वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1.निम्न में से कौन नास्तिक दर्शन है ?
(A) योग दर्शन
(B) न्याय दर्शन
(C) जैन दर्शन
(D) सांख्य दर्शन
Ans. (C)
2. स्याद्वाद को समझाने के लिये जैन दर्शन में कितने नयों का प्रतिपादन हैं ?
(A) चार
(B) पाँच
(C) सात
(D) नव
Ans. (C)
3. जैन दर्शन निम्नलिखित में से किसे स्वीकार करता है ?
(A) स्याद्वाद
(B) आरंभवाद
(C) अनात्मवाद
(D) विवर्तवाद
Ans. (A)
4. महायान धार्मिक सम्प्रदाय का संबंध किस दर्शन से है ?
(A) जैन दर्शन से
(B) बौद्ध दर्शन से
(C) न्याय दर्शन से
(D) सांख्य दर्शन से
Ans. (B)
5. महावीर को निर्वाण कहाँ प्राप्त हुआ ?
(A) पावापुरी
(B) बोधगया
(C) कुशीनगर
(D) राजगीर
Ans. (A)
6. निम्नलिखित में से किस एक में बुद्ध के उपदेश संग्रहित हैं ?
(A) न्याय सूत्र में
(B) त्रिपिटक में
(C) ज्ञान की पुस्तक में
(D) इनमें कोई नहीं
Ans. (B)
7. किस दर्शन में सम्यक् समाधि का वर्णन है ?
(A) योग दर्शन
(B) बौद्ध दर्शन
(C) जैन दर्शन
(D) न्याय दर्शन
Ans. (B)
8. चतुर्थ आर्य सत्य को कहा जाता है ?
(A) मध्यम मार्ग
(B) अष्टांगिक मार्ग
(C) सम्यक् मार्ग
(D) इनमें कोई नहीं
Ans. (B)
9. बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग के प्रथम दो (सम्यक् दृष्टि एवं सम्यक् संकल्प) को कहा जाता है ?
(A) प्रज्ञा
(B) शील
(C) समाधि
(D) इनमें कोई नहीं
Ans. (A)
10. बौद्ध दर्शन के किस आर्य सत्य को नैतिक कारणतावाद कहा गया है ?
(A) प्रथम आर्य सत्य
(B) द्वितीय आर्य सत्य
(C) तृतीय आर्य सत्य
(D) चतुर्थ आर्य सत्य
Ans. (B)
11. जैन दर्शन में सर्वज्ञानी संत को क्या कहा जाता है ?
(A) अर्हत्
(B) योगी
(C) तीर्थंकर
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
12. ‘धर्म चक्रप्रवर्तन’ का संबंध किस दर्शन से है ?
(A) जैन दर्शन
(B) बौद्ध दर्शन
(C) सांख्य दर्शन
(D) योग दर्शन
Ans. (B)
13. जैन दर्शन के ‘अनेकान्तवाद’ के सिद्धांत का सीधा संबंध है ?
(A) द्रव्य की अनेकता से
(B) ज्ञान की सापेक्षता से
(C) जैन धर्म के ग्रंथ से
(D) जैन धर्म के पूजा स्थलों से
Ans. (A)
14. बौद्ध दर्शन का प्रमुख सिद्धांत क्या है ?
(A) मध्यम मार्ग
(B) अद्वैतवाद
(C) ईश्वरवाद
(D) इनमें से सभी
Ans. (A)
15. बौद्ध दर्शन को नास्तिक दर्शन क्यों कहते हैं ?
(A) क्योंकि यह चेतना को स्वीकार करता है
(B) क्योंकि यह पुनर्जन्म को स्वीकार करता है
(C) क्योंकि यह वेद की प्रामाणिकता को अस्वीकार करता है
(D) इनमें से सभी
Ans. (C)
16. जैन दर्शन के तत्वमीमांसीय विचार को क्या कहते हैं ?
(A) अनेकान्तवाद
(B) स्यादवाद
(C) द्वैतवाद
(D) अद्वैतवाद
Ans. (A)
17. किस दार्शनिक ने तत्वमीमांसीय प्रश्नों पर मौन धारण किये रहने को प्राथमिकता दिया है ?
(A) महावीर
(B) शंकर
(C) कपिल
(D) बुद्ध
Ans. (D)
18. श्वेताम्बर धार्मिक सम्प्रदाय का संबंध किस दर्शन से है ?
(A) जैन दर्शन
(B) बौद्ध दर्शन
(C) सांख्य दर्शन
(D) योग दर्शन
Ans. (A)
19. ज्ञान प्राप्ति के उपरान्त बुद्ध का पहला उपदेश कहाँ हुआ था ?
(A) बोध गया में
(B) सारनाथ में
(C) राजगृह में
(D) कुशीनगर में
Ans. (B)
20. ‘पंचस्कंधवाद’ की वकालत कौन भारतीय दर्शन करता है
(A) बौद्ध दर्शन
(B) जैन दर्शन
(C) न्याय दर्शन
(D) सांख्य दर्शन
Ans. (A)
21. जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का क्या लक्षण है ?
(A) उत्पत्ति
(B) विनाश
(C) स्थिरता
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
22. ‘प्रत्याहार’ की अवस्था का योग-प्रविधि में क्या योगदान है ?
(A) इन्द्रियों को बाह्य विषयों से वापस खींचना
(B) इन्द्रियों को आंतरिक विषयों से वापस खींचना
(C) इन्द्रियों को वापस मन के पूर्ण वश में करना
(D) इनमें से सभी
Ans. (A)
23. शरीर और मन उपाधियों से सीमित परमात्मा क्या है ?
(A) माया
(B) जीवात्मा
(C) ब्रह्म
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
24. जैन दर्शन के अनेकान्तवाद की क्या मान्यता है ?
(A) विश्व की विभिन्न वस्तुएँ एक दूसरे से संबंधित नहीं होती हैं
(B) विश्व की विभिन्न वस्तुओं के अनेक रूप नहीं होते हैं
(C) विश्व का अस्तित्व नहीं है
(D) विश्व की विभिन्न वस्तुओं के अनेक रूप होते हैं
Ans. (D)
25. बौद्ध दर्शन में दुःख के कितने कारण हैं ?
(A) चार
(B) आठ
(C) बारह
(D) चौबीस
Ans. (C)
26. बौद्ध दर्शन में ‘सम्यक्’ शब्द का क्या अर्थ होता है ?
(A) उचित
(B) मध्यम
(C) प्रज्ञा
(D) कर्म
Ans. (A)
27. बुद्ध को निर्वाण कहाँ मिला था ?
(A) कुशीनगर
(B) सारनाथ
(C) बोध गया
(D) कपिलवस्तु
Ans. (A)
28. निम्नलिखित में से किसका संबंध जैन दर्शन से रहा है ?
(A) महावीर
(B) पार्श्वनाथ
(C) ऋषभदेव
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
29. जैन दर्शन के अनुसार अनस्तिकाय द्रव्यं क्या है ?
(A) अजीव
(B) जीव
(C) काल
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
30. जैन दर्शन में ‘नय’ शब्द क्या दर्शाता है ?
(A) किसी वस्तु के सभी पक्षों के पूर्ण ज्ञान को दर्शाता है
(B) किसी वस्तु के कुछ पक्षों के आशिक ज्ञान को दर्शाता है
(C) (A) और (B) दोनों को दर्शाता है
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
31. बौद्ध दर्शन के अनुसार अर्हत् किसे कहते हैं ?
(A) वह जिसने अपनी सभी इच्छाओं पर नियंत्रण पा लिया है
(B) वह जो अपनी इच्छाओं के वश में है
(C) वह जो अपनी इच्छाओं की तृप्ति चाहता है
(D) इनमें से सभी
Ans. (A)
32. बुद्ध के तृतीय आर्यसत्य में क्या कहा गया है ?
(A) दुःख है
(B) दुःख का कारण है
(C) दुःख के कारण का निवारण संभव है
(D) दुःख निवारण का मार्ग है
Ans. (C)
33. जैन दर्शन में स्यादवाद की क्या विशेषता है ?
(A) स्यादवाद त्रिरत्न का विचार है
(B) स्यादवाद सापेक्षवाद है
(C) स्यादवाद का संबंध पंचमहाव्रत से है
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
34. निम्नलिखित में से कौन पुनर्जन्म में विश्वास करता है लेकिन आत्मा को शाश्वत नहीं मानता है ?
(A) जैन दर्शन
(B) सांख्य दर्शन
(C) बौद्ध दर्शन
(D) इनमें से सभी
Ans. (C)
35. बौद्ध दर्शन और जैन दर्शन किस दार्शनिक सम्प्रदाय में आता है ?
(A) आस्तिक
(B) नास्तिक
(C) आस्तिक और नास्तिक दोनों
(D) इनमें से सभी
Ans. (B)
36. प्रतीत्यसमुत्पाद के सिद्धांत का क्या दार्शनिक अर्थ है ?
(A) वस्तुएँ अपनी उत्पत्ति के लिए दुसरे हेतु पर निर्भर है
(B) वस्तुएँ नित्य हैं
(C) वस्तुओं का पूर्ण विनाश होता है
(D) इनमें से सभी
Ans. (A)
37. ‘त्रिपिटक’ संबंधित है-
(A) बौद्ध दर्शन से
(B) सांख्य दर्शन से
(C) जैन दर्शन से
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
38. बुद्ध के अनुसार दुःख का मूल कारण है-
(A) तृष्णा
(B) जाति
(C) नामरूप
(D) अविद्या
Ans. (A)
39. जैन दर्शन के प्रणेता हैं-
(A) बुद्ध
(B) गौतम
(C) कपिल
(D) महावीर
Ans. (D)
40. बौद्ध दर्शन के अनुसार आर्य सत्य है-
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
41. बौद्ध दर्शन के अनुसार प्रथम आर्य सत्य है-
(A) सुख
(B) आनन्द
(C) दुःख का कारण
(D) दुःख
Ans. (D)
42. परम तत्व के अनुसार परम् सत्ता है-
(A) प्रत्यय
(B) जड़
(C) तटस्थ
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
43. जैन दर्शन में ‘विदेह मुक्ति’ को कहा जाता है-
(A) बोधिसत्व
(B) कैवल्य
(C) निर्वाण
(D) परिनिर्वाण
Ans. (C)
44. बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग के प्रथम दो (सम्यक् दृष्टि सम्यक संकल्प) को कहा जाता है-
(A) समाधि
(B) शील
(C) प्रज्ञा
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (D)
45. अष्टांगिक योग का आठवाँ और अंतिम अंग क्या है ?
(A) प्रत्याहार
(B) धारणा
(C) ध्यान
(D) समाधि
Ans. (D)
46. जैन दर्शन में आत्मा को कहा जाता है-
(A) पुरुष
(B) जीव
(C) ईश्वर
(D) अजीव
Ans. (B)
47. त्रिरत्न हैं-
(A) सम्यक् दर्शन
(B) सम्यक् ज्ञान
(C) सम्यक् चरित्र
(D) उपरोक्त सभी.
Ans. (D)
48. जैन दर्शन के चौबीसवें तीर्थंकर कौन हैं ?
(A) ऋषभदेव
(B) पार्श्वनाथ
(C) गौतम
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (D)
49. बौद्ध दर्शन और जैन दर्शन हैं-
(A) अर्वाचीन्
(B) समकालीन
(C) वैदिक काल के
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
50. जैन दर्शन के अनुसार जीवन का चरम लक्ष्य है-
(A) अर्थ
(B) धर्म
(C) काम
(D) मोक्ष
Ans. (D)
51. प्रकृति के गुण हैं-
(A) सत्व, रज, तम
(B) सत्व, रज, अर्थ
(C) सत्व, रज, धर्म
(D) इनमें से सभी
Ans. (A)
52. स्यादवाद को समझाने के लिए जैन दर्शन में कितने न्यायों का प्रतिपादन किया गया ?
(A) चार
(B) तीन
(C) पाँच
(D) सात
Ans. (D)
53. चतुर्थ आर्य सत्य को कहा जाता है-
(A) मध्यम वर्ग
(B) अष्टांगिक मार्ग
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
54. बुद्ध के किस आर्य सत्य में निर्वाण को मार्ग वर्णित है ?
(A) प्रथम
(B) द्वितीय
(C) तृतीय
(D) चतुर्थ
Ans. (B)
55. जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर कौन हैं ?
(A) ऋषभदेव
(B) महावीर
(C) पार्श्वनाथ
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
56. जैन दर्शन में ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत क्या है ?
(A) स्याद्वाद
(B) अनेकान्तवाद
(C) अख्यातिवाद
(D) इनमें से कोई नही
Ans. (A)
57. ‘प्रतीत्य समुत्पाद’ की चर्चा बौद्ध दर्शन के किस आर्य सत्य में हुई है ?
(A) प्रथम आर्य सत्य
(B) द्वितीय आर्य सत्य
(C) तृतीय आर्य सत्य
(D) चतुर्थ आर्य सत्य
Ans. (C)
58. बुद्ध के अनुसार प्रथम आर्य-सत्य निम्नलिखित में से कौन हैं ?
(A) संसार दुखों से परिपूर्ण है
(B) दुखों का कारण भी है
(C) दुखों का अन्त संभव है
(D) दुखों के अन्त का मार्ग है
Ans. (A)
59. बुद्ध के अनुसार द्वितीय आर्य-सत्य निम्नलिखित में से कौन है ?
(A) संसार दुखों से परिपूर्ण है
(B) दुखों का कारण भी है
(C) दुखों का अन्त संभव है
(D) दुखों के अन्त का मार्ग है
Ans. (B)
60. प्रतीत्यसमुत्पाद सिद्धांत का संबंध निम्न में से किनके साथ है ?
(A) महात्मा बुद्ध
(B) महात्मा महावीर
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
61. भौतिकवाद के अनुसार परम सत्ता है—
(A) प्रत्यय
(B) तटस्थ
(C) जड़
(D) ईश्वर
Ans. (D)
62. जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर कौन है ?
(A) महावीर
(B) ऋषभदेव
(C) पार्श्वनाथ
(D) शाक्य मुनि
Ans. (A)
63. विश्वसनीय व्यक्ति को कहते हैं-
(A) आप्त पुरुष
(B) परम पुरुष
(C) सामान्य
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
64. बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग निम्न में से किस आर्य-सत्य से सम्बद्ध है ?
(A) प्रथम आर्य-सत्य
(B) द्वितीय आर्य-सत्य
(C) तृतीय आर्य-सत्य
(D) चतुर्थ आर्य-सत्य
Ans. (B)
65. बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग को किन अंगों में बाँटा जा सकता है ?
(A) प्रज्ञा
(B) शील
(C) समाधि
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
66. बौद्ध-दर्शन के संस्थापक कौन थे ?
(A) नागार्जुन
(B) महात्मा बुद्ध
(C) गौतम ऋषि
(D) राहुल
Ans. (B)
67. बौद्ध-दर्शन का मौलिक एवं प्रामाणिक आधार निम्न में से कौन है
(A) सुत्तपिटक
(B) अभिधम्मपिटक
(C) विनयपिटक
(D) ये सभी
Ans. (D)
68. दुःख के कारणों का निवारण है-
(A) चतुर्थ आर्य सत्य
(B) तृतीय आर्य सत्य
(C) द्वितीय आर्य सत्य
(D) प्रथम आर्य सत्य
Ans. (C)
69. आत्मा और जगत से संबंधित लोकप्रिय प्रश्नों के प्रति महात्मा बुद्ध मौन रहा करते थे? वैसे मुख्य प्रश्नों की संख्या कितनी है ?
(A) चार
(B) दो
(C) आठ
(D) दस
Ans. (D)
70. अनेकान्तवाद की आधारशिला है-
(A) नयवाद
(B) स्वादवाद
(C) मोक्षवाद
(D) पुद्गलवाद
Ans. (B)
71. बौद्ध और जैन दर्शनों को कौन-सा दर्शन कहा जाता है ?
(A) आस्तिक दर्शन
(B) नास्तिक दर्शन
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
72. अनेकान्तवाद और स्यादवाद किस दर्शन के बहतत्ववादी यथार्थ सापेक्षवाद के ही दो रूप हैं ?
(A) जैन दर्शन
(B) बौद्ध दर्शन
(C) वेदांत दर्शन
(D) चार्वाक दर्शन
Ans. (A)
73. जैन दर्शन के प्रवर्तक हैं-
(A) गौतम
(B) कपिल
(C) महावीर
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
74. जैन दर्शन के परामर्श कितने प्रकार के माने गए हैं ?
(A) एक
(B) चार
(C) पाँच
(D) सात
Ans. (D)
75. अनेकान्तवाद किस दर्शन से जुड़ा है ?
(A) बौद्ध दर्शन
(B) जैन दर्शन
(C) सांख्य दर्शन
(D) न्याय दर्शन
Ans. (B)
76. तत्व के निम्नलिखित में से कौन लक्षण है ?
(A) उत्पत्ति
(B) क्षय
(C) नित्यता
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
77. ‘दुःख है’ इसकी चर्चा बुद्ध अपने किस आर्य सत्य में करते हैं ?
(A) प्रथम आर्य सत्य
(B) द्वितीय आर्य सत्य
(C) तृतीय आर्य सत्य
(D) चतुर्थ आर्य सत्य
Ans. (C)
78. जैन मतावलम्बियों के अनुसार वेदांत और बौद्ध दर्शन किसका पोषक है ?
(A) अनेकान्तवाद
(B) एकान्तवाद
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
79. निम्न में पुग्दल के कौन-से भेद हैं ?
(A) अणु
(B) स्कंध
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
80. निम्नलिखित में से किस एक में बुद्ध के उपदेश संग्रहित हैं ?
(A) बुद्ध के उपदेश में
(B) ज्ञान की पुस्तक में
(C) त्रिपिटक में
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
81. ‘त्रिरत्न की अवधारणा’ किस दर्शन की है ?
(A) बौद्ध दर्शन
(B) जैन दर्शन
(C) न्यास दर्शन
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
82. स्याद्वाद सिद्धांत है-
(A) ज्ञानशास्त्रीय
(B) तत्वशास्त्रीय
(C) नीति मीमांसीय
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
83. स्याद्वाद सिद्धांत संबंधित है-
(A) न्याय दर्शन
(B) बौद्ध दर्शन
(C) जैन दर्शन
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
84. सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण है –
(A) पुरुष के
(B) प्रकृति के
(C) ईश्वर के
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. बौद्ध दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
Ans. बौद्ध दर्शन के संस्थापक महात्मा बुद्ध माने जाते हैं। बोधि (enlightment) यानि तत्त्वज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद वे बुद्ध कहलाए। उन्हें तथागत और अहर्त्ता की संज्ञा भी दी गयी। बुद्ध के उपदेशों के फलस्वरूप बौद्ध धर्म एवं बौद्ध दर्शन का विकास हुआ। बौद्ध दर्शन के अनेक अनुयायी थे। उन अनुयायियों में मतभेद रहने के कारण बौद्ध दर्शन की अनेक शाखाएँ निर्मित हो गयी जिसके फलस्वरूप उत्तरकालीन बौद्ध दर्शन में दार्शनिक विचारों की प्रधानता बढ़ी। बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् उनके शिष्यों ने उपदेशों का संग्रह त्रिपिटक में किया। त्रिपिटक की रचना पाली साहित्य में की गई है। सुत्तपिटक, अभिधम्म पिटक और विनय पिटक तीन पिटकों के नाम हैं। सुत्त पिटक में धर्म सम्बन्धी बातों की चर्चा है। बौद्धों की गीता ‘धम्मपद’ सुत्तपिटक का ही एक अंग है। अभिधम्मपिटक में बुद्ध के दार्शनिक विचारों का संकलन है। इसमें बुद्ध के मनोविज्ञान सम्बन्धी विचार संग्रहीत है। विनयपिटक में नीति सम्बन्धी बातों की व्याख्या हुई है।
2. प्रथम आर्य सत्य का वर्णन करें।
अथवा, बौद्ध दर्शन का प्रथम आर्य सत्य क्या है ?
Ans. बौद्ध दर्शन के चार आधार हैं-दुःख, दुःख समुदाय, दुःख निरोध और दुःख निरोध मार्ग। प्रथम आर्य सत्य के अनुसार संसार दुःखमय है। यह व्यावहारिक अनुभव से सिद्ध है। संसार के सर्वपदार्थ अनित्य और नश्वर होने के कारण दुःख रूप है। लौकिक सुख भी वस्तुतः दुःख से घिरा है। इस सुख को प्राप्त करने के प्रयास में दुःख है, प्राप्त हो जाने पर, यह नष्ट न हो जाय यह विचार दुःख देता है और नष्ट हो जाने पर दुःख तो है ही। काम, क्रोध, लोभ, मोह, शोक, रोग, जन्म, जरा और मरण सब दुःख है।
3. बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की व्याख्या करें।
Ans. बौद्ध दर्शन के संस्थापक महात्मा बुद्ध माने जाते हैं और उन्होंने नैतिक जीवन के सर्वोच्च आदर्श के रूप में निर्वाण की प्राप्ति को स्वीकार किया है। निर्वाण के स्वरूप की चर्चा उन्होंने अपने तृतीय आर्य सत्य के अंतर्गत किया है। इसे ही दुःख निरोध कहा जाता है। वह अवस्था जिसमें सभी प्रकार के दुःखों का अंत हो जाता है, निर्वाण कहा जाता है। भारतीय दर्शन के अन्य सम्प्रदायों में जिसे मोक्ष या मुक्ति की संज्ञा दी गयी है, उसे ही बौद्ध दर्शन में निर्वाण कहा जाता है। बुद्ध के अनुसार, निर्वाण की प्राप्ति जीवन काल में भी संभव है। जब मनुष्य अपने जीवन काल में राग, द्वेष, मोह, अहंकार इत्यादि पर विजय प्राप्त कर लेता है तो वह निर्वाण प्राप्त कर लेता है। निर्वाण प्राप्त व्यक्ति निष्क्रिय नहीं होता बल्कि लोक कल्याण की भावना से प्रेरित होकर वह कर्म सम्पादित करता है।
निर्वाण को लेकर बौद्ध दर्शन में दो प्रकार के विचार हैं। निर्वाण का एक अर्थ है ‘बुझा हुआ’। इस आधार पर कुछ लोग यह समझते हैं “जीवन का अंत।” परन्तु यह उचित नहीं, क्योंकि स्वयं बुद्ध ने ही जीवन में निर्वाण की प्राप्ति की थी।
निर्वाण के स्वरूप की व्याख्या नहीं की जा सकती। निर्वाण का स्वरूप अनिर्वचनीय है। बौद्ध दर्शन में निर्वाण की प्राप्ति को नैतिक जीवन के सर्वोच्च आदर्श के रूप में स्वीकार किया गया है।
4. बौद्ध दर्शन के अष्टांग मार्ग की व्याख्या करें।
Ans. महात्मा बुद्ध का (चतुर्थ आर्य सत्य) यह वह मार्ग हैं जिसपर चलकर स्वयं महात्मा बुद्ध ने निर्वाण को प्राप्त किया था। दूसरे लोग भी इस मार्ग का अनुसरण और अनुकरण कर निर्वाण गृहस्थ, या मोक्ष की अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं। यह मार्ग प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुला है। संन्यासी या कोई भी उद्यमी इसे अपना सकता है। बुद्ध द्वारा स्थापित यह मार्ग उनके धर्म और नीतिशास्त्र का आधार स्वरूप है। इसीलिए इस मार्ग की महत्ता बढ़ जाती है। इस मार्ग को आष्टांगिक मार्ग कहा गया है क्योंकि इस मार्ग के आठ अंग स्वीकार किए गए हैं जो निम्न प्रकार हैं- 1. सम्यक् दृष्टि, 2. सम्यक् संकल्प, 3. सम्यक् वाक्, 4. सम्यक् कर्मान्त, 5. सम्यक् आजीविका, 6. सम्यक् व्यायाम, 7. सम्यक् स्मृति, 8. सम्यक् समाधि ।
5. बुद्ध के अनुसार निर्वाण प्राप्ति का मार्ग क्या है ?
Ans. बुद्ध के अनुसार दुःख की समाप्ति एवं निर्वाण की प्राप्ति के मार्ग में आठ सीढ़ियाँ हैं। इसलिए इसे अष्टांग मार्ग या आष्टांगिक मार्ग कहते हैं। इसके आठ सोपान हैं जिन पर आरूढ होकर सत्व जीवन के चरम लक्ष्य निर्वाण को प्राप्त कर सकता है। वे इस प्रकार से हैं-
1.सम्यक् दृष्टि, 2. सम्यक् संकल्प, 3. सम्यक् वाक्, 4. सम्यक् कर्मान्त, 5. सम्यक् आजीविका, 6. सम्यक् व्यायाम, 7. सम्यक् स्मृति, 8. सम्यक् समाधि
6. अष्टांगिक मार्ग में सम्यक् दृष्टि का क्या अर्थ है ?
Ans. गौत बुद्ध ने दुख का मुख्य कारण अविद्या को माना है। अविद्या से मिथ्या दृष्टि (Wrong views) का आगमन होता है। मिथ्या दृष्टि का अन्त सम्यक् दृष्टि (Right views) से ही संभव है। अत: बुद्ध ने सम्यक् दृष्टि को अष्टांगिक मार्ग की पहली सीढ़ी माना है। वस्तुओं के यथार्थ स्वरूप को जानना ही सम्यक् दृष्टि कहा जाता है। सम्यक् दृष्टि का मतलब बुद्ध के चार आर्य सत्यों का यथार्थ ज्ञान भी है। आत्मा और विश्व सम्बन्धी दार्शनिक विचार मानव को निर्वाण प्राप्ति में बाधक का काम करते हैं। अतः दार्शनिक विषयों के चिन्तन के बदले निर्वाण के लिए बुद्ध ने चार आर्य सत्यों के अनुरूप विचार ढालने को आवश्यक माना।
7. सम्यक दृष्टि क्या है ?
Ans. सम्यक् दृष्टि का अर्थ है कि जीवन में हमेशा सुख-दुख आता रहता है। हमें अपने नजरिये को सही रखना चाहिए, अगर दुख है तो उसे दूर भी किया जा सकता है।
8. बौद्ध दर्शन के आलोक में सारनाथ का क्या महत्व है ?
Ans. सारनाथ न केवल बौद्ध धर्मानुयायियों की आस्था का प्रदान केन्द्र है बल्कि जैन व हिंदू धर्मानुयायियों के लिए भी इस स्थान का विशेष महत्व है।
9. ‘अर्हत्’ का क्या अर्थ है ? वर्णन करें।
Ans. अर्हत् बौद्ध धर्म में ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है जिसने अस्तित्व की यथार्थ प्रकृति का अंतर्ज्ञान प्राप्त कर लिया हो और जिसे निर्वाण की प्राप्ति हो चुकी हो।
10. जैन दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
Ans. जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन की तरह छठी शताब्दी के विकसित होने के कारण समकालीन दर्शन कहे जा सकते हैं। जैन मत के प्रवर्तक चौबीसवें तीर्थंकर थे। ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर थे। महावीर अन्तिम तीर्थंकर थे। जैनमत के विकास और प्रचार का श्रेय अन्तिम तीर्थंकर महावीर को जाता है। बौद्ध की तरह जैन दर्शन भी वेद-विरोधी हैं। इसलिए बौद्ध दर्शन की तरह जैन दर्शन को भी नास्तिक कहा जाता है। इसी तरह जैन दर्शन भी ईश्वर में अविश्वास करता है। दोनों दर्शनों में अहिंसा पर अत्यधिक जोर दिया गया है। जैन दर्शन में भी मुख्य दो सम्प्रदाय हैं। वे हैं-श्वेताम्बर तथा दिगम्बर। जैन दर्शन का योगदान प्रमाणशास्त्र तथा तर्कशास्त्र के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण है। जैन दर्शन प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में उपलब्ध हैं।
11. तीर्थकर कौन थे ?
Ans. जैन धर्म में तीर्थंकर उन 24 व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो स्वयं तप के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करते हैं। जो संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थ की रचना करते हैं, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थकर वह व्यक्ति हैं जिन्होंने पूरी तरह से क्रोध, अभिमान, छल, इच्छा आदि पर विजय प्राप्त की हो।
12. जैन दर्शन के जीव विचार की व्याख्या कीजिए ।
Ans. जैन दर्शन के अनुसार चेतन द्रव्य को जीव या आत्मा कहते हैं। संसार की दशा से आत्मा जीव कहलाता है। उसमें प्राण और शारीरिक, मानसिक तथा इन्द्रिय शक्ति है। शुद्ध अवस्था में जीव में विशुद्ध ज्ञान और दर्शन अर्थात् सविकल्पक और निर्विकल्पक ज्ञान रहता है। किन्तु कर्म के प्रभाव से जीव, औपशमिक, क्षायिकक्षायों, पशमिक औदायिक तथा परिमाणिक इन पाँच भावप्राणों से युक्त रहता है। द्रव्य रूप में परिणत होकर ही भावदशापन्न प्राण पुदगल कहलाता है। अतः भाव द्रव्य में और द्रव्य भाव में परिवर्तित होते रहते हैं।
जीव स्वयं प्रकाश है और अन्य वस्तुओं को भी प्रकाशित करता है। वह नित्य है। वह सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त रहता है। शुद्ध दृष्टि से जीव में ज्ञान तथा दर्शन है। जीव अमूर्त, कर्त्ता, स्थूल शरीर के समान लम्बा-चौड़ा कर्मफलों का भोक्ता सिद्ध तथा ऊर्ध्वगामी है। अनादि अविद्या के कारण. उसमें कर्म प्रवेश करता है और बन्धन में बँध जाता है। बुद्ध जीव, चेतन और नित्य परिणामी है। संकोच और विकास के गुणों के कारण वह जिस शरीर में प्रवेश करता है उसी का रूप धारण कर लेता है। जीव का विस्तार जड़ के विस्तार से भिन्न है। वह शरीर को घेरता नहीं परन्तु उसका प्रत्येक भाग में अनुभव होता है। एक जड़ द्रव्य में दूसरा जड़ द्रव्य प्रविष्ट नहीं हो सकता। परन्तु जड़ में आत्मा और जीव में जीव प्रविष्ट हो सकता है।
13. जैन दर्शन के त्रिरत्न की व्याख्या करें।
Ans. जैन दर्शन में त्रिरत्न सिद्धांत का बड़ा ही महत्व है। इसके अंतर्गत तीन प्रकार के सम्प्रत्ययों को सम्मिलित किया जाता है। सम्यक् ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक् चरित्र । सम्यक् ज्ञान जैन आगमों का ज्ञान है, सम्यक दर्शन आगमों (जैनी ग्रंथों) एवं तीर्थकरों में आस्था है और सम्यक चरित्र अनुशासन है, जिसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय एवं अपरिग्रह शामिल है।
14. पुग्दल क्या है ?
अथवा, जैन के पुग्दल का वर्णन करें।
Ans. साधारणतः जिसे भूत कहा जाता है, उसे ही जैन दर्शन में ‘पुग्दल’ की संज्ञा से विभूषित किया गया है। जैनों के मतानुसार जिसका संयोजन और विभाजन हो सके, वही पुग्दल है। भौतिक द्रव्य ही जैनियों के अनुसार पुग्देल है। पुग्दल या तो अणु (Atom) के रूप में रहता है अथवा स्कन्धों (Compound) के रूप में। किसी वस्तु का विभाजन करते-करते जब हम ऐसे अंश पर पहुँचते हैं जिसका विभाजन नहीं किया जा सके तो उसे ही अणु (Atom) कहते हैं। स्कन्ध दो या दो से अधिक अणुओं के संयोजन से मिश्रित होता है पुग्दल, स्पर्श, रस, गन्ध और रूप जैसे गुणों से परिपूर्ण है। जैनियों द्वारा ‘शब्द’ को पुग्दल का गुण नहीं माना जाता है।
15. स्याद्वाद का अर्थ बतावें।
Ans. स्याद्वाद जैन दर्शन के प्रमाण शास्त्र से जुड़ा हुआ है। जैन मत के अनुसार प्रत्येक वस्तु के अनन्त गुण होते हैं। मानव वस्तु के एक ही गुण का ध्यान एक समय पा सकता है वस्तुओं के अनन्त गुणों का ज्ञान मुक्त व्यक्ति द्वारा सम्भव है समान मनुष्य का ज्ञान अपूर्ण एवं आंशिक होता है। वस्तु के आंशिक ज्ञान को (नय) किसी वस्तु के समझने के विविध दृष्टिकोण है इनसे सापेक्ष सत्य की प्राप्ति होती है न कि निरपेक्ष सत्य की।
16. जैन दर्शन नास्तिक दर्शन क्यों है ?
Ans. नास्तिक वर्ग में चार्वाक, जैन तथा बौद्ध दर्शनों को गिना जाता है। इन दार्शनिक मतों की वेदों में प्रामाणिकता नहीं है। इन दार्शनिकों ने वेदों की निन्दा करते हुए कहा कि वेदों में झूठा, व्याघात तथा पुनरुक्तियाँ भरी पड़ी हैं। जैन सम्प्रदाय की वेदों में आस्था नहीं हैं। उसने वेदों के स्थान पर तीर्थंकरों में विश्वास व्यक्त किया है। इसलिए जैन दर्शन नास्तिक दर्शन है।
17. जैन दर्शन में ज्ञान की सापेक्षता क्या है ?
Ans. जैन दर्शन के अंतर्गत किसी वस्तु के गुण को समझने और अभिव्यक्त करने का सापेक्षिक सिद्धांत है। सापेक्षता अर्थात् किसी अपेक्षा से, अपेक्षा के विचारों से कोई भी चीज सत् भी हो सकती है और असत् भी।