वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1.’तत्वपूर्वकम् अनुमानम्’ किसका मत है ?
(A) सांख्य का
(B) न्याय का
(C) बौद्ध का
(D) जैन का
Ans. (B)
2. न्याय सूत्र किसने लिखा है ?
(A) वाचस्पति
(B) यात्यायन
(C) गौतम
(D) उदयन भट्ट
Ans. (C)
3. वैशेषिक दर्शन का दूसरा नाम क्या है ?
(A) औलूक्य
(B) उलूक
(C) ऐलूक
(D) इनमें से सभी
Ans. (A)
4. वैशेषिक द्वारा कितने प्रकार का कर्म माना गया है ?
(A) पाँच
(B) आठ
(C) सोलह
(D) चौबीस
Ans. (A)
5. सांख्य के अनुसार गुणों की संख्या है-
(A) अनन्त
(B) दो
(C) पाँच
(D) इनमें कोई नहीं
Ans. (D)
6. ‘एन इन्ट्रोडक्शन टू एथिक्स’ के लेखक कौन हैं ?
(A) अरस्तू
(B) मिल
(C) मैकेंजी
(D) विलियम लिलि
Ans. (D)
7. ‘ऋण’ की अवधारणा संबंधित है ?
(A) ब्रह्मचर्याश्रम से
(B) गृहस्थाश्रम से
(C) वानप्रस्थाश्रम से
(D) संन्यासाश्रम से
Ans. (B)
8. वैशेषिक के अभाव पदार्थ दिया है-
(A) प्रशस्तवाद द्वारा
(B) गौतम द्वारा
(C) कणाद द्वारा
(D) भर्तृहरि द्वारा
Ans. (A)
9. किस आस्तिक दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया गया है ?
(A) न्याय दर्शन
(B) वैशेषिक दर्शन
(C) सांख्य दर्शन
(D) योग दर्शन
Ans. (C)
10. ऋण के प्रकार क्या है ?
(A) ऋषि
(B) देव
(C) पितृ
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (D)
11. सांख्य दर्शन निम्नलिखित में किसे स्वीकार करता है ?
(A) आरंभवाद
(B) परिणामवाद
(C) विवर्तवाद
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
12. सांख्य दर्शन का आध्यात्मिक सत्ता क्या है ?
(A) प्रकृति
(B) पृथ्वी
(C) ईश्वर
(D) पुरुष
Ans. (D)
13. सांख्य, योग और न्याय दर्शन का सामांय विचार है :
(A) आस्तिकता
(B) नास्तिकता
(C) एकवादिता
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
14. सांख्य दर्शन की प्रमुख विशेषता क्या है ?
(A) शुद्ध एकवाद
(B) अनेकवाद
(C) द्वैतवाद
Ans. (C)
15. सांख्य दर्शन ज्ञान को किस संदर्भ में लिया गया है ?
(A) पुरुष का ज्ञान
(B) प्रकृति का ज्ञान
(C) पुरुष और प्रकृति के बीच भिन्नता का ज्ञान
(D) इनमें से सभी
Ans. (C)
16. हेत्वाभास क्या है ?
(A) अनुमान से संबंधित दोष
(B) प्रत्यक्ष से संबंधित दोष
(C) शब्द प्रमाण से संबंधित दोष
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
17. न्याय दर्शन का केंद्रीय विचार है
(A) नैतिक
(B) सौंदर्य
(C) राजनैतिक
(D) ज्ञान मीमांसीय
Ans. (D)
18. पतंजलि के यौगिक प्रविधि का अंतिम पायदान क्या है ?
(A) प्रत्याहार
(B) धारणा
(C) ध्यान
(D) समाधि
Ans. (D)
19. न्याय ज्ञानमीमांसा के अनुसार प्रमेय क्या है ?
(A) प्रमाता
(B) प्रमाण
(C) प्रमा
(D) प्रमा का विषय
Ans. (D)
20. न्याय ज्ञानमीमांसा में शेषवत् क्या है ?
(A) तात्कालिक अनुमान
(B) प्रत्यक्ष
(C) उपमान
(D) शाब्दिक प्रमाण
Ans. (A)
21. वैशेषिक द्वारा कितने प्रकार का गुण माना गया है ?
(A) बारह
(B) चौबीस
(C) आठ
(D) सोलह
Ans. (B)
22. वैशेषिक दर्शन के अनुसार पदार्थ कितने हैं ?
(A) सात
(B) चार
(C) दो
(D) एक
Ans. (A)
23. वैशेषिक दर्शन के अनुसार द्रव्य की संख्या कितनी है ?
(A) पाँच
(B) छ:
(C) नौ
(D) चार
Ans. (C)
24. वैशेषिक दर्शन के अनुसार गुण का आधार क्या है ?
(A) द्रव्य
(B) सामांय
(C) विशेष
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
25. ‘पदार्थशास्त्र’ किस दर्शन का दूसरा नाम है ?
(A) न्याय
(B) सांख्य
(C) योग
(D) वैशेषिक
Ans. (D)
26. ‘पंचावयव’ का संबंध किससे है ?
(A) न्याय के प्रत्यक्ष से
(B) न्याय के उपमान से
(C) न्याय के अनुमान से
(D) न्याय के शब्द प्रमाण से
Ans. (C)
27. योगदर्शन में ‘अंतरंग साधन’ के कितने अवयव हैं ?
(A) तीन
(B) पाँच
(C) चार
(D) दो
Ans. (A)
28. न्याय ज्ञानमीमांसा में ज्ञान लक्षण प्रत्यक्ष क्या है ?
(A) अलौकिक प्रत्यक्ष
(B) लौकिक प्रत्यक्ष
(C) सविकल्प प्रत्यक्ष
(D) निर्विकल्प प्रत्यक्ष
Ans. (A)
29. वैशेषिक दर्शन में सामान्य पदार्थ के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प सही है ?
(A) अभाव
(B) भाव
(C) भावाभाव
(D) इनमें से सभी
Ans. (B)
30. वैशेषिक दर्शन में उस द्रव्य को क्या कहते हैं जिसका विशिष्ट गुण चेतना होता है ?
(A) आकाश
(B) दिक्
(C) काल
(D) आत्मा
Ans. (D)
31. वैशेषिक दर्शन के अनुसार गुण अपने अस्तित्व के लिए किस पर निर्भर करता है ?
(A) द्रव्य
(B) विशेष
(C) समवाय
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
32. न्याय दर्शन के एक वर्गीकरण के अनुसार निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प अनुमान के प्रकार के संदर्भ में सही है ?
(A) पूर्ववत्
(B) शेषवत्
(C) सामान्यतोदृष्ट
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
33. सांख्य दर्शन में चेतन सत्ता को क्या कहा जाता है ?
(A) प्रकृति
(B) सत्व
(C) पुरुष
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
34. सांख्य दर्शन में सत्त्वगुण के स्वरूप के संदर्भ में क्या स्वीकार किया जाता है ?
(A) सत्य सुख का स्वभाव और स्रोत है
(B) सत्व लघु है
(C) सत्व चमकीला है
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
35. प्रकृति का कौन तत्व/गुण मन की अशांति और वस्तुओं को चलायमान रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं ?
(A) सत्वगुण
(B) रजोगुण
(C) तमोगुण
(D) इनमें से सभी
Ans. (B)
36. वाक्यार्थ की कितनी शर्तों को न्याय दर्शन में माना जाता है ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
Ans. (D)
37. निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प सांख्य दर्शन की प्रकृति के संदर्भ में सही है ?
(A) प्रकृति की संख्या एक है और सक्रिय है
(B) प्रकृति की संख्या दो है और सक्रिय है
(C) प्रकृति की संख्या अनेक है और निष्क्रिय है
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
38. न्याय दर्शन में योगज प्रत्यक्ष क्या है ?
(A) सामान्यों का प्रत्यक्ष
(B) लौकिक प्रत्यक्ष
(C) अलौकिक का प्रत्यक्ष
(D) इनमें से सभी
Ans. (C)
39. न्याय दर्शन में अनुमान प्रमाण के आवश्यक अंग क्या हैं ?
(A) हेतु
(B) साध्य
(C) पक्ष
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
40. वैशेषिक दर्शन का समान तंत्र कौन दर्शन है ?
(A) योग दर्शन
(B) बौद्ध दर्शन
(C) जैन दर्शन
(D) न्याय दर्शन
Ans. (D)
41. लोकसंग्रह का सिद्धांत क्या है ?
(A) परार्थ सुखवाद
(B) सर्वकल्याणवाद
(C) पूर्णतावाद
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
42. अलौकिक प्रत्यक्ष का उदाहरण क्या है ?
(A) सामान्य लक्षण प्रत्यक्ष
(B) ज्ञान लक्षण प्रत्यक्ष
(C) योगज प्रत्यक्ष
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
43. सविकल्पक प्रत्यक्ष के पहले की अवस्था क्या है ?
(A) उपमान
(B) शब्द
(C) सामान्य लक्षण प्रत्यक्ष
(D) निर्विकल्पक प्रत्यक्ष
Ans. (D)
44. योग के अनुशासन के आलोक में अहिंसा क्या है ?
(A) तप
(B) नियम
(C) यम
(D) संतोष
Ans. (C)
45. योग दर्शन के अष्टांगिक मार्ग में अन्तरंग साधन किसे कहते हैं-
(A) धारण
(B) ध्यान
(C) समाधि
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
46. भारतीय दर्शन के किस पक्ष का प्रतिनिधित्व योग दर्शन करता है-
(A) सांसारिक पक्ष
(B) व्यावहारिक पक्ष
(C) सामाजिक पक्ष
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
47. सांख्य विश्वास करता है-
(A) प्रकृति परिणामवाद में
(B) ब्रह्म परिणामवाद में
(C) विवर्तवाद में
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
48. अभाव का उल्लेख किस दर्शन में मिलता है ?
(A) सांख्य दर्शन
(B) योग दर्शन
(C) वैशेषिक दर्शन
(D) इनमें से सभी
Ans. (C)
49. सांख्य दर्शन के प्रवर्त्तक हैं-
(A) गौतम
(B) कपिल
(C) महावीर
(D) कणाद
Ans. (B)
50. जीव का रूप क्या है ?
(A) नित्य
(B) शरीर में निवासित
(C) प्रकाशवान
(D) इनमें से सभी
Ans. (D)
51. निम्न में से कौन आस्तिक दर्शन है ?
(A) जैन दर्शन
(B) बौद्ध दर्शन
(C) सांख्य दर्शन
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
52. न्याय दर्शन के प्रणेता हैं-
(A) गौतम बुद्ध
(B) महर्षि गौतम
(C) कणाद
(D) जैमिनि
Ans. (B)
53. योग दर्शन में चित्तवृत्ति विरोध को कहते हैं-
(A) प्रणायाम
(B) समाधि
(C) योग
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (D)
54. जिसके पास समबुद्धि होती है, उसे कहते हैं-
(A) मुनि
(B) स्थितप्रज्ञ
(C) योगी
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
55. वैशेषिक दर्शन के प्रणेता हैं-
(A) गौतम
(B) कणाद
(C) कपिल
(D) जैमिनी
Ans. (B)
56. ‘तत्पूर्वकम अनुमानम’ अनुमान की परिभाषा दी गई है-
(A) न्याय द्वारा
(B) वैशेषिक द्वारा
(C) सांख्य द्वारा
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
57. न्याय के द्वारा कितने प्रमाणों को स्वीकार किया गया है ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
Ans. (B)
58. किस दर्शन में सम्यक् समाधि का वर्णन है ?
(A) जैन दर्शन
(B) बौद्ध दर्शन
(C) योग
(D) मीमांसा
Ans. (C)
59. ‘चितवृत्ति निरोध’ को कहते हैं-
(A) प्राणायाम
(B) योग
(C) समाधि
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
60. गौतम की पुस्तक का नाम है-
(A) रामायण
(B) योगासन
(C) न्याय सूत्र
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
61. वैशेषिक के अनुसार निम्नांकित में कौन द्रव्य नहीं है ?
(A) कर्म
(B) पृथ्वी
(C) काल
(D) आत्मा
Ans. (B)
62. योग दर्शन के प्रवर्त्तक हैं-
(A) कपिल
(B) गौतम
(C) पतंजलि
(D) कणाद
Ans. (C)
63. जो ज्ञान प्राप्त करता है, कहलाता है-
(A) प्रमाण
(B) प्रमाता
(C) प्रमा
(D) अप्रमा
Ans. (A)
64. पतंजलि के अनुसार नियम की संख्या कितनी है ?
(A) दो
(B) पाँच
(C) तीन
(D) छह
Ans. (B)
65. न्याय, वैशेशिक, सांख्य एवं योग निम्न में से किस दार्शनिक सम्प्रदाय में आते हैं ?
(A) आस्तिक
(B) नास्तिक
(C) आस्तिक एवं नास्तिक
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
66. सांख्य दर्शन में आत्मा के लिए जिस पद का प्रयोग हुआ है वह है-
(A) जीव
(B) आत्मा
(C) पुरुष
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
67. न्याय के अनुसार प्रमाण है-
(A) दो
(B) छह
(C) चार
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
68. अनुमान का दूसरा नाम क्या है ?
(A) अनुवीक्षा
(B) परवीक्षा
(C) अनुमति
(D) अनुपालक
Ans. (D)
69. “ज्ञान की प्राप्ति जन्मजात प्रत्यय से होती है” ऐसा मानना है-
(A) अनुभववाद का
(B) बुद्धिवाद का
(C) समीक्षावाद का
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
70. न्याय-दर्शन के शब्द होता है-
(A) नित्य
(B) अनित्य
(C) नित्य एवं अनित्य
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
71. निम्न में से कौन आस्तिक दर्शन नहीं है ?
(A) न्याय दर्शन
(B) योग दर्शन
(C) मीमांसा दर्शन
(D) निम्बार्क
Ans. (A)
72. प्रत्यक्ष न्यायशास्त्र में ‘प्रमाण’ का कौन सा भेद है ?
(A) प्रथम
(B) द्वितीय
(C) तृतीय
(D) चतुर्थ
Ans. (A)
73. योग दर्शन है-
(A) द्वैतवादी
(B) अद्वैतवादी
(C) द्वैतवादी एवं अद्वैतवादी
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
74. अनुमान का तार्किक आधार है-
(A) हेतु
(B) व्याप्ति
(C) पक्ष
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
75. निम्नलिखित में किस दर्शन के अनुसार जीवन का मूल उद्देश्य मोक्षानुभूति प्राप्त करना है ?
(A) योग-दर्शन
(B) सांख्य-दर्शन
(C) न्याय-दर्शन
(D) योग-दर्शन एवं सांख्य-दर्शन
Ans. (D)
76. न्याय-दर्शन के प्रवर्त्तक कौन थे ?
(A) अक्षपाद
(B) नागार्जुन
(C) कपिल
(D) कणाद
Ans. (A)
77. गौतम ने वास्तविक ज्ञान को क्या कहा है ?
(A) प्रमा
(B) अप्रमा
(C) प्रमा एवं अप्रमा
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (A)
78. सांख्य एवं योग-दर्शन के अनुसार दुःख के कौन-से प्रकार हैं ?
(A) आध्यात्मिक दुःख
(B) आधिभौतिक दुःख
(C) आधिदैविक दुःख
(D) ये सभी
Ans. (D)
79. योग के अष्टांग साधन में प्रथम अंग कौन है ?
(A) नियम
(B) यम
(C) आसन
(D) प्रणायाम
Ans. (B)
80. श्वास-प्रक्रिया को नियंत्रित करके एक क्रम में लाना क्या कहलाता है ?
(A) ध्यान
(B) धारणा
(C) समाधि
(D) प्रणायाम
Ans. (D)
81. योग दर्शन में चित्त की कितनी अवस्थाओं का जिक्र है ?
(A) एक
(B) चार
(C) पाँच
(D) आठ
Ans. (C)
82. सांख्य का अर्थ है सम्यक् ज्ञान। सम्यक् ज्ञान का अर्थ है-
(A) पुरुष का ज्ञान
(B) प्रकृति का ज्ञान
(C) पुरुष और प्रकृति के बीच भिन्नता का ज्ञान
(D) ये सभी
Ans. (C)
83. सांख्य-दर्शन में सत्कार्यवाद किस सिद्धानत से सम्बद्ध है ?
(A) कार्य सिद्धांत
(B) कारण सिद्धांत
(C) कार्य-कारण सिद्धांत
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
84. सांख्य-दर्शन के अनुसार गुण के प्रकार हैं-
(A) सत्व
(B) रजस्
(C) तमस्
(D) इनमें से सभी
Ans. (B)
85. सांख्य-दर्शन में आत्मा को कहा जाता है-
(A) ब्रह्म
(B) पुरुष
(C) ईश्वर
(D) इनमें से सभी
Ans. (A)
86. वैशेषिक दर्शन में सभी भौतिक द्रव्यों का अस्तित्व …. में होता है।
(A) ‘दिक्’
(B) ‘काल’
(C) ‘दिक्’ एवं ‘काल’
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
87. आत्मा के विशेष गुण हैं-
(A) सुख
(B) दुःख
(C) सुख और दुःख
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
88. निम्नलिखित में कौन-सा गुण ज्ञान का प्रतीक है ?
(A) सत्य
(B) रजस्
(C) तमस्
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (D)
89. निम्नलिखित में कौन ज्ञान का अवरोध करता है ?
(A) सत्य
(B) रजस्
(C) तमस्
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (D)
90. अनुमान को प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है-
(A) न्याय दर्शन
(B) सांख्य दर्शन
(C) बौद्ध दर्शन
(D) उपरोक्त सभी
Ans. (A)
91. योग दर्शन के अनुसार योग का अर्थ है-
(A) मिलन
(B) चित्रवृत्ति निरोध
(C) यम
(D) नियम
Ans. (B)
92. निम्न में से अण्वीक्षा किसे कहते हैं ?
(A) प्रत्यक्ष
(B) शब्द
(C) उपमान
(D) अनुमान
Ans. (A)
93. निम्नलिखित में कौन-सा एक परार्थानुमान का घटक नहीं है ?
(A) परामर्श
(B) उदाहरण
(C) हेतु
(D) उपनय
Ans. (B)
94. वैशेषिक दर्शन में पदार्थ का विभाजन हुआ है-
(A) भाव पदार्थ
(B) अभाव पदार्थ
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
95. भौतिकवाद के अनुसार परम सत्ता है-
(A) प्रत्यय
(B) तटस्थ
(C) जड़
(D) ईश्वर
Ans. (C)
96. योग है-
(A) त्याग
(B) समाधि
(C) ईश्वर के साथ साक्षात्कार
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (C)
97. वैशेषिक के सृष्टिवाद को क्या कहा जाता है ?
(A) अणु सृष्टिवाद
(B) परमाणु सृष्टिवाद
(C) अणु एवं परमाणु सृष्टिवाद
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
98. निम्न में से कौन-सा एक दृष्टिकोण वैशेषिक के अनुसार सही नहीं है ?
(A) परमाणु नित्य हैं
(B) परमाणु से बने समान नित्य हैं
(C) परमाणु उपमान के द्वारा नहीं जाने जाते हैं
(D) इनमें से सभी
Ans. (C)
99. मीमांसा दर्शन के प्रणेता हैं-
(A) कपिल
(B) गौतम
(C) जैमिनी
(D) पतंजलि
Ans. (C)
100. मीमांसा दर्शन है-
(A) कर्मप्रधान
(B) आत्मप्रधान
(C) धर्मप्रधान
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (B)
101. पंचावयव का संबंध किस प्रमाण से होता है ?
(A) शब्द
(B) प्रत्यक्ष
(C) उपमान
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans. (D)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. न्याय के अनुसार प्रमाणों की संख्या कितनी है ?
Ans. न्याय के अनुसार प्रमाणों की संख्या चार है जो निम्नलिखित हैं-
(i) प्रत्यक्ष (Perception), (ii) अनुमाप ( Inference), (iii) उपमान ( Comparison), (iv) शब्द (Verbal Authority)।
2. न्याय दर्शन के आधार पर ‘पद’ के अर्थ को स्पष्ट करें।
अथवा, (भारतीय दर्शन में ‘पद’ के अर्थ को स्पष्ट करें।
Ans. जिस किसी शब्द में अर्थ या संकेत की स्थापना हो जाती है, उसे ‘पद’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में शक्तिमान शब्द को हम पद कहते हैं। किसी पद या शब्द में निम्नलिखित अर्थ या संकेत को बतलाने की शक्ति होती है-
1.व्यक्ति विशेष (Individual) – यहाँ ‘व्यक्ति’ का अर्थ है वह वस्तु जो अपने गुणों के साथ प्रत्यक्ष हो सके। जैसे- ‘गाय’ शब्द को लें। वह द्रव्य या वस्तु जो गाय के सभी गुणों की उपस्थिति दिखावे गाय के नाम से पुकारी जाएगी। न्याय सूत्र के अनुसार गुणों का आधार स्वरूप जो मूर्तिमान द्रव्य हैं, वह व्यक्ति है।
2. जाति विशेष (Universal) – अलग-अलग व्यक्तियों में रहते हुए भी जो एक समान गुण पाये जाए, उसे जाति कहते हैं। पद में जाति बताने की भी शक्ति होती है। जैसे संसार में ‘गाय’ हजारों या लाखों की संख्या में होंगे लेकिन उन सबों की ‘जाति’ एक ही कही जाएगी।
3. आकृति विशेष (Form) – पद में आकृति (Form) को बतलाने की शक्ति होती है। आकृति का अर्थ है, अंगों की सजावट। जैसे- सींग, पूँछ, खूर, सर आदि हिस्से को देखकर हमें ‘जानवर’ का बोध होता है। उसी तरह, दो पैर, दो हाथ, दो आँखें, शरीर, सर आदि को देखकर आदमी (मानव) का बोध होता है।
3. प्रमाण से आप क्या समझते हैं ?
Ans. ‘प्रमा’ को प्राप्त करने के जितने साधन हैं, उन्हें ही ‘प्रमाण’ कहा गया है। गौतम के अनुसार प्रमाण के चार साधन हैं।
4. शब्द प्रमाण क्या है ?
Ans. आत्मा पुरुष द्वारा दिये गये उपदेश को ‘शब्द प्रमाण’ मानते हैं। आत्म वह पुरुष जिसने धर्म के और सब पदार्थों के यथार्थ स्वरूप को भलीभाँति जान लिया है, जो सब जीवों पर दया करता है और सच्ची बात करने की इच्छा रखता है।
5. प्रमेय क्या है ?
Ans. न्याय दर्शन में प्रमेय को प्रमाण का रूप बताया गया है। उपमान का होना, सादृश्यता या समानता के साथ संज्ञा-संज्ञि संबंध का ज्ञान प्रमेय कहलाता है।
6. व्याप्ति क्या है ?
Ans. दो वस्तुओं के बीच एक आवश्यक सम्बन्ध जो व्यापक माना जाता है, इसे व्याप्ति सम्बन्ध (Universal relation) से जानते हैं। जैसे धुआँ और आग में व्याप्ति सम्बन्ध है।
7. प्रत्यक्ष की परिभाषा दें.
अथवा, न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष का वर्णन करें।
Ans. न्याय दर्शन में प्रत्यक्ष को एक स्वतंत्र प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया है। प्रत्यक्ष की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि “इन्द्रियार्थस निष्कर्ष जन्य ज्ञानं प्रत्यक्षम् ” अर्थात् जो ज्ञान इन्द्रिय और विषय के सन्निकर्ष से उत्पन्न हो उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं। न्याय के अनुसार प्रत्यक्ष के द्वारा प्राप्त ज्ञान निश्चित स्पष्ट तथा संदेशरहित होता है।
8. लौकिक प्रत्यक्ष की परिभाषा दीजिए।
Ans. किसी इन्द्रिय के सामने हो अर्थात् इन्द्रिय के साथ सम्पर्क हो, उसे प्रत्यक्ष कहा जाता है । साधारणतः जिसे प्रत्यक्ष ज्ञान समझा जाता है वह लौकिक प्रत्यक्ष है। इस प्रकार सविकल्प या निर्विकल्प प्रत्यक्ष लौकिक प्रत्यक्ष है। इसमें वस्तु का साथ इन्द्रियों का साधारण रूप से सन्निकर्ष या सम्पर्क होता है।
9. सविकल्पक प्रत्यक्ष की व्याख्या करें।
Ans. जब किसी वस्तु के अस्तित्व का केवल आभास मिले और उसके विषय में पूर्ण ज्ञान न हो, तब इसे ‘निर्विकल्पक प्रत्यक्ष (indeterminate Perception) कहते हैं। उदाहरण-सोए रहने पर किसी की आवाज सुनाई पड़ती है, किन्तु इस आवाज का कोई अर्थ नहीं जान पड़ता। यह ज्ञान मूक (Dumb ) या अभिव्यक्तिरहित रहता है। ज्ञान का यह आरंभबिन्दु है। यह ज्ञान विकसित होकर सविकल्पक प्रत्यक्ष बन जाता है।
10. निर्विकल्पक प्रत्यक्ष की व्याख्या करें।
Ans. कभी-कभी पदार्थों का प्रत्यक्ष ज्ञान तो होता है, लेकिन उसका स्पष्ट ज्ञान नहीं हो पाता है। उसका सिर्फ आभास मात्र होता है। उदाहरण के लिए, गंभीर चिंतन या अध्ययन में मग्न होने पर सामने की वस्तुओं का स्पष्ट ज्ञान नहीं हो पाता है। हमें सिर्फ यह ज्ञान होता है कि कुछ है, लेकिन क्या है, इसको नहीं जानते हैं। निर्विकल्पक प्रत्यक्ष को मनोविज्ञान में संवेदना के नाम से भी जानते हैं।
11. योगज प्रत्यक्ष क्या है ?
Ans. योगज प्रत्यक्ष एक ऐसा प्रत्यक्ष है जो भूत, वर्तमान और भविष्य के गुण तथा सूक्ष्म, निकट तथा दुरस्त । सभी प्रकार की वस्तुओं की साक्षात अनुभूति कराता है। यह एक ऐसी शक्ति है जिसे हम घटा-बढ़ा सकते हैं। जब यह शक्ति बढ़ जाती है तो हम दूर की चीजें तथा सूक्ष्म चीजों को भी प्रत्यक्ष कर पाते हैं। यही स्थिति योगज प्रत्यक्ष कहलाता है।
12. पदार्थ की परिभाषा दें।
Ans. पदार्थ शब्द “पद” और “अर्थ” शब्दों के मेल से बना है। पदार्थों का मतलब है जिसका नामकरण हो सके जिस पद का कुछ अर्थ होता है उसे पदार्थ की संज्ञा दी जाती है। पदार्थ के अधीन वैशेषिक दर्शन में विश्व की वास्तविक वस्तुओं की चर्चा हुई है।
13. पदार्थ प्रत्यक्ष का क्या अभिप्राय है ?
Ans. किसी ज्ञान की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि हमारे सामने कोई पदार्थ वस्तु या द्रव्य हो। जब हमारे सामने ‘गाय’ रहेगी तभी हमें उसके सम्बन्ध में किसी तरह का प्रत्यक्ष भी हो सकता है। अगर हमारे सामने कोई पदार्थ या वस्तु नहीं रहे तो केवल ज्ञानेन्द्रियाँ ही प्रत्यक्ष का निर्माण कर सकती है। इसलिए प्रत्यक्ष के लिए बाह्य पदार्थ या वस्तु का होना आवश्यक है। न्याय दर्शन में सात तरह के पदार्थ बताए गए हैं-द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष समवाय एवं अभाव । इनमें ‘द्रव्य’ को विशेष महत्त्व दिया जाता है। इसके बाद अन्य सभी द्रव्य पर आश्रित हैं।
14. अनुमान की परिभाषा दें।
Ans. अनुमान न्याय दर्शन का दूसरा प्रमाण है। अनुमान ‘अनु’ तथा मान के संयोग से बना है। अनु का अर्थ पश्चात् तथा मान का अर्थ ज्ञान से होता है अर्थात् प्रत्यक्ष के आधार पर अप्रत्यक्ष के ज्ञान को अनुमान कहते हैं। अनुमान को प्रत्यक्षमूलक ज्ञान कहा गया है। प्रत्यक्ष ज्ञान संदेह तथा निश्चित होता है। परंतु अनुमानजन्य ज्ञान संशयपूर्ण एवं अनिश्चित होता है। अनुमानजन्य ज्ञान को परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। अनुमान का आधार व्यक्ति होता है। अनुमान के तीन अवयव हैं- पक्ष साध्य तथा हेतु ।
15. स्वार्थानुमान क्या है ?
Ans. नैयायिकों ने प्रयोजन की दृष्टि से अनुमान को दो वर्गों में विभाजित किये हैं। स्वार्थानुमान तथा परार्थानुमान। जब व्यक्ति स्वयं निजी ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनुमान करता है तो उसे स्वार्थानुमान कहा जाता है इसमें तीन ही वाक्यों का प्रयोग किया जाता है।
16. स्वार्थानुमान एवं परार्थानुमान को स्पष्ट करें।
Ans. नैयायिकों ने प्रयोजन की दृष्टि से अनुमान को दो वर्गों में विभाजित किये हैं। स्वार्थानुमान तथा परार्थानुमान। जब व्यक्ति स्वयं निजी ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनुमान करता है तो उसे स्वार्थानुमान कहा जाता है इसमें तीन ही वाक्यों का प्रयोग किया जाता है लेकिन जब व्यक्ति दूसरों की शंका को दूर करने के लिए अनुमान का सहारा लेते हैं तो उस अनुमान को परार्थानुमान कहा जाता है। परार्थानुमान के लिए पाँच वाक्यों की आवश्यकता होती है। परार्थानुमान का आधार स्वार्थानुमान का होता है।
17. पूर्ववत् अनुमान क्या है ?
Ans. पूर्ववत् का शाब्दिक अर्थ है-पूर्व के समान । अर्थात् जिस प्रकार अनुभव में पहले प्रमाणित हो चुका है उसी प्रकार अनुभव करना पूर्ववत् अनुमान कहलाता है। उदाहरण- अनुभव के आधार पर यह पहले ही सिद्ध हो चुका है कि जहाँ अनोफिल मच्छर हो तो वहाँ मलेरिया बुखार होगा। इसलिए अनोफिल मच्छर की उपस्थिति मलेरिया बुखार का अनुमान किया जाता है।
18. केवलान्वयी अनुमान क्या है ?
Ans. जब केवल भावात्मक उदाहरणों के आधार पर स्थापित व्याप्ति को अनुमान का आधार बनाया जाता है तब उसे केवलान्वयी अनुमान कहते हैं। यहाँ निषेधात्मक उदाहरण नहीं लिए जाते।
19. उपमान को स्पष्ट करें।
अथवा, उपमान क्या है ?
Ans. उपमान का न्यायशास्त्र में तीसरा प्रमाण माना गया है। ‘न्यायसूत्र’ में जो इसकी परिभाषा दी गई है, उसके अनुसार ज्ञान वस्तु की समानता के आधार पर अज्ञान वस्तु की वस्तुवाचकता का ज्ञान जिस प्रमाण के द्वारा हो, उसे ही उपमान कहते हैं। इस प्रमाण द्वारा प्राप्त ज्ञान ‘उपमिति’ या उपमानजन्य ज्ञान हैं ‘तर्कसंग्रह’ के अनुसार संज्ञा-संज्ञि-संबंध का ज्ञान ही उपमिति है। उपमानं वह है, जिसके द्वारा किसी नाम (संज्ञा) और उससे सूचित पदार्थ (संज्ञी) के संबंध का ज्ञान होता है। उपमान ज्ञानप्राप्ति का वह साधन है, जिसके द्वारा किसी पद की वस्तुवाचकता (denotation) का ज्ञान हो।
20. प्रथम पदार्थ के रूप में द्रव्य की चर्चा करें।
अथवा, पदार्थ के रूप में द्रव्य की व्याख्या करें।
Ans. द्रव्य कणाद का प्रथम पदार्थ है। द्रव्य गुण एवं कर्म का आधार है। द्रव्य के बिना गुण एवं कर्म की कल्पना नहीं की जा सकती है। द्रव्य गुण एवं कर्म का आधार होने के अतिरिक्त अपने कार्यों का समवायिकरण (material cause) है। उदाहरण के लिए सूत से कपड़ा का निर्माण होता है। अतः सूत को कपड़े का समवायि कारण कहा जाता है। द्रव्य नौ प्रकार के होते हैं। वे हैं- पृथ्वी अग्नि, वायु, जल, आकाश, दिक् काल, आत्मा एवं मन। इन द्रव्यों में पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि और आकाश को पंचभूत कहा जाता है। पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि के परमाणु नित्य हैं तथा उनसे बने कार्य- द्रव्य अनित्य हैं। परमाणु दृष्टिगोचर नहीं होते हैं। परमाणुओं का अस्तित्व, अनुमान से प्रमाणित होता है। परमाणु का निर्माण एवं नाश असंभव है। पाँचवाँ भौतिक द्रव्य ‘आकाश’ परमाणुओं से रहित है। ‘शब्द’ आकाश का गुण है। सभी भौतिक द्रव्यों का अस्तित्व ‘दिक्’ और ‘काल’ में होता है। दिक् और काल के बिना भौतिक द्रव्यों की व्याख्या असंभव है।
21. उपमान एवं अनुमान के बीच सम्बन्धों की व्याख्या करें।
अथवा, उपमान एवं अनुमान के बीच क्या सम्बन्ध है ?
Ans. अनुमान प्रत्यक्ष के आधार पर ही होता है, लेकिन अनुमान प्रत्यक्ष से बिल्कुल ही भिन्न क्रिया है। अनुमान का रूप व्यापक है। उसमें उसका आधार व्याप्ति-सम्बन्ध (Universal relation) रहता है, जिसमें निगमन यानि निष्कर्ष में एक बहुत बड़ा बल रहता है तथा वह सत्य होने का अधिक दावा कर सकता है। दूसरी ओर, उपमान भी प्रत्यक्ष पर आधारित है लेकिन अनुमान की तरह व्याप्ति सम्बन्ध से सहायता लेने का सुअवसर प्राप्त नहीं होता है। उपमान से जो कुछ ज्ञान हमें प्राप्त होता है, उसमें कोई भी व्याप्ति सम्बन्ध नहीं बतलाया जा सकता है। अतः उपमान से जो निष्कर्ष निकलता है वह मजबूत है और हमेशा सही होने का दाबा कभी नहीं कर सकता है।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अनुमान को उपमान पर उस तरह निर्भर नहीं करना पड़ता है जिस तरह उपमान अनुमान पर निर्भर करता है। सांख्य और वैशेषिक दर्शनों में ‘उपमान’ को ही बताकर अनुमान का ही एक रूप बताया गया है। अगर हम आलोचनात्मक दृष्टि से देखें तो पाएँगे कि उपमान भले ही ‘अनुमान’ से अलग रखा जाए लेकिन अनुमान का काम ‘उपमान’ में हमेशा पड़ता रहता है।
22. शब्द की परिभाषा दें।
Ans. बौद्ध, जैन, वैशेषिक दर्शन शब्द को अनुमान का अंग मानते हैं जबकि गौतम के अनुसार ‘शब्द’ चौथा प्रमाण (Source of knowledge) है। उनके शब्दों एवं वाक्यों द्वारा जो वस्तुओं का ज्ञान होता है उसे हम शब्द कहते हैं। सभी तरह के शब्दों में हमें ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है। अतः ऐसे ही शब्दों को हम प्रमाण मानेंगे जो यथार्थ तथा विश्वास के योग्य हों। भारतीय विद्वानों के अनुसार ‘शब्द’ तभी प्रमाण बनता है जब वह विश्वासी आदमी का निश्चयबोधक वाक्य हो, जिसे आप्त वचन भी कह सकते हैं। संक्षेप में, “किसी विश्वासी और महान पुरुष के वचन ‘के अर्थ (meaning) का ज्ञान ही शब्द प्रमाण है।” अतः रामायण, महाभारत या पुराणों से हमें जो ज्ञान मिलता है, वह प्रत्यक्ष, अनुमान और उपमान के द्वारा नहीं मिलता है, बल्कि ‘शब्द’ (verbal authority) के द्वारा होता है।
‘शब्द’ के ज्ञान में तीन बातें मुख्य हैं। वे हैं-शब्द के द्वारा ज्ञान प्राप्त करने की क्रिया । शब्द ऐसे मानव के हों जो विश्वसनीय एवं सत्यवादी समझे जाते हों, कहने का अभिप्राय, जिनकी बातों
को सहज रूप में सत्य मान सकते हों। शब्द ऐसे हों जिनके अर्थ हमारी समझ में हों। कहने का अभिप्राय है कि यदि कृष्ण के उपदेश को अंग्रेजी भाषा में हिन्दी भाषियों को सुनाया जाय तो उन्हें समझ में नहीं आयेगा ।
23. दण्ड के निवर्तन सिद्धांत से आप क्या समझते हैं ?
Ans. निवर्तन सिद्धान्त की मूल धारणा है कि दण्ड देने के पीछे हमारा एकमात्र उद्देश्य यह होता है कि भविष्य में व्यक्ति वैसे अपराध की पुनरावृत्ति न करें। दण्ड एक तरह से व्यक्ति के ऊपर अंकुश डालता है। यदि किसी व्यक्ति को कठिन से कठिन दण्ड देते हैं तो उसका उद्देश्य दो माने जाते हैं। पहला, वह व्यक्ति भविष्य में अपराध करने के लिए हिम्मत नहीं कर पाता है। साथ ही जब दूसरा व्यक्ति अपराधकर्मी को दण्ड भोगते देखता है तो वह व्यक्ति भी भय से अपराध नहीं करता है। जैसे किसी को गाय चुराने के लिए दण्ड इसलिए नहीं दिया जाता है कि वह गाय चुरा चुका है बल्कि इसलिए दिया जाता है कि वह भविष्य में गाय चुराने की हिम्मत न करे। इस प्रकार निवर्तनवादी सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य अपराधी कार्य पर नियंत्रण लगाना माना जाता है।
24. वैशेषिक के अनुसार पदार्थ क्या है ?
Ans. वैशेषिक दर्शन में पदार्थ (substance) को एक विशेष अर्थ में लिखा गया है। पदार्थ वह है, जो गुण और कर्म को धारण करता है। गुण और बिना किसी वस्तु या आधार के नहीं रह सकते। इसका आधार ही पदार्थ कहलाता है। गुण और कर्म पदार्थ में रहते हुए भी पदार्थ से भिन्न है। पदार्थ गुण युक्त है किन्तु गुण और कर्म गुणरहित है।
वैशेषिक दर्शन के अनुसार पदार्थ नौ प्रकार के हैं-
1. आत्मा 2. अग्नि या तेज 3. वायु 4. आकाश 5. जल 6. पृथ्वी 7. दिक् 8 काल और 9. मन।
25. “विशेष” पदार्थ से आप क्या समझते हैं ?
Ans. विशेष वैशेषिक दर्शन का पाँचवाँ पदार्थ है। इसको वैशेषिक दर्शन में विशिष्ट अर्थ में लिया गया है। इसके अनुसार ‘नित्य तथा निरवयव द्रव्यों के विशिष्ट व्यक्तित्व जिसके कारण वे अपने पहचान बनाते हैं, को ‘विशेष’ की संज्ञा दी गयी है। इस प्रकार के नित्य एवं निरवयव द्रव्य है- दिक्, काल, आकाश, मन और चार भूतों (पृथ्वी, जल, वायु एवं अग्नि) के परमाणु । विशेष के आधार पर ही एक आत्मा दूसरी आत्मा से भिन्न दृष्टिगत होती है। इसी तरह अग्नि के परमाणुओं में परस्पर भेद विशेष के कारण ही होता है। इस प्रकार नित्य एवं निरवयव द्रव्यों के अपने-अपने व्यक्तिगत स्वरूप ही ‘विशेष’ है। इस प्रकार नित्य एवं निरवयवं द्रव्यों के अपने-अपने व्यक्तिगत स्वरूप ही ‘विशेष’ कहे जा सकते हैं। संक्षेपतः हम कह सकते हैं कि विशेष नित्य पदार्थों की विशेषता है।
26. वैशेषिक दर्शन के गुण को परिभाषित करें।
Ans. गुण वह कहा जाता है जिसमें वैशेषिक सूत्र के द्वारा पदार्थ द्रव्य पर आश्रित होता है, निर्गुण एवं निष्क्रिय होता है। निर्गुण का अभिप्राय है कि गुण का गुण नहीं होता है। इसलिए गुण- को अगुणवान कहा जाता है। गुण किसी कार्य को नहीं करता है। इसलिए यह अक्रियावान ‘कहलाता है। गुण आधारहीन नहीं होता है। इसलिए इसका कोई-न-कोई आधार जरूर होता है तथा वह आधार द्रव्य है। इसलिए गुण को द्रव्याश्रित भी कहा जाता है। गुण की व्याख्या दी गयी है- द्रव्याश्रय गुणवान् संयोग विभागत्वकारण मनपेक्ष इति गुणलक्षणम् ।
27. कर्म के प्रकारों को लिखें।
Ans. वैशेषिक द्वारा कर्म पाँच प्रकार के माने गये हैं, जो निम्नलिखित हैं-
1.उत्क्षेपण (Throwing upward) – उत्क्षेपण कर्म द्वारा द्रव्य ऊपर उठते हैं। उदाहरणार्थ- गेंद, बैलून, राकेट आदि का ऊपर उठना ।
2. अवक्षेपण (Downward movement ) – अवक्षेपण कर्म द्वारा द्रव्य ऊपर से नीचे आते हैं। उदाहरणस्वरूप- गेंद फल आदि का ऊपर से नीचे आना।
वैशेषिक दर्शन में उत्क्षेपण को ऊखल तथा मूसल के उदाहरण द्वारा बतलाया गया है। हाथ की गति से मूसल ऊपर उठता है। यह उत्क्षेपण है। हाथ की गति से मूसल ऊपर लाया जाता है, ● जिसके फलस्वरूप इसका संयोग ऊखल से होता है। मूसल का ऊपर उठना ‘उत्क्षेपण’ है और इसका नीचे गिना ‘अवक्षेपण’ है।
3. आकुंचन (Contraction) -आकुंचन का अर्थ है सिकुड़ना। नये वस्त्र को भिगोने पर वह सिकुड़ जाता है और इसमें धागे परस्पर निकट हो जाते हैं। यही आकुंचन कहलाता है।
4. प्रसारण (Expasion) – प्रसारण का अर्थ है फैलना। जब किसी द्रव्य के कण एक-दूसरे से दूर होने लगे तो यह ‘प्रसारण’ कहा जाता है। मुड़े हुए कागज को पहले जैसा कर देना इस कर्म का उदाहरण है। मोड़े हुए हाथ, पैर, वस्त्र आदि को फैलाना ‘प्रसारण’ का उदाहरण है।
5. गमन-गमन’ को सामान्यतः जाने के अर्थ में रखा जाता है। किन्तु वैशेषिक ने उपर्युक्त चारों कर्मों के अतिरिक्त अन्य सभी कर्म ‘गमन’ के अन्तर्गत रखे जाते हैं। चलना, दौड़ना आदि ‘गमन’ के ही उदाहरण हैं।
28. सांख्य दर्शन में सांख्य के अर्थ की व्याख्या करें।
Ans. सांख्य दर्शन में ‘सांख्य’ नामकरण के सम्बन्ध में दार्शनिकों के बीच, अनेक मत प्रचलित हैं। कुछ दार्शनिकों के अनुसार ‘सांख्य’ शब्द ‘सं’ और ख़्या’ के संयोग से बना है। ‘स’ का अर्थ सम्यक् तथा ‘ख्या’ का अर्थ ज्ञान होता है। अतः सांख्य का वास्तविक अर्थ ‘सम्यक् ज्ञान”. हुआ। सम्यक ज्ञान का अभिप्राय पुरुष और प्रकृति के बीच भिन्नता का ज्ञान होता है। दूसरी ओर कुछ दार्शनिकों के अनुसार ‘सांख्य’ नाम ‘संख्या’ शब्द से प्राप्त हुआ है। सांख्य दर्शन का सम्बन्ध संख्या से होने के कारण ही इसे सांख्य कहा जाता है।
सांख्य दर्शन में तत्त्वों की संख्या बतायी गयी है। तत्वों की संख्या पचीस बतायी गयी है। एक तीसरे विचार के अनुसार ‘सांख्य’ को सांख्य कहे जाने का कारण सांख्य के प्रवर्तक का नाम ‘संख’ होना बतलाया जाता है। लेकिन यह विचार प्रमाणित नहीं है। महर्षि कपिल को छोड़कर अन्य को सांख्य का प्रवर्तक मानना अनुचित है। सांख्य दर्शन वस्तुतः कार्य-कारण पर आधारित है।
29. सांख्य दर्शन में ‘सत्व’ के अर्थ बतावें।
Ans. सांख्य दर्शन में गुण तीन प्रकार के होते हैं। वे हैं-सत्व, रजस् और तमस् । सत्व गुण ज्ञान का प्रतीक है। यह खुद प्रकाशमय है तथा दूसरों को भी प्रकाशित करता है। सत्व के कारण ही मन तथा बुद्धि विषयों को ग्रहण करते हैं। इसका रंग श्वेत (उजला) है। यह सुख का कारण होता है। सत्व के कारण ही सूर्य पृथ्वी को प्रकाशित करता है तथा ऐनक में प्रतिबिम्ब की शक्ति होती है। इसका स्वरूप हल्का तथा छोटा (लघु) होता है। सभी हल्की वस्तुओं तथा धुएँ का ऊपर की दिशा में गमन ‘सत्व’ के कारण ही संभव होता है। सभी सुखात्मक अनुभूति यथा हष, तृप्ति, संतोष, उल्लास आदि सत्य के ही कार्य माने जाते हैं।
30. सत्व गुण क्या है ?
Ans. सांख्य दर्शन प्रकृति को त्रिगुणमयी कहा है वह सत्त्व, रजस एवं तमस्। सत्व गुण ज्ञान का प्रतीक है। यह स्वयं प्रकाशपूर्ण है तथा अन्य वस्तुओं को भी प्रकाशित करता है। सत्व के कारण मन तथा बुद्धि विषयों को ग्रहण करते हैं। इसका रंग श्वेत है। सभी प्रकार की सुखात्मक अनुभूति, जैसे- उल्लास, हर्ष, संतोष, तृप्ति आदि सत्व के कार्य हैं।
31. सद्गुण क्या है ?
Ans. सद्गुण से हमारा तात्पर्य किसी व्यक्ति के नैतिक विकास से रहता है। सद्गुण के अन्तर्गत तीन बातें आती हैं। वे हैं-कर्त्तव्य का पालन इच्छा से हो तथा सद्गुण का अर्जन । निरन्तर अभ्यास द्वारा कर्त्तव्य पालन करने से जो स्थिर प्रवृत्ति में श्रेष्ठता आती है वही सद्गुण है। उचित कर्मों का पालन करना ही हमारा कर्त्तव्य है और अनुचित कर्मों का त्याग भी कर्त्तव्य ही है। जब कोई मानव अभ्यास पूर्वक अपने कर्त्तव्य का पालन करता है तो उसमें एक प्रकार का नैतिक गुण स्वत: विकसित होने लगता है। यहीं विकसित गुण सद्गुण है। वस्तुतः अच्छे चरित्र का लक्षण ही सद्गुण है। कर्त्तव्य हमारे बाहरी कर्म का द्योतक है जबकि सद्गुण हमारे अन्तः चरित्र का द्योतक है। सुकरात ने तो सद्गुण ज्ञान को ही माना है।
32. सांख्य के अनुसार पुरुष के स्वरूप की व्याख्या करें।
Ans. सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुष स्वतंत्र और अकर्मण्य शुद्ध चेतना का स्वरूप है। इसमें विकार या परिवर्तन नहीं हो सकता। वह ज्ञान का स्रोत है, लेकिन वह स्वयं किसी वस्तु को नहीं जानता। यह किसी भी क्रिया को नहीं करता अर्थात् अकर्त्ता और निष्क्रिय होता है। इसका न तो निर्माण होता है न ही विनाश। यह सनातन और अविनाशी है। यह त्रिगुणों से अछूता है। यह स्वयं में पूर्ण और आनन्दमय है।
33. सांख्य के अनुसार प्रकृति के स्वरूप की व्याख्या करें।
Ans. सांख्य दर्शन के द्वारा प्रकृति त्रिगुणात्मिका होती है, जबकि पुरुष त्रिगुणातीत होता है। त्रिगुण होते हैं- सत्व, रज और तम । इन तीन गुणों की साम्यावस्था को ही प्रकृत कहा गया है। साम्यावस्था का तात्पर्य है प्रकृति में तीनों गुणों की मात्रा बराबर रहती है। उनकी मात्रा में इतना सन्तुलन होता है कि उनका कोई अलग अस्तित्व नहीं रहता है। वस्तुतः वे तीन गुण एक साथ.
लित होकर त्रिगुणात्मक तत्व होते हैं न कि तीन तत्व यह तीनों त्रिगुणात्मक तत्व मात्र एक ही हैं। इसका नाम प्रकृति है। अतः त्रिगुण एवं प्रकृति में कोई भी अन्तर नहीं होता है। फिर भी प्रकृति को गुण एवं गुण को प्रकृति नहीं कह सकते हैं। यह बात सही है कि गुण प्रकृति में ही अवस्थित होता है तथा प्रकृति गुण के बिना सक्रिय नहीं हो पाती है। लेकिन इसको प्रकृति के एकाकार नहीं कहा जा सकता है। इस एकाकार को तत्व ही माना जाता है। जब यह प्रकृति के स्वभाव में होता है परन्तु गुण प्रकृति का ही स्वरूप है इसीलिए प्रकृति को त्रिगुणात्मिका एवं त्रिरूपात्मिका कहा जाता है न कि त्रिस्वाभावा ।
34. पुरुष एवं प्रकृति की व्याख्या करें।
Ans. सांख्य दर्शन की मान्यता है कि प्रकृति और पुरुष के संयोग से सृष्टि होती है। जब प्रकृति पुरुष के संसर्ग,में आती है तभी संसार की उत्पत्ति होती है। प्रकृति और पुरुष का संयोग इस तरह का साधारण संयोग नहीं है जो दो भौतिक द्रव्यों जैसे रथ और घोड़े, नदी और नाव में होता है। यह एक विलक्षण प्रकार का संबंध है। प्रकृति पर पुरुष का प्रभाव वैसा ही पड़ता है जैसा किसी विचार का प्रभाव हमारे शरीर पर न तो प्रकृति ही सृष्टि का निर्माण कर सकती है क्योंकि वह जड़ है और न अकेला पुरुष ही इस कार्य को सम्पन्न कर सकता है; क्योंकि यह निष्क्रिय
है। अतः सृष्टि निर्माण के लिए प्रकृति और पुरुष का संसर्ग नितांत आवश्यक है। पर प्रश्न उठता है कि विरोधी धर्मों को रखने वाले ये तत्त्व एक-दूसरे से मिलते ही क्यों हैं ? उसके उत्तर में सांख्य का कहना है जिस प्रकार एक अंधा और एक लंगड़ा आग से बचने के लिए दोनों आपस में मिलकर एक-दूसरे की सहायता से जंगल पार कर सकते हैं, उसी प्रकार जड़ प्रकृति और निष्क्रिय पुरुष, परस्पर मिलकर एक-दूसरे की सहायता से अपना कार्य सम्पादित कर सकते हैं। प्रकृति कैवल्यार्थ या अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानने में पुरुष की सहायता लेती है।
35. प्रकृति के तीन गुणों के नाम बतावें ।
Ans. प्रकृति के तीन गुणों के नाम निम्नलिखित हैं-
1.सत्त्व 2. रजस् 3. तमस् ।
36. प्रकृति का तम गुण क्या है ?
Ans. प्रकृति का तम गुण कृष्ण (काला) रंग का होता है। यह रंग मोह, आलस्य, उदासीनता, निद्रा, तन्द्रा इत्यादि का सूचक है। तमगुण मोहदायी का प्रतीक होता है।
37. प्रकृति के सत्व गुण और तमो गुण में मौलिक अन्तर क्या है ?
Ans. प्रकृति के सत्व गुण श्वेत तथा तमोगुण कृष्ण (काला) रंग का होता है। श्वेत रंग ज्ञान का प्रतीक होता है। कृष्ण (काला) रंग मोह, आलस्य, उदासीनता, निद्रा, तन्द्रा इत्यादि का सूचक है। सत्वगुण सुखदायी है तथा तमोगुण मोहदायी का प्रतीक होता है।
38. योग का क्या अर्थ है ?
Ans. योगदर्शन भारतीय दर्शन का व्यावहारिक पक्ष है। योग युज् धातु से बना है, जिसका अर्थ है मिलना। अतः योग का अर्थ ‘मिलन’ से है। जिन क्रियाओं द्वारा मनुष्य ईश्वर से मिल पाता है, उसे योग कहते हैं। लेकिन योग दर्शन में योग का एक विशेष अर्थ है। इस दर्शन के अनुसार चित्तवृत्तियों के निरोध को योग कहा जाता है।-
39. योग दर्शन के अनुसार नियम क्या है ?
Ans. नियम योग का भावात्मक मार्ग (affirmative ways) है। यह यम के पश्चात् अपनाया जाता है। इसलिए इसे योग का द्वितीय मार्ग कहा जाता है। इसके पाँच अंग होते हैं-शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वरप्राणिधान नियम का स्वरूप तथा निहितार्थ अर्थ दोनों ही भावात्मक है। इसलिए नियम को प्रवृत्तिमूलक कहा जाता है।
40. योग दर्शन के अनुसार प्रत्याहार क्या है ?
Ans. प्रत्याहार को इन्द्रियप्रधान कहा जाता है। अतएव शरीर तथा प्राणवायु को नियन्त्रित करने के बाद इन्द्रियों को नियन्त्रित करना भी अनिवार्य है। प्रत्याहार वह कहलाता है जहाँ पर इन्द्रियों को उनके अपने विषयों से पृथक् कर उन्हें चित्ते में स्थिर किया जाता है। प्रत्याहार का सन्धि विच्छेद प्रति + आहार होता है। अतः इन्द्रियों के आहार (विषयों) को विमुख (प्रति, अलग) करना ही प्रत्याहार का तात्पर्य है।
41. यम क्या है ?
Ans. यम योग का प्रथम अंग है। बाह्य अभ्यांतर इंद्रिय के संयम की क्रिया को यम कहा जाता है। यम पाँच प्रकार के होते हैं-1. अहिंसा 2. सत्य 3. आस्तेय 4. ब्रह्मचर्य ‘5. अपरिग्रह
42. योग दर्शन में ‘आसन’ की क्या उपयोगिता है ?
Ans. आसन एक विशेष तरह से बैठने की कला है। आस्यतेऽनेनेति आसनम् इस व्युत्पत्ति के द्वारा भी आसन शरीर को अपेक्षित सुख देने वाली अवस्था है। आसन असंख्य है, फिर भी : साधारणत: चौरासी आसनों की बात की जाती है। विज्ञानभिक्षु के द्वारा जितने भी तरह की जीव की जातियाँ हैं उतने ही तरह के आसन भी हैं। तब भी, कुछ विशेष व प्रचलित आसनों के नाम गिनाये जा सकते हैं- पद्मासन, मयूरासन, वज्रासन, शवासन, स्वस्तिकासन, चक्रासन, पीठासन आदि ।