वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. “कड़बक’ के कवि कौन है ?
[ A ] कबीर दास
[ B ] सूरदास
[ C ] मलिक मुहम्मद जायसी
[ D ] नाभादास
Answer ⇒ (C)
2. मलिक मुहम्मद जायसी की कविता कौन सी है ?
[ A ] पुत्र वियोग
[ B ] कड़बक
[ C ] उषा
[ D ] हार-जीत
Answer ⇒ (B)
3. मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म कब हुआ था ?
[ A ] 1450 ई० में
[ B ] 1485 ई० में
[ C ] 1492 ई० में
[ D ] 1496 ई० में
Answer ⇒ (C)
4. जायसी का जन्म किस प्रदेश में हुआ था ?
[ A ] उत्तर प्रदेश
[ B ] मध्य प्रदेश
[ C ] आन्ध्र प्रदेश
[ D ] इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (A)
5. जायसी किस तरह के कवि है ?
[ A ] भक्त कवि
[ B ] सूफी कवि
[ C ] श्रृंगारिक कवि
[ D ] इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
6. जायसी का जन्म स्थान कहाँ था ?
[ A ] इलाहाबाद
[ B ] बनारस
[ C ] कानपुर
[ D ] अमेठी
Answer ⇒ (D)
7. जायसी के पिता का नाम क्या था ?
[ A ] शेख मुहम्मद
[ B ] शेख यमरेख
[ C ] शेख परवेज
[ D ] इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
8. जायसी थे –
[ A ] धनवान
[ B ] पहलवान
[ C ] फकीर
[ D ] इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (C)
9. जायसी हिन्दी साहित्य की किस काव्य धारा से जुड़े थे।
[ A ] ज्ञानमार्गी शाखा
[ B ] प्रेममार्गी शाखा
[ C ] कृष्णमार्गी शाखा
[ D ] सगुण भक्ति काव्य
Answer ⇒ (B)
10. जायसी की काव्य की भाषा कौन-सी थी ?
[ A ] खड़ी बोली
[ B ] ब्रज
[ C ] अवधी
[ D ] अरबी
Answer ⇒ (C)
11. जायसी के काव्य का मुख्य रस क्या है ?
[ A ] वात्सल्य रस
[ B ] श्रृंगार रस
[ C ] वीर रस
[ D ] इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (B)
12. जायसी ने रत्नसेन तथा पदमावती की कथा को किस प्रकार जोड़ा है।
[ A ] प्रेम द्वारा
[ B ] भक्ति द्वारा
[ C ] रक्त रूप लेई द्वारा
[ D ] इनमें से कोई नहीं
Answer ⇒ (C)
13. जायसी ने रत्नसेन एवं पदमावती की कथा को किसके द्वारा सीचा –
[ A ] अपने आँसुओं से
[ B ] गंगाजल से
[ C ] जल से
[ D ] इनमें से किसी से नहीं
Answer ⇒ (A)
14. जायसी ने किस दोष से युक्त होते हुए भी गुणवान हैं ?
[ A ] जिह्वा दोष
[ B ] नेत्र दोष
[ C ] अंग दोष
[ D ] श्रव्य दोष
Answer ⇒ (B)
15. जायसी का काव्य किस प्रकार गम्भीर एवं व्यापक है ?
[ A ] सरोवर की भाँति
[ B ] कुएँ की भाँति
[ C ] समुद्र की भाँति
[ D ] नदी की भाँति
Answer ⇒ (C)
16. इनमें से “प्रेम के पीर’ के कवि हैं ?
[ A ] जायसी
[ B ] नाभादास
[ C ] सूरदास
[ D ] कबीरदास
Answer ⇒ (A)
17. ‘कड़बक’ कहाँ से लिया गया है ?
[ A ] आखिरी कलाम
[ B ] अखरावट
[ C ] मधुमालती
[ D ] पद्मावत
Answer ⇒ (D)
18. कड़बक के रचयिता है –
[ A ] सूरदार
[ B ] कबीरदास
[ C ] जायसी
[ D ] तुलसीदास
Answer ⇒ (C)
19. जायसी रचित ‘पद्मावत’ की भाषा क्या है ?
[ A ] अवधी
[ B ] ब्रज
[ C ] खड़ीबोली
[ D ] मैथिली
Answer ⇒ (A)
20. मलिक मुहम्मद जायसी किस परंपरा के कवि है ?
[ A ] सगुण कृष्णभक्ति परंपरा
[ B ] सगुण रामभक्ति परंपरा
[ C ] प्रेमाख्यानक काव्य-परंपरा
[ D ] संस्कृत काव्य-परंपरा
Answer ⇒ (C)
21. जायसी ने अपनी आँख की उपमा किससे की है ?
[ A ] कमल
[ B ] कुमुद
[ C ] सरोवर
[ D ] दर्पण
Answer ⇒ (D)
22. मलिक मुहम्मद जायसी किस शाखा के कवि है ?
[ A ] प्रेममार्गी शाखा के
[ B ] ज्ञानमार्गी शाखा के
[ C ] राममार्गी शाखा के
[ D ] कृष्णमार्गी शाखा के
Answer ⇒ (A)
23. कौन-सी कृति जायसी की नहीं है ?
[ A ] ‘पद्मावत’
[ B ] ‘अखरावट’
[ C ] ‘आखिरी कलाम’
[ D ] ‘मृगावती’
Answer ⇒ (D)
24. ‘पद्मावत’ किसकी रचना है ?
[ A ] मुल्ला दाउद की
[ B ] कुतुबन की
[ C ] जायसी की
[ D ] मंडन की
Answer ⇒ (C)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. कवि ने अपनी एक आँख से तलना दर्पण से क्यों की है ?
उत्तर ⇒ महाकवि जायसी ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से इसलिए की है कि दर्पण जिस प्रकार स्वच्छ और निर्मल होता है, ठीक उसी प्रकार कवि की आख ह। काइ मा व्यक्ति अपनी छवि जिस प्रकार साफ एवं स्पष्ट रूप से दर्पण में देख पाता ह, ठाक उसी प्रकार कवि की आँख भी स्वच्छता और पारदर्शिता का प्रतीक है। एक आख स अध होकर भी कवि काव्य-प्रतिभा से युक्त है, अतः वह पूजनीय है, वंदनीय है। कवि अपनी निर्मल वाणी द्वारा सारे जनमानस को प्रभावित करता है जिसके कारण सभी लोग कवि की प्रशंसा करते है और नमन करते हैं। जैसी छवि वैसा ही प्रतिबिंब दर्पण में उभरता है। ठीक उसी प्रकार कवि की निर्मलता और लोक कल्याणकारी भावना उनकी कविताओं में दृष्टिगत होती है।
2. पहले कड़बक में कलंक, काँच और कंचन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर ⇒ अपनी कविताओं में कवि ने कलंक, काँच और कंचन आदि शब्दों का प्रयोग किया है। इन शब्दों की कविता में अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं। कवि ने इन शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने का कार्य किया है।
जिस प्रकार काले धब्बे के कारण चन्द्रमा कलंकित हो गया फिर भी अपनी प्रभा से जग को आलोकित करने का काम किया। जिस प्रभा के आगे चन्द्रमा का काला धब्बा ओझल हो जाता है, ठीक उसी प्रकार गुणीजन की कीर्तियों के सामने उनके एकाध दोष लोगों की नजरों से ओझल हो जाते हैं।
कंचन शब्द के प्रयोग करने के पीछे कवि की धारणा है कि जिस प्रकार शिव त्रिशल द्वारा नष्ट किए जाने पर सुमेरू पर्वत सोने का हो गया ठीक उसी प्रकार सज्जनों के संगति से दुर्जन भी श्रेष्ठ मानव बन जाता है। संपर्क और संसर्ग में ही यह गुण निहित है लेकिन पात्रता भी अनिवार्य है। यहाँ भी कवि ने गुण-कर्म की विशेषता का वर्णन किया है।
काँच शब्द की सार्थकता भी कवि ने अपनी कविताओं में स्पष्ट करने की चेष्टा की । बिना धारिया में (सोना गलाने के पात्र में कच्चा सोना गलाया जाता है, उसे धारिया कहते है ) गलाए काँच (कच्चा सोना) असली स्वर्ण रूप को प्राप्त नहीं कर सकता है ठीक उसी प्रकार संसार में किसी मानव को बिना संघर्ष, तपस्या और त्याग के श्रेष्ठता नहीं प्राप्त हो सकती है।
3. पहले कड़बक में व्यंजित जायसी के आत्मविश्वास का परिचय अपने शब्दों में दें।
उत्तर ⇒ महाकवि जायसी अपनी करूपता और एक आँख से अंधे होने पर शाक प्रकट नहीं करते है बल्कि आत्मविश्वास के साथ अपनी काव्य प्रतिभा के बल पर लोकहित का बातें करते हैं। प्राकृतिक प्रतीकों द्वारा जीवन में गण की महत्ता की विशेषताओं का वर्णन करत ह।
जिस प्रकार चन्द्रमा काले धब्बे के कारण कलंकित तो हो गया किन्तु अपनी प्रभायुक्त आभा से सारे जग को आलोकित करता है। अत: उसका दोष गण के आगे ओझल हो जाता है।
समेरु पर्वत की यश गाथा भी शिव-त्रिशल के स्पर्श बिना निरर्थक है। घरिया म तपाए बिना सोना में निखार नहीं आता है ठीक उसी प्रकार कवि का जीवन भी नेत्रहीनता के कारण दोषभाव उत्पन्न तो करता है किन्तु उसकी काव्य-प्रतिभा के आगे सबकुछ गौण पड़ जाता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि कवि का नेत्र नक्षत्रों के बीच चमकते शुक्र तारा का तरह है जिसके काव्य का श्रवण कर सभी जन मोहित हो जाते हैं।
4. कवि ने किस रूप में स्वयं को याद रखे जाने की इच्छा व्यक्त की है ? उनकी इस इच्छा का मर्म बताएँ।
उत्तर ⇒ कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी स्मृति के रक्षार्थ जो इच्छा प्रकट की है, उसका वर्णन अपनी कविताओं में किया है।
कवि का कहना है कि मैंने जान-बूझकर संगीतमय काव्य की रचना की है ताकि इस प्रबंध के रूप में संसार में मेरी स्मृति बरकरार रहे। इस काव्य-कृति में वर्णित प्रगाढ़ प्रेम सर्वथा नयनों की अश्रुधारा से सिंचित है यानि कठिन विरह प्रधान काव्य है।
दूसरे शब्दों में जायसी ने उस कारण का उल्लेख किया है जिससे प्रेरित होकर उन्होंने लौकिक कथा का आध्यात्मिक विरह और कठोर सूफी साधना के सिद्धान्तों से परिपुष्ट किया है। इसका कारण उनकी लोकैषणा है। उनकी हार्दिक इच्छा है कि संसार में उनकी मृत्यु के बाद उनकी कीर्ति नष्ट न हो। अगर वह केवल लौकिक कथा-मात्र लिखते तो उससे उनकी कीर्ति चिरस्थायी नहीं होती। अपनी कीर्ति चिरस्थायी करने के लिए ही उन्होंने पदमावती की लौकिक कथा को सूफी साधना की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर प्रतिष्ठित किया है। लोकेषणा भी मनुष्य की सबसे प्रमुख वृत्ति है। अंग्रेज कवि मिल्टन ने तो इसे श्रेष्ठ व्यक्ति की अंतिम दुर्बलता कहा है।
5. रक्त के लेई का क्या अर्थ है ?
उत्तर ⇒ यहाँ पर लेखक ने लेई के रूपक से यह बताने की चेष्टा की है कि उसने अपने कथा के विभिन्न प्रसंगों को किस प्रकार एक ही सूत्र में बाँधा है। कवि कहता है कि मैंने अपने रक्त की लेई बनाई है अर्थात् कठिन साधना की है। यह लेई या साधना प्रेमरूपी आँसो से अप्लावित की गई है। कवि का व्यंग्यार्थ है कि इस कथा की रचना उसने कठोर सफी साधना के फलस्वरूप की है और फिर इसको उसने प्रेमरूपी आँसुओं से विशिष्ट आध्यात्मिक विरह द्वारा पुष्ट किया है। लौकिक कथा को इस प्रकार अलौकिक साधना और आध्यात्मिक विरह से परिपुष्ट करने का कारण भी जायसी ने अपनी काव्यकृति के द्वारा लोक जगत में अमरत्व प्राप्ति की प्रबल इच्छा बताया है।
6. मुहम्मद यहि कबि जोरि सुनावा। यहाँ कवि ने जोरि शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है ?
उत्तर ⇒ मलिक महम्मद जायसी ने अपने जीवन काल में समय-समय पर लिखे गए प्रसंगों को एक व्यवस्थित प्रबंध के रूप में प्रस्तुत किया है। यह जोरि-जोड़ना यानि व्यवस्थित करने के लिए प्रयुक्त हुआ है।
कवि ने विविध प्रसंगों या घटनाओं को एक साथ प्रबंध-स्वरूप में व्यवस्थित कर लोक जगत में अपनी काव्यकति को प्रस्तुत किया है। कवि ने अपनी कविता में ‘प्रेमपीर’ की चर्चा की है। सूफी साधना का सर्वस्व है-प्रेमपीर। इस प्रेमपीर की चर्चा सभी सूफी कवियों ने अपनी काव्य कृतियों में की है। जब साधक किसी गुरु की कृपा से उस दिव्य सौंदर्य स्वरूपी परमात्मा की झलक पा लेता है और उसके पश्चात जब उसकी वृत्ति की संसार की ओर पुन: पुनरावृत्ति होती है तब उसका हृदय प्रेम की पीर या आध्यात्मिक विरह-वेदना से व्यथित हो उठता है। यह विरह वेदना या प्रेम की पीर ही साधक के कल्ब के कालुल्यों को धीरे-धीरे जलाती रहती है और जब कल्ब के कालुष्य नष्ट हो जाते हैं तब वह सरलता से भावना लोक में उस सौंदर्य स्वरूपी परमात्मा के सतत दर्शन करने में समर्थ होते हैं।