महत्वपूर्ण तथ्य
1.लेखक- बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन‘
2. जन्म- 1 सितम्बर 1855 ई0 में मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)
3. मृत्यु- 1922 ई0 में
4. यह काव्य और जीवन दोनों क्षेत्रों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अपना आदर्श मानते थे।
5. इन्होनें भारत के विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया था।
6. 1874 ई0 में इन्होनें मिर्जापूर में रसिक समाज की स्थापना किया।
7. ये साहित्य सम्मेलन के कलकत्ता अधिवेशन के सभापति भी रहे। इनकी रचनाएँ ‘प्रेमघन सर्वस्व‘ में संगृहित हैं।
8. प्रमुख रचनाएँ- भारत सौभाग्य तथा प्रयाग रामागमन इनके प्रसिद्ध नाटक हैं। इन्होनें ‘जीर्ण जनपद‘ नामक नाटक लिखा जिसमें ग्रामीण जीवन का यर्थाथवादी चित्रण है।
9. कविता परिचय- प्रस्तुत कविता ‘स्वदेशी‘ प्रेमघन द्वारा लिखित रचनाएँ ‘प्रेमघन सर्वस्व‘ से संकलित है। इन दोहों में नवजागरण का स्वर मुखरित है। दोहों की विषय-वस्तु और काव्य वैभव कविता के स्वदेशी भाव को स्पष्ट करते हैं। कवि की चिंता आज के परिवेश में भी प्रासंगिक है।
पद :-
सबै बिदेसी वस्तु नर, गति रति रीत लखात।
भारतीयता कछु न अब भारत म दरसात।।
अर्थ:- कवि प्रेमघन कहते हैं कि पराधीनता के कारण सर्वत्र विदेशी वस्तुएँ ही दिखाई पड़ती हैं। लोगों के चाल-चलन तथा रीति-रिवाज बदल गए हैं। दुःख है कि लोगों में भारतीयता की भावना मर गई है। देश-प्रेम की भावना देश में कहीं भी दिखाई नहीं देती।
मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान।
मुसल्मान, हिंदू किधौं, कै हैं ये क्रिस्तान।।
पढ़ि विद्या परदेश की, बुद्धि विदेशी पाय।
चाल-चलन परदेश की, गई इन्हैं अति भाय।।
अर्थ:- कवि कहता है कि अंग्रजी शासनकाल में हिंदु-मुसलमान दोनों के रहन-सहन, खान-पान, विद्या-व्यवसाय, चाल-चलन तथा आचरण बदल गए हैं। विदेशी भाषा पढ़ने के कारण अपनी संस्कृति, भाषा सबका त्याग कर विदेशी चाल-चलन अपना लिए हैं।
ठटे विदेशी ठाट सब, बन्यो देश विदेस।
सपनेहूँ जिनमें न कहुँ, भारतीयता लेस।।
बोलि सकत हिंदी नहीं, अब मिलि हिंदू लोग।
अंगरेजी भाखन करत, अंग्रेजी उपभोग।।
अर्थ:- कवि ‘प्रेमघन‘ देश की दुर्दशा देखकर कहते हैं कि अंग्रेजी शासन के कारण भारतीयों का संस्कार विदेशी हो गया है। स्वदेशी वस्तुएँ नष्ट कर दी गई हैं। विदेशी वस्तुओं तथा भाषा के प्रचार के कारण कहीं भी भारतीयता के लक्षण दिखाई नहीं पड़ते। सभी अपनी सुख-सुविधा के प्राप्ति के लिए अंग्रजी भाषा का व्यवहार करते हैं।
अंगरेजी बाहन, बसन, वेष रीति औ नीति।
अंगरेजी रुचि, गृह, सकल, बस्तु देस विपरित।।
हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात।
भारतीय सब वस्तु ही, सों ये हाय घिनात।।
अर्थ:- कवि ‘प्रेमघन‘ जी कहते हैं कि अंग्रेजी शासनकाल में भारतीयों की मनोदशा इतनी दूषित हो गई है कि वे भारतीय वस्तुओं का उपयोग करना छोड़ विदेशी वस्तुओं का उपयोग करने लगे हैं। इनका हर कुछ विदेशी रंग में रंग चूका है। वे अपने को हिंदुस्तानी कहने में संकुचित महसुस करते हैं तथा स्वदेशी वस्तु देखकर नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं।
देस नगर बानक बनो, सब अंगरेजी चाल।
हाटन मैं देखहु भरा, बसे अंगरेजी माल।।
जिनसों सम्हल सकत नहिं तनकी, धोती ढीली-ढीली।
देस प्रंबध करिहिंगे वे यह, कैसी खाम खयाली।।
अर्थ:- कवि कहते हैं कि भारतीय हाट-बाजारों में अंग्रेजी भर दिए गये हैं। भारतीय इन वस्तुओं के व्यवसायी बन गए। देश में निर्मित वस्तुओं का लोप हो गया है। देश की कमान वैसे लोगों के हाथ में है, जों स्वयं ढुलमुल विचार के हैं, जिन्हें स्वयं पर भरोसा नहीं है।
दास-वृति की चाह चहूँ दिसि चारहु बरन बढ़ाली।
करत खुशामद झूठ प्रशंसा मानहुँ बने डफाली।।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. ‘स्वदेशी’ शीर्षक पाठ के रचनाकार हैं –
【A】 रामधन
【B】 मालधनी
【C】 श्यामधन
【D】 प्रेमधन
Ans : D
2. ‘हिन्दुस्तानी नाम सुनि, अब ये सकुचि लजात’-पंक्ति किस कविता से उद्धत है ?
【A】 भारतमाता
【B】 जनतंत्र का जन्म
【C】 अक्षर ज्ञान
【D】 स्वदेशी
Ans : D
3. ‘स्वदेशी’ पाठ के अनुसार अब हिंदु लोग मिलने पर आपस में किस भाषा में बात नहीं करते ?
【A】 अंग्रेजी
【B】 बंग्ला
【C】 हिन्दी
【D】 तमिल
Ans : C
4. ‘स्वदेशी’ शीर्षक. पाठ में दोहों का संकलन किस पुस्तक से लिया गया –
【A】 प्रेमघन सर्वस्व
【B】 भारत सौभाग्य
【C】 प्रयाग रामागमन
【D】 जीर्ण जनपद
Ans : A
5. ‘प्रेमघन’ अपना आदर्श किसे मानते थे ?
【A】 महात्मा गाँधी
【B】 विवेकानन्द
【C】 रवीन्द्रनाथ टैगोर
【D】 भारतेन्दु हरिशचन्द्र
Ans : D
6. परदेश की विद्या पढ़ने का क्या परिणाम हुआ ?
【A】 सबकी बुद्धि भारतीय हो गई।
【B】 सबकी बुद्धि विदेशी हो गई।
【C】 सबकी बुद्धि आध्यात्मिक हो गई।
【D】 उपर्युक्त सभी
Ans : B
7. “सबै बिदेसी वस्तु नर, गति रति रीत लखात।……………….. कछु न अब, भारत मदरसात।” रिक्त स्थानों में सही विकल्प भरें –
【A】 राष्ट्रीयता
【B】 भारतीयता
【C】 मनुजता
【D】 आत्मीयता
Ans : B
8. कवि प्रेमघन को भारत में क्या दिखाई नहीं देता है ?
【A】 धन
【B】 शिक्षा
【C】 स्वाधीनता
【D】 भारतीयता
Ans : D
9. ‘प्रेमघन’ जी किस राज्य के निवासी थे ?
【A】 बिहार
【B】 मध्यप्रदेश
【C】 उत्तरप्रदेश
【D】 राजस्थान
Ans : B
10. ‘प्रेमघन’ ने मुख्य रूप से किस भाषा में काव्य रचना की ?
【A】 ब्रज
【B】 देवनागरी
【C】 भोजपुरी
【D】 कन्नड़
Ans : A
11. ‘स्वदेशी’ शीर्षक पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता किस छन्द में है ?
【A】 चौपाई
【B】 दोहा
【C】 सोरठा
【D】 छप्पय
Ans : B
12. ‘बिदेसी’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?
【A】ब्रिटेन
【B】 अमेरिका
【C】 फ्रांस
【D】 डेनमार्क
Ans : A
13. ‘प्रेमधन’ जी का जन्म कब हुआ था ?
【A】 1853 ई० में
【B】 1854 ई०में
【C】 1855 ई० में
【D】 1856 ई० में
Ans : C
14. “प्रेमघन’ का जन्म कहाँ हुआ था ?
【A】 मिर्जापुर में
【B】 लखनऊ में
【C】 इलाहाबाद में
【D】 बनारस में
Ans : A
15. ‘स्वदेशी’ पाठ के रचनाकार हैं –
【A】 रामधारी सिंह ‘दिनकर’
【B】 गोपाल सिंह ‘नेपाली’
【C】 सुमित्रानन्दन पंत
【D】 प्रेमघन
Ans : D
16. ‘प्रेमघन’ किस युग के साहित्यकार थे ?
【A】 द्विवेदीयुग के
【B】 प्रसादयुग के
【C】 भारतेन्दुयुग के
【D】 इनमें से कोई नहीं
Ans : C
17. प्रेमधन की रचना है –
【A】 प्रयाग रामागमन
【B】 प्रयागराज
【C】 प्रयाग भरत आगमन
【D】 प्रयागकथा
Ans : A
18. ‘प्रेमघन’ की काव्य कृति है –
【A】भक्ति भावना
【B】समाजदशा
【C】देशप्रेम
【D】 इनमें से सभी
Ans : D
19. ‘प्रेमघन’ जी किस युग के महत्त्वपर्ण कवि थे ?
【A】 द्विवेदी युग
【B】 भारतेन्दु युग
【C】 भक्ति युग
【D】 आधुनिक युग
Ans : B
20. प्रेमघन ने 1874 ई० में किस समाज की स्थापना की ?
【A】 आर्य समाज
【B】 ब्रह्म समाज
【C】 रसिक समाज
【D】 इनमें कोई नहीं
Ans : C
21. इनमें कौन नाट्यकृति है ?
【A】 मानसरोवर
【B】 विपथगा
【C】 मृगनयनी
【D】 भारत सौभाग्य
Ans : D
22. ‘स्वदेशी’ के कवि हैं –
【A】 घनानंद
【B】 प्रेमघन
【C】 गुणाकर मूले
【D】 इनमें से कोई नहीं
Ans : B
23. ‘प्रेमधन’ की प्रसिद्ध नाट्यकृति कौन–सी है ?
【A】 हार्दिक हर्षादर्श
【B】 जीर्णजनपद
【C】 बृजचन्द पंचक
【D】 प्रयाग रामागमन
Ans : D
24. ‘भारत सौभाग्य’ के रचनाकार हैं–
【A】 रामधारी सिंह ‘दिनकर’
【B】 बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमधन’
【C】 जयशंकर प्रसाद
【D】 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
Ans : B
25. ‘प्रेमधन’ ने किस मासिक पत्रिका का सम्पादन किया ?
【A】 आनंद कादंबिनी
【B】 साहित्य सरिता
【C】 साहित्य सागर
【D】 सरस कादंबिनी
Ans : A
26. ‘प्रेमघन’ ने किस समाज की रचना की?
【A】 धनी समाज
【B】 कलावंत समाज
【C】 रसिक समाज
【D】 भक्त समाज
Ans : C
27. ‘प्रेमघन’ ने किस संस्था की स्थापना की ?
【A】 विद्वत् समाज का
【B】 रसिक समाज का
【C】 कवि समाज का
【D】 साहित्य समाज का
Ans : B
28. ‘प्रेमघन’ ने किस साप्ताहिक पत्र का संपादन किया ?
【A】 नागरी नीरद
【B】 साहित्य नीरद
【C】 साहित्य सरस
【D】 नीरद नागरी
Ans : A
29. ‘प्रेमघन’ की रचनाएँ किस नाम से संगृहीत हैं ?
【A】 सर्वस्व सरिता
【B】 प्रेमघन काव्य
【C】 प्रेमघन सर्वस्व
【D】 प्रेमघन साहित्य
Ans : C
30.कवि के अनुसार भारतीय को क्या अच्छा लगने लगा था ?
【A】 विदेशी चाल–चलन
【B】 विदेशी वेशभूषा
【C】 विदेशी रहन–सहन
【D】 इनमें सभी
Ans : D
31. कवि प्रेमघन समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है ?
【A】 दु:ख भोगी
【B】 विलासिता भोगी
【C】 सुविधा भोगी
【D】 आलस भोगी
Ans : C
32. ‘जीर्ण जनपद’ किसकी कृति है ?
【A】 प्रेमघन की
【B】 श्रीधर पाठक की
【C】 रामनरेश त्रिपाठी की
【D】 नागार्जुन की
Ans : A
33. पराधीन भारत में चारों वर्गों में चाह थी –
【A】 कलावृत्ति
【B】 दासवृत्ति
【C】 【A】 और 【B】 दोनों
【D】 इनमें से कोई नहीं
Ans : B
34. ‘डफाली’ का अर्थ क्या है ?
【A】 गानेवाला
【B】 भाषाविद्
【C】 नर्तक
【D】 बाजा बजानेवाला
Ans : D
35. ‘प्रेमघन’ की मृत्यु कब हुई ?
【A】 1918 ई०में
【B】 1920 ई०में
【C】 1922 ई०में
【D】 1924 ई०में
Ans : C
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. नेताओं के बारे में कविवर ‘प्रेमघन’ की क्या राय है ? अथवा, नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है ?
उत्तर ⇒ आज देश के नेता, देश के मार्गदर्शक भी स्वदेशी वेश–भूषा, बोल–चाल से परहेज करने लगे हैं। अपने देश की सभ्यता–संस्कृति को बढ़ावा देने के बजाय पाश्चात्य सभ्यता से स्वयं प्रभावित दिखते हैं।
प्रश्न 2. कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती ?
उत्तर ⇒ कवि को भारत में स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि यहाँ के लोग विदेशी रंग में रँगे हैं। खान–पान, बोल–चाल, हाट–बाजार अर्थात् सम्पूर्ण मानवीय क्रिया–कलाप में अंग्रेजियत ही अंग्रेजियत है। अतः कवि कहते हैं कि भारत में भारतीयता दिखाई नहीं पड़ती है।
प्रश्न 3. ‘स्वदेशी’ कवितां का मूल भाव क्या है ? सारांश में लिखिए।
उत्तर ⇒ स्वदेशी कविता का मूल भाव है कि भारत के लोगों से स्वदेशी भावना लुप्त हो गई है। विदेशी भाषा, रीति–रिवाज से इतना स्नेह हो गया है कि भारतीय लोगों का रुझान स्वदेशी के प्रति बिल्कुल नहीं है। सभी ओर मात्र अंग्रेजी का बोलबाला है।
प्रश्न 4. कवि ने ‘डफाली’ किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर ⇒ जिन लोगों में दास–वृत्ति बढ़ रही है, जो लोग पाश्चात्य सभ्यता संस्कृति की दासता के बंधन में बँधकर विदेशी रीति–रिवाज के बने हुए हैं उनको कवि डफाली की संज्ञा देते हैं क्योंकि वे विदेश की पाश्चात्य संस्कृतिक की, विदेशी वस्तुओं की, अंग्रेजी की झूठी प्रशंसा में लगे हुए हैं।
प्रश्न 5. कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है, और क्यों ?
उत्तर ⇒ उत्तर भारत में एक ऐसा समाज स्थापित हो गया है जो अंग्रेजी बोलने में शान की बात समझता है। अंग्रेजी रहन–सहन, विदेशी ठाट–बाट, विदेशी बोलचाल को अपनाना विकास मानते हैं। कवि इसी वर्ग की आलोचना करता है।
प्रश्न 6. स्वदेशी कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर ⇒ प्रस्तुत पंद में स्वदेशी भावना को जागृत करने का पूर्ण प्रयास किया गया है। इसमें मृतप्राय स्वदेशी भाव के प्रति रुझान उत्पन्न करने हेतु प्रेरित किया गया हैं। अतः स्वदेशी शीर्षक पूर्णतः सार्थक है।
प्रश्न 7. नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है ?
अथवा, नेताओं के बारे में कविवर ‘प्रेमघन’ की क्या राय है ?
उत्तर ⇒ आज देश के नेता, देश के मार्गदर्शक भी स्वदेशी वेश–भूषा, बोल–चाल से परहेज करने लगे हैं। अपने देश की सभ्यता–संस्कृति को बढ़ावा देने के बजाय पाश्चात्य सभ्यता से स्वयं प्रभावित दिखते हैं। कवि कहते हैं कि जिनसे धोती नहीं सँभलती अर्थात् अपने देश के वेश–भूषा को धारण करने में संकोच करते हों वे देश की व्यवस्था देखने में कितना सक्षम होंगे यह संदेह का विषय हो जाता है। जिस नेता में स्वदेशी भावना रची–बसी नहीं है, अपने देश की मिट्टी से दूर होते जा रहे हैं, उनसे देशसेवा की अपेक्षा कैसे की जा सकती है ? ऐसे नेताओं से देशहित की अपेक्षा करना ख्याली पुलाव है।
प्रश्न 8. ‘स्वदेशी’ कविता का सारांश लिखें।
उत्तर ⇒ पाठयपुस्तक में संकलित ‘प्रेमघन’ के दोहों में नवजागरण और देशप्रेम के स्वर मुखरित हुए हैं। दोहों में पराधीन भारत के लोगों की मनोवृत्तियों का चित्रण हुआ है। ‘प्रेमघन’ को इस बात का बहुत दुख है कि भारत में भारतीयता का सर्वथा में लोप हो गया है। भारत के लोग विदेशी रीति और वस्तु के दीवाने हो गए हैं। भारत में कोई भारतीय नहीं रह गया है। सभी परदेश की विद्या को महत्त्व देते हैं, उसके चलते उनकी बुद्धि भी विदेशी हो गई है। उन्हें तो विदेशी चाल–चलन ही पसंद आता नह है। सबको विदेशी पोशाक ही रुचती है। अपनी भाषा छोड़कर सभी अंगरेजी भाषा वे की ओर भाग रहे हैं। बोलचाल, रहन–सहन, पहनावा आदि में कहीं भी भारतीयता उन नजर नहीं आती। हिंदुस्तानी नाम सुनकर सबको मानो लाज लगती है और भारतीय विद वस्तु से सभी परहेज करते हैं। बाजारों में अँगरेजी माल भरे हुए हैं। अँगरेजी चाल है। पर घर बने हैं और शहर बसे हैं। राजनेताओं की नीति भी ढुलमुल है। सभी दासवृत्ति अथ से ग्रस्त हैं। सुख–सुविधा की चाह ने सबको दास बना रखा है। सब अँगरेजों की चिंत । झूठी प्रशंसा और खुशामद में इसलिए लगे हैं कि उन्हें अँगरेजों की कृपा से कुछ सुख–सुविधाएँ प्राप्त हो जाएँ। सभी भारतीय मानसिक स्तर पर अंगरेजों के दास हो गए हैं। ‘प्रेमघन’ ने इसी पीडा की अभिव्यक्ति संकलित दोहों में की है।
प्रश्न 9. निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या करें :
“दास–वृत्ति की चाह चहूँ दिसि चारहु बरन बढ़ाली।
करत खुशामद झूठ प्रशंसा मानहु बने डफाली।”
उत्तर ⇒ प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘प्रेमघन’ की ‘स्वदेशी’ कविता की है। इन दोहों में राष्ट्रीय स्वाधीनता की चेतना को सहचर बनाया गया है। साथ ही, नवजागरण का स्वर मुखरित किया गया है। उपर्युक्त पंक्तियों में कवि कहता है कि देखा जा रहा है कि यहाँ के लोगों में गुलामी के वातावरण में जीवन–यापन करने की आदत हो गई है। चारों ओर इसी का भाव मिल रहा है। खुशामद करना तथा झूठी प्रशंसा करना, झुठे राग की डफली बजाना यहाँ के लोगों की संस्कृति बन गई है।
प्रश्न 10. ‘अंग्रेजी रुचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत’ की व्याख्या करें।
उत्तर ⇒ प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य–पुस्तक के कवि ‘प्रेमघन’ जी द्वारा रचित ‘स्वदेशी’ पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ने कहा है कि भारत के लोगों से स्वदेशी भावना लुप्त हो गई है। विदेशी भाषा, रीति–रिवाज से इतना स्नेह हो । गया है कि भारतीय लोगों का रुझान स्वदेशी के प्रति बिल्कुल नहीं है। सभी ओर मात्र अंग्रेजी का बोलबाला है