जनतंत्र का जन्म

महत्वपूर्ण तथ्य

 

1.लेखक- रामधारी सिंह दिनकर

2. जन्म- 23 सितम्बर 1908 ई0 में सिमरिया

3. बेगूसराय (बिहार)

4. मृत्यु- 24 अप्रैल 1974 ई0 में

5. पिता- रवि सिंह

6. माता- मनरूप देवी

7. दिनकर जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव और उसके आस-पास हुई।

8. 1928 ई0 में मोकामा घाट रेलवे हाई स्कुल से मैट्रिक और 1932 ई0 में पटना कॉलेज से इतिहास में बी॰ ए॰ ऑनर्स किया।

9. बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर एवं भागलपुर विश्वविद्यालय में कुलपति रहे।

10. प्रमुख रचनाएँ- प्रणभंग, रेणुका, हुंकार, रसवंती, कुरूक्षेत्र, रश्मिरथी, नीलकुसुम, उर्वशी, हारे को हरिनाम, अर्धनारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय, शुद्ध कविता की खोज आदि

11. कविता परिचय- प्रस्तुत कविता में जनतंत्र के उदय के बारे में दिया गया है। जनतंत्र के राजनीतिक और ऐतिहासिक अभिप्रायों को कविता में उजागर करते हुए कवि यहाँ एक नवीन भारत का कल्पना करता है जिसमें जनता ही स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होने को है।

पद :- 

सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी।
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है।।
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो।
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

अर्थ:-  प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित पाठ जनतंत्र के जन्म से लिया गया है।इन पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर ने कहा है कि सदियों की ठंडी और बुझी हुई राख में सुगबुगाहट दिखाई पड़ रही है अर्थात क्रांति की चिनगारी भड़क उठी है। मिट्टी यानी जनता सोने की ताज पहनने के लिए व्याकुल है। राह छोड़ो, समय साक्षी है-जनता के रथ के पहियों की घर्घर आवाज सुनाई दे रही है। सिंहासन खाली करों जनता आ रही है।

जनता ? हाँ, मिट्टी की अबोध मुरतें वहीं,
जाड़े पाले की कसक सदा सहने वाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हो चुस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहने वाली।

अर्थ:-  प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित पाठ जनतंत्र के जन्म से लिया गया है।इन पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर ने कहा है कि जनता सचमुच मिट्टी की अबोध मुरतें हैं। वह वह जाड़े की रात में जाड़ा-पाला की कसक (रूक-रूक कर होने वाली पीड़ा) को हमेशा सहती है। वह थोड़ा भी आह नहीं करती है। ठंड से शरीर ऐसा कंपकपाता है कि लगता है शरीर में हजारों साँप डंस रहे हैं। इतना पीड़ा और दुख के बावजूद वह अपनी दुख किसी से नहीं कहती है।

जनता ? हाँ, लंबी-बड़ी जीभ की वहीं कसम,
जनता सचमूच ही बड़ी वेदना सहती है।
सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है ?
है प्रश्न गुढ़ जनता इस पर क्या कहती है।

अर्थ:-  प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित पाठ जनतंत्र के जन्म से लिया गया है। इन पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर ने कहा है कि जनता सचमुच असह्य वेदना को सह कर जीती है फिर भी जीवन में उफ तक नहीं करती है। कवि शपथ लेकर कहता है कि लंबी-चौड़ी जीभ की बातों पर विश्वास किया जाए। जनता सचमूच बहुत ही पीड़ा सहती है। कवि कहता कि जनमत का सही-सही अर्थ क्या है ? कवि इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहता है। यह प्रश्न बहुत ही गंभीर है।

मानो जनता हो फुल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोंनो में।
अथवा, कोई दुधमुही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सिमीत हों चार खिलौनों में ।।

अर्थ:-  प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित पाठ जनतंत्र के जन्म से लिया गया है।इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने जनता को फुल के समान नहीं देखने और समझने को कहा है। कवि कहता है कि जनता फूल नहीं है कि इसे जब चाहो तब सजा लो या कोई दुधमुही बच्ची नहीं कि इसे दो-चार खिलौने देकर बहला दो। जनता की हृदय सेवा और प्रेम से जीता जा सकता है।

लेकिन, होता भूडोल, बवडंर उठते हैं
जनता तब कोपाकुल हो भृकुटी चढ़ाती है।
दो राह , समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो
सिहांसन खाली करो, कि जनता आती है।।

अर्थ:-  प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित पाठ जनतंत्र के जन्म से लिया गया है।इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहता है कि जनता के पास अपास शक्तियाँ होती है। जनता जब हुंकार भरती है तो भूकंप आ जाता है। बवंडर उठ खड़ा होता है। जनता के हुंकार के सामने कोई टिक नहीं सकता है। जनता की राह को कोई रोक नहीं सकता है। सुनो, जनता रथ पर सवार होकर आ रही है, उसकी राह को छोड़ दो और सिंहासन खाली करो क्योंकि जनता आ रही है।

 

हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती

 

साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है।
जनता की रोके, राह समय में ताव कहाँ ?
जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।।

अर्थ:-  प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित पाठ जनतंत्र के जन्म से लिया गया है।इन पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर ने कहा है कि जनता की हुँकार से, जनता की ललकार से महलों की नींव उखड़ जाती है। जनता की साँसों के बल से राजमुकुट हवा में उड़ते हैं। समय में वह शक्ति नहीं है जो जनता की राह को रोक सके। जनता जैसी चाहती है समय भी वैसा ही करवट लेती है।

अब्दो, शताब्दीयों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बिता, गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं।
यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय
चिरते तिमिर का वक्ष उमड़ते आते हैं।

अर्थ:-  प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित पाठ जनतंत्र के जन्म से लिया गया है।इन पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर ने कहा है कि वर्षों, सैकड़ों वर्षों, हजारों वर्षों का अंधकारमयी समय बीत गया। यह जनता के स्वप्न है जो अंधकार को चिरते हुए धरा पर उतर रहे हैं।

सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुँचा।
तैतिस कोटी-हित सिंहासन तैयार करो
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है।
तैतिंस कोटी जनता के सिर पर मुकुट धरो।

 

अर्थ:-  प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित पाठ जनतंत्र के जन्म से लिया गया है।इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहता है कि भारत में लोकतंत्र का उदय हो रहा है। भारत स्वाधीन हो चूका है। यहाँ लोकतंत्र की स्थाना हो रही है। तैंतीस करोड़ जनता की हीत की बात है। तैंतीस करोड़ सिंहासन तैयार करो क्योंकि अभिषेक राजा का नहीं बल्कि जनता का होनेवाला है। आज का शुभ दिन तैंतिस करोड़ जनता के सिर पर मुकुट रखने का है। उनके लिए आज शुभ दिन है।

 

आरती लिए तुम किसे ढ़ुढ़ता है मुरख
मंदिरों, राजप्रसादों में, तहखानों में
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे
देवता मिलेंगें खेतों में, खलिहानों में।

अर्थ:-  प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित पाठ जनतंत्र के जन्म से लिया गया है।इन पंक्तियों के द्वारा कवि का कहना है कि हम आरती लेकर मुर्ख बनकर किसे ढूँढ रहे हैं? मेंदिरों, राजमहलों, तहखानों में देवता नहीं मिलेंगे। वास्तविक देवता तो सड़कों पर गिट्टी तोड़नेवाला मजदूर और खेत-खलिहानों में काम करनेवाला किसना है। अर्थात कवि ने जनता का वास्तिविक देवता कहा है।

फावड़े और हल राजदंड बनने को है
धूसरता सोने में सिंगार सजाती है।
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो
सिंहासन खाली करो की जनता आती है।

अर्थ:-  प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित पाठ जनतंत्र के जन्म से लिया गया है।इन पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर ने कहा है लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है। लोकतंत्र का राजदंड कोई राजपत्र, कोई हथियार या कोई औजार नहीं होता है। लोकतंत्र का मूल राजदंड जनता का हल और कुदाल है। इसी से वह धरती से सोना उगाता है। धरती की धुसरता का सिंगार आज सोना से सजा हुआ है। अर्थात धूल ही स्वर्ण है। रास्ता शीघ्र दो, सिंहासन शीघ्रता से खाली करो, देखो जनता स्वयं आ रही है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. दिनकर को किस कृति के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है ?

【A】 रश्मिरथी                         

【B】 संस्कृति के चार अध्याय       

【C】 उर्वशी                 

【D】 रेणुका

Ans : B

2.’जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता के कवि का क्या नाम है ?

【A】 रामधारी सिंह ‘दिनकर’        

【B】 अज्ञेय                             

【C】 सुमित्रानंदन पंत    

【D】 बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’

Ans : A

3. किसके हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती है ?

【A】 शासक                            

【B】 राजा                               

【C】 विदेशी                

【D】 जनता

Ans : D

4. ‘जनतंत्र का जन्म’ कविता के कवि हैं –

【A】 कुँवर नारायण                   

【B】 सुमित्रानंदन पंत                

【C】 मधारी सिंह ‘दिनकर’

【D】 रामधारी सिंह ‘दिनकर’

Ans : D

5. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ किस गाँव के निवासी थे ?

【A】 मोकामा                           

【B】 बक्सर                            

【C】 मुजफ्फरपुर          

【D】 सिमरिया, बेगूसराय

Ans : D

6. ‘सर्दियों की ठंडी बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है।’ यह पंक्ति है –

【A】 दिनकर की                                   

【B】 निराला की                                   

【C】 महादेवी की                      

【D】 अज्ञेय की

Ans : A

7. दिनकर किस काल के प्रमुख कवि हैं ?

(A) भारतेन्दु युग के
(B) छायावाद युग के
(C) उत्तर छायावाद युग के
(D) इनमें से कोई नहीं

Ans : C

8.मिट्टी की अबोध मूरतें कौन हैं ?

【A】 नेता                               

【B】 जनता                             

【C】 अधिकारी             

【D】 मंत्री

Ans : B

9. दिनकरजी की रचना है –

【A】 उर्वशी                             

【B】 साकेत                            

【C】 ग्राम्या                

【D】 गुंजन

Ans : A

10. ‘दिनकर’ की प्रमुख काव्य-कृति है –

【A】 रेणुका                             

【B】 रसवंती                           

【C】 कुरुक्षेत्र                

【D】 इनमें सभी

Ans : D

11.’जनतंत्र का जन्म’ कविता में कवि ने किसे शक्तिशाली कहा है ?

【A】 जनता को                        

【B】 राजा को                           

【C】 देवता को             

【D】 राक्षस को

Ans : A

12. ‘मिट्टी की ओर’ इनकी कृति है –

【A】 पद्य                              

【B】 गद्य                              

【C】 काव्य                 

【D】 इनमें सभी

Ans : D

13. दिनकरजी का जन्म कब हुआ था ?

【A】 20 सितंबर, 1908 को        

【B】 21 सितंबर, 1908 को        

【C】 22 सितंबर, 1908 को

【D】 23 सितंबर, 1908 को

Ans : D

14. दिनकरजी के पिता थे –

【A】 प्रभाकर सिंह                     

【B】 सूर्यदेव सिंह                     

【C】 रवि सिंह              

【D】 दिनेश सिंह

Ans : C

15. दिनकरजी की माता का नाम था –

【A】 मनरूप देवी                      

【B】 धनरूप देवी                      

【C】 रूपवती देवी         

【D】 कलावती देवी

Ans : A

16. ‘दिनकर’ की किस रचना में कर्ण को नायक बनाया गया है ?

【A】 उर्वशी                             

【B】 रश्मिरथी                         

【C】 हुंकार                  

【D】 हारे को हरिनाम

Ans : B

17. दिनकर की प्रारंभिक शिक्षा कहाँ से हुई थी ?

【A】 घर से                             

【B】 पिताजी से                        

【C】 गाँव और आसपास से

【D】 जिला स्कूल से

Ans : C

18. ‘दिनकरजी’ मैट्रिक पास कब किये थे ?

【A】 1927 ई० में                    

【B】 1928 ई० में                    

【C】 1929 ई० में        

【D】 1930 ई० में

Ans : B

19. ‘दिनकर’ की गद्य-कृति है

【A】 अर्धनारीश्वर                     

【B】 दिनकर की डायरी               

【C】 वट पीपल            

【D】 इनमें सभी

Ans : D

20. ‘दिनकरजी’ ने बी० ए० ऑनर्स कब किया था ?

【A】 1930 ई० में                    

【B】 1931 ई० में                    

【C】 1932 ई० में        

【D】 1933 ई० में

Ans : C

21. ‘रसवंती’ के रचनाकार हैं –

【A】 सुमित्रानंदन पंत                

【B】 रामधारी सिंह ‘दिनकर’        

【C】 अज्ञेय                 

【D】 सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

Ans : B

22. किसे सिंहासन खाली करने की बात कही गई है ?

【A】 राजतंत्र को                                   

【B】 सामंतवाद को                   

【C】 【A】 और 【B】 दोनों

【D】 इनमें से कोई नहीं

Ans : C

23. ‘राजतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता में कवि ने किसे देवता कहा है ?

【A】 राम                                

【B】 कृष्ण                              

【C】 बुद्ध                    

【D】 किसान-मजदूर

Ans : D

24. दिनकरजी को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस रचना पर दिया गया ?

【A】 संस्कृति के चार अध्याय       

【B】 कुरूक्षेत्र                           

【C】 अर्धनारीश्वर         

【D】 मिट्टी की ओर

Ans : A

25. ‘दिनकर’ ने अपनी पढ़ाई कहाँ तक की ?

【A】 इंटरमीडियट                     

【B】 बी० ए० ऑनर्स                  

【C】 एम० ए० ऑनर्स    

【D】 पी-एच. डी.

Ans : B

26. भारत सरकार द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया –

【A】 पद्मविभूषण से                   

【B】 भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार से

【C】 भारत रत्न से        

【D】 ऋतुराज सम्मान से

Ans : A

27. ‘उर्वशी’ किसकी कृति है ?

【A】 निराला की                                   

【B】 दिनकर की                                   

【C】 महादेवी वर्मा की    

【D】 सुमित्रानंदन पंत की

Ans : B

28. दिनकर किस विश्वविद्यालय के उपकुलपति 【 कुलपति】 बनाये गये थे ?

【A】 बिहार विश्वविद्यालय         

【B】 पटना विश्वविद्यालय         

【C】 भागलपुर विश्वविद्यालय

【D】 मगध विश्वविद्यालय

Ans : C

29. ‘दिनकरजी’ का निधन कब हुआ था ?

【A】 21 जनवरी, 1971            

【B】 22 फरवरी, 1972             

【C】 23 मार्च, 1973    

【D】 24 अप्रैल, 1974

Ans : D

30. दिनकर ने ‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता में ‘दुधमुंही’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है ?

【A】 अपनी बेटी के लिए             

【B】 समाज के किसी बालिका के लिए

【C】 जनता के लिए       

【D】 पड़ोस की बच्ची के लिए

Ans : C

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे ?

उत्तर ⇒कवि ने भारतीय प्रजा, जो खून-पसीना बहाकर देशहित का कार्य करती है, जिसके बल पर देश में सुख-सम्पदा स्थापित होता है, किसान, मजदूर जो स्वयं आहूत होकर देश को सुखी बनाते हैं, उन्हें आज का देवता कहा है।

प्रश्न 2. कवि ने जनता को ‘दूधमुँही’ क्यों कहा है ?

उत्तर ⇒ सिंहासन पर आरूढ़ रहने वाले राजनेताओं की दृष्टि में जनता फूल या दूधमुंही बच्ची की तरह है। रोती हुई दूधमुंही बच्ची को शान्त रखने के लिए उसके सामने खिलौने दे दिये जाते हैं। उसी प्रकार रोती हुई जनता को खुश करने के लिए कुछ प्रलोभन दिए जाते हैं।

प्रश्न 3. कवि जनता के स्वप्न का किस तरह चित्र खींचता है ?

उत्तर ⇒ भारत की जनता सदियों से, युगों-युगों से राजा के अधीनस्थ रही है लेकिन कवि ने कहा है कि चिरकाल से अंधकार में रह रही जनता राजतंत्र को उखाड़ फेंकने के स्वप्न देख रही है। राजतंत्र समाप्त होगा और जनतंत्र कायम होगा। राजा नहीं बल्कि प्रजा राज करेगी।

प्रश्न 4. “देवता मिलेंगे खेतों में खलिहानों में” पंक्ति के माध्यम से कवि किस देवता की बात करते हैं और क्यों ?

उत्तर ⇒ प्रश्नोक्त पंक्ति के माध्यम से कवि जनतारूपी देवता की बात करते हैं, क्योंकि कवि की दृष्टि में कर्म करता हुआ परिश्रमी व्यक्ति ही देवतास्वरूप है। मंदिरों-मठों में तो केवल मूर्तियाँ रहती हैं वास्तविक देवता वे ही हैं जो अपने कर्म तथा परिश्रम से समाज को सुख-समृद्धि उपलब्ध कराते हैं।

प्रश्न 5. ‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता का भावार्थ लिखें।
उत्तर ⇒ प्रस्तुत कविता आधुनिक भारत में जनतंत्र के उदय का जयघोष है। सदियों की पराधीनता के बाद स्वतंत्रता-प्राप्ति हुई और भारत में जनतंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा हुई । जनतंत्र के ऐतिहासिक और राजनीतिक अभिप्रायों को कविता में उजागर करते हुए कवि यहाँ एक नवीन भारत का शिलान्यास करता है जिसमें जनता ही स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होने को है। इसमें कवि ने जनता निहित शक्ति को उजागर करते हुए जनतंत्र की महत्ता को स्थापित करने पर बल दिया है। राजतंत्र की जड़ को उखाड़ फेंकने की ताकत जनता में है और राजसिंहासन का वास्तविक अधिकारी प्रजा ही है, ऐसा चित्रण किया गया है।

प्रश्न 6. दिनकर की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर-नाद क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर ⇒ कवि ने सदियों से राजतंत्र से शासित जनता की जागति को उजागर करते हए समय के चक्र की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है। राजसिंहासन पर प्रजा आरूढ होने जा रही है। समय की पुकार ही क्रांति की शंखनाद के रूप में रथ का घर्घर-नाद है।

प्रश्न 7. कवि के अनुसार किन लोगों की दृष्टि में जनता फूल या दुध मँही बच्ची की तरह है और क्यों ? कवि क्या कहकर उनका प्रतिवाद करता है ?

उत्तर ⇒ अंग्रेजी सरकार भी भारत की जनता को अबोध समझकर कुछ प्रलोभन देकर राजसुख में लिप्त है । वह समझती है कि जनता फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है लेकिन इसके प्रतिकार में कवि ने कहा है कि जब भोली लगनेवाली जनता जाग जाती है, जब उसे अपने में निहित शक्ति का आभास हो जाता है तब राजतंत्र हिल उठता है।

प्रश्न 8. कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन किस रूप में करता है ?

उत्तर ⇒ कविता के आरंभ में कवि ने भारतीय जनता की सरल एवं विनीत छवि का वर्णन किया है । कवि ने कहा है कि जनता सहनशील होती है, जाड़ा-गर्मी सबको सहती है, दुःख-सुख में एकसमान रहती है। मिट्टी की मूरत की तरह अबोध है। जनता फूल की तरह है जिसे जब चाहो, जहाँ जिस रूप में रख दो । जनता अबोध बालक है जिसे छोटे प्रलोभन देकर प्रसन्न किया जा सकता है, अर्थात् भारत की भोली-भाली जनता असहनीय पीड़ा को चुपचाप सहकर भी मूक बनी रहनेवाली है। राजा द्वारा शोषित होने पर भी प्रतिकार नहीं करती है।

प्रश्न 9. दिनकर रचित ‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता का सारांश लिखें।

उत्तर ⇒ ‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता आधुनिक भारत में जनतंत्र के उदय की जयघोष है।  समय का रथ सिंहासन की ओर बढ़ता आ रहा है। वह सिंहासनासीन अधिनायक से कहता है कि अब तुम सिंहासन का मोह त्याग दो। इसपर केवल जनता का अधिकार है। उसी जनता का इस सिंहासन पर अधिकार है जो युगों से पद-दलित रही है और जिसने अपने शोषण के विरुद्ध कभी आवाज नहीं उठाई है। वह जनता अब कोई दुधमुंही बच्ची नहीं रही जिसे खिलौनों से बहलाया जा सकें। जनता कोपाकुल होकर जब अपनी भृकुटि चढ़ाती है तो भूचाल आ जाता है। बड़े-बड़े बवंडर उठने लगते हैं। उनके हुंकारों में महलों को उखाड़ फेंकने की ताकत है, उनकी साँसों में ताज को हवा में उड़ा देने का बल है। जनता की राह को रोकने की क्षमता किसी में भी नहीं है। वह अपने साथ काल लिए चलती है। काल पर भी उसका शासन चलता है। सुनो, वह जनता युगों के शोषण के अंधकार को चीरती हुई बड़े वेग के साथ सिंहासन की तरफ आ रही है। संसार का सबसे बड़ा जनतंत्र सिंहासन के पास खड़ा है। उसका हृदय से अभिषेक करो। अब तुम्हारा समय नहीं रहा। अब प्रजा का समय है।

देवता मंदिरों, राजप्रासादों और तहखानों में निवास नहीं करते। वास्तविक देवता तो खेतों में, खलिहानों में हल चलाते मिलेंगे; कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ते और फावड़े चलाते मिलेंगे। अब उन्हीं किसानों और मजदूरों की बारी है। अब वे ही राज सिंहासन पर आरूढ़ होंगे। सिंहासन खाली कर देने में तुम्हें कोई आना-कानी नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 10. निम्नलिखित पंक्तियों के भाव स्पष्ट करें:

‘हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती
साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।”

उत्तर ⇒ प्रस्तुत पद्यांश में कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने जनता में निहित व्यापक शक्ति को उजागर किया है। इसमें कहा गया है कि जनता जब जाग जाती है, अपने शक्ति-बल का अभ्यास करके जब चल पड़ती है तब समय भी उसकी राह नहीं रोक सकती बल्कि जनता ही जिधर चाहेगी कालचक्र को मोड़ सकती है।
युगों-युगों से अंधकारमय वातावरण में जीवन व्यतीत कर रही जनता अब जागृत हो चुकी है। युगों-युगों के स्वप्न को साकार करने हेतु कदम बढ़ चुके हैं जिसे अब रोका नहीं जा सकता।

प्रश्न 11. व्याख्या करें : –
“सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।”

उत्तर ⇒ प्रस्तुत पद्यांश कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘जनतंत्र का जन्म’ से लिया गया है। यहाँ कवि जनतंत्र के आगमन का संकेत करते हुए साम्राज्यवादियों को जनता के लिए राजगद्दी छोड़ने का निर्देश करता है।
कवि कहता है कि जनतंत्र के आगमन से युगों-युगों तक जनता के हृदय की जो आग बुझकर ठंढी हो चुकी थी उसमें भी चेतना और सुगबुगाहट पैदा हो गयी और धरती भी सोने का ताज पहनकर इठलाने लगी है। जनता जिस रथ पर आ रही है उसका शब्द भी सुनाई पड़ता है, इसलिए उसका रास्ता खाली करते हुए राजगद्दी भी साम्राज्यवादी लोग छोड़ दें।
अर्थात्, कवि का अभिप्राय है कि क्रांति हो चुकी है, सब जगह उल्लासमय वातावरण है और जनता अब अपनी राजगद्दी सँभालने को तत्पर है।

 

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