महत्वपूर्ण तथ्य
1.लेखक का नाम- घनानंद
2. जन्म- 1673 ई०
3. मृत्यु- 1739 ई०, मथुरा में
4. घनानंद तत्कालीन मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले के यहाँ मीर मुंशी थे।
5. ये अच्छे गायक और श्रेष्ठ कवि थे।
6. ये सुजान नामक नर्तकी से काफी प्रेम करते थे।
7. विराग होने पर ये वृंदावन चले गये तथा वैष्णव संप्रदाय में दीक्षित होकर काव्य रचना करने लगे।
8. 1739 ई० में नादिरशाह ने जब दिल्ली पर आक्रमण किया तब उसके सिपाहियों ने मथुरा एवं वृंदावन पर भी धावा बोल दिया।
9. घनानंद को बादशाह का मीरमुंशी समझकर उन्हें सैनिकों ने मार डाला।
10. रचनाएँ- सुजानसागर, विरहलीला, रसकेलि बल्ली।
11. कविता परिचय- प्रस्तुत पाठ में घनानंद के दो छंद संकलित है।
12. प्रथम छंद में कवि ने प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग के विषय में बताया है।
13. द्वितीय छंद में विरह वेदना से व्यथित अपने हृदय की पीड़ा को कलात्मक रंग से अभिव्यंजित किया है।
पद :-
अति सूधो सनेह का मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झुझुकैं कपटी जे निसाँक नहीं।।
अर्थ :- कवि घनानंद कहते हैं कि प्रेम का मार्ग अति सीधा और सुगम होता है जिसमें थोड़ा भी टेढ़ापन या धूर्तता नहीं होती है। उस पथ पर वहीं व्यक्ति चल सकता है जिसका हृदय निर्मल है तथा अपने आप को पूर्णतः समर्पित कर दिया है।
‘घनआनँद‘ प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक तैं दूसरो आँक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ कहौ मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।।
अर्थ :- कवि घनानंद कहते हैं- हे सज्जन लोगों ! सुनो, सगुण और निर्गुण से कोई तुलना नहीं है। तुमने तो ऐसा पाठ पढ़ा है कि मन भर लेते हो किन्तु छटाँक भर नहीं देते हो। अतः कवि का कहना है कि गोपियाँ कृष्ण-प्रेम में मस्त होने के कारण उधो की बातों पर ध्यान नहीं देती, बल्कि प्रेम की विशेषता पर प्रकाश डालती हुई कहती है कि भक्ति का मार्ग सुगम होता है, ज्ञान का मार्ग कठिन होता है।
परकाजहि देह को धारि फिरौ परजन्य जथारथ ह्वै दरसौ।
निधि-नीर सुधा की समान करौ सबही बिधि सज्जनता सरसौ।।
अर्थ :- कवि घनांनद कहते हैं कि दूसरे के उपकार के लिए शरीर धारण करके बादल के समान फिरा करो और दर्शन दो। समुद्र के जल को अमृत के समान बना दो तथा सब प्रकार से अपनी सज्जनता का परिचय दो।
‘घनआनँद‘ जीवनदायक हौ कछू मेरियौ पीर हिएँ परसौ।
कबहूँ वा बिसासी सुजान के आँगन मो अँसुवानिहिं लै बरसौ।।
अर्थ :- कवि घनानंद का आग्रह है कि उनकी हार्दिक पीड़ा का अनुभव करते हुए उन्हें जीवन रस प्रदान करो, ताकि वह कभी भी अपनी प्रेमिका सुजान के आँगन में उपस्थित हो कर अपने प्रेमरूपी आँसु की वर्षा करें।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1.‘मो अँसुवनिहि लै बरसो’ कौन कहते हैं ?
【A】 रसखान
【B】 गुरुनानक
【C】 घनानंद
【D】 दिनकर
Ans : C
2. घनानंद ने किस मार्ग को अत्यंत सीधा व सरल कहा है ?
【A】 क्रोध
【B】 प्रेममार्ग
【C】 घृणा
【D】 कपट
Ans : B
3. ‘घनानंद’ किस काल के कवि थे ।
(A) भक्ति काल के
(B) वीरगाथा काल के
(C) छायावाद युग के
(D) रीति युग के
Ans : D
4. ‘अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।’ यह पंक्ति किस कवि की है ?
【A】 गुरुनानक
【B】 प्रेमघन
【C】 रसखान
【D】 घनानंद
Ans : D
5. कवि प्रेममार्ग को ‘अति सूधो’ कहता है क्योंकि –
【A】 यहाँ तनिक भी चतुराई. काम नहीं करती।
【B】 हाँ सच्चाई भी अपना घमंड त्याग कर चलती है।
【C】 यहाँ कपटी लोग चलने से झिझकते हैं।
【D】 उपर्युक्त सभी।
Ans : D
6. घनानंद की भाषा क्या है ?
【A】 अवधी
【B】 ब्रजभाषा
【C】 प्राकृत
【D】 पाली
Ans : B
7. कवि ने ‘परजन्य’ किसे कहा है ?
【A】 कृष्ण
【B】 सुजान
【C】 बादल
【D】 हवा
Ans : C
8. “घनआनंद जीवनदायक हौ कछु मेरियौ पीर हिएँ परसौ” में किस कवि का नाम आया है ?
【A】 प्रेमघन
【B】 घनानंद
【C】 धन याम
【D】 बिहारीलाल
Ans : B
9. “सुजानसागर’ के रचनाकार हैं –
【A】 रसखान
【B】 गुरुनानक
【C】 प्रेमघन
【D】 घनानंद
Ans : D
10. ‘सुजानसागर’ किसकी कृति है ?
【A】 मतिराम
【B】 घनानन्द
【C】 देव
【D】 केशवदास
Ans : B
11. ‘लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और प्रयोग वैचित्र्य’ के कवि कौन हैं ?
【A】 घनानन्द
【B】 सूरदास
【C】 बिहारी
【D】 तुलसीदास
Ans : A
12. रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि किन्हें माना जाता है ?
【A】 प्रेमधन
【B】 घनानंद
【C】 रसखान
【D】 कबीर
Ans : B
13. परहित के लिए देह धारण कौन करता है ?
【A】 राजा
【B】 साधु
【C】 बादल
【D】 पशु
Ans : C
14. ‘घनानंद’ ने विरक्त होने पर स्थायी रूप से कहाँ निवास किया ?
【A】 हरिद्वार
【B】 अयोध्या
【C】 काशी
【D】 वृन्दावन
Ans : D
15. कवि धनानंद ने किस मार्ग को सबसे सरल कहा है ?
【A】 प्रेममार्ग को
【B】 साधना के मार्ग को
【C】 कर्मपंथ को
【D】 ज्ञानमार्ग को
Ans : A
16. ‘मो अँसुवानिहिं लै बरसौ’ में किसकी बात कही गई हैं ?
【A】 प्रेम वेदना की
【B】 विरह वेदना की
【C】【A】 और 【B】 दोनों की
【D】 इनमें कोई नहीं
Ans : B
17. ‘घनानंद’ किस काल के कवि थे ?
【A】 भक्ति काल के
【B】 वीरगाथा काल के
【C】 छायावाद युग के
【D】 रीति युग के
Ans : D
18. घनानंद के अनुसार, ‘प्रेम का मार्ग’ कैसा होता है ?
【A】 सीधा और सरल
【B】 कठिन और जटिल
【C】 सीधा और सुखदायी
【D】 कठिन और दुखदायी
Ans : A
19. ‘नेकु’ का आधुनिक मानक रूप है –
【A】 अच्छा
【B】 तनिक भी
【C】 कुछ नहीं
【D】 सबसे सुन्दर
Ans : B
20. घनानंद ने सुजान कहकर किसे संबोधित किया है ?
【A】 प्रीतम को
【B】 सामान्य जन को
【C】 साधुओं को
【D】 विद्वानों को
Ans : A
21. ’घनानंद’ ने जीवनदायक किसे कहा है ?
【A】 सुजान को
【B】 ईश्वर को
【C】 बादल को
【D】 इनमें से कोई नहीं
Ans : C
22. घनानंद की कीर्ति का आधार है –
【A】 सुजानहित
【B】 लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और प्रयोग वैचित्र्य
【C】 【A】 और 【B】 दोनों
【D】 इनमें कोई नहीं
Ans : C
23. घनानंद किस बादशाह के यहाँ मीरमुंशी का काम करते थे ?
【A】 अकबर के
【B】 औरंगजेब के
【C】 बाबर के
【D】 मोहम्मदशाह रंगीले के
Ans : D
24. कौन प्रेम कर सकते हैं ?
【A】 छली और कपटी ही
【B】 निश्छल और निष्कपट ही
【C】 【A】 और 【B】 दोनों ही
【D】 इनमें से कोई नहीं
Ans : B
25. ‘प्रेम की पीर’ का कवि किन्हें कहा गया है ?
【A】 रसखान को
【B】 प्रेमघन को
【C】 मंझन को
【D】 घनानंद को
Ans : D
26. कवि अपने आसुओं को कहाँ पहुँचाना चाहता है ?
【A】 सुजान के आँगन में
【B】 सुजान के दिल में
【C】 सुजान के हथेली पर
【D】 इनमें सभी
Ans : A
27. रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि किसे कहा जाता है ?
【A】 बिहारी को
【B】 घनानन्द को
【C】 पद्माकर को
【D】 मतिराम को
Ans : B
28. घनानंद किस नर्तकी को प्यार करते थे ?
【A】 रश्मि बाई को
【B】 रसूलन बाई को
【C】 सृजन को
【D】 सुजान को
Ans : D
29. ‘विरहलीला’ रचित है
【A】 रसखान द्वारा
【B】 घनानंद द्वारा
【C】 सूरदास द्वारा
【D】 मीराबाई द्वारा
Ans : B
30. घनानंद किससे प्रेम करते थे ?
【A】 कलावती नामक नर्तकी से
【B】 रेशमा नामक नर्तकी से
【C】 सुजान नामक नर्तकी से
【D】 सलमा नामक नर्तकी से
Ans : C
31. घनानंद किसके द्वारा मारे गये ?
【A】 शिष्य के
【B】 राजा के
【C】 दूसरे कवि के
【D】 नादिरशाह के सैनिक के
Ans : D
32. घनानंद का दूसरा पद किसे संबोधित है ?
【A】 सुजान को
【B】 भगवान को
【C】 बादल को
【D】 इनमें से कोई नहीं
Ans : C
33. घनानंद की महत्त्वपूर्ण रचना है–
【A】 सुधा
【B】 वैराग्य
【C】 सुजानसागर
【D】 इनमें सभी
Ans : C
34. ‘घनानन्द’ की मृत्यु कब हुई ?
【A】 1737 ई० में
【B】 1739 ई० में
【C】 1741 ई० में
【D】 1743 ई० में
Ans : B
35. ‘परजन्य’ का पर्याय है-
(A) दूसरा व्यक्ति
(B) परोपकार
(C) बादल
(D) इनमें से कोई नहीं
Ans : C
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. कवि ने परजन्य किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर ⇒कवि घनानंद ने अपनी कविता ‘मो अँसुवानिहिं लै बरसौ’ में बादलों को ‘परजन्य’ कहा है। बादल परहित के लिए देह धारण करते हैं। अपने अमृत स्वरूप जल से वे सूखी धरती को सरस बनाते हैं।
प्रश्न 2. परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा, घनानंद के अनुसार पर–हित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर ⇒परहित के लिए ही देह, बादल धारण करता है । बादल जल की वर्षा करके सभी प्राणियों को जीवन देता है, प्राणियों में सुख–चैन स्थापित करता है। उसके विरह के आँसू, अमृत की वर्षा कर जीवनदाता हो जाता है।
प्रश्न 3. कवि कहाँ अपने आँसुओं को पहुँचाना चाहता है, और क्यों ?
उत्तर ⇒कवि अपनी प्रेयसी सुजान के लिए विरह–वेदना को प्रकट करते हुए बादल से अपने प्रेमाश्रुओं को पहुँचाने के लिए कहता है। वह अपने आँसुओं को सुजान के आँगन में पहुँचाना चाहता है, क्योंकि वह उसकी याद में व्यथित है और अपनी व्यथा के आँसुओं से प्रेयसी को भिंगो देना चाहता है।
प्रश्न 4. “मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं” से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर ⇒कवि कहते हैं कि प्रेमी में देने की भावना होती है लेने की नहीं। प्रेम में प्रेमी अपने इष्ट को सर्वस्व न्योछावर करके अपने को धन्य मानते हैं । इसमें संपूर्ण समर्पण की भावना उजागर किया गया है।
प्रश्न 5. कवि प्रेममार्ग को ‘अति सूधो’ क्यों कहता है ? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?
उत्तर ⇒ कवि प्रेम की भावना को अमृत के समान पवित्र एवं मधुर बताते हैं। ये कहते हैं कि प्रेममार्ग पर चलना सरल है। इसपर चलने के लिए बहुत अधिक छल–कपट की आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न 6. घनानन्द के द्वितीय छंद किसे संबोधित है, और क्यों ?
उत्तर ⇒ घनानंद का द्वितीय छंद बादल को संबोधित है। इसमें मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह–वेदना की अभिव्यक्ति है। मेघ का वर्णन इसलिए किया गया है कि मेघ विरह–वेदना में अश्रुधारा प्रवाहित करने का जीवंत उदाहरण है।
प्रश्न 7. कवि प्रेममार्ग को ‘अति सूधो’ क्यों कहता है ? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?
उत्तर ⇒ कवि प्रेम की भावना को अमृत के समान पवित्र एवं मधुर बताते हैं। ये कहते हैं कि प्रेममार्ग पर चलना सरल है। इसपर चलने के लिए बहुत अधिक छल–कपट की आवश्यकता नहीं है। प्रेमपथ पर अग्रसर होने के लिए अत्यधिक सोच–विचार नहीं करना पड़ता और न ही किसी बुद्धि–बल की आवश्यकता होती है। इसमें भक्ति की भावना प्रधान होती है। प्रेम की भावना से आसानी से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में सर्वस्व देने की बात होती है लेने की अपेक्षा लेशमात्र भी नहीं होता। यह मार्ग टेढ़ापन से मुक्त है। प्रेम में प्रेमी बेझिझक नि:संकोच भाव से, सरलता से, सहजता से प्रेम करने वाले से एकाकार कर लेता है।
प्रश्न 8. ‘अति सूधो सनेह को मारग है, ‘मो अँसुवानिहि लै बरसौ’ कविता का सारांश लिखें।
उत्तर ⇒ पाठयपुस्तक में उन्मुक्त प्रेम के स्वच्छंद मार्ग पर चलने वाले महान प्रेमी घनानंद (घन आनंद) के दो सवैये पाठयपुस्तक में संकलित हैं। प्रथमा सवैया में प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग की बात कही गई है और दूसरे सवैया में मेघ की अन्योक्ति के द्वारा विरह–वेदना से भरे हृदय की तड़प को अत्यंत कलात्मक ढंग से अभिव्यक्त किया गया है।
घनानंद कहते हैं कि प्रेम का मार्ग तो अत्यंत सीधा, सरल और निश्छल होता है। यहाँ चतुराई के लिए कोई स्थान नहीं होता। हृदय से सीधे लोग ही प्रेम कर सकते हैं, सांसारिक और चतुर लोग नहीं । यहाँ तनिक भी चतुराई का टेढ़ापन नहीं चलता। यहाँ सच्चे हृदय का चलता है। जो अपने अहंकार का त्याग कर देता है, वही प्रेम कर सकता है। कपटी लोग प्रेम नहीं कर सकते। प्रेम शंकामुक्ति की अवस्था है। शंकालु हृदय प्रेम नहीं कर सकता। घनानंद कहते हैं कि प्रेम में ऐकांतिकता होती है। ‘सुजान’ को उपालंभ देता हुआ कवि कहता है कि आपने कौन–सी विद्या पढ़ी है कि आसानी से चित्त का हरण कर लेते हैं
प्रश्न 9. सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
अति सनेह को ……………… बाँक नहीं,
तहाँ साँचे चलें …………… निसाँक नहीं।
उत्तर ⇒ प्रस्तुत सवैया में रीतिकालीन काव्यधारा के प्रमुख कवि घनानंद–रचित ‘अति सूधो सनेह को मारग है’, से उद्धृत है इसमें कवि प्रेम की पीड़ा एवं प्रेम की भावना के सरल और स्वाभाविक मार्ग का विवेचन करते हैं। कवि कहते हैं कि प्रेममार्ग अमृत के समान अति पवित्र है । इस प्रेमरूपी मार्ग में चतुराई और टेढ़ापन अर्थात् कपटशीलता का कोई स्थान नहीं है। इस प्रेमरूपी मार्ग में जो प्रेमी होते हैं वे अनायास ही सत्य के रास्ते पर चलते हैं तथा उनके अंदर के अहंकार समाप्त हो जाते हैं। यह प्रेमरूपी मार्ग इतना पवित्र है कि इसपर चलने वाले प्रेमी के हृदय में लेसमात्र भी झिझक, कपट और शंका नहीं रहती है। वह कपटी जो निःशंक नहीं है, इस मार्ग पर नहीं चल सकता।
प्रश्न 10. ‘यहाँ एक ते दूसरौ आँक नहीं’ की व्याख्या करें।
उत्तर ⇒ प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य–पुस्तक के कवि घनानंद द्वारा रचित “अति सूधो सनेह को मारग है” पाठ से उद्धृत है। इसके माध्यम से कवि प्रेमी और प्रेयषी का एकाकार करते हुए कहते हैं कि प्रेम में दो की पहचान अलग–अलग नहीं रहती, बल्कि दोनों मिलकर एक रूप में स्थित हो जाते हैं। प्रेमी निश्छल भाव से सर्वस्व समर्पण की भावना रखता है और तुलनात्मक अपेक्षा नहीं करता है। मात्र देता है, बदले में कुछ लेने की आशा नहीं करता है।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करते हैं कि हे सुजान, सुनो! यहाँ अर्थात् मेरे प्रेम में तुम्हारे सिवा कोई दूसरा चिह्न नहीं है। मेरे हृदय में मात्र तुम्हारा ही चित्र अंकित है।