जैव प्रक्रम

मुख्य बिन्दुएँ-

*क्लोरोफिल के कारण पत्तियों का रंग हरा होता है।

*प्रकाश संश्लेषण की क्रिया हरे पौधों में होती है।

*ग्लूकोज के एक अणु में ऑक्सीजन के 6 परमाणु होते हैं।

*मनुष्य एवं अन्य मांसाहारी जीव सुल्युलोज का पाचन नहीं करते हैं।

*दाँत का सबसे ऊपरी परत को इनामेल कहते हैं।

*मुखगुहा में आहार का कार्बोहाइड्रेट भाग का पाचन होता है।

*स्वपोषी पोषण के लिए पर्णहरित (क्लोरोफिल, सूर्य का प्रकाश, कार्बन डाइऑक्साइड और जल) आवश्यक है।

*प्रकाश संश्लेषण क्रिया में ऑक्सीजन एक उत्पाद के रूप में बाहर निकलता है।

*क्लोरोफिल में मैग्नेशियम पाया जाता है।

*क्लोरोफिल वर्णक का रंग हरा होता है।

*कवक में मृतजीवी पोषण पाया जाता है।

*पित्तयों में गैसों का आदान-प्रदान रंध्रों द्वारा होता है।

*शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथी यकृत है।

*प्रकृति में ऑक्सीजन का संतुलन प्रकाश-संश्लेषण द्वारा बना रहता है।

*पित्त यकृत से स्त्रावित होता है।

*हरे पौधे स्वपोषी होते हैं।

*छोटी आंत या क्षुद्रांत्र आहारनाल का सबसे लंबा भाग है।

*ट्रिप्सिन एंजाइम प्रोटिन को पचाने का कार्य करता है।

*मनुष्य के आहारनाल में एपेंडिक्स एक अवशेषी अंग है।

*अमीबा में कूटपाद पाया जाता है।

*अमीबा अपना भोजन कूटपाद द्वारा पकड़ता है।

*जब किसी अभिक्रिया के समय किसी पदार्थ में ऑक्सीजन की वृद्धि होती है, तो उसे उपचयन अभिक्रिया कहते हैं।

*जब किसी अभिक्रिया के समय किसी पदार्थ में हाइड्रोजन की वृद्धि होती है, तो उसे अपचयन अभिक्रिया कहते हैं।

*अम्ल का चभ्मान 7 से कम होता है।

*सभी जीव-जंतुओं के लिए ऊर्जा का अंतिम स्त्रोत सूर्य है।

*ग्लूकोज का रासायनिक सूत्र ब्6भ्12व्6है।

*अमीबा में अधिकांश पोषण अंतर्ग्रहण द्वारा होता है।

*क्लोरोफिल की उपस्थिति के कारण पौधे का रंग हरा होता है।

*हाइड्रा में स्पर्शक पाया जाता है।

*‘न्युक्लियस’ शब्द रॉबर्ट ब्राउन के द्वार दी गई है।

*प्रसिद्ध पुसतक ‘द माइक्रोग्राफिया’ रॉबर्ट हुक के द्वारा लिखी गई है।

*पौधों और कोशिकाओं का वैज्ञानिक अध्ययन कोशिका विज्ञान कहलाता है।

जैव प्रक्रम- वे सभी प्रक्रम (Processes) जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण (maintenance) का कार्य करते हैं जैव प्रक्रम (Life Processes) कहलाते हैं। ये प्रक्रम हैं- पोषण, श्‍वसन, वहन, उत्सर्जन आदि।

अर्थात

जीवित शरीर में होने वाले वे सभी प्रक्रम जो जीवन के लिए अनिवार्य होते हैं, जैव प्रक्रम कहलाते हैं। पोषण, श्‍वसन, उत्सर्जन तथा वहन जैव प्रक्रम के उदाहरण हैं।

पोषण- वह विधि जिससे जीव पोषक तवों को ग्रहण कर उनका उपयोग करते हैं, पोषण कहलाता है।

अर्थात

भोजन का अन्तः ग्रहण तथा शरीर के द्वारा उसका वृद्धि, विकास व रख-रखाव में उपयोग करना पोषण कहलाता है। उदाहरण के लिए मनुष्य पोषण के रूप में खाना (भोजन) खाता है, भोजन के द्वारा मनुष्य को अपने शरीर की वृद्धि और अन्य क्रियाओं को संपन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार के तत्व जैसे विटामिन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि प्राप्त होते हैं।

पोषण की विधियाँ 
जीवों में पोषण मुख्यतः दो विधियों द्वारा होता हैं।
1. स्वपोषण
2. परपोषण

स्वपोषण- पोषण की वह विधि जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं निर्माण करते हैं। स्वपोषण कहलाता है।

स्वपोषी- पोषण की वह प्रक्रिया जिसमें जीव अपने भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर न रहकर अपना भोजन स्वयं संश्लेषित (निर्माण) करते हैं, स्वपोषी कहलाते हैं। अर्थात जिस जीव में स्वपोषण पाया जाता है, उसे स्वपोषी कहते हैं। जैसे- हरे पौधे।

परपोषण- परपोषण वह प्रक्रिया है जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेषित न कर किसी-न-किसी रूप में अन्य स्त्रोतों से प्राप्त करते हैं।

परपोषी- वे जीव जो अपने भोजन के लिए अन्य स्त्रोतों पर निर्भर रहते हैं, उसे परपोषी कहते हैं। जैसे- गाय, अमीबा, शेर आदि।

परपोषण के प्रकार-
परपोषण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-
1. मृतजीवी पोषण- पोषण की वह विधि जिसमें जीव अपने भोजन के लिए मृत जंतुओं और पौधों के शरीर से, अपने शरीर की सतह से घुलित कार्बनिक पदार्थों के रूप में अवशोषित करते हैं। मृतजीवी पोषण कहलाते हैं। जैसे- कवक बैक्टीरिया तथा कुछ प्रोटोजोआ।
2. परजीवी पोषण- पोषण की वह विधि जिसमें जीव अपने पोषण के लिए दूसरे प्राणी के संपर्क में, स्थायी या अस्थायी रूप से रहकर, उससे अपना भोजन प्राप्त करते हैं। परजीवी पोषण कहलाते हैं। जैसे-कवक, जीवाणु, गोलकृमि, हुकवर्म, मलेरिया परजीवी आदि।
3. प्राणिसम पोषण- वैसा पोषण जिसमें प्राणी अपना भोजन ठोस या तरल के रूप में जंतुओं के भोजन ग्रहण करने की विधि द्वारा ग्रहण करते हैं, प्राणी समपोषण कहलाते हैं। जैसे- अमीबा, मेढ़क, मनुष्य आदि।

प्रकाशसंश्लेषण क्या है ?

सूर्य की ऊर्जा की सहायता से प्रकाशसंश्लेषण में सरल अकार्बनिक अणु- कार्बन डाइऑक्साइड और जल का पादप-कोशिकाओं में स्थिरीकरण कार्बनिक अणु ग्लूकोज (कार्बोहाइड्रेट) में होता है।

अर्थात

पेड़-पौधे द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन निर्माण करने की प्रक्रिया को प्रकाशसंश्लेषण कहते हैं।

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प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक पदार्थ-
प्रकाश संश्लेषण के लिए चार पदार्थों की आवश्यकता होती हैं-
1. पर्णहरित या क्लोरोफिल

2. कार्बनडाइऑक्साइड

3. जल

4. सूर्य प्रकाश

उपापचय- सजीव के शरीर में होनेवाली सभी प्रकार की रासायनिक क्रियाएँ उपापचय कहलाती है। जैसे- अमीनो अम्ल से प्रोटीन का निर्माण होना, ग्लूकोज से ग्लाइकोजेन का निर्माण होना आदि।

अमीबा में पोषण

अमीबा एक सरल प्राणीसमपोषी जीव है। यह मृदुजलीय, एककोशीकीय तथा अनिश्चित आकार का प्राणी है। इसका आकार कूटपादों के बनने और बिगड़ने के कारण बदलता रहता है।

अमीबा का भोजन शैवाल के छोटे-छोटे टुकड़े, बैक्टीरिया, डायटम, अन्य छोटे एककोशिकीय जीव तथा मृत कार्बनिक पदार्थ के छोटे-छोटे टुकड़े इत्यादि हैं।

अमीबा में पोषण अंतर्ग्रहण, पाचन तथा बहिष्करण प्रक्रियाओं द्वारा पूर्ण होता है।

अमीबा में भोजन के अंतर्ग्रहण के लिए मुख जैसा कोई निश्चित स्थान नहीं होता है, बल्कि यह शरीर की सतह के किसी भी स्थान से हो सकता है।

अमीबा जब भोजन के बिल्कुल समीप होता है तब अमीबा भोजन के चारों ओर कूटपादों का निर्माण करता है। कूटपाद तेजी से बढ़ते हैं और भोजन को पूरी तरह घेर लेते हैं। धीरे-धीरे कूटपादों के सिरे तथा फिर पार्श्व (पार्श्व) आपस में जुड़ जाते हैं। इस तरह एक भोजन-रसधानी का निर्माण हो जाता है जिसमें भोजन के साथ जल भी होता है।

भोजन का पाचन भोजन रसधानी में ही एंजाइमों के द्वारा होता है। अपचे भोजन निकलने के लिए शरीर के किसी भाग में अस्थायी छिद्र का निर्माण होता है जिससे अपचा भोजन बाहर निकल जाता है।

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मनुष्य का पाचनतंत्र
वैसे अंग जो भोजन पचाने में सहायता करते हैं। उन्हें सामुहिक रूप से पाचन तंत्र कहते हैं।
आहारनाल और संबंधित पाचक ग्रंथियाँ और पाचन क्रिया मिलकर पाचनतंत्र का निर्माण करते हैं।
मनुष्य तथा सभी उच्च श्रेणी के जंतुओं में भोजन के पाचन के लिए विशेष अंग होते हैं जो आहारनाल कहलाते हैं।

आहारनाल- मनुष्य का आहारनाल एक कुंडलित रचना है जिसकी लंबाई करीब 8 से 10 मीटर तक की होती है। यह मुखगुहा से शुरू होकर मलद्वार तक फैली होती है।

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मुखगुहा- मुखगुहा आहारनाल का पहला भाग है। पाचन मुखगुहा से प्रारंभ होता है। मुखगुहा एक खाली जगह होता है जिसमें एक जीभ, तीन जोड़ा लार ग्रंथि तथा 32 दांत पाये जाते हैं।

मुखगुहा को बंद करने के लिए दो मांसल होंठ होते हैं।

जीभ के ऊपर कई छोटे-छोटे अंकुर होते हैं, जिसे स्वाद कलियाँ कहते हैं। यह भोजन के विभिन्न स्वादों जैसे मीठा, खारा, खट्टा, कड़वा आदि का अनुभव कराता है।

मनुष्य के मुखगुहा में तीन जोड़ी लार ग्रंथियाँ पाई जाती है, जिससे प्रतिदिन डेढ़ लीटर लार का स्त्राव होता है।

लार में मुख्य रूप से लाइसोजाइम, एमीलेस या एमाइलेज तथा टायलीन नामक एंजाइम पाए जाते हैं। सबसे अधिक मात्रा में टायलीन नामक एंजाइम निकलता है।

मुखगुहा में लार का कार्य-
1. यह मुखगुहा को साफ रखती है।
2. भोजन को चिपचिपा और लसलसा बना देता है।
3. यह भोजन में उपस्थित किटाणुओं को मार देता है।
4. यह स्टार्च को शर्करा (कार्बोहाइड्रट) में बदल देता है।

दाँत
दाँत में सर्वाधिक मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है।
मानव दाँत के दो परत होता है। बाहरी परत इनामेल कहलाता है जबकि आंतरिक पर डेंटाइन कहलाता है।
मानव शरीर का सबसे कठोर भाग दाँत का इनामेल होता है जो कैल्शियम फॉस्फेट का बना होता है। इनामेल दाँतों की रक्षा करता है।

मानव दाँत चार प्रकार के होते हैं-
1. इनसाइजर (8)

2. केनाइन (4)

3. प्रीमोलर (8)

4. मोलर (12)
एक व्यस्क मनुष्य के शरीर में 32 दाँत होते हैं। दुध के दाँतों की संख्या 20 होती है।

ग्रसनी- मुखगुहा का पिछला भाग ग्रसनी कहलाता है। इसमें दो छिद्र होते हैं।
1. निगलद्वार, जो आहारनाल के अगले भाग ग्रासनली में खुलता है। तथा
2. कंठद्वार, जो श्वासनली में खुलता है। कंठद्वार के आगे एक पट्टी जैसी रचना होती है, जो एपिग्लौटिस कहलाता है। मनुष्य जब भोजन करता है तब यह पट्टी कंठद्वार को ढँक देती है, जिससे भोजन श्वासनली में नहीं जा पाता है।

ग्रासनली- यह मुखगुहा को अमाशय से जोड़ने का कार्य करता है। यह नली के समान होता है। मुखगुहा से लार से सना हुआ भोजन निगलद्वार के द्वारा ग्रासनली में पहुँचता है। भाजन के पहुँचते ही ग्रासनली की दिवार में तरंग की तरह संकुचन या सिकुड़न और शिथिलन या फैलाव शुरू हो जाता है। जिसे क्रमाकुंचन कहते हैं। ग्रासनली में पाचन की क्रिया नहीं होती है। ग्रासनली से भोजन अमाशय में पहुँचता है।

आमाशय- यह एक चौड़ी थैली जैसी रचना है जो उदर-गुहा के बाई ओर से शुरू होकर अनुप्रस्थ दिशा में फैली होती है।

आमाशय में प्रोटीन के अतिरिक्त भोजन के वसा का पाचन करता है।

अमाश्य के तीन भाग होते हैं- कार्डिएक, फुंडिक और पाइलेरिक।

अमाश्य से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्त्राव होता है, जो कीटाणुओं को मार देता है और भोजन को अम्लीय बना देता है।

अमाश्य में जठर ग्रंथि पाई जाती है, जिससे जठर रस निकलता है। जठर रस में रेनिन और पेप्सिन पाया जाता है। रेनिन दूध को दही में बदल देता है तथा पेप्सीन प्रोटीन का पाचन करता है। प्रोटीन को पेप्टोन में बदल देता है।

भोजन अब गाढ़ लेई की तरह हो गया है, जिसे काइम कहते है। काइम अमाशय से छोटी आँत में पहुँचता है।

छोटी आँत- छोटी आँत आहारनाल का सबसे लंबा भाग है। यह बेलनाकार रचना है। छोटी आँत में ही पाचन की क्रिया पूर्ण होती है। मनुष्य में इसकी लंबाई लगभग 6 मीटर तथा चौड़ाई 2.5 सेंटीमीटर होती है।

शाकाहारी जन्तुओं में छोटी आँत की लंबाई अधिक और मांसाहारी जन्तुओं में छोटी आँत की लंबाई कम होती है।

छोटी आँत के तीन भाग होते हैं- ग्रहणी, जेजुनम तथा इलियम।

ग्रहणी छोटी आँत का पहला भाग होता है। जेजुनम छोटी आँत का मध्य भाग होता है। छोटी आँत का अधिकांश भाग इलियम होता है।

पचे हुए भोजन का अवशोषण छोटी आँत में ही होता है।

छोटी आँत में भोजन का पाचन पित्त, अग्न्याशयी रस तथा आंत्र-रस के स्त्राव से होता है।

यकृत- यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है जो उदर के ऊपरी दाहिने भाग में अवस्थित है। यकृत कोशिकाओं से पित्त का स्त्राव होता है। स्त्रावित पित्त पित्ताशय नामक एक छोटी थैली में आकर जमा रहता है।

पित्ताशय- इसमें यकृत द्वारा बनाया गया पित्त आकर जमा रहता है। इसमें पित्त का निर्माण नहीं होता है। पित्त भोजन को क्षारीय बना देता है क्योंकि पित्त क्षारीय होता है। इसका रंग गाढ़ा और हरा होता है। यह एंजाइम न होते हुए भी भोजन के पाचन में सहायक है।

पित्त के दो मुख्य कार्य है-
1. पित्त अमाशय से ग्रहणी में आए अम्लीय काइम की अम्लीयता को नष्ट कर उसे क्षारीय बना देता है ताकि अग्न्याशयी रस के एंजाइम उस पर क्रिया कर सके।
2. पित्त के लवणों की सहायता से भोजन के वसा के विखंडन तथा पायसीकरण होता है ताकि वसा को तोड़नेवाले एंजाइम उस पर आसानी से क्रिया कर सके।

अग्न्याशय- आमाशय के ठीक नीचे तथा ग्रहणी को घेरे पीले रंग की एक ग्रंथि होती है जो अग्न्याशय कहलाती है।
अग्नाशय से तीन प्रकार के इंजाइम निकलते हैं। इन तीनों को सामूहिक रूप से पूर्ण पाचक रस कहते हैं क्योंकि यह भोजन के सभी अवयव को पचा सकते हैं।
इससे ट्रिप्सीन, एमाइलेज और लाइपेज नामक इंजाइम स्त्रावित होते हैं।

ट्रिप्सीन- यह प्रोटीन को पचाकर पेप्टाइड में बदल देता है।

एमाइलेज- यह स्टार्च को शर्करा में तोड़ देता है।

लाइपेज- यह पित्त द्वारा पायसीकृत वसा को तोड़कर ग्लिसरोल तथा वसीय अम्ल में बदल देता है।

पचे हुए भोजन का अवशोषण इलियम के विलाई के द्वारा होता है। भोजन अवशोषण के बाद रक्त में मिल जाते हैं। रक्त शरीर के विभिन्न भागों तक वितरित कर देते हैं।

छोटी आँत में काइम (भोजन) और भी तरल हो जाता है, जिसे चाइल कहा जाता है।

बड़ी आँत- छोटी आँत आहारनाल के अगले भाग बड़ी आँत में खुलती है। बड़ी आँत दो भागों में बँटा होता है। ये भाग कोलन तथा मलाशय या रेक्टम कहलाते हैं।

छोटी आँत और बड़ी आँत के जोड़ पर ऐपेंडिक्स होती है। मनुष्य के आहारनाल में ऐपेंडिक्स का कोई कार्य नहीं है।

जल का अवशोषण बड़ी आँत में होता है।

अंत मे अपचा भोजन मल के रूप में अस्थायी तौर पर रेक्टम या मलाशय में जमा होता रहता है जो समय-समय पर मलद्वार के रास्ते शरीर से बाहर निकलते रहता है।

श्‍वसन

श्‍वसन- श्‍वसन उन सभी प्रक्रियाओं का सम्मिलित रूप है जिनके द्वारा शरीर में ऊर्जा का उत्पादन होता है।

यह ऊर्जा ए.टी.पी. जैसे विशेष रासायनिक बंधन में संगृहीत हो जाती है। संगृहीत ऊर्जा का उपयोग सभी जीव ए.टी.पी. के जलीय विघटन के द्वारा करते हैं।

श्‍वसन क्रिया में ग्लूकोज- अणुओं का ऑक्सीकरण कोशिकाओं में होता है। इसीलिए, इसे कोशिकीय श्‍वसन कहते हैं।

कोशिकीय श्‍वसन-यह मानव कोशिका के अंदर होता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा पाचन के फलस्वरूप बना ग्लूकोज कोशिका के अंदर टूट जाता है और हमें ऊर्जा प्राप्त होता है।

संपूर्ण कोशिकीय श्‍वसन का दो अवस्थाओं में विभाजित किया गया है-
1. अवायवीय श्‍वसन- यह कोशिकाद्रव्य में पूर्ण होता है। यह ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है। अतः इसे अनॉक्सी श्‍वसनन कहते हैं।
2. वायवीय श्‍वसन- यह माइटोकोण्ड्रिया में होता है। यह ऑक्सीजन के उपस्थिति में होता है। अतः इसे ऑक्सी श्‍वसन कहते हैं।

वायवीय श्‍वसन और अवायवीय श्‍वसन में क्या अंतर है ?
वायवीय श्‍वसन और अवायवीय श्‍वसन में मुख्य अंतर निम्नलिखित है-
1. वायवीय श्‍वसन ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है जबकि अवायवीय श्‍वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।
2. वायवीय श्‍वसन का प्रथम चरण कोशिकाद्रव्य में तथा द्वितीय चरण माइटोकॉण्ड्रिया में पूरा होता है जबकि अवायवीय श्‍वसन की पूरी क्रिया कोशिकाद्रव्य में होती है।
3. वायवीय श्‍वसन में अवायवीय श्‍वसन की तुलना में बहुत ज्यादा ऊर्जा मुक्त होती है।

*पौधों में श्‍वसन-पौधों में श्‍वसन श्‍वसन-गैसों का आदान-प्रदान शरीर की सतह द्वारा विसरण विधि से होता है।

*पेड़-पौधों में गैसों का आदान-प्रदान पत्तियों के रंध्रों के द्वारा होता है।

पौधों में श्‍वसन की क्रिया जंतुओं के श्‍वसन से किस प्रकार भिन्न है-
पोधों में श्‍वसन की क्रिया जंतुओं के श्‍वसन से निम्नलिखित प्रकार से भिन्न है-
1. पौधों के प्रत्येक भाग, अर्थात जड़, तना तथा पत्तियों में अलग-अलग श्‍वसन होता है।
2. जंतुओं की तरह पौधों में श्‍वसन गैसों का परिवहन नहीं होता है।
3. पौधों में जंतुओं की अपेक्षा श्‍वसन की गति धीमी हेती है।

जंतुओं में श्‍वसन
एककोशिकीय जीव जैसे अमीबा, पैरामीशियम में श्‍वसन कोशिका झिल्ली से विसरण विधि द्वारा होता है।
बहुकोशिकीय जीव हाइड्रा में श्‍वसन गैसों का आदान-प्रदान शरीर की सतह से विसरण के द्वारा होता है।

उच्च श्रेणी के जंतुओं में समान्यतः तीन प्रकार के श्‍वसन अंग होते हैं-
1. श्वासनली या ट्रैकिया
2. गिल्स तथा
3. फेफड़े

श्वासनली या ट्रैकिया- ट्रैकिया द्वारा श्‍वसन किटों, जैसे टिड्डा तथा तिलचट्टा में होता है।

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2. गिल्स- गिल्स विशेष प्रकार के श्‍वसन अंग हैं जो जल में घुलित ऑक्सीजन का उपयोग श्‍वसन के लिए करते हैं। श्‍वसन के लिए गिल्स का होना मछलियों के विशेष लक्षण है। मछलीयों में गिल्स द्वारा श्‍वसन होता है।

3. फेफड़ा- वर्ग एंफीबिया (जैसे मेढ़क) में फेफड़े के अतिरिक्त त्वचा तथा गिल्स से भी श्‍वसन होता है।

रेप्टीलिया (जैसे सर्प, लिजर्ड, कछुआ तथा मगरमच्छ) तथा उच्चतम श्रेणी के वर्टिब्रेटा जैसे एवीज (पक्षी) तथा मैमेलिया (जैसे मनुष्य) में श्‍वसन सिर्फ फेफड़ों से होता है।

श्‍वसन अंग- मनुष्य में नासिका छिद्र, स्वरयंत्र या लैरिंक्स, श्वासनली या ट्रैकिया तथा फेफड़ा मिलकर श्‍वसन अंग कहलाते हैं।

मानव का श्‍वसन मार्ग- मानव जब श्‍वसन करता है तो वायु जिस मार्ग का अनुसरण करती है, तो उस मार्ग को ही श्‍वसन मार्ग कहा जाता है।

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श्‍वसन मार्ग निम्नलिखित है-

1.नासिका छिद्र

2.ग्रसनी

3.स्वरयंत्र

4.श्वासनली

5.ब्रोंकाई (श्वसनिय)

6.ब्रोंकीयोलस (श्वसनिका)

7.वायुकोष

8.रूधिर

9.कोशिका

डायफ्राम- यह वक्ष गुहा के नीचे तथा उदर गुहा के ऊपर पाया जाता है। यह संयोजी ऊतक का बना होता है। निःश्‍वसन में यह 75 प्रतिशत योगदान करता है।

डायफ्राम टूट जाने पर व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है।

1.नासिका छिद्र- नाक का भाग होता है, इसी भाग से वायु अन्दर जाती है।

2.ग्रसनी- यह नासिका छिद्र के नीचे और मुखगुहा के पीछे पाया जाता है। इस मार्ग से भोजन और वायु दोनों जाते हैं।

3.स्वरयंत्र- ग्रसनी कंठद्वार के ठीक नीचे एक छोटी रचना स्वरयंत्र में खुलती है। यह ग्रसनी के ठीक नीचे पाया जाता है। यह आवाज निकालने में सहायक होता है।

फेफड़ा- यह मानव के वक्षगुहा में पाया जाता है। यह मानव का मुख्य श्‍वसन अंग है। इसकी संख्या दो होती है। यह प्लूरल मेम्ब्रेन नामक झिल्ली द्वारा ढ़का होता है। फेफड़ा का कार्य रक्त को शुद्ध करना होता है अर्थात फेफड़ा रक्त में ऑक्सीजन मिलाकर उसे शुद्ध करता है।

यह सीने के 12 जोड़ी पसलियों के बीच स्थित होता है।

4.श्वासनली- इसके द्वारा वायु फेफड़े के अंदर जाती है। ट्रैकिया या श्वासनली आगे चलकर दो भागों में विभाजित हो जाती है, जिसे ब्रोंकाई कहते हैं। ब्रोंकाई आगे जाकर कई शाखाओं में विभाजित हो जाती है, जिसे ब्रोंकियोलस या श्वसनिका कहते हैं।

5.वायुकोष- श्वसनिका फेफड़े के अंदर पतली शाखाओं में बँट जाती है। ये शाखाएँ छोटी-छोटी गोल संरचना में विभाजित होती है। जिसे वायुकोष कहते हैं।

वायुकोष की संख्या 3×108 होती है।

श्‍वसन क्रिया- श्‍वसन दो क्रियाओं का सम्मिलित रूप है। पहली क्रिया में हवा नासिका से फेफड़े तक पहुँचती है जहाँ इसका ऑक्सीजन फेफड़े की दीवार में स्थित रक्त कोशिकाओं के रक्त में चला जाता है। इस क्रिया को प्रश्वास कहते हैं।

इसके विपरित, दूसरी क्रिया उच्छ्वास कहलाती है जिसके अंतर्गत रक्त से फेफड़े में आया कार्बन डाइऑक्साइड बची हवा के साथ नासिका से बाहर निकल जाता है।

श्‍वसन की दो अवस्थाएँ प्रश्वास तथा उच्छ्वास मिलकर श्वासोच्छ्वास कहलाती है।

फेफड़े में श्‍वसन गैसों का आदान-प्रदान- शरीर के विभिन्न भागों से ऑक्सीजनरहित रक्त फेफड़ा में पहुँचता है। रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से संयोग करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन में परिवर्तित हो जाता है जो रूधिर परिसंचरण के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों तक कोशिकाओं में पहुँच जाता है। हीमोग्लोबीन ऑक्सीजन कोशिकाओं के दे देता है और कार्बनडाइऑक्साइड को अपने साथ बाँध लेता है। जो कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन कहलाता है। कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन परिसंचरण के माध्यम से फेफड़े में पहुँच जाता है। कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन अर्थात रक्त में घुला हुआ कार्बनडाइऑक्साइड फेफड़े के द्वारा नासिका से बाहर निकल जाता है।

महत्‍वपूर्ण बिंदूएँ—

*भोजन का पचना उपचयन अभिक्रिया है।

*टी०बी० निमोनिया श्‍वसनतंत्र से संबंधित है।

*अवायवीय श्‍वसन में इथाइल अल्कोहल और कार्बन डाइऑक्साइड बनता है। इस प्रक्रिया को किण्वन कहते हैं।

*ज्च्को कोशिका का ऊर्जा मुद्रा कहा जाता है अर्थात कोशिका की ऊर्जा को।ज्च्कहते हैं।

*माइटोकॉण्ड्रिया में पायरुवेट के विखण्डन से कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा प्राप्त होता है।

*निःश्वास द्वारा निकली वायु में ब्व्2 रहती है।

*वायवीय श्‍वसन से अधिक ऊर्जा मुक्त होता है।

*मछली का श्‍वसन अंग गिल्स है।

*पौधों में गैसों का आदान-प्रदान रंध्रों द्वारा होता है।

*तिलचट्टा में 20 जोड़े श्वास रंध्र पाये जाते हैं।

*श्‍वसन के अंतिम उत्पाद CO2, H2O और ऊर्जा है।

*पौधों में श्‍वसन जड़, तना तथा पत्तियों सभी में होता है।

परिवहन

उपयोगी पदार्थों को शरीर के प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाना और अनुपयोगी पदार्थों को कोशिकाओं से निकालकार गंतव्य स्थान तक पहुँचाने की क्रिया को पदार्थों का परिवहन कहते हैं।

मानव शरीर में परिवहन मुख्य रूप से रक्त एवं लसिका के द्वारा होता है।

पौधों में पदार्थों का परिवहन

एककोशिकीय पौधों, जैसे क्लैमाइडोमोनास, यूग्लीना एवं सरल बहुकोशीकीय शैवालों में पदार्थों का परिवहन विसरण द्वारा होता है।

पौधों में परिवहन मुख्य रूप से जाइलम और फ्लोएम ऊतकों के द्वारा होता है।

जाइलम- यह जल-संवाहक ऊतक है। इसमें पाई जानेवाली वाहिकाएँ एवं वाहिनिकाएँ मुख्य रूप से जल एवं खनिज लवणों के स्थानांतरण में सहायक होती हैं।

फ्लोएम- यह संवहन बंडल का दूसरा जटिल ऊतक है तथा इसमें पाई जानेवाली चालनी नलिकाएँ का मुख्य कार्य पौधे के हरे भागों में निर्मित भोज्य पदार्थों को दूसरे भागों में वितरित करता है।

जाइलम एवं फ्लोएम में  क्या अंतर है ?

जाइलम एवं फ्लोएम में मुख्य अंतर निम्नलिखित है-

1. जाइलम की कोशिकाएँ मृत होती है जबकि फ्लोएम की कोशिकाएँ जीवित होती है

2.जाइलम जल एवं घुलित खनिज का स्थानांतरण करता है जबकि फ्लोएम खाद्य पदार्थो का स्थानांतरण करता है

3.जाइलम में जल एवं घुलित खनिज लवणों का बहाव ऊपर की और होता है जबकि फ्लोएम में खाद्य पदार्थो का बहाव ऊपर एवं निचे दोनों तरफ परिवहन होता है।

वाष्पोत्सर्जन- पौधों के वायवीय भागों से जल का रंध्रों द्वारा वाष्प के रूप में निष्कासन की क्रिया वाष्पोत्सर्जन कहलाती है।

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*पौधों के पित्तयों में सुक्ष्म छिद्र पाई जाती है, जिसे रंध्र कहते हैं। रंध्रों के माध्यम से श्‍वसन तथा वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है।

*परासरण विधि द्वारा पौधों में वाष्पोत्सर्जन होता है। वाष्पोत्सर्जन के कारण जल का संचलन जाइलम ऊतकों से रंध्रों के तक हमेशा होता रहता है।

*पौधों की जड़ से चोटी तक जल का प्रवाह वाष्पोत्सर्जन के कारण होती है।

*वाष्पोत्सर्जन के कारण पौधों का तापमान स्थिर रहता है।

*पौधे के एक भाग से दूसरे भाग में खाद्य पदार्थो के जलीय घोल के आने जाने को खाद्य पदार्थो का स्थानांतरण कहा जाता है।

जंतुओं में परिवहन

उच्च श्रेणी के जंतुओं में ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, पोषक तत्वों, हार्मोन, उत्सर्जी पदार्थों आदि को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाने के लिए एक विशेष प्रकार का परिवहन तंत्र होता है।

रूधिर, हृदय और रक्त वाहिनियाँ परिसंचरण तंत्र या रक्त परिवहन तंत्र का निर्माण करते हैं। लसीका तंत्र भी परिवहन तंत्र का निर्माण करता है।

रक्त परिवहन तंत्र

रक्त लाल रंग का गाढ़ा क्षारीय तरल पदार्थ है, इसका pH मान 7.4 होता है। रक्त को तरल संयोजी उत्तक कहते है।

1. रक्त को तरल संयोजी ऊतक क्यों कहते हैं ?
उत्तर—रक्त अपने प्रवाह के दौरान सभी प्रकार के ऊतकों का संयोजन करता है, इसलिए रक्त को तरल संयोजी ऊतक कहते हैं।
रक्त की संरचना- रक्त के दो  प्रमुख घटक होते है।
1. तरल भाग जो प्लाज्मा कहलाता है।
2. ठोस भाग जिसमे लाल रक्त कोशिकाएँ, श्वेत रक्त कोशिकाएँ तथा रक्त पट्टिकाणु होते हैं।

प्लाज्मा- यह हलके पिले रंग का चिपचिपा द्रव है जो आयतन के हिसाब से पुरे रक्त का करीब 55 प्रतिशत होता है, जिसमें करीब 90% जल, 7% प्रोटीन, 0.9% अकार्बनिक लवण, 0.18% ग्लुकोज, 0.5% वसा तथा शेष अन्य कार्बनिक पदार्थ होते है।

प्लाज्मा में फाइब्रिनोजिन, प्रोथ्रोंबिन तथा हिपैरिन प्रोटीन पाये जाते हैं, जो रक्त को थक्का बनाने में सहायक होते हैं।

रक्त कोशिकाएँ- आयतन हिसाब से रक्त कोशिकाएँ कुल रक्त के करीब 45 प्रतिशत भाग है।

रक्त का रंग लाल क्यों ?

लाल रक्त कोशिकाओं में एक विशेष प्रकार का प्राटीन वर्णक हीमोग्लोबिन पाया जाता है। हीमोग्लोबिन के कारण ही रक्त का रंग लाल दिखता है।

लाल रक्त कोशिकाएँ- यह ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचाने का कार्य करता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड को फेफड़ों तक पहुँचाने का कार्य करता है। लाल रक्त कोशिका में न्यूक्लियस नहीं होता है।

लाल रक्त कोशिका का जीवनकाल 120 दिन होता है। इसमें हिमोग्लोबीन पाया जाता है, जिसके कारण इसका रंग लाल होता है। हिमोग्लोबीन में लोहा पाया जाता है।

श्वेत रक्त कोशिकाएँ- ये अनियमित आकार के न्यूक्लियस युक्त कोशिकाएँ हैं। इनमें हीमोग्लोबिन जैसे वर्णक नहीं होते हैं, जिसके कारण ये रंगहीन होती है। इनकी संख्या लाल रक्त कोशिकाओं की तुलना में बहुत कम होती है।

रक्त पट्टिकाणु- ये रक्त को थक्का बनाने में मदद करते हैं।

मनुष्य का हृदय- हृदय एक अत्यंत कोमल, मांसल रचना है, जो वक्षगुहा के मध्य में पसलियों के नीचे दोनों फेफड़ों पके बीच स्थित होता है। यह रक्त को पंप करने का कार्य करता है।

यह हृद्-पेशियों का बना होता है। यह पेरिटोनियम की एक दोहरी झिल्ली के अंदर बंद रहता है, जिसे पेरीकार्डियम कहते हैं।

मनुष्य तथा मैमेलिया वर्ग के सभी जंतुओं के हृदय में चार वेश्म होते हैं जो दायाँ और बायाँ अलिंद तथा दायाँ और बायाँ निलय कहलाते हैं।

मछली के हृदय में तीन वेश्म होते हैं। उभयचर जैसे मेढ़क, सरीसृप जैसे साँप, छिपकली के हृदय तीन वेश्म के होते हैं।

हृदय की धड़कन का तालबद्ध संकुंचन एक विशेष प्रकार के तंत्रिका ऊतक के द्वारा होता है जिसे S-A नोड या पेसमेकर कहते हैं। यह बहुत ही मंद विद्युत धारा उत्पन्न करता है।

रक्त वाहिनियाँ

रक्त के परिसंचरण के लिए शरीर में तनी प्रकार की रक्त वाहिनियाँ होती है जो धमनियाँ, रक्त केशिकाएँ तथा शिराएँ कहलाती है।

धमनी- ये शुद्ध या ऑक्सीजन जनित रक्त को शरीर के विभिन्न हिस्सों में ले जाती है। इसकी दिवारें मोटी, लचीली तथा कपाटहीन होती है।

केशिकाएँ- ये बहुत ही महीन रक्त नलिकाएँ होती हैं। इसकी दीवार जल, पचे हुए भोज्य पदार्थ एवं उत्सर्जी पदार्थ, ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के लिए पारगम्य होती है।

धमनी विभिन्न केशिकाएँ में बँट जाती है। विभिन्न केशिकाएँ मिलकर शिरिकाएँ बनाती हैं और विभिन्न शिरिकाएँ आपस में जुड़कर शिरा बनाती है।

शिराएँ- यह अशुद्ध या ऑक्सीजन रहित रक्त को विभिन्न अंगों से हृदय की ओर ले जाती है। शिराओं में हृदय की खुलनेवाले कपाट लगे होते हैं जो रक्त को केवल हृदय की ओर जाने देते हैं।

लसिका- लसिका हल्के पीले रंग का तरल होता है। इसमें श्वेत रक्त कोशिकाएँ पाई जाती है, लेकिन लाल रक्त कोशिकाएँ और प्लेटलेट्स नहीं पाए जाते हैं।

शरीर में बहुत सारी लसिका ग्रंथि पाई जाती है। यह शरीर को संक्रमण से बचाती है।

रक्तचाप- महाधमनी एवं उनकी  मुख्य शाखाओं  में रक्त का दबाव रक्तचाप कहलाता है।

एक स्वस्थ व्यक्ति का सामान्य स्थिति में सिस्टोलिक प्रेशर/डायस्टोलिक प्रेशरत्र 120/80 होता है। यही रक्तचाप कहलाता है।

रक्तचाप की माप एक विशेष उपकरण द्वारा की जाती है। यह उपकरण स्फिगमोमैनोमीटर कहलाता है।

सामान्य से अधिक उच्च रक्तचाप हाइपरटेंशन कहलाता है।

हाइपरटेंशन किसी रोग, मानसिक चिंता, उत्सुकता आदि से सम्बंधित हो सकता है। इसके कारण कभी-कभी हृद्याघात भी हो जाता है।

सामान्य से नीचे निम्न रक्तचाप हाइपोटेंशन कहलाता है।

हृदय की धड़कनों को मापने के लिए स्टेथोस्कोप का प्रयोग किया जाता है।

महत्‍वपूर्ण तथ्‍य—

*एक मिनट में हृदय 72 बार धड़कता है।

*खुला परिसंचरण तंत्र तिलचट्टा में पाया जाता है।

*मानव हृदय में कोष्ठों की संख्या 4 होती है।

*मानव हृदय का औसत प्रकुंचन दाब लगभग 120 mm Hg होता है।

*हृदय से रक्त को सम्पूर्ण शरीर में निलय द्वारा पंप किया जाता है।

*हीमोग्लोबीन की कमी से एनीमीया नामक रोग होता है।

*सामान्य अनुशिथिलन रक्त दाब 80 mm होता है। निलयों के शिथिलन या प्रसारण से रक्त पर उत्पन्न दाब अनुशिथिलन दाब कहते हैं।

*मनुष्य में श्वेत रक्त कोशिकाओं की जीवन अवधि 12 से 20 दिन होती है। लाल रक्त कोशिकाओं की जीवन अवधि 120 दिन और प्लेट्लेट्स की जीवन अवधि 3 से 5 दिन होती है।

*मक्खी में हीमोग्लोबीन नहीं होता है।

*रुधिर तरल संयोजी ऊतक है।

*प्लेटलेट्स रक्तस्त्राव को रोकने में मदद करता है।

*पादप में जाइलम जल के वहन के लिए उत्तरदायी है।

*सबसे तेज हृदय धड़कन चूहा का होता है।

*फ्लोएम ऊतकों द्वारा कार्बोहाइड्रेट का परिवहन फ्रकटोज के रूप में होता है।

*रक्त तरल संयोजी ऊतक है।

*चालनी नलिकाएँ फ्लोएम में पायी जाती है।

*मानव हृदय पेरिकार्डियम नामक झिल्ली से घिरा होता है।

*ऑक्सीजन का वाहक RBC होता है।

*पौधों में वाष्पोत्सर्जन पत्ति‍यों के माध्यम से होता है।

उत्सर्जन

उत्सर्जन- जीवों के शरीर से उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों का शरीर से बाहर निकलना उत्सर्जन कहलाता है।

जल संतुलन- शरीर में जल की मात्रा का संतुलन जल संतुलन कहलाता है।

उत्सर्जी पदार्थ- जंतुओं के शरीर में बननेवाला ऐसे पदार्थ जो हानिकारक होते हैं, उसे उत्सर्जी पदार्थ कहते हैं। जैसे अमोनिया, यूरिया या यूरिक अम्ल आदि।

जंतुओं में उत्सर्जन

उत्सर्जी अंग- वैसा अंग जो शरीर से अपशिष्ट पदार्थ (खराब पदार्थ) बाहर निकालते हैं, उसे उत्सर्जी अंग कहते हैं। जैसे- फेफड़ा बलगम का उत्सर्जन करता था तथा वृक्क यूरिया का उत्सर्जन करता है।

अमीबा में उत्सर्जन विसरण विधि द्वारा होता है।

मनुष्य में उत्सर्जन- मनुष्य एवं समस्त वर्टिब्रेटा उपसंघ के जंतुओं में वृक्क सबसे महत्वपूर्ण उत्सर्जी अंग है।

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वृक्क से संबंद्ध अन्य रचनाएँ जो उत्सर्जन में भाग लेती हैं, वे हैं मूत्रवाहिनी, मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग।

मनुष्य में एक जोड़ा वृक्क होता है, जो सेम के बीज के आकार का होता है।

प्रत्येक वृक्क का भार 140 gm होता है।

प्रत्येक वृक्क से लगभग 1,30,000 सूक्ष्म नलिकाएँ (Micro tubules) होती है जिन्हें वृक्कक या नेफ्रॉन (Nephron) कहते हैं। नेफ्रॉन वृक्क की कार्यात्मक इकाई (Functional Unit of Kidney) होती है। नेफ्रॉन को उत्सर्जन इकाई भी कहा जाता है।

वृक्क रक्त के शुद्धिकरण का कार्य करता है।

वृक्क के बाहरी भाग को प्रातंस्थ भाग या कार्टेक्स जबकि आंतरिक भाग को अंतस्थ भाग या मेडुला कहते हैं।

नेफ्रॉन की संचरना

वृक्क की इकाई को नेफ्रॉन कहते हैं। प्रत्येक वृक्क में 10 लाख नेफ्रॉन होते हैं। प्रत्येक नेफ्रॉन के शुरू वाले हिस्से पर प्याले जैसी रचना होती है, जिसे बोमैन-संपुट कहते हैं।

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वृक्क के कार्य- वृक्क के निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य हैं-

(a) वृक्क स्तनधारियों एवं अन्य कशेरुकी जन्तुओं में उपापचय क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों को मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकालता है।

(b) यह रक्त में हाइड्रोजन आयन सांद्रता (pH) का नियंत्रण करता है।

(c) यह रक्त के परासरणी दाब तथा उसकी मात्रा का नियंत्रण करता है।

(d) यह रुधिर तथा ऊतक द्रव्य में जल एवं लवणों की मात्रा को निश्चित कर रुधिर दाब बनाए रखता है।

(e) रुधिर के विभिन्न पदार्थों का वर्णात्मक उत्सर्जन कर वृक्क शरीर की रासायनिक अखण्डता बनाने में सहायक होता है।

(f) शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने की अवस्था में विशेष एन्जाइम के स्रवण से वृक्क एरिथ्रोपोइटिन (Erythropoietin) नामक हार्मोन द्वारा लाल रुधिराणुओं के तेजी से बनने में सहायक होता है।

(g) यह कुछ पोषक तत्त्वों के अधिशेष भाग जैसे शर्करा, ऐमीनो अम्ल आदि का निष्कासन करता है।

(h) यह बाहरी पदार्थों जैसे दवाइयाँ, विष इत्यादि जिनका शरीर में कोई प्रयोजन नहीं होता है, उनका निष्कासन करता है।

(i) शरीर में परासरण नियंत्रण (Osmoregulation) द्वारा वृक्क जल की निश्चित मात्रा को बनाए रखता है।

वृक्क का कार्य- वृक्क द्वारा मूत्र-निर्माण या उत्सर्जन की क्रिया निम्नलिखित तीन चरणों में पूर्ण होती है।

1. ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन
2. ट्यूबुलर पुनरवशोषण
3. ट्यूबुलर स्त्रवण

1. ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन- ग्लोमेरूलर एक छन्ना की तरह कार्य करता है। रक्त के साथ यूरिया, यूरिक अम्ल, जल, ग्लूकोज, लवण, प्रोटीन इत्यादि ग्लोमेरूलर में छनते हैं।

2. ट्यूबुलर पुनरवशोषण- यह उन पदार्थों को शोषित कर लेती हैं जिनकी आवश्यकता होती है तथा जिन पदार्थों की आवश्यकता नहीं होती है उन्हें छोड़ देती है।

3. ट्यूबुलर स्त्रवण- पुनरावशोषण के पश्चात् कभी-कभी नलिका की कोशिकाओं से कुछ उत्सर्जी पदार्थ स्रावित होते हैं जो फिल्ट्रेट में मिल जाते हैं। इसे ट्यूबुलर स्रवण कहते हैं।

इस फिल्ट्रेट को ब्लाडर-मूत्र कहते हैं। यह मूत्र-नलिका से होकर गुजरता है तथा मूत्राशय में जमा होता है एवं समय-समय पर मूत्रमार्ग के छिद्र द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।

मूत्र की बनावट- मूत्र का निर्माण वृक्क करता है। इसमें 96 जल, 2  यूरिया और 2  अन्य पदार्थ होते हैं। मूत्र का पिला रंग यूरोक्रोम के कारण होता है।

हिमोडायलिसिस- डायलिसिस मशीन से रक्त के शुद्धिकरण की प्रक्रिया हिमोडायलिसिस कहलाती है।

पादप में उत्सर्जन

पौधों में उत्सर्जन के लिए विशिष्ट अंग नहीं होते हैं। पौधों में कार्बन डाइऑक्साइड गैस और ऑक्सीजन का निष्कासन विसरण विधि द्वारा होता है।

महत्‍वपूर्ण तथ्‍य—

*पौधे में उत्सर्जन पित्तयों के गिरने और छाल के विलगाव से होता है।

*पौधों में पाए जानेवाले मुख्य उत्सर्जी पदार्थों में टैनिन, रेजिन एवं गोंद हैं।

*प्रोटोजोआ अवशिष्ट पदार्थों का निष्कासन विसरण द्वारा करता है।

*कृत्रिम वृक्क नाइट्रोजन अपशिष्ट को अपोहन द्वारा पृथक करता है।

*मानव में नेफ्रॉन डायलिसिस थैली है।

*नेफ्रॉन वृक्क की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है।

*मानव का प्रमुख उत्सर्जी अंग वृक्क है।

*सजीव जीवधारियों द्वारा अमोनिया, यूरिक अम्ल और यूरिया जैसे नाइट्रोजनी पदार्थ (कचरा) का उत्सर्जन होता है।

*मनुष्य में वृक्क उत्सर्जन से संबंधित है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

[ 1 ] पौधों में वाष्पोत्सर्जन किस भाग में होता है ?

(A) जड़

(B) तना

(C) पत्ता

(D) फूल

Ans :- (C) पत्ता

[ 2 ] मानव रक्त में उपस्थित यूरिया की सामान्य मात्रा होती है-

(A) 100 Mg

(B) 20 Mg

(C) 30 Mg

(D) 40 Mg

Ans :- (B) 20 Mg

[ 3 ] श्वसन क्रिया के दौरान कितनी प्रतिशत ऊर्जा ताप के रूप में निष्काषित होती है ?

(A) 20%

(B) 40%

(C) 60%

(D) 80%

Ans :- (A) 20%

[ 4 ] मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो संबंधित है-

(A) पोषण

(B) श्वसन

(C) उत्सर्जन

(D) परिवहन

Ans :- (C) उत्सर्जन

[ 5 ] पौधों के वायवीय भागों से जल के निष्कर्ष की क्रिया कहलाती है-

(A) परागण

(B) निषेचन

(C) विसरण

(D) वाष्पोत्सर्जन

Ans :- (D) वाष्पोत्सर्जन

[ 6 ] वह प्रक्रम जिनके द्वारा शरीर में ऊर्जा का उत्पादन होता है। कहलाता है- 

(A) श्वसन

(B) पोषण

(C) उत्सर्जन

(D) उत्तेजनशीलता

Ans :- (A) श्वसन

[ 7 ] कौन-सी क्रिया सभी जीव के लिए अनिवार्य है ?

(A) प्रकाश संश्लेषण

(B) वाष्पोत्सर्जन

(C) श्वसन

(D) चलन

Ans :- (C) श्वसन

[ 8 ] मैग्नीशियम पाया जाता है ?

(A) क्लोरोफिल में

(B) लाल रक्त कण में

(C) वर्णी लवक में

(D) श्वेत रक्त कण में

Ans :- (A) क्लोरोफिल में

[ 9 ] मानव हृदय में पाये जाते हैं ?

(A) 3 वेश्म

(B) 2 वेश्म

(C) 4 वेश्म

(D) 5 वेश्म

Ans :- (C) 4 वेश्म

[ 10 ] प्रकाश संश्लेषण द्वारा किसकी प्राप्ति होती है ?

(A) वसा

(B) प्रोटीन

(C) ग्लूकोज

(D) प्रकाश

Ans :- (C) ग्लूकोज

[ 11 ] कोशिका झिल्ली किस प्रकार की झिल्ली है ?

(A) पागरम्य

(B) अपारगम्य

(C) अर्द्धपारगम्य

(D) इनमें से कोई नहीं

Ans :- (C) अर्द्धपारगम्य

[ 12 ] दही के जमने में निम्नलिखित में कौन सी क्रिया होती है ?

(A) अपघटन

(B) प्रकाश संश्लेषण

(C) किण्वन

(D) उत्सर्जन

Ans :- (C) किण्वन

[ 13 ] जीवन की उपापचयी क्रियाओं के संचालन के लिए निम्नलिखित में कौन आवश्यक है?

(A) निरंतर ऊर्जा की आपूर्ति

(B) शरीर की वृद्धि

(C) टूटे-फूटे ऊतकों की मरम्मत

(D) इनमें से सभी

Ans :- (D) इनमें से सभी

[ 14 ] मानव में डायलिसिस थैली है ?

(A) नेफ्रॉन

(B) न्यूरॉन

(C) माइटोकॉड्रिया

(D) इनमें से कोई नहीं

Ans :- (A) नेफ्रॉन

[ 15 ] मत्स्य का मुख्य श्वसन अंग है-

(A) किया

(B) फेफड़ा

(C) गिल्स

(D) नाक

Ans :- (C) गिल्स

[ 16 ] पौधों में गैसों के निष्कासन के लिए किस क्रिया का उपयोग होता है ?

(A) परासरण

(B) विसरण

(C) वाष्पोत्सर्जन

(D) परिवहन

Ans :- (B) विसरण

[ 17 ] क्लोरोफिल वर्णक का रंग है-

(A) हरा

(B) नीला

(C) लाल

(D) सफेद

Ans :- (A) हरा

 [ 18 ] कवक में पोषण की कौन-सी विधि है?

(A) स्वपोषी

(B) मृतजीवी

(C) समभोजी

(D) कोई नहीं

Ans :- (B) मृतजीवी

[ 19 ] रेजिन एवं गोंद कहाँ संचित रहता है ?

(A) फ्लोएम में

(B) कॉर्टेक्स में

(C) छाल में

(D) पुराने जाइलम में

Ans :- (D) पुराने जाइलम में

 [ 20 ] शरीर में भोजन को पचना किस प्रकार की अभिक्रिया है?

(A) उपचयन

(B) संचयन

(C) विस्थापन

(D) अपचयन

Ans :- (A) उपचयन

[ 21 ] रक्त क्या है ?

(A) कोशिका

(B) उत्तक

(C) पदार्थ

(D) कोई नहीं

Ans :- (B) उत्तक

[ 22 ] निम्नलिखित में कौन उत्सर्जी अंग है?

(A) वृक्क

(B) अग्नाशय

(C) आँख

(D) कोई नहीं

Ans :- (A) वृक्क

[ 23 ] रक्षी कोशिकाएँ पाई जाती है ?

(A) जड़ में

(B) पत्तियों में

(C) फूलों में

(D) फलों में

Ans :- (B) पत्तियों में

[ 24 ] इथाइल अल्कोहल किस प्रकार के श्वसन में बनता है ?

(A) वायवीय

(B) अवायवीय

(C) (A) और (B) दोनों

(D) इनमें से कोई नहीं

Ans :- (B) अवायवीय

[ 25 ] मनुष्य के साँस लेने और छोड़ने की क्रिया को क्या कहते हैं?

(A) श्वासोच्छवास

(B) श्वसन

(C) नि:श्वसन

(D) उत्सर्जन

Ans :- (A) श्वासोच्छवास

[ 26 ] रक्त में आयरन की कमी से होने वाला एक रोग है ?

(A) टी० बी०

(B) मधुमेह

(C) एनीमिया

(D) उच्च रक्त चाप

Ans :- (C) एनीमिया

[ 27 ] पादय में जाइलम उत्तरदायी है-

(A) जल का वहन

(B) भोजन का वहन

(C) अमीनो अम्ल का वहन

(D) ऑक्सीजन का वहन

Ans :- (A) जल का वहन

[ 28 ] कुटपाद किसमें पाया जाता है ?

(A) पैरामिशियम में

(B) युगलिना में

(C) अमीबा में

(D) इनमें से कोई नहीं

Ans :- (C) अमीबा में

[ 29 ] प्रकृति में ऑक्सीजन का संतुलन कैसे बना रहता है ?

(A) संयोजन क्रिया

(B) प्रकाश संश्लेषण

(C) अपघटन

(D) इनमें से कोई नहीं

Ans :- (B) प्रकाश संश्लेषण

[ 30 ] स्टोमाटा पौधों के किस अंग में पाया जाता है ?

(A) तना में

(B) पत्तियों में

(C) जड़ में

(D) कोई नहीं

Ans :- (B) पत्तियों में

[ 31 ] मानव हृदय का औसत प्रकुंचन दाब है, लगभग-

(A) 120 mm Hg

(B) 150 mm Hg

(C) 90 mm Hg

(D) इनमें से कोई नहीं

Ans :- (A) 120 mm Hg

[ 32 ] इनमें कौन प्रकाश संश्लेषी अंग है ?

(A) पत्ती

(B) स्ट्रोमा

(C) ग्राना

(D) हरित लवक

Ans :- (A) पत्ती

[ 33 ] वाष्पोत्सर्जन कैसी प्रक्रिया है ?

(A) शारीरिक

(B) भौतिक

(C) रासायनिक

(D) प्राकृतिक

Ans :- (B) भौतिक

[ 34 ] शरीर में भोजन का पचना किस प्रकार की अभिक्रिया हैं ?

(A) अवकरण

(B) ऑक्सीकरण

(C) उदासीनीकरण

(D) वैद्युत अपघटन

Ans :- (B) ऑक्सीकरण

[ 35 ] स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है ?

(A) क्लोरोफिल

(B) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल

(C) सूर्य का प्रकाश

(D) उपरोक्त सभी

Ans :- (D) उपरोक्त सभी

[ 36 ] पायरुवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है ?

(A) कोशिका द्रव्य

(B) माइटोकॉन्ड्रिया

(C) हरित लवक

(D) केन्द्रक

Ans :- (B) माइटोकॉन्ड्रिया

[ 37 ] जठर ग्रंथियाँ कहाँ पायी जाती है ?

(A) आँख में

(B) अग्नाशय में

(C) यकृत में

(D) अमाशय में

Ans :- (D) अमाशय में

[ 38 ] खुला परिसंचरण तंत्र किसमें पाया जाता है ?

(A) मनुष्य में

(B) कॉकरोच में

(C) घोड़ा में

(D) ऊंट में

Ans :- (B) कॉकरोच में

[ 39 ] पौधों में पाया जानेवाला गाढ़ा एवं दुधिया उत्सर्जी तरल पदार्थ को क्या कहते हैं ?

(A) लैटेक्स

(B) रेजिन

(C) गोंद

(D) टैनिन

Ans :- (A) लैटेक्स

 [ 40 ] युरिया रक्त में कहाँ से प्रवेश करती है ?

(A) फेफड़ा से

(B) यकृत से

(C) श्वास नलिका से

(D) वृक्क से

Ans :- (B) यकृत से

[ 41 ] प्रकाश संश्लेषण होता है –

(A) रात में

(B) दिन में

(C) रात-दिन

(D) सुबह-शाम

Ans :- (B) दिन में

[ 42 ] पादप में फ्लोएम संवाहक होता है-

(A) भोजन

(B) कार्बन डाइऑक्साइड

(C) जल

(D) अमिनो अम्ल

Ans :- (A) भोजन

[ 43 ] प्रकाश संश्लेषण क्रिया में ऑक्सीजन बाहर निकलता है-

(A) जल से

(B) कार्बन डाइऑक्साइड से

(C) ग्लूकोज से

(D) डिक्टियोजोम से

Ans :- (A) जल से

[ 44 ] रक्त में हल्के पीले रंग के चिपचिपे द्रव को कहते हैं-

(A) प्लाज्मा

(B) सीरम

(C) लिंफ

(D) लसीका

Ans :- (A) प्लाज्मा

[ 45 ] प्रकाश संश्लेषी अंगक है ?

(A) पत्ती

(B) हरित लवक

(C) क्लोरोफिल

(D) क्लोरोप्लास्ट

Ans :- (B) हरित लवक

[ 46 ] वृक्क के संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को कहते हैं –

(A) नेफ्रॉन

(B) मूत्रवाहिनी

(C) ग्लोमेरूलस

(D) बोमेन संपुट

Ans :- (A) नेफ्रॉन

[ 47 ] मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है ?

(A) लीवर

(B) अग्न्याशय

(C) अण्डाशय

(D) एड्रीनल

Ans :- (A) लीवर

[ 48 ] स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक नहीं है-

(A) ऑक्सीजन

(B) क्लोरोफिल

(C) सौर प्रकाश

(D) जल

Ans :- (A) ऑक्सीजन

[ 49 ] इनमें किसके द्वारा अमीबा में भोजन अंतर्गहन होता है ?

(A) कूटपाद

(B) परिवहन

(C) भोजन रसधानी

(D) केंद्रक

Ans :- (A) कूटपाद

[ 50 ] पौधों में श्वसन क्रिया के अन्तर्गत ADP के टूटने से कितनी ऊर्जा मुक्त होती है ?

(A) 30.5 kJ/mol

(B) 305 kJ/mol

(C) 3.5 kJ/mol

(D) इनमें से कोई नहीं

Ans :- (D) इनमें से कोई नहीं

[ 51 ] रक्त का थक्का बनाने में सहायक होता है ?

(A) लाल रक्त कोशिका

(B) श्वेत रक्त कोशिका

(C) रक्त विंबाणु

(D) इनमें से कोई नहीं

Ans :- (C) रक्त विंबाणु

[ 52 ] पाचन क्रिया पूर्ण होती है ?

(A) अग्न्याशय में

(B) बड़ी आंतें में

(C) छोटी आंत में

(D) ग्रासनली में

Ans :- (C) छोटी आंत में

[ 53 ] छोटी आंत की दीवार में पाई जानेवाली ग्रंथियों के स्राव को क्या कहते हैं ?

(A) आंत रस

(B) सक्कस एंटीरिकस

(C) जठर रस

(D) (A) एवं (B) दोनों

Ans :- (D) (A) एवं (B) दोनों

[ 54 ] एक वयस्क मनुष्य के कितने दाँत होते हैं ?

(A) 28

(B) 30

(C) 32

(D) 34

Ans :- (C) 32

[ 55 ] मछली के हृदय में कोष्ठों की संख्या है ?

(A) दो

(B) तीन

(C) चार

(D) केवल एक

Ans :- (A) दो

[ 56 ] स्वाद कलियाँ पाई जाती हैं ?

(A) अग्न्याशय की ऊपरी सतह पर
(B) जीभ के ऊपरी सतह पर
(C) अग्नचवर्णक पर
(D) ग्रसनी के भीतरी दीवार पर

Ans :- (B) जीभ के ऊपरी सतह पर

[ 57 ] आमाशय के अग्रभाग को कहते हैं।

(A) पाइलोरिक

(B) फुण्डिक

(C) कार्डिएक

(D) एपिग्लौटिस

Ans :- (C) कार्डिएक

[ 58 ] मुखगुहा का पिछला भाग कहलाता है ?

(A) ग्रसनी

(B) ग्रासनली

(C) ग्रहणी

(D) अग्न्याशय

Ans :- (A) ग्रसनी

[ 59 ] निम्नलिखित में कौन सजीव के मुख्य लक्षण हैं ?

(A) स्थानांतरण

(B) श्वसन

(C) प्रकाश संश्लेषण

(D) इनमें सभी

Ans :- (B) श्वसन

[ 60 ] छोटी आंत एवं बड़ी आंत के जोड़ पर पाई जानेवाली एक छोटी नलीनुमा रचना को क्या कहते हैं ?

(A) सीकम

(B) रेक्टम

(C) कोलन

(D) एपेंडिक्स

Ans :- (A) सीकम

[ 61 ] छोटी आंत में भोजन के पाचन में निम्नलिखित में किस रस की भूमिका होती है ?

(A) पित्त रस

(B) अग्न्याशयी रस

(C) आंत्र रस

(D) इनमें से सभी

Ans :- (D) इनमें से सभी

[ 62 ] आमाशय में अधपचे भोजन के लेई की तरह के स्वरूप को क्या कहते हैं ?

(A) काइम

(B) चाइल

(C) काइलोमाइक्रॉन

(D) इनमें से कोई नहीं

Ans :- (A) काइम

[ 63 ] निम्नलिखित में कौन एमीनों अम्ल के विखंडन से बनता है ?

(A) कार्बन डाइऑक्साइड

(B) कार्बन मोनोऑक्साइड

(C) अमोनिया

(D) B और C दोनों

Ans :- (C) अमोनिया

[ 64 ] स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है ?

(A) क्लोरोफिल

(B) सूर्य प्रकाश

(C) जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड

(D) इनमें सभी

Ans :- (D) इनमें सभी

[ 65 ] चाइल का अवशोषण होता है ?

(A) इलियम में

(B) जेजूनम में

(C) कोलन में

(D) रेक्टम में

Ans :- (A) इलियम में

[ 66 ] मनुष्य के आहारनाल की कौन-सी रचना अवशेषी अंग है ?

(A) सीकम

(B) एपेंडिक्स

(C) जेजुनम

(D) कोलन

Ans :- (B) एपेंडिक्स

[ 67 ] दांत अस्थिक्षय कारण है ?

(A) मीठी चीज का खाना
(B) बैक्टीरिया द्वारा अम्ल निर्माण करना
(C) दाँतों की सफाई न करना
(D) इनमें से सभी

Ans :- (D) इनमें से सभी

[ 68 ] डेंटाइन के ऊपर दांतों की सुरक्षा हेतु पाई जानेवाली कठोर परत को कहते हैं ?

(A) ईनामेल

(B) कैनाइन

(C) दंत प्लाक

(D) मोलर

Ans :- (A) ईनामेल

[ 69 ] पैरामीशियम में भोजन का अंतग्रहण होता है ?

(A) सीलिया द्वारा

(B) कोशिका मुख द्वारा

(C) भोजन रसधानी द्वारा

(D) कूटपाद द्वारा

Ans :- (B) कोशिका मुख द्वारा

 [ 70 ] प्रकाश संश्लेषी इकाई है ?

(A) क्लोरोप्लास्ट

(B) प्लास्टिड

(C) क्लोरोफिल

(D) इनमें से कोई नहीं

Ans :- (C) क्लोरोफिल

[ 71 ] प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया का मुख्य उपोत्पाद हैं ?

(A) ग्लूकोज

(B) ऑक्सीजन

(C) जल

(D) कार्बन डाइऑक्साइड

Ans :- (B) ऑक्सीजन

[ 72 ] पैरामीशियम में पाई जानेवाली पोषण विधि को क्या कहते हैं ?

(A) स्वपोषण

(B) मृतजीवी

(C) परजीवी

(D) प्राणिसम

Ans :- (D) प्राणिसम

[ 73 ] निम्नलिखित में किसे प्रकाश-संश्लषी अंगक कहते है ?

(A) जड़

(B) पत्ती

(C) स्टोमाटा

(D) हरित लवक

Ans :- (D) हरित लवक

[ 74 ] निम्नलिखित में जठर ग्रंथि की कौन-सी कोशिका हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्राव करती है?

(A) भित्तीय कोशिका

(B) जाइमोजिन कोशिका

(C) म्यूकस कोशिका

(D) इनमें से कोई नहीं

Ans :- (A) भित्तीय कोशिका

[ 75 ] मनुष्य के मुखगुहा में कितने जोड़े लार-ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं ?

(A) एक

(B) दो

(C) तीन

(D) चार

Ans :- (C) तीन

[ 76 ] इनमें कौन-सी रचना द्वारा अमीबा में भोजन का अंतर्ग्रहण होता है ?

(A) कूटपाद

(B) सीलियम

(C) भोजन रसधानी

(D) पीनासाइट

Ans :- (A) कूटपाद

[ 77 ] पेप्टोन, पेप्टाइड्स को निम्नलिखित में किस रूप में तोड़ता है ?

(A) ऐमीनो अम्ल

(B) वसा अम्ल

(C) पोलीपेप्टाइड्स

(D) न्यूक्लीओटाइड्स

Ans :- (A) ऐमीनो अम्ल

[ 78 ] कोशिका के किस भाग में सजीवों के सारे गुण विद्यमान रहते हैं ?

(A) कोशिका झिल्ली

(B) कोशिका भित्ति

(C) जीवद्रव्य

(D) इनमें कोई नहीं

Ans :- (C) जीवद्रव्य

[ 79 ] निम्नलिखित में किस छिद्र द्वारा ग्रसनी ग्रासनली से जुड़ी होती है ?

(A) निगल द्वार

(B) कंठ द्वार

(C) मल द्वार

(D) कोई नहीं

Ans :- (A) निगल द्वार

[ 80 ] अमीबा का मुख्य भोजन है ?

(A) शैवाल के टुकड़े

(B) डायटम एवं एककोशिकीय जीव

(C) बैक्टीरिया

(D) इनमें से सभी

Ans :- (D) इनमें से सभी

[ 81 ] ग्रहणी, भाग है ?

(A) मुखगुहा का

(B) आमाशय का

(C) छोटी आँत का

(D) बड़ी आँत का

Ans :- (C) छोटी आँत का

[ 82 ] वह विधि जिसमें जीव पोषक तत्वों को ग्रहण कर उनका उपयोग अपने वृद्धि एवं जनन के लिए करते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?

(A) अंतर्ग्रहण

(B) परपोषण

(C) पोषण

(D) स्वपोषण

Ans :- (C) पोषण

लघु उत्तरीय प्रश्न

1.श्वसन क्या है ?

उत्तर शरीर के बाहर से ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा कोशिकीय आवश्यकता के अनुसार खाद्य स्रोत के विघटन में उसका उपयोग श्वसन कहलाता है। इसे निम्न समीकरण द्वारा समझा जा सकता है –

2. परपोषण किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं ?

उत्तर जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेषित नहीं करते हैं अपितु किसी-न-किसी रूप में अन्य स्रोतों से प्राप्त करते हैं। परपोषण निम्नांकित चार प्रकार के होते हैं –

 (i) प्राणिसम पोषण

 (ii) मृतजीवी पोषण

 (iii) परजीवी पोषण

(iv) परासरणी पोषण।

3. उत्सर्जन क्या है ? उत्सर्जन में भाग लेने वाले वृक्क से संबंधित अन्य रचनाओं को सूचीबद्ध करें।

उत्तर शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकलना उत्सर्जन कहलाता है। मनुष्य में उत्सर्जन से संबंधित महत्त्वपूर्ण रचनाएँ निम्नांकित हैं –

(i) वृक्क

 (ii) मूत्रवाहिनी

 (iii) मूत्राशय

 (iv) मूत्रमार्ग

 4. पोषण क्या है ? इनके विभिन्न चरण कौन-कौन से हैं ?

 उत्तर पोषण एक जटिल प्रक्रम है जिसके अंतर्गत कोई जीवधारी भोजन ग्रहण करता है, जिसके द्वारा शरीर-रचना, टूट-फूट की मरम्मत एवं अन्य सभी जैविक क्रियाओं का संचालन एवं नियमन होता है ।

मुख, आहार नली, आमाशय, क्षुद्रांत्र आंत की भित्ति। बिना पचा भोजन वृहदांत्र में भेज दिया जाता है।

 5. वाष्पोत्सर्जन को परिभाषित करें।

 उत्तर द्रव का कमरे के ताप या द्रव के क्वथनांक के नीचे के तापों पर वाष्प बनकर धीरे-धीरे वायुमंडल में जाने की प्रक्रिया वाष्पोत्सर्जन कहलाती है।

 6. स्वपोषण की आवश्यक शर्ते क्या है? इसके उपोत्पाद क्या हैं ?

 उत्तर स्वपोषण के लिए निम्न शर्तों को पूरा करना आवश्यक है –

(A) पर्णहरित या क्लोरोफिल की उपस्थिति

(B) कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की उपस्थिति

(C) जल (H2O) की उपस्थिति

पर्णहरित या क्लोरोफिल सूर्य से विकिरण ऊर्जा को अवशोषित करते हैं। जिसके द्वारा CO2 एवं H2O का स्थिरीकरण कर अपने भोजन कार्बोहाइट्रेट का निर्माण करते हैं। उपोत्पाद के रूप में ग्लूकोज एवं ऑक्सीजन प्राप्त होते हैं। ग्लूकोज अंततः स्टार्च में बदल जाता है।

 7. परिसंचरण तंत्र से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर उच्च श्रेणी के जंतुओं में एक विशेष प्रकार का परिवहन तंत्र होता है जो ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, पोषक तत्वों, हार्मोन, उत्सर्जी पदार्थों या अन्य उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न विभिन्न पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में ले जाता है, जिसे परिसंचरण तंत्र कहते हैं। इस तंत्र के तीन प्रमुख अवयव हैं –

 (i) रक्त या रुधिर

 (ii) हृदय

 (iii) रक्त वाहिनियाँ

8. उत्सर्जन क्या है? मानव में इसके दो प्रमुख अंगों के नाम लिखें।

 उत्तर जीवों के शरीर से उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निष्कासन की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। मानव में इसके दो प्रमुख अंग के नाम निम्नलिखित हैं —

(i) वृक्क (Kidney) – जो रक्त में द्रव्य के रूप में अपशिष्ट पदार्थों (liquid waste product) को मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकालता है।

(ii) फेफड़ा (Lungs) – जो रक्त में गैसीय अपशिष्ट पदार्थों (gaseous waste product) को शरीर से बाहर निकालता है।

 9. वाष्पोत्सर्जन क्रिया का पौधों के लिए क्या महत्त्व है ?

 उत्तर वाष्पोत्सर्जन क्रिया का पौधों के लिए निम्नलिखित महत्त्व हैं –

 (i) यह पौधों के मूलरोम द्वारा खनिज लवणों के अवशोषण एवं जड़ से पत्तियों तक उनके परिवहन में सहायक होता है।

(ii) यह पौधों में तापक्रम संतुलन बनाये रखता है।

(iii) वाष्पोत्सर्जन के कारण ही पौधों की जड़ों से चोटी तक जल की निश्चित धारा बनी रहती है।

(iv) दिन में रंध्रों के खुले रहने पर वाष्पोत्सर्जन कर्षण; ही जाइलम में जल की गति के लिए मुख्य प्रेरक बल का कार्य करता है।

 10. मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है ?

 उत्तर जल की मात्रा पुनरावशोषण, शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर तथा कितना विलेय वय॑ उत्सर्जित करना है, पर निर्भर करता है। अगर अधिक मात्रा में जल या अन्य द्रव्य का सेवन किया जाये तो रक्त का दाब बढ़ जाता है व अधिक मात्रा में मूत्र बनती है। मूत्र की मात्रा भोजन में लिये गए खनिज लवण व दूसरे ठोस आहार पर भी निर्भर करता है। उदाहरण के लिए अगर खाने में नमक की मात्रा अधिक है तो वृक्क से उचित मात्रा में लवण मूत्र के साथ ही बनता है जिससे रक्त में विसरण दाब सही रहता है। मूत्राशय पेशीय होता है। अत: यह तंत्रिका नियंत्रण में है और हम इसी कारणवश मूत्र निकासी को नियंत्रित कर लेते हैं।

 11. मनुष्य में दंतक्षरण का क्या कारण है ?

 उत्तर दंतक्षरण या दंतक्षय इनैमल तथा डेंटीन के शनैः-शनैः मृदुकरण के कारण होता है। अनेक जीवाणु कोशिका खाद्य कणों के साथ मिलकर दाँतों पर चिपककर दंत प्लाक बना देते हैं। प्लाक दाँत को ढक लेता है। इसलिए लार अम्ल को उदासीन करने के लिए दंत सतह तक नहीं पहुँच पाती है। यही दंतक्षरण का कारण है।

 12. दंत प्लाक एवं दंत अस्थिक्षय से क्या समझते हैं ?

 उत्तर यदि मीठी चीजें खाने के उपरान्त हम अपनी दाँतों की सफाई ठीक से नहीं करते हैं तब ये हमारे दाँतों पर बैठ जाती है एवं दंत प्लाक बनाते हैं। शक्कर पर बैक्टीरिया रासायनिक क्रिया कर अम्ल बनाते हैं । यह अम्ल दाँत के इनामेल से रासायनिक प्रतिक्रिया कर उसे नरम बना देता है तथा उस स्थान पर धीरे-धीरे एक छिद्र बन जाता है जिसे दंत अस्थिक्षय कहते हैं।

 13. विषमपोषी पोषण से आप क्या समझते हैं ?

 उत्तर विषमपोषी पोषण वह प्रक्रिया है, जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेषित न कर किसी अन्य स्रोतों पर निर्भर करते हैं। जैसे—सभी जन्तु, अहरित पौधे (कवक)। इसके तीन प्रकार हैं—

 (i) मृतजीवी पोषण

 (ii) परजीवी पोषण

 (iii) प्राणिसम पोषण।

 14. सजीव के मुख्य चार लक्षण लिखें।

 उत्तर सजीवों के मुख्य चार लक्षण निम्नलिखित हैं – 

(i) पोषण

(ii) श्वसन

(iii) प्रजनन

(iv) वृद्धि एवं विकास।

 15. जीवों में पोषण की अनिवार्यता की सार्थकता साबित करें ।

 उत्तर जैविक प्रक्रमों के संचालन, वृद्धि, अनुरक्षण आदि कार्यों के निष्पादन हतु जावा का मूलभूत आवश्यकता ऊर्जा है । ऊर्जा की प्राप्ति हेतु खाद्य पदाथा का जरूरत होती है । अत: जीवों में पोषण अनिवार्य है।

16. हमारे आमाशय में अम्ल की भमिका क्या है ?

 उत्तर हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका निम्नलिखित हैं

 (i) यह जीवाणुनाशक की तरह कार्य कर भोजन के साथ आनेवाले बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है

(ii) भोजन इसके कारण शीघ्रता से नहीं पचता है।

17. कोशिका के चार कोशिकांग का नाम लिखें।

 उत्तर कोशिका के चार कोशिकांग का नाम निम्नलिखित है –

 (i) माइटोकॉण्ड्रिया

 (ii) लाइसोसोम

 (iii) गॉल्जी उपकरण

 (iv) अंतः प्रद्रव्या जालिका।

18. मनुष्य में कितने प्रकार के दाँत पाये जाते हैं ? उनके नाम तथा कार्य लिखें।

उत्तर मनुष्य में दाँत चार प्रकार के होते हैं-कतर्नक या इन्साइजर, भेदक या कैनाइन, अग्रचवर्णक या प्रीमोलर तथा चवर्णक या मोलर। कतर्नक को काटने वाला दाँत कहते हैं, भेदक-चिरने या फाड़ने वाला दाँत होता है। अग्रचवर्णक एवं चवर्णक को चबाने एवं पीसने वाला दाँत कहा जाता है।

19. हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है ?

 उत्तर हमारे शरीर में वसा का पाचन आहारनाल की क्षुद्रांत्र में होता है। यकृत से निकलनेवाला क्षारीय पित्तरस, आए हुए भोजन के साथ मिलकर, उसकी अम्लीयता को निष्क्रिय करके उसे क्षारीय बना देता है, जिसकी इसी प्रकृति पर अग्न्याशयिक रस सक्रियता से कार्य करता है। पित्तरस वसा को सूक्ष्म कणों में तोड़ देता है। इस क्रिया को इमल्सीकरण क्रिया कहते हैं । लाइपेज एंजाइम, जो कि अग्न्याशयिक रस में पाया जाता है, इमल्सीफाइड वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता।

20. किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है ?

 उत्तर किसी भी जीव में शारीरिक वृद्धि के लिए उसे बाहर से अतिरिक्त कच्ची सामग्री की भी आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर जीवन कार्बन आधारित अणुओं पर निर्भर है, अतः अधिकांशतः, खाद्य पदार्थ भी कार्बन आधारित हैं। इन कार्बन स्रोतों की जटिलता के अनुसार विभिन्न जीव भिन्न प्रकार के पोषण प्रक्रम को प्रयुक्त करते हैं।

21. किण्वन क्रिया क्या है? इथेनॉल की प्राप्ति में किण्वन का अनुप्रयोग किस प्रकार होता है ?

 उत्तर गन्ने के रस को सूर्य के प्रकाश में रख देने पर यह रासायनिक ऊज का उपयोग कर किण्वित हो जाता है जिससे ऐल्कोहॉल का निर्माण होता है व्यापारिक विधि में एथेनॉल को चीनी के किण्वन द्वारा प्राप्त किया जाता है।

22. पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है ?

 उत्तर   पचे हुए भोजन का अवशोषण ज्यादा हो सके तथा सतही क्षेत्रफल अधिक हो इसके लिए क्षुद्रांत्र के आंतरिक स्तर पर अनेक अंगुली जैसे प्रवर्ध होते हैं जिन्हें दीर्घरोम कहते हैं । दीर्घरोम में रुधिरवाहिकाओं की बहुतायत होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाती हैं। इन । कोशिकाओं में भोजन का प्रयोग ऊर्जा प्राप्ति के लिए किया जाता है तथा नये ऊतकों के निर्माण तथा टूटे हुए ऊतकों की मरम्मत हेतु होता है ।

 23. प्रकाश संश्लेषण क्या है ? 

 उत्तर   हरे पौधों द्वारा सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा प्राप्त कर क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) तथा जल (H2O) के द्वारा अपने भोजन काबोहाइड्रेट (कार्बनिक पदार्थ) का संश्लेषण करना ही प्रकाशसंश्लेषण (Photosyn thesis) की प्रक्रिया कहलाता है।

 24. रक्त की संरचना को समझाएँ।

 उत्तर  रक्त लाल रंग का गाढ़ा, क्षारीय तरल पदार्थ है, जो मुख्य रूप से कोशिका एवं प्लाज्मा से बना है। रक्त कोशिका तीन प्रकार की होती है—लाल रक्त कोशिका, श्वेत रक्त कोशिका एवं पट्टिकाणु।

 प्लाज्मा (50-55%) में 90-92% जल, 6-8% प्लाज्मा प्रोटीन एवं 1-2%अकार्बनिक लवण पाये जाते है। इसमें ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, वसा आदि पाये जाते हैं।

 25. रक्त पट्टिकाणु की क्या उपयोगिता है ?

 उत्तर रक्त पट्टिकाणु सबसे छोटे आकार की रक्त कोशिकाएँ हैं, इसे विषाणु या थ्रोम्बोसाइटस भी कहते हैं। ये अस्थिमज्जा के मैगाकैरिओसाइट्स द्वारा निर्मित होते हैं। ये रक्त को थक्का बनाने में मदद करता है।

 26. मृतजीवी पोषण क्या है ?

 उत्तर जीव मृत जंतुओं और पौधों के शरीर से अपना भोजन, अपने शरीर की सतह से, घुलित कार्बनिक पदार्थों के रूप में अवशोषित करते हैं। यही मृतजीवी – पोषण है। मृतजीवी अपना भोजन मुख्यतः तरल अवस्था में अवशोषण द्वारा ग्रहण करते हैं। जंतुओं और पौधों की मृत्यु के पश्चात् उनके मृत शरीर को मृतजीवी अपघटित कर, अर्थात् सड़ा-गलाकर उनके मूल तत्त्वों में बदल देते हैं। ऐसे मूल तत्त्व पुनः मिट्टी में प्रतिस्थापित हो जाते हैं और उत्पन्न गैस वातावरण में मिल जाते हैं। इन तत्त्वों को फिर से हरे पौधे मिट्टी से ग्रहण कर अपने उपयोग में लाते हैं। यही चक्र पृथ्वी में निरंतर चलता रहता है।

 27. जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे ?

 उत्तर जीवन के अनुरक्षण के लिए हम निम्नलिखित प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे –

 (i) पोषण 

(ii) श्वसन

 (iii) परिवहन एवं

 (iv) उत्सर्जन इत्यादि ।

 28. प्रछली, मच्छर, केंचुआ और मनुष्य के मुख्य श्वसन अंगों के नाम लिखें।

 उत्तर मछली में मुख्य श्वसन अंग क्लोम (Gill) होता है। मच्छर में मुख्य श्वसन अंग श्वासनली या ट्रैकिया है, केंचुआ में मुख्य श्वसन अंग त्वचा है, जबकि मनुष्य में फेफड़ा है।

 29. प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधे कहाँ से प्राप्त करते हैं ?

 उत्तर प्रकाशसंश्लेषण के लिए पौधे कच्ची सामग्री निम्नांकित जगहों से प्राप्त करते हैं (i) कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) – इसे बायुमंडल से प्राप्त किया जाता है।

(iii) जल – भूमि से पौधे जड़ों द्वारा प्राप्त करते हैं।

(iii) पर्णहरित – यह पौधों के कोशिकाओं में स्थित हरित लवक होते हैं।

(iv) सूर्य का प्रकाश – सूर्य के प्रकाश से पौधे, फोटोन ऊर्जा कणों के रूप में प्राप्त करते हैं जो क्लोरोफिल में संचित होकर आवश्यकतानुसार प्रयोग में लाये जाते हैं।

30 . पौधों में गैसों का आदान-प्रदान कैसे होता है ?

 उत्तर पौधों में गैसों का आदान-प्रदान विसरण की क्रिया के द्वारा पौधों की पत्तियों पर स्थित रंध्रों (stomata) पुराने वृक्षों के तनों की कड़ी त्वचा (bark) पर स्थित वातरंध्रों (lenticels) एवं अंतरकोशिकीय स्थानों (intercellular spaces) के द्वारा होती है। इस क्रिया में पौधो की आवश्यकताओं एवं पर्यावरणीय अवस्था का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

 31. आमाशय में पाचक रस की क्या भूमिका है ?

 उत्तर पाचक रस (आमाशय) में HCL पाया जाता है जो निष्क्रिय पेप्सिनोजेन को सक्रिय पेप्सिन नामक एंजाइम में बदल देता है। पेप्सिन भोजन के प्रीटीन पर कार्य कर उसे पैप्टोन (Peptone) में बदल देता है। HCL भोजन के साथ आनेवाले बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है। इसके अतिरिक्त गैस्टिक लाइपेज एंजाइम भी पाचक रस में होता है, जो वसा के आंशिक पाचने में मदद करता है।

32. ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन से’आप क्या समझते हैं ?

उत्तर अभिवाही एवं अपवाही धमनिका के संयोग को ग्लोमेरुलर कहते हैं । अपवाही धमनिका का व्यास कम होने के कारण ग्लोमेरुलस के अन्दर रक्त पर दबाव अधिक बढ़ जाता है तथा इस उच्च दबाव पर रक्त के छनने की प्रक्रिया होती है, जिसे ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन या अल्ट्राफिल्ट्रेशन कहते हैं। इसके कारण प्रतिदिन 150-180 लीटर रक्त का वृक्कीय निस्पंद होता है, जिनमें 168.5 लीटर जल अवशोषित कर लिया जाता है एवं 1.5 से 1.8 लीटर मूत्र बनता है ।

33. विभिन्न प्रकार के प्राणिसमभोजी सजीवों का उल्लेख करें ।

उत्तर प्राणिसमभोजी सजीव अपना भोजन ठोस या तरल के रूप में जंतुओं के भोजन ग्रहण करने की विधि द्वारा ग्रहण करते हैं । ऐसे प्राणियों का भोजन संपूर्ण पादप या अन्य प्राणि अथवा उनके कुछ भाग होते हैं । भोजन के स्रोतों के आधार पर प्राणिसमभोजी निम्न प्रकार के होते हैं— शाकाहारी, मांसाहारी, सर्वाहारी, स्वजातिभक्षक, अपशिष्टभोजी, परभक्षी, कीटभक्षी, अपघटक, मत्स्यभक्षी, धान्यपोषी ।

34. पत्तियों को प्रकाशसंश्लेषी अंग क्यों कहा जाता है ?

 उत्तर पत्तियों में अंदर हरे वर्णक पर्णहरित या क्लोरोफिल की उपस्थिति होती है और प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रम केवल क्लोरोफिल की उपस्थिति में संभव होता है । इसलिए पत्तियों को प्रकाशसंश्लेषी अंग कहा जाता है ।

35. पित्त क्या है? मनुष्य के पाचन में इसका क्या महत्त्व है ?

 उत्तर पित्त यकृत ग्रंथि से स्रावित होने वाला (श्राव) द्रव्य है जो छोटी आँत में भोजन के पाचन में मदद करता है। मनुष्य के पाचन क्रिया में इसका निम्नलिखित महत्त्व है।

(i) पित्त आमाशय से ग्रहणी में आए अम्लीय काइम की अम्लीयता को नष्ट कर उसे क्षारीय बना देता है ताकि अग्न्याशयी रस के एंजाइम उस पर क्रिया कर सके।

(ii) पित्त भोजन में वसा के बड़े कण को सूक्ष्म कण में तोड़ने में (emulsification) मदद करता है, ताकि लाइपेज एंजाइम उस पर क्रिया कर वसा अम्ल एवं ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर सके। इस प्रकार वसा के पाचन में पित्त का महत्त्व है।

36. हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं ?

उत्तर हीमोग्लोबिन, लाल रक्त कोशिकाओं में पायी जाती है, यह ऑक्सीजन के साथ मिलकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन का निर्माण करती है। यह कोशिका में ऑक्सीजन को विसरित कर देती है, जिससे कोशिकीय श्वसन हो सके। हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी से एनिमिया नामक बीमारी हो जाती है। लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो जाती है। कोशिका को पूरी तरह ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है, जिसके कारण कोशिकीय श्वसन बाधित हो जाता है।

37. गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं ?

उत्तर हमारे मानव शरीर में दो फेफड़े होते हैं। प्रत्येक फेफड़ा लाखों सूक्ष्म कपिकाओं में विभाजित होता है। वायु की अनुपस्थिति में कूपिका बहुत कम स्थान घेरती है जबकि वायु की उपस्थिति में कूपिका बहुत स्थान घेरती है। इनके कारण श्वसन क्रिया में बहुत सहायता मिलती है।

38. पाचन किसे कहते हैं ? मनुष्य के आहारनाल के विभिन्न भागों का नाम बताएँ।

 उत्तर वह क्रिया जिसमें एंजाइमों की सहायता से जटिल भोज्य पदार्थों को सरल अणुओं में अपघटित किया जाता है, जिससे ये अवशोषित होकर हमारी कोशिकाओं में प्रवेश कर सके, पाचन कहलाती है।

मनुष्य के आहारनाल में निम्नलिखित भाग होते हैं।मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रासनली, आमाशय, छोटी आँत, बड़ी आँत, मलाशय एवं मलद्वार।

 39. उच्च संगठित पादप में वहनतंत्र के घटक क्या हैं ?

 उत्तर उच्च संगठित पादप में वहनतंत्र के घटक हैं –

 (i) एक जाइलम है, जो मृदा से प्राप्त जल और खनिज लवणों को वहन करता है। दूसरा फ्लोएम, पत्तियों से जहाँ प्रकाशसंश्लेषण के उत्पाद संश्लेषित होते हैं, पौधे के अन्य भागों तक वहन करता है।

40. क्या होगा अगर मानव शरीर से दोनों वृक्क को हटा दिया जाय ?

 उत्तर मनुष्य जीवित नहीं रह सकता है क्योंकि अपशिष्ट पदार्थ रक्त में जमा होना शुरू हो जाएँगे, तथा रक्त विषाक्त हो जाएगा ।

41. कठोर परिश्रम या अभ्यास करते समय साँस लेने की क्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों ?

उत्तर कठोर परिश्रम या अभ्यास करते समय हमारे मांसपेशियों में संकुचन और फैलाव बढ़ जाता है इसलिए साँस लेने में कठिनाई होने लगती है।

42. मनुष्य के आमाशय में जो HCL अम्ल स्त्रावित होता है, वह कैसे कार्य करता है ?

 उत्तर गैस्ट्रिक HCL अम्लीय माध्यम प्रदान करता है जो गैस्ट्रिक खमीर पेप्सीन को सक्रिय करता है। यह सक्रिय होकर भोजन में पाए जाने वाले विभिन्न कीटाणओं को मारता है।

43. वाष्पोत्सर्जन एवं स्थानांतरण में अंतर स्पष्ट करें।

 उत्तर पौधों के वायवीय भागों (स्टोमाटा, क्यूटिकल एवं लेंटीसेल्स) द्वारा वाष्प के रूप में जल के निष्कासन की क्रिया वाष्पोत्सर्जन कहलाती है। यह एक शारीरिक क्रिया है, एवं अलग-अलग पादपों में इस क्रिया से निष्कासित जल की मात्रा में भिन्नता होती है। है लेकिन स्थानांतरण में पौधों में जल, खनिज लवण एवं खाद्य-पदार्थों का बहुत ऊँचाई तक संचलन होता है। इस स्थानांतरण की क्रिया में वाष्पोत्सर्जन की भूमिका होती है। यह फ्लोएम की चालनी नलिकाओं द्वारा होता है।

44. किण्वन किस प्रकार का श्वसन है ? यह कहाँ होता है ?

उत्तर किण्वन एक प्रकार का अवायवीय श्वसन है, जिसमें यीस्ट द्वारा, पायरुवेट को एथेनॉल एवं कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित कर दिया जाता है। यह अभिक्रिया यीस्ट कोशिकाओं के बाहर स्रावित जाइमेज एंजाइम द्वारा शर्करा के अपघटन के फलस्वरूप संपन्न होता है।

45. श्वसन और दहन में दो अंतर लिखें।

 उत्तर  श्वसन एवं दहन में निम्न अंतर हैं –

श्वसन                         

 (i) जैव रासायनिक एवं क्रमबद्ध प्रक्रिया  है।     

(ii) कोशिकीय स्तर पर होता है।   

 दहन

 (i) भौतिकीय रासायनिक अभिक्रिया है जो अचानक होती है।

(ii) कोशिकीय स्तर पर नहीं होती है।

46. श्वसन एवं प्रकाश संश्लेषण में क्या अंतर है ?

 उत्तर

 श्वसन                               

(i) श्वसन एक विखंडात्मक प्रक्रिया है      

(ii) श्वसन में ग्लूकोज एवं ऑक्सीजन को सब्सट्रैट के रूप  उपयोग करते हैं।  

(iii) श्वसन में CO2  एवं H2O अंतोत्पाद के रूप में बनेंगे।    

 प्रकाशसंश्लेषण

 (i) प्रकाश संश्लेषण एक रचनात्मकअभिक्रिया है।

(ii) प्रकाश संश्लेषण में CO2  एवं जल को सब्सट्रैट के रूप में में उपयोग करते है।

(iii) प्रकाश संश्लेषण में ग्लूकोज एवं CO2 अंतोत्पाद के रूप में बनेंगे।

47. वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अंतर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिसमें अवायवीय श्वसन होता है।

उत्तर

 वायवीय श्वसन    

(i) इसमें ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।    

(ii) कोशिका के कोशिका द्रव्य व माइटोकॉण्ड्रिया में होता है     

 (iii) इस क्रिया में आतम उपाय CO2  तथा जल होते हैं।     

 (iv) यह क्रिया सभी जीवधारियों में पायी जाती है      

अवायवीय श्वसन

(i) इसमें ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है।

(ii) यह क्रिया केवल कोशिका द्रव्यव  में ही होती है।

(iii) इस क्रिया अंतिम उत्पाद इथाइल अल्कोहल तथा कार्बन डाईऑक्साइड है

(iv) यह क्रिया केवल कुछ ही जीवधारियों में पायी जाती है

 48. श्वसन एवं श्वासोच्छ्वास में क्या अंतर है ?

 उत्तर  श्वसन एवं श्वासोच्छ्वास में निम्नलिखित अंतर हैं

श्वसन           

 (i) श्वसन एक जैव रासायनिक प्रक्रम है।

(ii) इसमें ऊर्जा का निर्माण होता है।

(iii) यह कोशिका में संपन्न होती है 

 श्वासोच्छ्वास

(i) श्वसोच्छवास एक भौतिक क्रिया है

(ii) इसमें ऊर्जा का निर्माण नहीं होता है।

(iii) यह फेफड़े में होती है।

49. लगातार दौड़ते रहने से मनुष्य की माँसपेशियों में दर्द हो जाता है। इसके पीछे जैव वैज्ञानिक कारण क्या है ?

उत्तर लगातार दौड़ते रहने से मनुष्य की माँसपेशियों में लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है। यह मांसपेशियों में जमा हो जाता है, जिसके कारण मांसपेशियों में असह्य दर्द की अनुभूति होती है। यह दर्दयुक्त कैम्पस उत्पन्न करती है। यह एक प्रकार का अवायवीय श्वसन है।

 

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