वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1.शंकर के दर्शन के अनुसार पारमार्थिक सत्ता क्या है?
(A) ब्रह्म
(B) जगत्
(C) ईश्वर
(D) इनमें कोई नहीं
Ans. (A)
2. शंकर के अनुसार ब्रह्म हैं-
(A) सत्
(B) चित्
(C) आनन्द
(D) इनमें सभी
Ans. (D)
3. रामानुजाचार्य ने किस दर्शन को प्रतिपादित किया है ?
(A) अद्वैतवाद
(B) विशिष्टाद्वैतवाद
(C) द्वैतवाद
(D) भेदाभेदवाद
Ans. (B)
4. मूल तत्त्व के संदर्भ में अद्वैत वेदांत किस तत्त्व मीमांसा को अपनाता है ?
(A) शुद्ध एकवाद
(B) द्वैतवाद
(C) विशिष्ट द्वैतवाद
(D) इनमें से सभी
Ans. (A)
5. अद्वैत वेदांत के मूल में क्या है ?
(A) योग विद्या
(B) ब्रह्म विद्या
(C) जगत विद्या
(D) माया विद्या
Ans. (B)
6. शंकराचार्य ने किस दर्शन को प्रतिपादित किया है ?
(A) द्वैतवाद
(B) विशिष्टाद्वैतवाद
(C) भेदाभेदवाद
(D) अद्वैतवाद
Ans. (D)
7. अद्वैतवाद के अनुसार विश्व की सृष्टि कौन करता है ?
(A) अपर ब्रह्म
(B) ईश्वर
(C) सगुण ब्रह्म
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
8. कौन नास्तिक शिरोमणि कहलाता है ?
(A) बौद्ध
(B) जैन
(C) चार्वाक
(D) न्याय
Ans. (C)
9. शंकर के दर्शन में व्यावहारिक सत्ता क्या है ?
(A) निर्गुण ईश्वर
(B) ब्रह्म
(C) जगत
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
10. शंकर के अनुसार निरपेक्षतः चेतन कौन सत्ता है ?
(A) जगत्
(B) जीवात्मा
(C) शरीर
(D) ब्रह्म
Ans. (D)
11. शंकर ने स्वप्न ने अस्तित्व के स्वरूप को क्या कहा है ?
(A) प्रतिभाषिक सत्ता
(B) व्यावहारिक सत्ता
(C) पारमार्थिक सत्ता
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
12. शंकर के अनुसार शरीर से मुक्त आत्मा क्या है ?
(A) जीव
(B) माया
(C) ब्रह्म
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
13. शंकर के अनुसार माया क्या है ?
(A) ब्रह्म
(B) ब्रह्म की शक्ति
(C) कल्पनात्मक सत्ता
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
14. शंकर के अद्वैत वेदांत का दर्शन किस ग्रंथ पर आधारित है ?
(A) रामायण
(B) महाभारत
(C) पुराण
(D) उपनिषद्
Ans. (D)
15. माया की उस शक्ति का क्या नाम है जो ब्रह्म की सत्ता को छिपा लेता है ?
(A) प्रज्ञा
(B) समाधि
(C) आवरण
(D) इनमें से सभी
Ans. (C)
16. अद्वैत वेदांत में जगत् है-
(A) पूर्णतः सत्य
(B) पूर्णतः असत्य
(C) मिथ्या
(D) इनमें से सभी
Ans. (B)
17. वस्तुवाद की क्या मान्यता है ?
(A) ज्ञेय पदार्थ ज्ञाता पर निर्भर है
(B) ज्ञेय पदार्थ ज्ञाता से स्वतंत्र है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
18. जड़ में गति प्रदान करने वाली शक्ति को क्या कहते हैं ?
(A) उपादान कारण
(B) निमित्त कारण
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
19. ब्रह्म है-
(A) अनेक
(B) अचेतन
(C) अनिर्वचनीय
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (D)
20. अद्वैत वेदांत के अनुसार चैतन्य आत्मा का है–
(A) गुण
(B) स्वरूप
(C) प्रज्ञा
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
21. अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक हैं-
(A) रामानुज
(B) शंकर
(C) मध्व
(D) निम्बार्क
Ans. (B)
22. अद्वैत का अर्थ होता है-
(A) दो नहीं
(B) एक नहीं
(C) चार नहीं
(D) तीन नहीं
Ans. (A)
23. “शंकर का दर्शन संगीत पूर्णता और गंभीरता में प्रथम स्थान रखता है।” यह कथन किनका है ?
(A) डॉ० राधाकृष्णन
(B) चार्ल्स इलियट
(C) डॉ० दास गुप्ता
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
24. अद्वैत वेदांत के अनुसार जगत है-
(A) प्रतिभासिक सत्ता
(B) व्यावहारिक सत्ता
(D) इनमें से कोई नहीं
(C) पारमार्थिक सत्ता
Ans. (B)
25. निम्नलिखित में किसने जगत् को जादू को उपमा से समझाने का प्रयास किया है ?
(A) शंकर
(B) गौड़पाद
(C) रामानुज
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
26. शंकर अद्वैत को कहते हैं-
(A) शरीर
(B) ईश्वर
(D) इनमें से सभी
(C) ब्रह्म
Ans. (C)
27. गौड़पद किनके गुरु थे ?
(A) शंकर के
(B) गुरु गोविंद के
(C) बल्लभाचार्य के
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
28. स्वप्न या भ्रम किस सत्ता के विषय हैं ?
(A) प्रतिभाषित सत्ता
(B) व्यावहारिक सत्ता
(C) पारमार्थिक सत्ता
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
29. आत्मा यथार्थत:-
(A) भोक्ता है
(B) कर्त्ता है
(C) भोक्ता एवं कत्ता है
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
30. शंकर के अनुसार सत्-आनंद कौन है ?
(A) ईश्वर
(B) माया
(C) ब्रह्म
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
31. निम्न में से कौन-सी एक वेदांत की शाखा नहीं है ?
(A) द्वैत
(B) विशिष्टाद्वैत
(C) अद्वैत
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
32. जब आत्मा शरीर, इन्द्रिय मन इत्यादि उपाधियों से सीमित हो जाता है, तो वह है-
(A) ब्रह्म
(B) जीव
(C) माया
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
33. शंकर का समय माना जाता है-
(A) 788-820 ई०
(B) 800-900 ई०
(C) 100–1100 ई०
(D) 700-820 ई०
Ans. (A)
34. शुद्ध सत्ता जो न तो बाधित होती है और न जिसके बाधित होने की कल्पना की जा सकती, उसे कहा जाता है-
(A) व्यावहारिक सत्ता
(B) पारमार्थिक सत्ता
(C) प्रतिभाषित सत्ता
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
35. डॉ0 राधाकृष्णन के अनुसार माया के दो कार्य हैं। वे हैं-
(A) सत्य पर पर्दा डालना
(B) असत्य को प्रस्थापित करना
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
36. शंकर के अनुसार जगत् को किस सत्ता के अंतर्गत रखा जा सकता है ?
(A) प्रतिभाषित सत्ता
(B) व्यावहारिक सत्ता
(C) पारमार्थिक सत्ता
(D) इनमें सभी
Ans. (B)
37. आत्मा की सत्यता कौन-सी है ?
(A) व्यावहारिक
(B) पारमार्थिक
(C) प्रतिभाषित
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. शंकर के दर्शन अद्वैतवाद क्यों कहा जाता है ?
Ans. वेदान्त दर्शन के अनेक सम्प्रदाय विकसित हुए, जिसमें शंकर के अद्वैतवाद का प्रमुख स्थान है। शंकर के दर्शन को एकत्वंवाद (Monism) नहीं कहकर अद्वैतवाद (Non-dualism) कहा जाता है। इनके अनुसार जीव और ब्रह्म दो नहीं हैं। वे वस्तुतः अद्वैत हैं। इन्होंने ब्रह्म को माना है। यहाँ ब्रह्म की व्याख्या निषेधात्मक ढंग से की गई है। ब्रह्म की व्याख्या के लिए नेति नेति को आधार माना गया है, ब्रह्म क्या है के बदले ब्रह्म क्या नहीं है, पर प्रकाश डाला गया है। ब्रह्म ही एकमात्र पारमार्थिक दृष्टि से सत्य है; ईश्वर, जीव, जगत, माया आदि की व्यावहारिक सत्ता है। आत्मा तथा ब्रह्म अभेद है। ब्रह्म और जीव का द्वैत अज्ञानता के कारण है। इसलिए यहाँ ज्ञान योग के द्वारा मोक्ष प्राप्ति की बात कही गई है, ज्ञान के बाद द्वैत अद्वैत में बदल जाता है।
2. ब्रह्म के सम्बन्ध में शंकर के भावात्मक विचार को स्पष्ट करें।
अथवा, ‘सच्चिदानन्द’ के अर्थ को स्पष्ट करें।
‘Ans. शंकर ने ‘ब्रह्म’ की निषेधात्मक व्याख्या के अतिरिक्त भावात्मक विचार भी दिए हैं। शंकर के अनुसार ब्रह्म सत् (real) है जिसका अर्थ हुआ कि वह असत् (Unreal) नहीं है। वह चित् (Conscisoupness) है जिसका अर्थ कि वह अचेत् नहीं है। वह आनन्द (bliss) है जिसका अर्थ है कि वह दुःख स्वरूप नहीं है। अतः ब्रह्म सत्, चित् और आनन्द है यानि सच्चिदानन्द है । सत् चित् और आनन्द में अवियोज्य सम्बन्ध है। इसीलिए ये तीनों मिलकर एक ही सत्ता का निर्माण करते हैं। शंकर ने यह भी बतलाया कि ‘सच्चिदानन्द’ के रूप में जो ब्रह्म की व्याख्या की जाती है वह अपूर्ण है। हालाँकि भावात्मक रूप से सत्य की व्याख्या इससे और अच्छे ढंग से संभव नहीं है।
3. क्या शंकर के अनुसार जगत् मिथ्या है ?
Ans. हाँ, शंकर के अनुसार जगत् मिथ्या है। शंकर ने जगत को पूर्णतः सत्य नहीं माना हैं। शंकर की दृष्टि में ब्राह्म ही एकमात्र सत्य है शेष सभी वस्तुएँ ईश्वरं, जीव, जगत प्रपंच है शंकर ने जगत को रस्सी में दिखाई देने वाले ताप को तरह माना है।
4. शंकर ने ब्रह्म के अस्तित्व के क्या प्रमाण दिये ?
Ans. शंकर ने ब्रह्म के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए कुछ प्रमाण दिए हैं। उन्हें हम श्रुति प्रमाण, मनोवैज्ञानिक प्रमाण, प्रयोजनात्मक प्रमाण, तात्विक प्रमाण तथा अपरोक्ष अनुभूति- प्रमाण कहा जाता है। श्रुति प्रमाण के अन्तर्गत शंकर के दर्शन का आधार उपनिषद्, गीता तथा ब्रह्मसूत्र है। उनके अनुसार इन ग्रन्थों के सूत्र में ब्रह्म के अस्तित्व का वर्णन है अतः ब्रह्म है। इसी मनोवैज्ञानिक प्रमाण के अन्तर्गत शंकर ने कहा है कि ब्रह्मा सबकी आत्मा है। हर व्यक्ति अपनी आत्मा के अस्तित्व को अनुभव करता है। अतः इससे भी प्रमाणित होता है कि ब्रह्म का प्रयोजनात्मक प्रमाण के अन्तर्गत कहा गया है कि जगत् पूर्णतः व्यवस्थित है। इस व्यवस्था का कारण जड़ नहीं कहा जा सकता। अतः व्यवस्था का एक चेतन कारण है, उसे ही हम ब्रह्म कहते हैं। इसी तरह तात्त्विक प्रमाण के अन्तर्गत बताया गया है कि ब्रह्म वृ धातु से बना है जिसका है वृद्धि । ब्रह्म की सत्ता प्रमाणित होती है। अन्ततः ब्रह्म के अस्तित्व का सबसे सबल प्रमाण अनुभूति है। वे अपरोक्ष अनुभूति के द्वारा जाने जाते हैं। अपरोक्ष अनुभूति के फलस्वरूप सभी प्रकार के द्वैत समाप्त हो जाते हैं तथा अद्वैत ब्रह्म का साक्षात्कार होता है।
5. शंकर के ‘आत्मा’ की अवधारणा को स्पष्ट करें।
अथवा, आत्मा और ब्रह्म के बीच सम्बन्ध की व्याख्या करें।
Ans. शंकर आत्मा को ब्रह्म की संज्ञा देते हैं। उनके अनुसार दोनों एक ही वस्तु के दो भिन्न-भिन्न नाम है। आत्मा की सत्यता पारमार्थिक है। आत्मा स्वयं सिद्ध (Axioms) अत: उसे प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है। आत्मा देश, काल और कारण नियम की सीमा से परे हैं। वह त्रिकाल-अबाधित सत्ता है। वह सभी प्रकार के भेदों से रहित है। वह अवयव से शून्य है। शंकर के दर्शन में आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। शंकर ने एक ही तत्त्व को आत्मनिष्ठ दृष्टि से ‘आत्मा’ तथा वस्तुनिष्ठ दृष्टि से ब्रह्म कहा है। शंकर आत्मा और ब्रह्म के ऐक्य को ‘तत्तवमसि’ (that thou art ) से पुष्टि करता है।
6. ब्रह्म क्या है ?
Ans. ब्रह्म परमार्थिक दृष्टिकोण से सत्य कहा जा सकता है। ब्रह्म स्वयं ज्ञान है प्रकाश की तरह ज्योतिर्मय होने के कारण ब्रह्म को स्वयं प्रकाश कहा गया है। ब्रह्म का ज्ञान उसके स्वरूप का अंग है।
ब्रह्म द्रव्य नहीं होने के बावजूद भी सब विषयों का आधार है यह दिक् और काल की सीमा से परे हैं तथा कार्य-कारण नियम से भी यह प्रभावित नहीं होता।
शंकर के अनुसार ब्रह्म निर्गुण है। उपनिषदों में ब्रह्म को सगुण और निर्गुण दो प्रकार माना गया है। यद्यपि ब्रह्म निर्गुण है, फिर भी ब्रह्म को शून्य नहीं कहा जा सकता। उपनिषद् ने भी निर्गुण को गुणमुक्त माना है।
7. क्या जगत् पूर्णतः असत्य है ? व्याख्या कर
Ans. शंकर ने जगत को पुर्णतः सत्य नहीं माना है शंकर की दृष्टि में ब्रह्म ही एकमात्र सत्य
है शेष सभी वस्तुएँ ईश्वर, जीव, जगत प्रपंच है। शंकर ने जगत को रस्सी में दिखाई देने वाले ताप के तरह माना है।
8. क्या ईश्वर व्यक्तित्वपूर्ण है ?
Ans. ईश्वर ब्रह्म का सर्वोच्च आभास हैं ईश्वर का व्यक्तित्वपूर्ण है। वे सर्वपूर्ण सम्पन्न है। उनका स्वरूप सच्चिदानन्द है। सत् चित् और आनन्द तीन गुण नहीं है अपितू एक और ईश्वर स्वरूप है ईश्वर माया पति है माया के स्वामी है। वे सृष्टि के कर्ता हर्ता है। इसलिए ईश्वर व्यक्तित्वपूर्ण नहीं है।
9. माया के दो कार्यों को बतावें ।
Ans. माया के दो कार्य है-आरोण और विछेपण जैसे माया रस्सी के असली रूप को ढक देती है आरोण हुआ फिर उसका दूसरा रूप विश्लेषण सांप के रूप दिखाती है ठीक उसी प्रकार माया ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप पर आग्रण डाल देती है और उसका विश्लेषण जगत के रूप में प्रस्तुत करती है।