को अपनी सेवाएँ देती थीं तथा प्रत्येक जाति अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए दूसरी जाति पर निर्भर रहती थी। इस प्रथा के विघटित होने से प्रत्येक जाति एक स्वतंत्र इकाई बन गई। एक जाति के सदस्य विभिन्न प्रकार के व्यवसाय और सेवा करने लगे। आरम्भ में यह दशा व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया और बाद में यही प्रतिस्पर्धा जातिवाद को प्रोत्साहन देने लगी।